उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की 12 सीटों पर 28 जनवरी को होने वाले चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दलों में सियासी हलचल बढ़ गई है. सभी पार्टियां चौतरफा अपने राजनीतिक समीकरण साधने मे जुट गई हैं. विधानसभा में संख्याबल के हिसाब से 12 विधान परिषद सीटों में से 10 पर बीजेपी की जीत तय मानी जा रही है. एक सीट पर जीत के लिए समाजवादी पार्टी के पर्याप्त संख्याबल है. लेकिन, बसपा और कांग्रेस जैसे अन्य दलों के पास बची हुई एक सीट जीतने के लिए जरूरी वोट संख्या नही है. बीजेपी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसा लग रहा है कि बीजेपी विधान परिषद की इस 12वीं सीट के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हुए हर रणनीति अपनाएगी. जिससे 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी विपक्षी दलों को एक मजबूत संदेश दे सके.
सभी ने छुपा रखे हैं अपने पत्ते
हालांकि, विधान परिषद चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद अबतक कुल 18 नामांकन पत्र खरीदे गए हैं. इन नामांकन पत्रों में से 10 बीजेपी, दो सपा और दो बसपा के नाम पर खरीदे गए हैं. साथ ही चार अन्य नामांकन पत्र निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा खरीदे गए हैं. ऐसे में बीजेपी 12वीं सीट को लेकर बैकफुट पर नजर आ रही है. लेकिन, प्रत्याशियों की घोषणा और नामांकन होने से पहले तक इसे लेकर केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. कई लोगों का मानना है कि बीजेपी राज्यसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी बसपा को वॉकओवर दे सकती है. वहीं, सपा ने दो प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर इस मुकाबले को और ज्यादा रोमांचक बना दिया. समाजवादी पार्टी निर्दलीय व अन्य बागी विधायकों के सहारे अपनी नाव किनारे तक पहुंचाने का भरपूर प्रयास करेगी. लेकिन, सपा, बसपा या अन्य दलों के पास इस सीट को जीतने लायक वोट नही हैं. सियासी बयानों पर नजर डालें तो, अपने विधायकों के सपा का समर्थन करने पर बसपा सुप्रीमो मायावती पहले से ही नाराज हैं. इसके बाद मायावती ने कहा था कि समाजवादी पार्टी को हराने के लिए अगर बीजेपी को वोट देना पड़ेगा, तो भी हम देंगे.
आसानी से नहीं मिलेगी ये 12वीं...
उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की 12 सीटों पर 28 जनवरी को होने वाले चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दलों में सियासी हलचल बढ़ गई है. सभी पार्टियां चौतरफा अपने राजनीतिक समीकरण साधने मे जुट गई हैं. विधानसभा में संख्याबल के हिसाब से 12 विधान परिषद सीटों में से 10 पर बीजेपी की जीत तय मानी जा रही है. एक सीट पर जीत के लिए समाजवादी पार्टी के पर्याप्त संख्याबल है. लेकिन, बसपा और कांग्रेस जैसे अन्य दलों के पास बची हुई एक सीट जीतने के लिए जरूरी वोट संख्या नही है. बीजेपी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसा लग रहा है कि बीजेपी विधान परिषद की इस 12वीं सीट के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हुए हर रणनीति अपनाएगी. जिससे 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी विपक्षी दलों को एक मजबूत संदेश दे सके.
सभी ने छुपा रखे हैं अपने पत्ते
हालांकि, विधान परिषद चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद अबतक कुल 18 नामांकन पत्र खरीदे गए हैं. इन नामांकन पत्रों में से 10 बीजेपी, दो सपा और दो बसपा के नाम पर खरीदे गए हैं. साथ ही चार अन्य नामांकन पत्र निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा खरीदे गए हैं. ऐसे में बीजेपी 12वीं सीट को लेकर बैकफुट पर नजर आ रही है. लेकिन, प्रत्याशियों की घोषणा और नामांकन होने से पहले तक इसे लेकर केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. कई लोगों का मानना है कि बीजेपी राज्यसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी बसपा को वॉकओवर दे सकती है. वहीं, सपा ने दो प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर इस मुकाबले को और ज्यादा रोमांचक बना दिया. समाजवादी पार्टी निर्दलीय व अन्य बागी विधायकों के सहारे अपनी नाव किनारे तक पहुंचाने का भरपूर प्रयास करेगी. लेकिन, सपा, बसपा या अन्य दलों के पास इस सीट को जीतने लायक वोट नही हैं. सियासी बयानों पर नजर डालें तो, अपने विधायकों के सपा का समर्थन करने पर बसपा सुप्रीमो मायावती पहले से ही नाराज हैं. इसके बाद मायावती ने कहा था कि समाजवादी पार्टी को हराने के लिए अगर बीजेपी को वोट देना पड़ेगा, तो भी हम देंगे.
आसानी से नहीं मिलेगी ये 12वीं सीट
यूपी विधानसभा में पार्टीवार विधायकों के संख्याबल पर नजर डालें, तो बीजेपी के 310, सपा के 49 सदस्य और बसपा के 18 सदस्य हैं. अपना दल (एस) के 9, कांग्रेस के 7, ओपी राजभर की सुभासपा के 4 सदस्य हैं. वहीं, अपना दल व रालोद के एक-एक और तीन निर्दलीय विधायक हैं. इस सदस्य संख्या में अगर बागी और नाराज लोगों की भी गिनती कर ली जाए, तो समीकरण बदलते हुए नजर आते हैं. सपा से अलग होकर शिवपाल यादव नई पार्टी बना चुके हैं और नितिन अग्रवाल बागी होकर बीजेपी के साथ हैं. बसपा का भी कमोबेस यही हाल है. बसपा के 18 विधायकों में से 6 पहले ही राज्यसभा चुनाव में सपा का समर्थन कर चुके थे. वहीं, एक अन्य विधायक के साथ सातों को बसपा से निलंबित कर दिया गया है. साथ ही बसपा विधायक मुख्तार अंसारी पंजाब की रोपड़ जेल में बंद हैं.
बीजेपी की राह नहीं है आसान
2017 विधानसभा चुनाव के बाद योगी सरकार में मंत्री रहे सुलेहदेव भारतीय समाज पार्टी प्रमुख ओमप्रकाश राजभर को उनके बयानों के चलते मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. इसके बाद से सुभासपा का बीजेपी से 36 का आंकड़ा बना हुआ है. अनुप्रिया पटेल का अपना दल (एस) 'एनडीए' का घटक दल होने के चलते बीजेपी के साथ रहेगा. वहीं, राष्ट्रीय लोक दल और अपना दल के एक-एक विधायक ऐन समय पर ही अपना दांव चलेंगे. जनसत्ता पार्टी प्रमुख और निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह और उनके वर्चस्व वाली बाबागंज सीट से विधायक विनोद सरोज वैसे तो उगते सूरज के साथ ही रहते हैं, लेकिन सपा यहां जोड़-तोड़ के प्रयास कर सकती है. कांग्रेस के सात विधायकों में से दो बागी हो चुके हैं. बचे हुए पांच अभी वेटिंग मोड मे हैं और जब तक आलाकमान से कोई आदेश नहीं आता, वो कुछ तय नही कर सकते.
सारा खेल पहली और दूसरी वरीयता के वोटों पर टिका
विधान परिषद के चुनाव में एक सीट पर जीत हासिल करने के लिए करीब 32 वोटों की जरूरत पड़ेगी. अगर किसी को प्रथम वरीयता के 32 वोट ना मिले, तो दूसरी वरीयता के वोटों से फैसला होगा. ऐसे में बीजेपी को अपना 11वां प्रत्याशी उतारने से पहले काफी मंथन करना होगा. वहीं, सीधे तौर पर ये लड़ाई सपा और बसपा के बीच ही नजर आ रही है. सपा को जीत के लिए करीब 18 वोट हासिल करने होंगे. कांग्रेस के 5 विधायक सपा के साथ जा सकते हैं. इनके साथ सपा को सुभासपा व अन्य पार्टियों के बागी और निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी जुटाना पड़ेगा. अगर बसपा अपना प्रत्याशी नहीं उतारती है, तो सीधे तौर पर सपा की जीत तय हो जाएगी. हालांकि, इसकी उम्मीद ना के बराबर ही है. वोटों के बंटवारे का सारा खेल दूसरी वरीयता पर आकर ही टिकेगा. ऐसे में देखना होगा कि राजनीतिक दल कौन सी सियासी गणित लगाकर इस 12वीं सीट पर कब्जा करेंगे.
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