कानपुर के बहुचर्चित बिकरू कांड के मास्टरमाइंड विकास दुबे और उसके चार सहयोगियों के एनकाउंटर पर हुई मजिस्ट्रेटी जांच में कानपुर पुलिस को क्लीन चिट मिल गई है. बिकरू कांड के बाद हुए एनकाउंटरों को लेकर यूपी पुलिस की कार्यशैली पर कई सवाल उठे थे. दुर्दांत हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे और उसके गुर्गों के एनकाउंटर को लेकर उठ रहे सभी सवालों पर मजिस्ट्रेट और न्यायिक जांच की रिपोर्ट ने विराम लगा दिया है. कानपुर पुलिस और विकास दुबे गैंग के बीच हुई मुठभेड़ों को जांच में सही पाया गया है. बीते साल 2 जुलाई को बिकरू में विकास दुबे और उसके गुर्गों ने मिलकर सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर सनसनी फैला दी थी. जांच में एनकाउंटर के सही पाए जाने के बावजूद अपराधियों के पुलिस और राजनीतिक दलों से गठजोड़ पर अभी भी कई अहम सवाल खड़े हो रहे हैं.
पुलिस और अपराधियों का गठजोड़
अपराधियों का पुलिस के साथ गठजोड़ कोई नई बात नहीं है. विकास दुबे का पुलिस वालों के साथ गठजोड़ ही बिकरू कांड की आधारशिला था. विकास दुबे को दबिश की खबर पहले ही पहुंचा दी गई थी. वहीं, क्लीन चिट के बाद पुलिस की छवि सरकारी महकमों और सरकारों के सामने जरूर साफ हो गई हो. लेकिन, लोगों के बीच पुलिस को लेकर बना हुआ डर अभी भी कायम है. कोई भी विवाद होने पर आज भी लोग पहले पुलिस के पास जाने में कतराते हैं. लोगों में बसे पुलिस के इस डर की वजह से ही विकास दुबे जैसे अपराधी फलते-फूलते हैं. प्रदेश में पुलिस की छवि सुधारने को लेकर कई प्रयास किए जाते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे. लेकिन, लोगों में पुलिस के प्रति वो भरोसा आज तक नहीं बन पाया है. ऐसे में यूपी पुलिस को अपनी छवि सुधारने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी. यूपी में अपराध और अपराधी कम हुए हैं, लेकिन पुलिस की कार्यशैली जस की तस है. गरीब आदमी पुलिस-थाना जाने से पहले सौ बार सोचता है. यह सभी जगहों का हाल नहीं है. फिर भी ऐसी स्थितियां क्यों बन गई हैं, पुलिस प्रशासन को इस पर...
कानपुर के बहुचर्चित बिकरू कांड के मास्टरमाइंड विकास दुबे और उसके चार सहयोगियों के एनकाउंटर पर हुई मजिस्ट्रेटी जांच में कानपुर पुलिस को क्लीन चिट मिल गई है. बिकरू कांड के बाद हुए एनकाउंटरों को लेकर यूपी पुलिस की कार्यशैली पर कई सवाल उठे थे. दुर्दांत हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे और उसके गुर्गों के एनकाउंटर को लेकर उठ रहे सभी सवालों पर मजिस्ट्रेट और न्यायिक जांच की रिपोर्ट ने विराम लगा दिया है. कानपुर पुलिस और विकास दुबे गैंग के बीच हुई मुठभेड़ों को जांच में सही पाया गया है. बीते साल 2 जुलाई को बिकरू में विकास दुबे और उसके गुर्गों ने मिलकर सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर सनसनी फैला दी थी. जांच में एनकाउंटर के सही पाए जाने के बावजूद अपराधियों के पुलिस और राजनीतिक दलों से गठजोड़ पर अभी भी कई अहम सवाल खड़े हो रहे हैं.
पुलिस और अपराधियों का गठजोड़
अपराधियों का पुलिस के साथ गठजोड़ कोई नई बात नहीं है. विकास दुबे का पुलिस वालों के साथ गठजोड़ ही बिकरू कांड की आधारशिला था. विकास दुबे को दबिश की खबर पहले ही पहुंचा दी गई थी. वहीं, क्लीन चिट के बाद पुलिस की छवि सरकारी महकमों और सरकारों के सामने जरूर साफ हो गई हो. लेकिन, लोगों के बीच पुलिस को लेकर बना हुआ डर अभी भी कायम है. कोई भी विवाद होने पर आज भी लोग पहले पुलिस के पास जाने में कतराते हैं. लोगों में बसे पुलिस के इस डर की वजह से ही विकास दुबे जैसे अपराधी फलते-फूलते हैं. प्रदेश में पुलिस की छवि सुधारने को लेकर कई प्रयास किए जाते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे. लेकिन, लोगों में पुलिस के प्रति वो भरोसा आज तक नहीं बन पाया है. ऐसे में यूपी पुलिस को अपनी छवि सुधारने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी. यूपी में अपराध और अपराधी कम हुए हैं, लेकिन पुलिस की कार्यशैली जस की तस है. गरीब आदमी पुलिस-थाना जाने से पहले सौ बार सोचता है. यह सभी जगहों का हाल नहीं है. फिर भी ऐसी स्थितियां क्यों बन गई हैं, पुलिस प्रशासन को इस पर विचार करना चाहिए. उत्तर प्रदेश में पुलिस प्रशासन और लॉ एंड ऑर्डर में कुछ आमूल-चूल परिवर्तन लाने होंगे. इसके लिए राज्य सरकार के साथ ही इन विभागों के अधिकारियों को भी सोचना होगा. विभागों में बसे भ्रष्टाचार और लचर तौर-तरीकों को पूरी तरह से हटाना होगा.
अपराधियों को क्यों मिलता है राजनीतिक संरक्षण?
बिना राजनीतिक संरक्षण के विकास दुबे जैसे दुर्दांत अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हों, ये कहना बेमानी होगा. विकास दुबे की राजनीतिक पैंठ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विकास ने 2003 में शिवली थाने में घुसकर उत्तर प्रदेश सरकार के श्रममंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी. इसके बावजूद राजनीतिक पार्टियों के दबाव में पुलिस उसका एनकाउंटर नहीं कर सकी थी. वह इस मामले में गवाहों के मुकरने और साक्ष्यों के अभाव में कोर्ट से बरी हो गया था. कानपुर के अलग-अलग थानों में उस पर दर्जनों मुकदमे दर्ज थे. लेकिन, राजनीतिक सरपरस्ती की वजह से पुलिस उसे हाथ लगाने से बचती रही. उत्तर प्रदेश में सरकार चाहे जो भी हो, विकास दुबे की राजनीतिक पकड़ उसे लगातार सुरक्षा मुहैया कराती रहती थी. विकास के शुरुआती दौर में उसे चौबेपुर के एक पूर्व विधायक का संरक्षण मिला हुआ था. राजनीतिक गलियारों में बड़े नेता के तौर पर पहचान रखने वाले इस विधायक के नाम का विकास दुबे ने भी खूब फायदा उठाया. बसपा से जुड़ने के बाद विकास दुबे जिला पंचायत सदस्य बना था और बाद में उसकी पत्नी भी निर्दलीय जिला पंचायत सदस्य रही. विकास दुबे का राजनीतिक इतिहास चौंकाने वाला रहा है और उसके सभी राजनीतिक दलों में नेताओं से संबंध थे. ऐसे में राजनीतिक दलों को इन अपराधियों को संरक्षण देने वाली सोच से उबरना होगा.
अपराध के खिलाफ हो 'जीरो टॉलरेंस' नीति
उत्तर प्रदेश में अपराध और अपराधियों से निपटने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'जीरो टॉलरेंस' नीति काफी मशहूर है. किसी भी मामले पर कड़े और बड़े फैसले लेने से ना चूकने वाले सीएम योगी ने उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के साथ ही कहा था कि अपराधियों के पास अब दो ही विकल्प हैं, या तो सरेंडर करें या फिर प्रदेश छोड़कर चले जाएं. इसके बाद से ही उत्तर प्रदेश में अपराधियों के धड़ाधड़ एनकाउंटर शुरू हो गए थे. साथ ही अपराधियों ने कोर्ट में सरेंडर करना चालू कर दिया था. आंकड़ों पर नजर डालें, तो मार्च 2017 से लेकर जुलाई 2020 के बीच उत्तर प्रदेश पुलिस और अपराधियों के बीच 6,326 मुठभेड़ हुईं. इन एनकाउंटर्स में पुलिस ने 123 अपराधियों को मार गिराया था. वहीं, 2,337 अपराधी मुठभेड़ के दौरान गोली लगने से घायल हुए. वहीं, बिकरू कांड के बाद राजनीतिक प्रश्रय के सहारे बचे हुए अपराधियों के खिलाफ भी पुलिस ने मोर्चा खोल दिया. हाल में ही बाहुबलियों और माफियाओं के खिलाफ सीएम योगी के आदेश पर हुई कार्रवाई ने भी काफी सुर्खियां बटोरीं. ऐसे में कहा जा सकता है कि सीएम योगी ने प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के लिए अपने फैसलों को प्रभावी रूप से जमीन पर उतारा है.
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