5 राज्यों में चुनाव हैं. ऐसे में क्या आरोप प्रत्यारोप, छींटाकशी क्या दल बदल. नेताओं के बेतुके बयानों से लेकर सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज तक तमाम ऐसी चीजें हैं जो भारतीय राजनीति को दिलचस्प बना रही हैं. चुनावों के चलते राजनीति कहां जा रही है. भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सपा या फिर आप? यूपी में ऊंट किस करवट बैठेगा? क्या पंजाब में अकालियों और कांग्रेसियों को मात दे पाएंगे केजरीवाल. क्या गोवा में भगवा लहराएगा या फिर कोई अहम फेरबदल होगा? क्या यूपी में साईकल चलेगी या पंजा इतिहास रच पाएगा? सवालों की भरमार है.
जवाब हम आपको देंगे. किसने क्या कहा से लेकर किसने किसलिए क्या कहा तक हर उस चीज का अपडेट आपको मिलेगा जो पांच राज्यों यानी गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से जुड़ी है. वहां होने वाले चुनावों से जुड़ी है.
बात जब चुनावों की चली है. उसमें भी सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश की चली है तो 2024 की दिशा यूपी 2022 में कैसे निर्धारित होगी इसका जवाब तो वक़्त देगा. लेकिन जिसके जवाब मिले हैं और जिसके बारे में सवाल उठे हैं वो सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव हैं.
घर के भेदी ही चुनावों से पहले अखिलेश की लंका लगा रहे हैं!
दरअसल चुनाव से ठीक पहले सपा को परिवार से ही दूसरा बड़ा झटका मिला है. पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह के साढ़ू प्रमोद गुप्ता भांपा में शामिल हुए हैं.प्रमोद का बीजेपी में जाना बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात वो है जिसे कहकर प्रमोद सपा छोड़ भाजपा में आए हैं. भाजपा ज्वाइन करने के बाद औैरैया के बिधूना से विधायक रहे प्रमोद कुमार गुप्ता ने अखिलेश यादव पर बेहद संगीन आरोप लगाए हैं....
5 राज्यों में चुनाव हैं. ऐसे में क्या आरोप प्रत्यारोप, छींटाकशी क्या दल बदल. नेताओं के बेतुके बयानों से लेकर सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज तक तमाम ऐसी चीजें हैं जो भारतीय राजनीति को दिलचस्प बना रही हैं. चुनावों के चलते राजनीति कहां जा रही है. भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सपा या फिर आप? यूपी में ऊंट किस करवट बैठेगा? क्या पंजाब में अकालियों और कांग्रेसियों को मात दे पाएंगे केजरीवाल. क्या गोवा में भगवा लहराएगा या फिर कोई अहम फेरबदल होगा? क्या यूपी में साईकल चलेगी या पंजा इतिहास रच पाएगा? सवालों की भरमार है.
जवाब हम आपको देंगे. किसने क्या कहा से लेकर किसने किसलिए क्या कहा तक हर उस चीज का अपडेट आपको मिलेगा जो पांच राज्यों यानी गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से जुड़ी है. वहां होने वाले चुनावों से जुड़ी है.
बात जब चुनावों की चली है. उसमें भी सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश की चली है तो 2024 की दिशा यूपी 2022 में कैसे निर्धारित होगी इसका जवाब तो वक़्त देगा. लेकिन जिसके जवाब मिले हैं और जिसके बारे में सवाल उठे हैं वो सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव हैं.
घर के भेदी ही चुनावों से पहले अखिलेश की लंका लगा रहे हैं!
दरअसल चुनाव से ठीक पहले सपा को परिवार से ही दूसरा बड़ा झटका मिला है. पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह के साढ़ू प्रमोद गुप्ता भांपा में शामिल हुए हैं.प्रमोद का बीजेपी में जाना बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात वो है जिसे कहकर प्रमोद सपा छोड़ भाजपा में आए हैं. भाजपा ज्वाइन करने के बाद औैरैया के बिधूना से विधायक रहे प्रमोद कुमार गुप्ता ने अखिलेश यादव पर बेहद संगीन आरोप लगाए हैं. मुलायम सिंह के साढू प्रमोद गुप्ता ने कहा कि अखिलेश यादव ने तो नेताजी को बंधक बना रखा है. सपा में गुंडों का ही बोलबाला है.
प्रमोद गुप्ता ने ये भी कहा है कि अखिलेश यादव चाटुकारों से घिर गए हैं. मुलायम सिंह बुजुर्ग हो गए हैं. उनकी बात अब न अखिलेश सुनते हैं और न ही पार्टी में कोई सुनता है.अखिलेश ने मुलायम को बहुत रुलाया है. अखिलेश को लेकर गुप्ता किस हद तक नाराज हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होने ये तक कह दिया है कि आज जैसी हालत मुलायम सिंह की है उसका कारण सिर्फ और सिर्फ अखिलेश हैं.
प्रमोद गुप्ता का दावा है कि अखिलेश की कार्यप्रणाली से पार्टी में भी गहरा असंतोष है. यदि भाजपा अनुमति दे तो सपा के 20 विधायक उनके साथ आने के लिए तैयार हैं
गोवा को लेकर गंभीर हैं केजरीवाल मनोहर पर्रिकर के बेटे को बनाया ढाल
गोवा विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा ने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल का टिकट काट दिया. ध्यान रहे कहा यही जा रहा था कि उत्पल भाजपा के टिकट पर पणजी से चुनाव लडेंगे. अब जबकि पर्रिकर के बेटे को टिकट नहीं मिला गोवा भाजपा आलोचकों के निशाने पर आ गई.
चूंकि गोवा में आम आदमी पार्टी भी अपनी किस्मत आजमा रही है पार्टी सुप्रीमो केजरीवाल ने मौके का पूरा फायदा उठाया. अरविंद केजरीवाल ने उत्पल पर्रिकर को पार्टी ज्वाइन करने के लिए आमंत्रित किया है.
मामले के मद्देनजर केजरीवाल ने एक ट्वीट किया है और लिखा है कि गोवा वासियों को बहुत दुख होता है कि भाजपा ने पर्रिकर परिवार के साथ भी यूज एंड थ्रो की नीति अपनाई है. मैंने हमेशा मनोहर पर्रिकर जी का सम्मान किया है. उत्पल जी का AAP के टिकट पर चुनाव में शामिल होने और लड़ने के लिए स्वागत है.
बताते चलें कि गोवा के लिए उत्पल के इरादे भी लोहा हैं. उत्पल ने बहुत पहले से ही मैदान में उतरने के लिए कमर कस ली थी. बताया जा रहा है कि उत्पल अपने पिता के प्रतिनिधित्व वाले पंजिम निर्वाचन क्षेत्र में डोर-डू-डोर बैठकें भी कर रहे थे. ऐसे में अब जबकि भाजपा ने उनका टिकट काटा है. उन तमाम लोगों को अपनी बात कहने और भाजपा की आलोचना करने का मौका मिल गया है जो भाजपा के खिलाफ थे.
बात उत्पल के टिकट कटने की हुई है तो इतना जरूर है ये फैसला भाजपा को मुश्किल में जरूर डालेगा. वहीं बात केजरीवाल की हो तो गोवा में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए केजरीवाल बीजेपी वाली ही नीति को अपना रहे हैं.
गोरखपुर से रावण का योगी के खिलाफ मैदान में आना और चुनाव लडना.
राजनीति को प्रिडिक्ट नहीं किया जा सकता और यूपी की राजनीति को तो बिल्कुल भी नहीं. यहां नेता कब क्या फैसल ले लें इसकी खबर शायद ही किसी को हो. ऐसा ही एक फैसला आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण ने लिया है जो बतौर वोटर हमें कई मायनों में विचलित करता नजर आ रहा है. ये बात तो जगजाहिर है कि यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ और चंद्रशेखर आज़ाद रावण के बीच छत्तीस का आंकड़ा है.
अब इसे दुश्मनी कहें या पब्लिसिटी यूपी जैसे सूबे में मायावती की पॉलिटिकल एब्सेंस में ख़ुद को दलितों और शोषितों का हॉबिन हुड समझ रहे रावण का गोरखपुर से चुनाव लड़ने की बात कहना भले ही पॉलिटिकल स्टंट हो लेकिन जैसा नजारा होगा वो कुछ वैसा ही होगा जैसा हमने काशी में तब देखा था जब पीएम मोदी के मुकाबले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल थे.
ध्यान रहे 2019 के आम चुनाव में जहां पीएम मोदी को 581022 वोट मिले थे तो वहीं अरविंद केजरीवाल की झोली में 209238 वोट आए थे. केजरीवाल चुनाव हारे और वापस लौट गए जिसके बाद काशी की जनता ने उन्हें रणछोड़ की संज्ञा दी थी.
बात चूंकि आज़ाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद रावण की चली है तो बताना जरूरी है कि इनकी तुलना केजरीवाल से इसलिए भी नहीं हो सकती क्योंकि जब काशी में केजरीवाल चुनाव लड़ने आए थे तब तक वो भारतीय राजनीति का स्थापित चेहरा बन चुके थे.
चंद्रशेखर आज़ाद रावण की घोषणा के बाद तमाम राजनीतिक विश्लेषक ऐसे हैं जिनका मत है कि धरने प्रदर्शन और राजनीतिक पर्यटन को मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स की संज्ञा नहीं दी जा सकती और रावण के बारे में दिलचस्प यही है कि उन्होंमें इसी के दम पर प्रसिद्धि हासिल की है.
निर्भया के कातिलों को ठिकाने लगाने के बाद वकील साहिबा का बसपा के ठिकाने आना!
चुनाव को कुछ ही समय है ऐसे में मायावती का जो रवैया है वो पूरी तरह चकित करता है. जैसी पॉलिटिकल एब्सेंस मायावती की है पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स यही कहते पाए जा रहे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मायावती और बसपा ने बहुत पहले ही सूबे के सत्ताधारी दल भाजपा के सामने हथियार डाल दिये हैं.एक तरफ ये बातें हैं दूसरी तरफ निर्भया मामले में वकील की भूमिका में रह चुकी सीमा कुशवाहा हैं. जिनके फैसले ने राजनीति की थोड़ी बहुत भी समझ रखने वालों को हैरत में डाल दिया है.
सीमा ने यूपी चुनाव से ठीक बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया है. ज्ञात हो कि बीएसपी क राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा की मौजूदगी में सीमा कुशवाहा को बसपा की सदस्यता दिलवाई गई है. सीमा कुशवाह का बसपा जॉइन करना भर था. सतीश चंद्र मिश्रा ने कुछ तस्वीरों को ट्वीट किया और वो बात कही जिसकी लड़ाई यूपी में प्रियंका गांधी लड़ती दिखाई दे रही हैं.
सतीश चंद्र मिश्रा ने अपने ट्वीट में लिखा कि, बहुजन समाज में जन्मे सभी पूज्य संत व महापुरुषों एवं आदरणीय बहन मायावती के विचारों से प्रेरित होकर, महिलाओं को न्याय दिलाने व उनके अधिकारों के लिए सदैव संघर्ष करने वाली सीमा कुशवाहा ने बहुजन समाज पार्टी की सदस्यता ली. सीमा कहां से चुनाव लड़ेंगी इसपर रहस्य अभी बरकरार है मगर इसमें कोई शक नहीं कि सीमा की बसपा में एंट्री है बड़ी गज़ब.
सवाल ये है कि क्या सीमा कुशवाहा बसपा के लिए वोट जुटाने और प्रियंका गांधी को चुनौती देने में राम बाण की भूमिका निभा पाएंगी? सवाल भले ही जटिल हो लेकिन इसका जवाब हमें मार्च के महीने में यूपी का परिणाम और चुनावों में बसपा की परफॉरमेंस देखकर पता चल जाएगा.
सीटों के चलते पंजाब और में कैप्टन और भाजपा दोनों ही टेंशन में हैं!
5 राज्यों के चुनाव हैं ऐसे में इस चुनावी महापर्व में यूपी के बाद किसी राज्य पर जनता की नजर है तो पंजाब का जिक्र करना किसी भी मायने में गलत न होगा। पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनकी नयी नयी दोस्त बानी भाजपा दोनों ही मुसीबत में हैं. बताते चलें कि पंजाब लोक कांग्रेस (पीएलसी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच 10 सीटों को लेकर गफलत की स्थिति है. बताया जा रहा है कि खरड़ और रूपनगर सीटें कैप्टन मांग रहे हैं, जबकि भाजपा अपने प्रत्याशी उतारना चाहती है. भाजपा के संसदीय बोर्ड ने इन सभी सीटों की ग्राउंड रिपोर्ट मांगी है. इसके बाद इन पर फैसला किया जाएगा.
पुआद की इन दोनों सीटों के लिए पीएलसी सुप्रीमो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी एड़ी से लेकर चोटी का जोर लगा दिया है. वहीं बात अगर दोआबा की हो तो वहां भी हालात मिलते जुलते ही हैं. यहां दसूहा और मुकेरियां सीट पर भाजपा अपने प्रत्याशी खड़े करना चाहती है लेकिन कैप्टन के साथ कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं का मन इन्हीं सीटों पर से चुनाव लड़ना और उसे जीतना है.
पंजाब में कैप्टन के सामने बीजेपी लिबरल क्यों है? इसलिए वजह उसका शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूटना है. ध्यान रहे अभी बीते दिनों ही किसान आंदोलन और कृषि कानूनों को मुद्दा बनाकर शिरोमणि अकाली दल और भाजपा ने अपनी राहें अलग कर ली थीं. क्योंकि पंजाब में बीजेपी को अपनी जड़ें मजबूत करना है इसलिए उसके यही प्रयास हैं कि किसी भी सूरत में नए बने दोस्त कैप्टन अमरिंदर सिंह आहत न हों.
फ़िलहाल के लिए इतना ही और इतनी बातों से इस बात की भी पूरी पुष्टि कर दी है कि चाहे वो पंजाब और उत्तर प्रदेश हों या फिर गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड आगामी विधानसभा चुनावों में हम ऐसा बहुत कुछ देखेंगे जो हमारी सोच और कल्पना से तो परे होगा ही साथ ही हमें इस बात का भी एहसास हो जाएगा कि राजनीति दिलफरेब हैं जीत और हार आदमी को साम, दाम, दंड, भेद सब एक करने को मजबूर कर देती है.
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