रामायण के लंका कांड के अंतिम हिस्से में उस चमत्कारी बूटी संजीवनी का जिक्र है, जिसने मूर्छित लक्ष्मण को जीवनदान दिया था. लेकिन रामायण यह भी कहती है कि हनुमान जी जैसी दिव्य शक्तियों वाले देवता भी हिमालय में इसे पहचान नहीं पाए. और अंत में एक पूरा पहाड़ उठाकर ही लंका ले गए, जिस पर उन्हें संजीवनी होने का अनुमान था. अब कई युगों के बाद उसी संजीवनी को ढूंढने का प्रयास उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शुरू किया है. इसके लिए वे 25 करोड़ रुपए भी खर्च करेंगे.
हरीश रावत को क्यों चाहिए संजीवनी?
उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार को बचा लेने के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत अब राज्य को एक ऐसी उड़ान देने की तैयारी में लगे हैं, जिससे वह न सिर्फ बीजेपी के बढ़ते प्रकोप को चेक कर पाएंगे बल्कि बीते दिनों में पाए अपने राजनीतिक जख्मों को भी भर लेंगे. यदि कोई उन पर राजनीतिक बाण चलाए तो वे शायद कोई ऐसी संजीवनी उनकी रक्षा कर ले.
क्या 25 करोड़ में मिल जाएगी संजीवनी?
हरीश रावत अब सरकारी खजाने से 25 करोड़ रुपये खर्च कर उस संजीवनी बूटी को खोज निकालेंगे. जिसका इस्तेमाल मेघनाद के शक्ति बाणों से घायल होकर मौत के मुंह में पहुंच चुके लक्ष्मण को जिंदा करने के लिए किया गया था. लेकिन, यह तो तय है कि यह बूटी बहुत ही दुर्लभ रही होगी वरना उसे ढूंढने के लिए इतना जतन क्यों करना पड़ता. इस अनमोल बूटी का ढूंढने का यह प्रयास कुछ ज्यादा ही सस्ता नहीं लगता?
क्या वाकई हिमालय में है वह संजीवनी?
क्या राज्य सरकार को यह पता चल गया है कि संजीवनी बूटी हिमालय के जंगलों में पाई जाती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि जिस एक पहाड़ी पर यह बूटी रामायण काल में मौजूद थी उसे हनुमान उठाकर लंका ले गए. और राज्य सरकार को अगर यह बूटी खोजनी है तो उसे पहले श्रीलंका में उस पहाड़ी की खोज करनी होगी जो हनुमान उठा ले गए थे.
मुख्यमंत्री हरीश रावत |
अब मानों यह बूटी वाकई हिमालय की पहाडियों में मौजूद है और हिमालय का वह हिस्सा उत्तराखंड सरकार की सरहद में ही पड़ता है. राज्य सरकार के इस फैसले से एक बार पूरी दुनिया की नजर उत्तराखंड पर टिक गई है. लोगों को समझ नहीं आ रहा कि वह सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया कैसे दें. खबर कुछ विदेशी मीडिया पोर्टल पर भी देखी जा रही है.
...और संजीवनी मिल गई तो?
इस बीच कुछ लोग यह भी सोच रहे होंगे कि यदि राज्य में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री को इस जादूई बूटी का तिलिस्म मिल गया तो संभव है कि कलियुग में भगवान राम के लिए वह हनुमान से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाएंगे. संभव है कि इस बात में कुछ दम हो क्योंकि अभी हाल ही में वह राम के नाम पर केन्द्र की सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी से कांग्रेस मुक्त भारत की बड़ी पठकनी खाकर उबरे हैं. किसी तरह वह राज्य में वापस अपनी सरकार बना पाए लेकिन इस फैसले से संभव है कि भगवान राम के प्रति उनकी आस्था कुछ यूं मजबूत हो गई है कि वह राम के सबसे काबिल और निष्ठावान हनुमान को बदल कर खुद को स्थापित करना चाह रहे हैं.
इतिहास में भले न तो संजीवनी बूटी का कोई सघन रिसर्च या प्रमाण मिला हैं और न ही लक्ष्मण के घायन होने की कोई पुष्टि हुई है. लेकिन जब राम के नाम पर बीजेपी केन्द्र और राज्य में राजनीति की हवा बदलने का दम खम रखती है तो हरीश रावत का भी राम के नाम पर संजीवनी तलाश स्वयं भगराम राम को कांग्रेस के पक्ष में करने की उनकी राजनीतिक मजबूरी हो सकती है. लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि ऐसी ही नीतियों पर बीते 6 दशकों से अधिक समय तक चलते रहने के कारण कांग्रेस मौजूदा दशा पर पहुंची है. इनसे सबक लेकर मौजूदा कांग्रेस सरकारें अपनी नीतियों को प्रमाणिक नहीं बनाती तो बीजेपी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना खुद कांग्रेस के बचे-कुचे मुख्यमंत्री पूरा कर देंगे.
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