राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पोलिटिकल यात्रा काफी पसंद है. खासकर विधानसभा चुनाव के समय. 4 अगस्त को वो 'राजस्थान गौरव यात्रा' की शुरुआत कर रही हैं. उनकी गौरव यात्रा राजसमंद जिला के चारभुजा मन्दिर से शुरू होगी. कुल चालीस दिन की यह यात्रा तकरीबन 165 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी और करीब 6000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करेगी. वसुन्धरा राजे की अगुवाई में होने जा रही इस यात्रा को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह रवाना करेंगे. इस यात्रा का समापन पुष्कर में होगा. इस यात्रा से वसुंधरा राजे की मंशा यही रहेगी की आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जनता को बीजेपी के पक्ष में कैसे किया जा सके. सीधे तौर पर कहे तो बीजेपी की सरकार इस यात्रा के माध्यम से जनता के सामने अपने कामकाज का लेखा-जोखा रखेगी.
अभी तक राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए डेट का ऐलान इलेक्शन कमीशन के द्वारा नहीं किया गया है. लेकिन इस साल के अंत में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के साथ यहां पर भी चुनाव कराये जाने वाले हैं. बीजेपी की स्थिति ऐसी नहीं है कि वो चुनाव आसानी से जीत सकती है और यही कारण है कि वसुंधरा राजे पूरा जोर इस चुनाव में लगा देना चाहती हैं. यहां पर ध्यान देने वाली बात ये है कि उनकी यह तीसरी यात्रा होगी और कहें तो तीसरी चुनावी यात्रा होगी. यह यात्रा सबसे कम समय में की जाने वाली उनकी सबसे लंबी चुनावी यात्रा होगी.
2003 में उन्होंने 'परिवर्तन यात्रा' की थी. इस यात्रा के कारण ही उस समय के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 120 सीटें मिली थी और वसुंधरा राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हो पायी थीं. उन्होंने 2013 में 'सुराज संकल्प यात्रा' की थी और उस समय बीजेपी ने 163 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी....
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पोलिटिकल यात्रा काफी पसंद है. खासकर विधानसभा चुनाव के समय. 4 अगस्त को वो 'राजस्थान गौरव यात्रा' की शुरुआत कर रही हैं. उनकी गौरव यात्रा राजसमंद जिला के चारभुजा मन्दिर से शुरू होगी. कुल चालीस दिन की यह यात्रा तकरीबन 165 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी और करीब 6000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करेगी. वसुन्धरा राजे की अगुवाई में होने जा रही इस यात्रा को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह रवाना करेंगे. इस यात्रा का समापन पुष्कर में होगा. इस यात्रा से वसुंधरा राजे की मंशा यही रहेगी की आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जनता को बीजेपी के पक्ष में कैसे किया जा सके. सीधे तौर पर कहे तो बीजेपी की सरकार इस यात्रा के माध्यम से जनता के सामने अपने कामकाज का लेखा-जोखा रखेगी.
अभी तक राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए डेट का ऐलान इलेक्शन कमीशन के द्वारा नहीं किया गया है. लेकिन इस साल के अंत में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के साथ यहां पर भी चुनाव कराये जाने वाले हैं. बीजेपी की स्थिति ऐसी नहीं है कि वो चुनाव आसानी से जीत सकती है और यही कारण है कि वसुंधरा राजे पूरा जोर इस चुनाव में लगा देना चाहती हैं. यहां पर ध्यान देने वाली बात ये है कि उनकी यह तीसरी यात्रा होगी और कहें तो तीसरी चुनावी यात्रा होगी. यह यात्रा सबसे कम समय में की जाने वाली उनकी सबसे लंबी चुनावी यात्रा होगी.
2003 में उन्होंने 'परिवर्तन यात्रा' की थी. इस यात्रा के कारण ही उस समय के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 120 सीटें मिली थी और वसुंधरा राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हो पायी थीं. उन्होंने 2013 में 'सुराज संकल्प यात्रा' की थी और उस समय बीजेपी ने 163 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी. हालांकि 2013 में मोदी की लहर भी एक मुख्य फैक्टर था जिसके कारण बीजेपी को वहां इतनी ज्यादा सीटें मिली थी. 200 विधायक वाले राजस्थान विधानसभा में एक पार्टी द्वारा इतना ज्यादा सीट में विजय प्राप्त करना कबीले तारीफ हैं. ये कमाल वसुंधरा-मोदी की जोड़ी के कारण संभव हो पाया था. देखना है, क्या यही कॉम्बिनेशन और 'गौरव यात्रा' वसुंधरा राजे को राजस्थान की गद्दी में फिर से काबिज करवा पाती है या नहीं. पिछले बार की तरह वो इस बार भी उनके लिए शुभ माने जाने वाली चारभुजा मन्दिर से यात्रा की शुरुआत करेगी. पिछले दो यात्राओं ने उन्हें राजस्थान की सत्ता में पहुंचाया. लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि क्या तीसरी बार भी ये यात्रा उनके लिए लकी साबित होगी?
समस्या ये है कि पिछली यात्राओं यानी 2003 और 2013 में जहां बीजेपी विपक्ष में थी, विरोधी लहर कांग्रेस के खिलाफ थी. वही उसके उलट इस बार राजस्थान में सरकार बीजेपी की हैं, कांग्रेस विपक्ष में हैं और विरोधी लहर बीजेपी सरकार के खिलाफ हैं. वर्त्तमान में वसुंधरा राजे की स्थिति काफी कमजोर हैं. हाल ही में मार्च के महीने में प्रधानमंत्री मोदी की झुंझुनू रैली के दौरान वसुंधरा को काले झंडे दिखाए गए थे. उनके स्पीच के दौरान कई बार व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास किया गया था. बीच-बीच में ये नारा भी सुना जा सकता था, जिसमें ये कहा जा रहा था “मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं” और "वसुंधरा तेरे चक्कर में, मोदी मारा जायेगा”.
स्पष्ट है 5 साल पहले जो विश्वास जनता द्वारा उनपर किया गया था वो इस बार बिलकुल भी नहीं है. सुराज की बातें जो 2013 के विधानसभा चुनाव के समय की गयी थी वो नदारद हैं. राज्य के नौजवान रोजगार के लिए तरश रहे हैं. किसान सामाजिक सुरक्षा को किये गए वादों को लेकर खार खाये बैठें हैं. यहां तक कि किसान कर्ज माफ़ी की योजना भी उनके गुस्से को शांत नहीं कर पायी हैं. ग्रामीण क्षेत्रो की बदहाली, सरकार द्वारा कई सेक्टर में निजीकरण के प्रयास, महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ क्राइम में वृद्धि आदि कई मुद्दे उनके विरुद्ध जा सकते हैं.
वसुंधरा राजे का सोशल इंजीनियरिंग का प्रयास भी इस बार काम नहीं आ रहा है. उनका क्षत्रिय की बेटी, जाट की बहु और गुर्जर के समधन का स्लोगन भी काम नहीं आ रहा है. उच्च जाति जैसे ब्राह्मण और राजपूत के लोग भी उनसे नाराज लग रहे हैं. उनका आरोप है कि उनके नेताओं का अपमान हो रहा है, उनकी अनदेखी की जा रही है. व्यवसायी भी जीएसटी और नोटबंदी के कारण कुछ हद तक नाराज नजर आ रहे हैं. यानी परिस्थितियां वसुंधरा राजे के खिलाफ ही दिख रही हैं. कांग्रेस भी आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पूरी एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं. इस बार मोदी की लहर भी कमजोर लग रही है. ऐसे में उनकी 'गौरव यात्रा' क्या रंग लाती हैं ये देखने वाली बात होगी.
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