विचारों से असहमत होते हुए भी अपने पूर्वजों को नमन करने के लिए भारत को पोर्ट ब्लेयर (अंडमान निकोबार) में उमड़ते देखा. वीर सावरकर से राजनैतिक दल विरोध रख सकते हैं, लेकिन भारत की जनता नहीं. वह जनता सेल्युलर जेल के सामने हजारों की संख्या में सलाम करने के लिए खड़ी थी. उस हजारों की संख्या में मैं भी खड़ा था. मेरे से पहले पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय मनमोहन सिंह जी भी थे, जिन्होंने अंडमान निकोबार के हवाई अड्डे का नाम 2005 में वीर सावरकर कर दिया था.
साल 1943 में नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने जापान के सहयोग से ब्रिटिश से आजाद करा कर तिरंगा फहरा दिया और अपने हाथ से जय हिन्द लिख दिया. आजाद हिन्द फौजियों को अंडमान में बहुतों को बसा दिया. पाकिस्तान से अलग निकलकर बंगलादेश बनने पर 1971 में तमाम हिन्दुओं को पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 5 एकड़ जमीन प्रति परिवार को देकर बसा दिया था. महंगाई अंडमान में आसमान पर है क्योंकि वहां कुछ पैदा ही नही होता, मसलन आलू 60 रुपया प्रति किलो और गोभी 200 रुपया प्रति नग, सारे सामान नाव से कोलकाता या चेन्नई से 4 दिन में आते हैं. इतने दूर से सामान आने पर उनके दाम अधिक होना स्वाभाविक है.
हवाई जहाज से आने वालों आदमियों में सबसे कम उत्तर प्रदेश और बिहार के होते हैं. सबसे ज्यादा आने वाले पर्यटकों में पश्चिम बंगाल, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रा और केरल के लोग होते हैं. पंजाब और राजस्थान भी एक्का-दुक्का अपने पर्यटक भेजकर अपना नाम रोशन कर रहा है. भारत से पहले आजाद होने वाले अंडमान में हवाई जहाज भी डायनीमिक फेयर के नाम दस हजार रुपए वाला टिकट 60 हजार प्रति प्रसेंजर बिकता है. जारवा आदिवासी को भी देखने का सौभाग्य मिला जो 60 हजार साल पहले से जिस अवस्था में रहते थे आज भी उसी अवस्था में मिले. उनकी संख्या लगभग 300 के आसपास है. सरकार...
विचारों से असहमत होते हुए भी अपने पूर्वजों को नमन करने के लिए भारत को पोर्ट ब्लेयर (अंडमान निकोबार) में उमड़ते देखा. वीर सावरकर से राजनैतिक दल विरोध रख सकते हैं, लेकिन भारत की जनता नहीं. वह जनता सेल्युलर जेल के सामने हजारों की संख्या में सलाम करने के लिए खड़ी थी. उस हजारों की संख्या में मैं भी खड़ा था. मेरे से पहले पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय मनमोहन सिंह जी भी थे, जिन्होंने अंडमान निकोबार के हवाई अड्डे का नाम 2005 में वीर सावरकर कर दिया था.
साल 1943 में नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने जापान के सहयोग से ब्रिटिश से आजाद करा कर तिरंगा फहरा दिया और अपने हाथ से जय हिन्द लिख दिया. आजाद हिन्द फौजियों को अंडमान में बहुतों को बसा दिया. पाकिस्तान से अलग निकलकर बंगलादेश बनने पर 1971 में तमाम हिन्दुओं को पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 5 एकड़ जमीन प्रति परिवार को देकर बसा दिया था. महंगाई अंडमान में आसमान पर है क्योंकि वहां कुछ पैदा ही नही होता, मसलन आलू 60 रुपया प्रति किलो और गोभी 200 रुपया प्रति नग, सारे सामान नाव से कोलकाता या चेन्नई से 4 दिन में आते हैं. इतने दूर से सामान आने पर उनके दाम अधिक होना स्वाभाविक है.
हवाई जहाज से आने वालों आदमियों में सबसे कम उत्तर प्रदेश और बिहार के होते हैं. सबसे ज्यादा आने वाले पर्यटकों में पश्चिम बंगाल, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रा और केरल के लोग होते हैं. पंजाब और राजस्थान भी एक्का-दुक्का अपने पर्यटक भेजकर अपना नाम रोशन कर रहा है. भारत से पहले आजाद होने वाले अंडमान में हवाई जहाज भी डायनीमिक फेयर के नाम दस हजार रुपए वाला टिकट 60 हजार प्रति प्रसेंजर बिकता है. जारवा आदिवासी को भी देखने का सौभाग्य मिला जो 60 हजार साल पहले से जिस अवस्था में रहते थे आज भी उसी अवस्था में मिले. उनकी संख्या लगभग 300 के आसपास है. सरकार उन्हें बचा रही है. उनकी भाषा वहीं समझते है.
जारवा आदिवासी जंगल में जंगली की तरह रहते हैं. शिकार करना और पेड़ के पत्ते से बदन ढकना ही उनको आता है. 300 में ज्यादातर जारवा आदिवासी नंगे ही रहते हैं. जारवा से ज्यादा खतरनाक सेनेटिल आदिवासी है. जहां जाना वर्जित है. किताबों में लिखा गया है कि ये लोग अफ्रीकन निग्रो है. संभवतः भूखंड के टकराव ये लोग यहां पहुंच गए जब की अफ्रीकन भी ऐसी भाषा नहीं बोलते. वहीं यह भी ज्ञात है की मानवी सभ्यता के विकास और विस्तार की उम्र लगभग 10 से 12 हजार वर्ष की है.
अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर गांव, गरीब के ही पैर पड़ रहे हैं. गांधी क्यों नहीं आए? यह सोच का विषय है. जबकि भारत को आजाद करो की मांग करने वाले तमाम हमारे पूर्वज इसी सेल्युलर जेल में तमाम तरह की यातना को सहते हुए अपने प्राण को उस फांसी के फंदे पर हंसते हंसते दे दिया, जिसको मैं दो दिन पहले अपनी नंगी आंखों से देख रहा था.गजब के देश में अजब लोगों की तरफ से मैं स्वयं नेता सुभाष चन्द्र बोस, वीर सावरकर और इंदिरा गांधी को नमन करता हूं. मनमोहन सिंह जी पूर्व प्रधान मंत्री को प्रणाम करता हूं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.