इन दिनों एक बच्ची का वीडियो ख़ूब वायरल हो रहा है जिसमें उसकी मां उसे डरा-धमकाकर पढ़ाने की कोशिश कर रही है. स्पष्ट है कि इसे परिवार के किसी सदस्य द्वारा ही बच्ची की क्यूटनेस या गुस्से वाले एक्सप्रेशन को संजो लेने के हिसाब से रिकॉर्ड किया गया होगा. पर इसे देखकर किसका दिल न पसीजा होगा. इस वीडियो ने स्कूल से जुड़ी कितनी ही यादें ताजा कर दीं पर उन यादों में दुःख है, दर्द है और दबा हुआ आक्रोश भी.
जी, इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सभी इसी ठुकाई-पिटाई वाले युग से गुजरकर आए हैं. पहले स्कूल में बच्चों की पिटाई कुछ इस तरह से होती थी कि मानों रुई धुनी जा रही हो. एक की भयंकर पिटाई और पूरी क्लास सुधर जाती थी. बच्चा चीखता रहता था...."सर, अब नहीं करूंगा, माफ कर दो." और टीचर पर उसकी बात का कोई असर नहीं होता था. उन्हें तो बस उसे ठोक-पीटकर सीधा करने की धुन लगी रहती थी. उसके बाद कक्षा में एक अजीब क़िस्म का सन्नाटा और सभी सहमे-सहमे से. उस दिन फिर वो बच्चा किसी से बात न करता. रोते-रोते टिफिन खत्म करता और उसके दोस्त उसे ढांढस देते कि "ये वाले तो सर ही बड़े दुष्ट हैं."
सामूहिक मुर्गा बनना या बेंच के ऊपर हाथ करके खड़े हो जाना आम बात थी. जब भी टीचर बोलते कि हाथ आगे करो, तभी समझ आ जाता कि अब डस्टर या नीम की पतली डंडी से सुताई प्रोग्राम प्रारम्भ करके हथेली ऐसी सुजाई जाएगी कि पानी का गिलास तक न पकड़ा जाएगा. घर पहुंचकर मम्मी को सारा किस्सा बताते. और वो जैसे ही कहतीं, "आग लगे, ऐसे टीचर को!" क़सम से उस वक़्त यूं लगता जैसे गहरे ज़ख्म पर किसी ने रुई का ठण्डा फाहा रख दिया हो....
इन दिनों एक बच्ची का वीडियो ख़ूब वायरल हो रहा है जिसमें उसकी मां उसे डरा-धमकाकर पढ़ाने की कोशिश कर रही है. स्पष्ट है कि इसे परिवार के किसी सदस्य द्वारा ही बच्ची की क्यूटनेस या गुस्से वाले एक्सप्रेशन को संजो लेने के हिसाब से रिकॉर्ड किया गया होगा. पर इसे देखकर किसका दिल न पसीजा होगा. इस वीडियो ने स्कूल से जुड़ी कितनी ही यादें ताजा कर दीं पर उन यादों में दुःख है, दर्द है और दबा हुआ आक्रोश भी.
जी, इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सभी इसी ठुकाई-पिटाई वाले युग से गुजरकर आए हैं. पहले स्कूल में बच्चों की पिटाई कुछ इस तरह से होती थी कि मानों रुई धुनी जा रही हो. एक की भयंकर पिटाई और पूरी क्लास सुधर जाती थी. बच्चा चीखता रहता था...."सर, अब नहीं करूंगा, माफ कर दो." और टीचर पर उसकी बात का कोई असर नहीं होता था. उन्हें तो बस उसे ठोक-पीटकर सीधा करने की धुन लगी रहती थी. उसके बाद कक्षा में एक अजीब क़िस्म का सन्नाटा और सभी सहमे-सहमे से. उस दिन फिर वो बच्चा किसी से बात न करता. रोते-रोते टिफिन खत्म करता और उसके दोस्त उसे ढांढस देते कि "ये वाले तो सर ही बड़े दुष्ट हैं."
सामूहिक मुर्गा बनना या बेंच के ऊपर हाथ करके खड़े हो जाना आम बात थी. जब भी टीचर बोलते कि हाथ आगे करो, तभी समझ आ जाता कि अब डस्टर या नीम की पतली डंडी से सुताई प्रोग्राम प्रारम्भ करके हथेली ऐसी सुजाई जाएगी कि पानी का गिलास तक न पकड़ा जाएगा. घर पहुंचकर मम्मी को सारा किस्सा बताते. और वो जैसे ही कहतीं, "आग लगे, ऐसे टीचर को!" क़सम से उस वक़्त यूं लगता जैसे गहरे ज़ख्म पर किसी ने रुई का ठण्डा फाहा रख दिया हो. हम और ज्यादा मुंह बिसूरकर रोते जिससे डिनर में अपनी फेवरेट डिश का बनना और भी पक्का हो जाता.
तब सोच अलग थी. सहनशीलता हुआ करती थी. उन दिनों के टीचर भी बच्चों से दिल से जुड़े थे. ये तो हमें अब पता चला है कि इंसान ऐसा व्यवहार अपने 'फ़्रस्ट्रेशन' को बाहर निकालने के लिए करता है, तब तो इस वर्ड की स्पेलिंग तक न पता थी. अब समय बदल चुका है और पिटाई करके सिखाने के तरीके बिलकुल स्वीकार नहीं किये जा सकते. आप शिक्षा-व्यवस्था को अपने फ़्रस्ट्रेशन का कितना ही जिम्मेदार क्यों न ठहरा लें पर बच्चे के साथ इस तरह का व्यवहार अत्यंत ही निन्दनीय एवं घृणित है. अरे, आप कभी न सिखाओ तो भी बच्चा समय के साथ सब सीख जाता है. एक से पांच तक की गिनती अभी न बोला, इसका मतलब यह नहीं कि कभी न बोलेगा! आप इस बच्ची के चेहरे का भय देखिए, मां के गुस्से और धमकियों के बीच बोलते समय उसे कितनी घबराहट है, कितनी चिड़चिड़ाहट और कितना आक्रोश! क्या ऐसे वातावरण और मानसिक स्थिति में कोई भी सीख सकता है?
देखिए वीडियो-
Most disturbing video I came across today on Facebook. Innocence and childhood being taken away in the name of education. #StopHarassing pic.twitter.com/uyH8gwBf8W
— Vamsi Kaka (@vamsikaka) August 18, 2017
यह तो एक छोटी-सी बच्ची है. कभी उसे प्यार से पढ़ाकर तो देखिये, वो ख़ुद ही आपके इर्दगिर्द नाचते हुए दस तक सुना देगी. बात मात्र अंकों पर आधारित शिक्षण-पद्धति की ही नहीं है, पेरेंट्स के पास भी इतना समय नहीं कि वे धीरज के साथ अपने बच्चों को पढ़ा सकें. दुःख इस बात का है कि उनकी व्यस्तता, कार्यभार का खामियाजा ये मासूम भुगतते हैं. बच्चों को आप भौतिक सुख-सुविधाएं न दे सकें चलेगा, पर उन्हें उनके हिस्से का स्नेह, बचपन की मासूमियत और स्वतंत्रता तो दीजिए. उन्हें ये विश्वास भी दीजिए कि यदि उन्हें पढाई में कुछ सीखने में कोई दिक्कत हो रही है तो आपका पूरा सपोर्ट उनके साथ है. मार खाकर पढ़ने से न सिर्फ उसे पढ़ाई से नफरत हो जायेगी बल्कि इसका असर उसके आपके साथ होने वाले भावनात्मक सम्बन्धों पर भी पड़ेगा. यक़ीनन आप ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेंगे, क्योंकि बच्चे आपका जीवन हैं. जीवन का मोल पहचानिए, जनाब!
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.