आज 16 दिसंबर है यानी विजय दिवस (Vijay Diwas). भारत ने इस दिन पाकिस्तान (Pakistan) को ऐसी धूल चटाई थी कि जिसके ज़ख्म पाकिस्तान के दिल पर आज भी ताज़ा है. आज भी पाकिस्तान के चेहरे पर 50 साल पहले मिरी करारी हार की टीस साफ़ दिखाई देती है. भारत ने पाकिस्तान को वर्ष 1971 में वह दर्द दिया जिससे पाकिस्तान आज तक कराह रहा है औऱ उसी को याद कर गीदड़धमकी भी देता रहता है. आज ही के दिन उस वक्त की भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indian Prime Minister Indira Gandhi) ने पाकिस्तान के टुकड़े-टुकड़े करके रख दिए थे. आज ही के दिन भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान की फौज ने घुटने टेक अपनी हार को स्वीकार्य कर लिया था. भारत के सामने चुनौतियां कठिन थी लेकिन भारतीय सेना की बहादुरी और इंदिरा गांधी की रणनीति ने भारत के सिर पर जीत का ताज पहना दिया था. बात थोड़ा विस्तार से करते हैं और फिर भारतीय सेना की वीरगाथा को सलाम करते हैं.
जब भारत आज़ाद हुआ तो पाकिस्तान का भी गठन हुआ, पाकिस्तान के हिस्से दो तरफ की ज़मीन आयी, पहला बना पूर्वी पाकिस्तान और दूसरा बना पश्चिमी पाकिस्तान. पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषा बोली जाती थी वह बंगाल के समीप था जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू भाषा प्रचलन में थी. अब चूंकि आबादी और क्षेत्रफल दोनों ही हिसाब से पश्चिमी पाकिस्तान का बोलबाला था तो सरकार में भी वहीं की हिस्सेदारी अधिक होती थी. लेकिन गजब हो गया वर्ष 1970 में, इस बार पाकिस्तान का चुनाव जीत गए पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुजीब उर्र रहमान.
लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों ने इसका विरोध कर दिया और किसी भी कीमत पर मुजीब को प्रधानमंत्री मानने से ही इंकार कर दिया. जब विवाद...
आज 16 दिसंबर है यानी विजय दिवस (Vijay Diwas). भारत ने इस दिन पाकिस्तान (Pakistan) को ऐसी धूल चटाई थी कि जिसके ज़ख्म पाकिस्तान के दिल पर आज भी ताज़ा है. आज भी पाकिस्तान के चेहरे पर 50 साल पहले मिरी करारी हार की टीस साफ़ दिखाई देती है. भारत ने पाकिस्तान को वर्ष 1971 में वह दर्द दिया जिससे पाकिस्तान आज तक कराह रहा है औऱ उसी को याद कर गीदड़धमकी भी देता रहता है. आज ही के दिन उस वक्त की भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indian Prime Minister Indira Gandhi) ने पाकिस्तान के टुकड़े-टुकड़े करके रख दिए थे. आज ही के दिन भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान की फौज ने घुटने टेक अपनी हार को स्वीकार्य कर लिया था. भारत के सामने चुनौतियां कठिन थी लेकिन भारतीय सेना की बहादुरी और इंदिरा गांधी की रणनीति ने भारत के सिर पर जीत का ताज पहना दिया था. बात थोड़ा विस्तार से करते हैं और फिर भारतीय सेना की वीरगाथा को सलाम करते हैं.
जब भारत आज़ाद हुआ तो पाकिस्तान का भी गठन हुआ, पाकिस्तान के हिस्से दो तरफ की ज़मीन आयी, पहला बना पूर्वी पाकिस्तान और दूसरा बना पश्चिमी पाकिस्तान. पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषा बोली जाती थी वह बंगाल के समीप था जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू भाषा प्रचलन में थी. अब चूंकि आबादी और क्षेत्रफल दोनों ही हिसाब से पश्चिमी पाकिस्तान का बोलबाला था तो सरकार में भी वहीं की हिस्सेदारी अधिक होती थी. लेकिन गजब हो गया वर्ष 1970 में, इस बार पाकिस्तान का चुनाव जीत गए पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुजीब उर्र रहमान.
लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों ने इसका विरोध कर दिया और किसी भी कीमत पर मुजीब को प्रधानमंत्री मानने से ही इंकार कर दिया. जब विवाद बढ़ता ही रहा और मुजीब को शपथ ही नहीं लेने दिया गया तो मुजीब रहमान ने मार्च 1971 को ऐलान कर दिया कि अब पूर्वी पाकिस्तान एक अलग देश यानी कि बांग्लादेश होगा उसका पाकिस्तान से कोई वास्ता नहीं होगा. पाकिस्तान की आर्मी यह सुनकर बौखला गई और फौरन मुजीब को गिरफ्तार कर पश्चिमी पाकिस्तान में बंदी बना डाला.
पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह न हो इसलिए आनन फानन में हज़ारों की सेना पूर्वी पाकिस्तान में भेज दी गई. पूर्वी पाकिस्तान में माहौल इस कद्र बेकाबू हो गए कि हिंसा भड़क उठी, लाखों लोगों की इस हिंसा में मौत हो गई, हज़ारों महिलाओं की इज्ज़त तार तार कर दी गई. पूर्वी पाकिस्तान के हालात बहुत ही भयावह हो गए. पूर्वी पाकिस्तान आग के शोलों में जल रहा था.
इधर नवंबर में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अमेरिका गई औऱ इस खराब हालात के बारे में अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से बातचीत की. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने इंदिरा गांधी से साफ लहजे में कह डाला कि भारत पाकिस्तान पर किसी भी तरह कि कोई कार्यवाही नहीं करेगा. इंदिरा गांधी ने भारत लौटते ही भारतीय सेना को पूर्वी पाकिस्तान में शांति बहाल करने के लिए युद्ध का आदेश दे दिया. पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों को भारत से उम्मीदें भी थी. पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों ने पूर्वी पाकिस्तान में हाहाकार मचा रखा था.
हर तरफ चीख-पुकार मची हुयी थी. भारतीय प्रधानमंत्री ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर हो रहे ज़ुल्म को खत्म करने की मानों कसम ही खा ली थी. भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में कार्यवायी की तैयारियों में जुट गई इधर इंदिरा गांधी तमाम तरह से राजनीतिक स्तर पर समर्थन जुटा रही थी. पाकिस्तान को इस बात की ख़बर लग गई और यकीन हो गया कि भारत मामले में दखलअंदाजी करेगा तो पाकिस्तान ने पश्चिमी पाकिस्तान से भारतीय वायूसेना के ठिकानों पर हमला कर दिया.
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने ये गलती करके मानो खुद के पैर पर कुल्हाड़ी चला डाली थी. भारत ने एक्शन की शुरुआत तक नहीं कि और पाकिस्तान ने मोर्चा खोल दिया. भारतीय सेना तैयार बैठी थी मगर पूर्वी पाकिस्तान की ओर पश्चिमी पाकिस्तान की तरफ भारत की सेना मौजूद तो थी लेकिन सिर्फ कश्मीर क्षेत्र में, पाकिस्तान ने राजस्थान और पंजाब की तरफ हमला बोला था लेकिन सलाम हमारी भारतीय सेना की बहादुरी को कि सैकड़ों की संख्या में ही पाकिस्तान के हजारों फौजीयों को चकमा दे डाला था.
भारत ने भी अपने मोर्चे खोल दिए. भारत की तीनों सेनाओं ने अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान की चारों ओर घेराबंदी कर दी. पूर्वी पाकिस्तान के अंदर गृहयुद्ध लड़ रही मुक्ति वाहिनी को भारत ने खुला समर्थन दे दिया और भारतीय सेना की मदद से पूर्वी पाकिस्तान को चारों ओर से घेर लिया गया. उधर पश्चिमी पाकिस्तान पर भी भारतीय सेना ने अपना दबदबा बनाए रखा था. पूर्वी पाकिस्तान की ओर भारतीय नेवी के आईएनएस विक्रांत जहाज ने अपनी गहरी छाप छोड़ रखी थी.
पाकिस्तान को इस बात की खबर हुयी तो पाकिस्तान ने विक्रांत को निशाना बनाने के लिए अमेरिका से खरीदी हुयी एक ऐसी पनडुब्बी भेजी जोकि पानी के ऊपर से दिखाई तक नहीं देती थी न ही आवाज़ करती थी. भारतीय सेना ने बहुत ही दिलचस्प तरीके से रणनीति तैयार की और पाकिस्तान की पनडुब्बी को भी बर्बाद कर डाला. इसी पनडुब्बी के खात्मे ने पाकिस्तान की हार पर मुहर लगा दी.
पाकिस्तान इस घाव से चीख उठा और फौरन अमेरिका से मदद की गुहार लगा डाली. अमेरिका ने भारत के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव रख दिया जिसमें रूस ने वीटो कर दिया और वह प्रस्ताव रद हो गया. अमेरिका ने झल्लाहट में भारतीय सेना के खिलाफ लड़ने के लिए अपना सांतवा बेड़ा भारत की ओर रवाना कर दिया. उसके साथ ब्रिटेन ने भी भारत के विक्रांत जहाज को मार गिराने के लिए कदम बढ़ा दिए.
इधर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फौरन रूस से मदद मांगी और रूस ने भारत से दोस्ती के करार के तहत अपना 40वां बेड़ा भारत की मदद के लिए भेज दिया.रुस भारत के खुले समर्थन में उतर गया जिससे अमेरिका और ब्रिटेन सकते में आ गए और समंदर में ही अपने बेड़े को रोके रखा. मामला अंतराष्ट्रीय स्तर पर बिगड़ते देख इंदिरा गांधी ने युद्ध को विराम देने के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी और पूर्वी पाकिस्तान में मौजूद पाकिस्तानी सेना से सरेंडर करने का प्रस्ताव दिया.
युद्ध शुरू होने के तेरहवें दिन पाकिस्तान की 93 हज़ार फौज ने भारतीय सेना के आगे घुटने टेक सरेंडर कर दिया और भारत ने वादे के मुताबिक पूर्वी पाकिस्तान को 16 दिसंबर को बांग्लादेश के रूप में बुनियाद डाल दिया. शेख मुजीब उर्र रहमान बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री बनें. आज भी उन्हीं के बेटी शेख हसीना के हाथों में बांग्लादेश की कमान है. भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश में जो शांति बहाल की वो आज भी मौजूद है और बांग्लादेश एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश है.
भारतीय सैनिक चाहती तो उस वक्त कश्मीर सहित पश्चिमी पाकिस्तान के भी कुछ हिस्से को हथिया सकती थी लेकिन इंदिरा गांधी ने कहा कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है उन्हें पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को सुकून दिलाना था जिसे वह दिला चुकी हैं. पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए बांग्लादेश के सर्वोच्च राजकीय सम्मान ‘बांग्लादेश स्वाधीनता सनमानोना’ से भी सम्मानित किया गया है.
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