अब तो कोई शक शुबहा नहीं रहना चाहिये कि मुखबिरों के मामले में विकास दुबे (Vikas Dubey Arrested) का नेटवर्क यूपी पुलिस से कहीं ज्यादा ही मजबूत है - और 7 दिन में उसने कदम कदम पर साबित भी किया है. एक डीएसपी सहित 8 पुलिसवालों की हत्या के बाद कोई अपराधी यूपी से निकल कर हरियाणा के फरीदाबाद में भी देखा जाये और फिर मध्य प्रदेश पहुंच जाये - ये बगैर उसके गहरे संपर्कों के कतई संभव न था.
यूपी पुलिस की मानें तो राज्य की सभी सीमाएं सील कर दी गयी थीं. वे रास्ते भी जिससे नेपाल भाग जाने का डर रहा, लेकिन यूपी पुलिस न उसे हरियाणा जाने से रोक पायी और न मध्य प्रदेश पुलिस उसे बड़े आराम से उज्जैन के महाकाल मंदिर तक जाने से रोक पायी. विकास दुबे भी जानता था कि अगर यूपी के एसटीएफ के हत्थे चढ़े तो एनकाउंटर में मारा जाना तय है, इसीलिए वो अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर हफ्ता भर कानपुर से निकल कर घूमता रहा.
चाहे विकास दुबे ने सरेंडर किया हो या फिर उसकी गिरफ्तारी हुई हो, अच्छी बात ये है कि वो जिंदा पकड़ा गया है - और यही वो आखिरी मौका है जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) चाहें तो उस पूरे नेक्सस को नेस्तनाबूद कर यूपी को अपराध मुक्त (How to Make P Crime Free) कर सकते हैं जिसकी बदौलत विकास दुबे जैसे अपराधी न सिर्फ पैदा होते हैं बल्कि इस कदर पाले पोसे जाते हैं कि उससे जुड़े सभी लाभार्थी फलते फूलते रहें.
एनकाउंटर से बचने के लिए विकास दुबे ने हर तरकीब आजमायी
कानपुर के बिकरू गांव से लेकर उज्जैन के महाकाल मंदिर पहुंचने तक विकास दुबे की एक ही कोशिश रही पुलिस एनकाउंटर से बचने की. अब तक जो भी रिपोर्ट आयी है, उससे भी यही लगता है कि विकास दुबे ने पुलिस टीम पर फायरिंग भी अपने एनकाउंटर को टालने के लिए ही की. चौबेपुर के तत्कालीन SO विनय तिवारी ने अगर पुलिस रेड को लेकर मुखबिरी नहीं की होती तो कानपुर शूटआउट की नौबत भी टल सकती थी - कम से कम पुलिस फोर्स का इतना बड़ा नुकसान तो नहीं ही होता. विनय तिवारी और SI केके शर्मा को तो एसटीएफ ने गिरफ्तार...
अब तो कोई शक शुबहा नहीं रहना चाहिये कि मुखबिरों के मामले में विकास दुबे (Vikas Dubey Arrested) का नेटवर्क यूपी पुलिस से कहीं ज्यादा ही मजबूत है - और 7 दिन में उसने कदम कदम पर साबित भी किया है. एक डीएसपी सहित 8 पुलिसवालों की हत्या के बाद कोई अपराधी यूपी से निकल कर हरियाणा के फरीदाबाद में भी देखा जाये और फिर मध्य प्रदेश पहुंच जाये - ये बगैर उसके गहरे संपर्कों के कतई संभव न था.
यूपी पुलिस की मानें तो राज्य की सभी सीमाएं सील कर दी गयी थीं. वे रास्ते भी जिससे नेपाल भाग जाने का डर रहा, लेकिन यूपी पुलिस न उसे हरियाणा जाने से रोक पायी और न मध्य प्रदेश पुलिस उसे बड़े आराम से उज्जैन के महाकाल मंदिर तक जाने से रोक पायी. विकास दुबे भी जानता था कि अगर यूपी के एसटीएफ के हत्थे चढ़े तो एनकाउंटर में मारा जाना तय है, इसीलिए वो अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर हफ्ता भर कानपुर से निकल कर घूमता रहा.
चाहे विकास दुबे ने सरेंडर किया हो या फिर उसकी गिरफ्तारी हुई हो, अच्छी बात ये है कि वो जिंदा पकड़ा गया है - और यही वो आखिरी मौका है जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) चाहें तो उस पूरे नेक्सस को नेस्तनाबूद कर यूपी को अपराध मुक्त (How to Make P Crime Free) कर सकते हैं जिसकी बदौलत विकास दुबे जैसे अपराधी न सिर्फ पैदा होते हैं बल्कि इस कदर पाले पोसे जाते हैं कि उससे जुड़े सभी लाभार्थी फलते फूलते रहें.
एनकाउंटर से बचने के लिए विकास दुबे ने हर तरकीब आजमायी
कानपुर के बिकरू गांव से लेकर उज्जैन के महाकाल मंदिर पहुंचने तक विकास दुबे की एक ही कोशिश रही पुलिस एनकाउंटर से बचने की. अब तक जो भी रिपोर्ट आयी है, उससे भी यही लगता है कि विकास दुबे ने पुलिस टीम पर फायरिंग भी अपने एनकाउंटर को टालने के लिए ही की. चौबेपुर के तत्कालीन SO विनय तिवारी ने अगर पुलिस रेड को लेकर मुखबिरी नहीं की होती तो कानपुर शूटआउट की नौबत भी टल सकती थी - कम से कम पुलिस फोर्स का इतना बड़ा नुकसान तो नहीं ही होता. विनय तिवारी और SI केके शर्मा को तो एसटीएफ ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन ऐसे न जाने कितने भरे पड़े हैं जो खाकी पहन कर किसी अपराधी के भागने में मददगार बने रहे.
अब तक होता तो यही रहा कि हर एनकाउंटर की स्क्रिप्ट यूपी पुलिस लिखती रही - लेकिन विकास दुबे ने उसे तहस-नहस कर एक एक शब्द अपने हिसाब से लिख डाला है. वैसे पुलिस और कानून का ककहरा भी विकास दुबे ने अपने उसी नेक्सस से पढ़ा है, जिसकी बदौलत वो थाने में घुस कर सत्ताधारी पार्टी के राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त नेता को मार डाला - और बदलती सूबे की सरकारों के नेताओं से सेटिंग कर बरी भी हो गया. इतना ही नहीं निचली अदालत के फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील भी नहीं होने दी.
कई राज्यों की पुलिस से संपर्क बनाये रखने के साथ साथ यूपी पुलिस अपने हिसाब से चप्पे चप्पे पर डटी हुई थी. फरीदाबाद के सीसीटीवी फुटेज से मालूम हुआ कि कैसे वो बड़े आराम से दो ऑटोवालों के मना कर देने के बाद तीसरे ऑटो में बैठ कर निकल जाता है. तभी मालूम होता है कि विकास दुबे किसी टीवी चैनल के दफ्तर में सरेंडर करने की तैयारी कर रहा है, पुलिस फिल्म सिटी की नाकेबंदी कर लेती है. जब दिल्ली में मीडिया दफ्तर या अदालत में सरेंडर की सारी कोशिशें नाकाम हो जाती है तो वो अपना प्लान बदल देता है, लेकिन ये सब यूपी पुलिस को पता नहीं चल पाता.
विकास दुबे के पकड़ में आ जाने की पुष्टि खुद मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र करते हैं - '... वो हमारी कस्टडी में है.' कुछ अपनी तारीफ करते हैं और कुछ अपने पुलिस की भी. बताते हैं कि किस तरह मध्य प्रदेश सरकार ने पुलिस को अलर्ट कर रखा था - और किस तरह मध्य प्रदेश पुलिस ने विकास दुबे जैसे दुर्दांत अपराधी तो दबोच लिया है.
लेकिन जल्दी ही तस्वीर साफ होने लगती है - कैसे मध्य प्रदेश की पुलिस ने कस्टडी में लेने से पहले विकास को विकास दुबे को वो हर सुविधा मुहैया करायी जिसकी उसे जरूरत रही. विकास दुबे बड़े आराम से उज्जैन पहुंचता है और अपने मनमाफिक खुद को पुलिस के हवाले करता है. उससे पहले वो मंदिर में जगह जगह खड़े होकर फोटो पोज देता है, मंदिर की वीआईपी एंट्री में अपने असली नाम विकास दुबे दर्ज करा कर पर्ची लेता है - और अंदर जाकर पुजारी और मंदिर के सुरक्षाकर्मियों को जोर जोर से अपना परिचय देता है. खुद ही ये भी कहता है कि पुलिस को बुला लो.
नरोत्तम मिश्रा का ये कहना कि विकास दुबे उज्जैन पुलिस की कस्टडी में है, ये बात भी तो विकास दुबे के मनमाफिक ही है. मतलब यूपी पुलिस से पहले वो मध्य प्रदेश पुलिस की कस्टडी में रहा. विकास दुबे यही तो चाहता है कि वो कदम कदम पर खुद के जिंदा होने के सबूत तैयार कर दे. मंदिर में पर्ची कटाना हो या फिर मीडिया को देखकर उसका जोर जोर से चिल्लाना - "मैं विकास दुबे हूं कानपुर वाला... इन्होंने हमे पकड़ लिया है." विकास दुबे सुनिश्चित करना चाहता था कि जैसे भी मुमकिन हो वो पुलिस एनकाउंटर से बच जाये.
₹ 5 लाख के इनाम का हकदार कौन
विकास दुबे के पकड़े जाने के पीछे कई कहानियां सामने आ रही हैं और अभी ये पूरी तरह साफ नहीं हो रहा है कि वास्तव में उज्जैन पहुंचने के बाद वो पुलिस कस्टडी तक कैसे पहुंचा?
1. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि पहले से अलर्ट होने के कारण उज्जैन पुलिस ने विकास दुबे को दबोच लिया और वो ये भी कहते हैं कि महाकाल मंदिर का नाम न लिया जाये क्योंकि उसकी गिरफ्तारी उज्जैन से हुई है.
2. महाकाल मंदिर के पुजारी का कहना है कि विकास दुबे खुद सरेंडर करना चाहता था, इसलिए वो मंदिर परिसर में चिल्ला चिल्ला कर कहने लगा कि वो ही विकास दुबे है. विकास दुबे ने खुद ही सुरक्षाकर्मियों से कहा कि पुलिस को उसके बारे में सूचना दे दी जाये.
3. लेकिन एक सिक्योरिटी गार्ड का कहना रहा, 'मैंने शक होने पर उसे पूछताछ के लिए रोका तो वह आनाकानी करने लगा. मुझे और ज्यादा शक हुआ, तो मैंने पुलिस को बुलाया... थोड़ी देर में पुलिस आई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया.'
4. बताया तो ये भी जा रहा है कि विकास दुबे ने ₹ 250 की रसीद कटाने के बाद मंदिर में गया और दर्शन किया. बाद में वो खुद सुरक्षाकर्मियों के पास पहुंच कर अपनी पहचान बतायी - मैं ही कानपुर वाला विकास दुबे हूं... मुझे पकड़ लो.'
अब विकास दुबे ने सरेंडर किया है या उसकी गिरफ्तारी हुई है, महत्वपूर्ण है कि अब वो कानून की पकड़ के बाहर नहीं रहा - हां, बड़ा सवाल ये है कि विकास दुबे पर घोषित ₹ 5 लाख के इनाम का असली हकदार कौन है?
एनकाउंटर की आशंका खत्म कहां हुई है
अक्सर ऐसे मामलों में एक ही कहानी सुनने को मिलती है - जो पुलिस सुनाया करती है. उज्जैन में विकास दुबे की गिरफ्तारी वास्तव में कैसे हो पायी, कोई एक नहीं बल्कि कई कहानियां सामने आ रही हैं.
विकास की मां सरला देवी ने कैमरे पर कहा कि महाकाल ने ही उनके बेटे की जान बचायी है. सरला देवी के मुताबिक मध्य प्रदेश में ही विकास का ससुराल भी है. सरला देवी ने ये भी बताया कि विकास दुबे हर साल सावन में महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन जाया करता था.
लेकिन कांग्रेस नेता मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर लिखा है - "मेरी सूचना है कि मध्यप्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के सौजन्य से यह संभव हुआ है."
दिग्विजय सिंह ने विकास दुबे के पकड़े जाने के बाद दिग्विजय सिंह ने कई ट्वीट किये हैं और मांग की है - "मैं शिवराज जी से विकास दुबे की गिरफ़्तारी या सरेंडर की न्यायिक जांच की मांग करता हूं. इस कुख्यात गैंगस्टर के किस किस नेता व पुलिसकर्मियों से सम्पर्क हैं जांच होना चाहिये. विकास दुबे को न्यायिक हिरासत में रखते हुए इसकी पुख्ता सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिये - ताकि सारे राज सामने आ सकें."
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की भी ऐसी ही डिमांड है कि विकास दुबे के मोबाइल फोन के कॉल रिकॉर्ड के डीटेल सार्वजनिक किये जायें ताकि उससे जुड़े सारे लोगों के नाम सामने आ सकें.
आज तक पर पूर्व आईपीएस अधिकारी टीआर कक्कड़ बार बार यही समझाने की कोशिश कर रहे थे कि विकास दुबे का जिंदा पकड़ा जाना कितना महत्वपूर्ण है. साथ ही, टीआर कक्कड़ ने वो बात भी कह ही डाली जिसे लेकर अब भी संशय बना हुआ है. अगर विकास दुबे भी अपने पांच साथियों की तरह एनकाउंटर में मार दिया गया होता तो वे सारे राज भी दफन हो जाते जिसे वो जानता है. टीआर कक्कड़ का कहना रहा कि ये मौजूदा व्यवस्था पर निर्भर करता है कि पूछताछ में विकास दुबे से वे राज उगलवाता है या नहीं. यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने भी कहा कि विकास दुबे के जरिये ये जानने का मौका है कि उसके नेक्सस में कौन कौन आईपीएस-आईएएस अफसर, नेता और कारोबारी हैं जिनकी मदद से उसका अपराध फलता फूलता रहा.
सच तो ये है कि यही वो मौका है जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद विकास दुबे केस की निगरानी करें - क्योंकि कोई भी चूक भारी पड़ सकती है और यूपी को अपराध मुक्त बनाने का ये आखिरी मौका भी हाथ से फिसल सकता है.
विकास दुबे ने जिंदा रहने के लिए लाख इंतजाम किया हो, लेकिन यूपी पुलिस के पास अभी एक मौका और है. ये भी तो हो सकता है कि हैदराबाद पुलिस की तरह यूपी पुलिस भी सीन रीक्रिएट करने की कोशिश कर रही हो और उसी दौरान कोई हादसा हो जाये - और फिर पुलिस के आला अफसर समझायें कि 'पुलिस ने शासन की मंशा के मुताबिक पूरी निष्ठा से काम किया है'.
ऐसा बिलकुल नहीं है कि विकास दुबे के एनकाउंटर का खतरा पूरी तरह टल गया है. कानपुर हाइवे पर विकास दुबे गैंग के प्रभात का एनकाउंटर एक नमूना ही है - सीन रिक्रिएट करने के नाम पर एसटीएफ कहीं भी 'ठोक' सकती है - और उसके साथ ही सारे राज दफन हो सकते हैं!
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