विकास दुबे एनकाउंटर के बाद सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में आजकल यूपी के दुर्दांत राजपूत हिस्ट्रीशीटर अपराधियों की सूची घूम रही है. इस इल्ज़ाम का लिबास ओढ़े कि देखिए यूपी में तो सिर्फ ब्राह्मण अपराधी ही मुठभेड़ में मरवाए जा रहे हैं. काले गाऊन पहने लोग ही ये फेहरिस्त लिए फिर रहे हैं. देखो जी अंधेरगर्दी है. खुल के जातिवाद (Castesim) को आधार बनाकर सिर्फ चोटी तिलक वालों को ही बांटी जा रही है मौत की रेवड़ियां. तलवार वाले क्या परदेस गए हुए हैं? या फिर ' आर्मी और सेना' वाले जंगलों में घुस गए? ये क्या जंगल राज है सिर्फ एक ही को टारगेट किया जा रहा है.
राज्य सरकार यानी शासन और प्रशासन ने ठाकुरों से तो गलबहियां जोड़ रखी हैं. एक और तबका यूं परेशान है कि अल्पसंख्यकों को भी मुठभेड़ में नहीं पूछा जा रहा. क्यों भई? आरक्षण सिर्फ नौकरियों में ही? दो तो यहां भी दो... हो न्याय अगर तो आधा दो.. पर इसमें भी यदि बाधा हो तो कुछ परसेंट तो दो. मने बिल्कुल ही छुट्टा छोड़ दिया?
सरकार के मुंह पर ये भी इल्ज़ाम मल रखा है कि दिखावे के लिए तमगे की तरह सीने पर ब्राह्मण मंत्री अफसर सचिव सजा रखे हैं. पर उन तमगों के नीचे जहां धड़कन होती है ना वहां अंदर बहुत कालिख है.
अब इन इल्ज़ामबाज़ों को कौन समझाए कि भईया अपराधी सिर्फ अपराधी होता है बाभन ठाकुर बनिया और... वो सब नहीं. इनके तर्क भी कम नहीं. तो क्यों लगा रखा है आरक्षण का चोंचला? छात्र भी छात्र है और वो मुलाजिम भी मुलाजिम है. सबके उतना ही बड़ा पेट है. खून का रंग भी उतना ही लाल और उन्हीं सात ग्रुप में से ही है. तो वहां तो बड़े उचक के आरक्षण की मलाई है. और यहां सिर्फ बाभन ही...
विकास दुबे एनकाउंटर के बाद सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में आजकल यूपी के दुर्दांत राजपूत हिस्ट्रीशीटर अपराधियों की सूची घूम रही है. इस इल्ज़ाम का लिबास ओढ़े कि देखिए यूपी में तो सिर्फ ब्राह्मण अपराधी ही मुठभेड़ में मरवाए जा रहे हैं. काले गाऊन पहने लोग ही ये फेहरिस्त लिए फिर रहे हैं. देखो जी अंधेरगर्दी है. खुल के जातिवाद (Castesim) को आधार बनाकर सिर्फ चोटी तिलक वालों को ही बांटी जा रही है मौत की रेवड़ियां. तलवार वाले क्या परदेस गए हुए हैं? या फिर ' आर्मी और सेना' वाले जंगलों में घुस गए? ये क्या जंगल राज है सिर्फ एक ही को टारगेट किया जा रहा है.
राज्य सरकार यानी शासन और प्रशासन ने ठाकुरों से तो गलबहियां जोड़ रखी हैं. एक और तबका यूं परेशान है कि अल्पसंख्यकों को भी मुठभेड़ में नहीं पूछा जा रहा. क्यों भई? आरक्षण सिर्फ नौकरियों में ही? दो तो यहां भी दो... हो न्याय अगर तो आधा दो.. पर इसमें भी यदि बाधा हो तो कुछ परसेंट तो दो. मने बिल्कुल ही छुट्टा छोड़ दिया?
सरकार के मुंह पर ये भी इल्ज़ाम मल रखा है कि दिखावे के लिए तमगे की तरह सीने पर ब्राह्मण मंत्री अफसर सचिव सजा रखे हैं. पर उन तमगों के नीचे जहां धड़कन होती है ना वहां अंदर बहुत कालिख है.
अब इन इल्ज़ामबाज़ों को कौन समझाए कि भईया अपराधी सिर्फ अपराधी होता है बाभन ठाकुर बनिया और... वो सब नहीं. इनके तर्क भी कम नहीं. तो क्यों लगा रखा है आरक्षण का चोंचला? छात्र भी छात्र है और वो मुलाजिम भी मुलाजिम है. सबके उतना ही बड़ा पेट है. खून का रंग भी उतना ही लाल और उन्हीं सात ग्रुप में से ही है. तो वहां तो बड़े उचक के आरक्षण की मलाई है. और यहां सिर्फ बाभन ही बाभन.
ये कौन सा कानून का राज है? बंटे तो सबमें बराबर बंटे फिर वो चाहे राशन हो या मौत. ये क्या सिर्फ हमको बांटे और उनको छांटे? अजी हां! देखा बड़ा जोग. बड़ी साधना. सबको एक निगाह से देखो भई.लिस्ट ही बनानी है तो लगे हाथ सबकी बनाओ. जितने हमारे मारो उतने ही उनके भी.
कल को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देते समय थर थर तो ना कांपोगे कि हाय अब क्या करें? ये तो बड़ी लापरवाही रह गई? नई कहानी क्या गढ़ें? तो भईया जोगी जी आरक्षण दो तो हरेक फील्ड में दो चाहे रोजी रोजगार हो या वो क्या कहते हैं. तुम्हारा वो मौत का कारोबार. भई अगड़ा पिछड़ा या अकलियत. जिसकी जितनी भागीदारी उतनी उसकी हिस्सेदारी. दे ही रहे हो तो मौत में भी दो सबके हिस्से का आरक्षण.
ये भी पढ़ें -
विकास दुबे की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तो उसके जीते जी ही आ गई थी!
Vikas Dubey का 'फर्जी एनकाउंटर' नहीं, सबूत मिटा डालने की कोशिश हुई है!
कौन है विकास दुबे, जो यूपी के 8 पुलिस कर्मियों की हत्या कर बच निकला
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.