मणिपुर जल रहा है. हालात इस हद तक बेकाबू हैं कि स्थिति को संभालने में सेना और सशत्र बलों को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. मणिपुर का रंग क्या है गर जो इस बात को समझना हो तो इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि सशस्त्र भीड़ द्वारा गांवों पर लगातार हमला किया जा रहा है. मकानों और दुकानों को आग के हवाले किया जा रहा है, उन्हें लूटा जा रहा है. मणिपुर के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में माता-पिता इतने डरे हुए थे कि उन्होंने बच्चों को नींद की दवाइयां दे दीं ताकि वे रोएं नहीं और हथियारबंद हमलावरों को उनके छिपने की जगह न पता चल जाए. स्थानीय खुफिया इकाइयों ने अपनी रिपोर्ट में भी इस बात का दावा किया है कि आने वाले दिनों में हमले और खून-खराबा बढ़ सकता है.
हर बीतते दिन के साथ मणिपुर में हालात बद से बदतर हो रहे हैं
मामले पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी अपनी नजरें बनाए हुए हैं. उन्होंने मणिपुर के सीएम एन. बीरेन सिंह से बात की है और उन्हें केंद्र की ओर से हरसंभव मदद का भरोसा दिया है. मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने भी लोगों से अपील की है कि वो शांति बनाने में सरकार और पुलिस की मदद करें.
सवाल होगा कि आखिर मणिपुर में जो हो रहा है उसकी प्रमुख वजह क्या है? जवाब है 'कब्ज़ा.' दरअसल जैसी मणिपुर की भौगोलिक स्थिति है. वहां मुख्य रूप से तीन समुदाय मैतेई, नागा कुकी रहते हैं. इनमें भी नागा और कुकी आदिवासी समुदाय के हैं. जबकि, मैतेई गैर-आदिवासी हैं. मैतेई समुदाय के बारे में दिलचस्प ये है कि ये अपने को हिंदू बताते हैं. जबकि जो नागा और कुकी हैं उनमें से ज्यादातर लोग ईसाई हैं. नागा और कुकी को राज्य में अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल है.
मैतेई समुदाय की मणिपुर में आबादी 53 फीसदी से अधिक है, मगर वो सिर्फ घाटी में ही वास कर सकते हैं. जबकि नागा और कुकी समुदाय के मामले में ऐसा नहीं है. मणिपुर में नागा और कुकी की आबादी 40 % के आसपास है और वो मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में वास करते हैं. जैसा कि हम बता चुके हैं विवाद कब्जे की लड़ाई को लेकर है इसलिए इस विवाद की वजह मणिपुर का वो कानून भी है, जिसके तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. और पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं.
चूंकि, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते. लड़ाई की असली वजह यही है. मैतेई समुदाय का कहना है कि राज्य में म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों की वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में बसना चाहते हैं और राज्य का मौजूदा कानून उनके पांव में बेड़ियां डाल रहा है.
बताते चलें कि राज्य की आबादी में 53 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के खिलाफ चुराचांदपुर जिले के तोरबंग इलाके में 'ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर' (एटीएसयूएम) द्वारा बुलाए गए 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के दौरान हिंसा भड़क गई. पुलिस के अनुसार, चुराचांदपुर जिले में मार्च के दौरान हथियार लिए हुए लोगों की एक भीड़ ने कथित तौर पर मैतेई समुदाय के लोगों पर हमला किया, जिसकी जवाबी कार्रवाई में भी हमले हुए, जिसके कारण पूरे राज्य में हिंसा भड़क गई.
बहरहाल भले ही दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के निर्देश दे दिए गए हों. लेकिन जो तनाव व्याप्त है वो शायद ही इतनी जल्दी ख़त्म हो. वक़्त मुश्किल है चाहे वो सरकार हो या जनता मणिपुर में सभी को बड़े ही संयम से काम लेना होगा.
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