नरेंद्र मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जु़ड़ी फाइलों को 23 जनवरी से सार्वजनिक करने की बात कही है. उम्मीद है कि इससे नेताजी के विमान दुर्घटना से जुड़े कई राज सामने आ सकेंगे. लेकिन उससे पहले ब्रिटेन की एक वेबसाइट www.bosefiles.info ने नेताजी की कथित मौत से एक दिन पहले की कुछ जानकारी और उससे जुड़े दस्तावेज जारी किए हैं. इन दस्तावेजों को नेताजी के पोते और ब्रिटेन में एक स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम कर रहे आशिष रे ने जारी किए हैं.
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17 अगस्त को सुभाष चंद्र बोस बैंकॉक से रवाना हुए और दोपहर तक साइगोन (वियतनाम) पहुंच गए. कई भारतीय और जापानी चश्मदीदों ने 1956 की मेजर जनरल शाह नवाज खान की अध्यक्षता वाली नेताजी जांच समिति के सामने इसे माना है. प्रोविजनल गवर्मेंट ऑफ फ्री इंडिया (पीजीएफआई) के एस. ए. अय्यर, देबनाथ दास और आजाद हिंद फौज (INA) के साथ जुड़े रहे हबीब उर रहमान भी इस समिति के सदस्य थे. इन दोनों संगठनों का नेतृत्व बोस ने किया था.
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आजाद हिंद फौज में चीफ ऑफ स्टाफ रहे मेजर जनरल भोंसले ने भी माना था कि 17 अगस्त 1945 की सुबह नेताजी बैंकॉक से साइगोन के लिए निकले थे.
हालांकि इससे कुछ दिनों पहले ही जापान विश्व युद्ध-2 में बिना किसी शर्त आत्मसमर्पण कर चुका था. आगे अब क्या कदम उठाए जाएं, इसे लेकर जापान की सेना कंफ्यूज थी. इस कारण पूर्वनियोजित योजना के तहत नेताजी को साइगोन से उत्तर-पूर्व एशिया ले जाने के लिए कोई विमान भी उपलब्ध नहीं था. आखिरकार, हिकारी किकान के जनरल इसोदा ने बोस को बताया कि एक प्लेन टोक्यो जा रहा है और उसके केवल दो सीट उपलब्ध हो पाएंगे. जनरल इसोदा जापानी अधिकारियों और पीजीएफआई...
नरेंद्र मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जु़ड़ी फाइलों को 23 जनवरी से सार्वजनिक करने की बात कही है. उम्मीद है कि इससे नेताजी के विमान दुर्घटना से जुड़े कई राज सामने आ सकेंगे. लेकिन उससे पहले ब्रिटेन की एक वेबसाइट www.bosefiles.info ने नेताजी की कथित मौत से एक दिन पहले की कुछ जानकारी और उससे जुड़े दस्तावेज जारी किए हैं. इन दस्तावेजों को नेताजी के पोते और ब्रिटेन में एक स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम कर रहे आशिष रे ने जारी किए हैं.
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17 अगस्त को सुभाष चंद्र बोस बैंकॉक से रवाना हुए और दोपहर तक साइगोन (वियतनाम) पहुंच गए. कई भारतीय और जापानी चश्मदीदों ने 1956 की मेजर जनरल शाह नवाज खान की अध्यक्षता वाली नेताजी जांच समिति के सामने इसे माना है. प्रोविजनल गवर्मेंट ऑफ फ्री इंडिया (पीजीएफआई) के एस. ए. अय्यर, देबनाथ दास और आजाद हिंद फौज (INA) के साथ जुड़े रहे हबीब उर रहमान भी इस समिति के सदस्य थे. इन दोनों संगठनों का नेतृत्व बोस ने किया था.
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आजाद हिंद फौज में चीफ ऑफ स्टाफ रहे मेजर जनरल भोंसले ने भी माना था कि 17 अगस्त 1945 की सुबह नेताजी बैंकॉक से साइगोन के लिए निकले थे.
हालांकि इससे कुछ दिनों पहले ही जापान विश्व युद्ध-2 में बिना किसी शर्त आत्मसमर्पण कर चुका था. आगे अब क्या कदम उठाए जाएं, इसे लेकर जापान की सेना कंफ्यूज थी. इस कारण पूर्वनियोजित योजना के तहत नेताजी को साइगोन से उत्तर-पूर्व एशिया ले जाने के लिए कोई विमान भी उपलब्ध नहीं था. आखिरकार, हिकारी किकान के जनरल इसोदा ने बोस को बताया कि एक प्लेन टोक्यो जा रहा है और उसके केवल दो सीट उपलब्ध हो पाएंगे. जनरल इसोदा जापानी अधिकारियों और पीजीएफआई तथा INA के बीच संपर्क का काम करते थे. बहरहाल, केवल दो सीट उपलब्ध होने का मतलब था कि नेताजी के बहुत से अधिकारी और सलाहकार उनके साथ नहीं जा सकते थे.
आजाद हिंद फौज के कर्नल प्रीतम सिंह द्वारा जांच समिति के सामने दिए बयान के अनुसार नेताजी को तब इसोदा की पेशकश स्वीकार करने की सलाह दी गई. नेताजी ने इसे मानते हुए एडीसी कर्नल रहमान को अपने साथ ले जाने की बात कही.
उस उड़ान के शुरू होने से पहले एयरक्राफ्ट के ओवरलोड होने की बात सामने आई थी. समिति की जांच के अनुसार बोस ने इसके बाद अपने कुछ सामान उतार दिए जिसमें किताबें, कपड़े आदि थे.
उस विमान में सवार अन्य जापानी यात्रियों में लेफ्टिनेंट जनरल शिदेई भी सवार थे. वे चीन के मंचूरिया जाने के लिए रवाना हुए थे. यह जगह सोवियत की सीमा से सटा हुआ है. उन्हें वहां जापानी सेना की कमान संभालना था. मिस्टर निगेशी जो जापानी अनुवादक थे और बोस के साथ मिलकर काम कर थे, ने शाह नवाज समिति को बताया, 'जापानी सेना में जनरल शिदेई को रूसी मामलों का जानकार माना जाता था. इसलिए रूस के साथ बातचीत में उनकी भूमिका अहम होने वाली थी. नेताजी को सलाह दी गई उन्हें भी शिदेई के साथ मंचूरिया जाना चाहिए.'
संभवत: यह बात तय भी हो गई थी कि नेताजी जनरल शिदेई के साथ मंचूरिया स्थित डेरेन जाएंगे.
उसी प्लेन में सवार एक एयर स्टाफ ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल शिरो नोनोगाकी स्वतंत्र रूप से समिति के सामने आए और बताया, 'प्लेन को जनरल शिदेई को लेकर मंचूरिया जाने की बात हो गई थी और नेताजी भी उनके साथ मंचूरिया के डेरेन जाने के लिए तैयार हो गए.'
यह सभी जिस विमान में सवार थे. वह दो इंजन वाला 97-2 विमान जापानी वायुसेना का था. इस विमान को साइगोन से होते हुए हितो फिर ताइपे, डेरेन और फिर टोक्यो जाना था. लेकिन साइगोन से इसे उड़ान भरने में ही देरी हो गई. चश्मदीदों के अनुसार इस विमान ने शाम पांच से साढ़े पांच के बीच उड़ान भरी. रात होने पर पायलट ने टोरेन में रूकने का फैसला किया. यह पहले की योजन से उलट था जिसके अनुसार उसे हर हाल में ताइवान जाना था.
विमान में करीब 13-14 लोग सवार थे. नेताजी और रहमान के अलावा सभी जापानी थे. रहमान ने समिति को बताया, पायलट के ठीक पीछे नेताजी बैठे हुए थे. जबकि उनके ठीक सामने कोई नहीं बैठा था. क्योंकि वह जगह पेट्रोल टंकी के लिए थी. मैं नेताजी के पीछे बैठा था. को-पायलट की सीट जिस पर जनरल शिदी बैठे हुए थे, उसे नेताजी को देने की पेशकश की गई. हालांकि नेताजी ने मना कर दिया क्योंकि वह सीट उनके लिए बहुत छोटी थी.
जांच समिति के अनुसार साइगोन से उड़ान भरते हुए प्लेन को उड़ान भरने के लिए लंबी हवाई पट्टी की जरूरत पड़ी थी. विमान में तब भी क्षमता से अधिक था. इस कारण, टोरेन उतरने पर जापानी अधिकारियों ने अपने कुछ और सामान जैसे 12 विमानभेदी मशीनगन, गोलाबारूद आदि विमान से उतार दिए. इससे वजन 600 किलोग्राम कम हो गया.
इसके बाद नेताजी ने रात वहीं टोरेन के एक होटल में गुजारी. वह शायद होटल मोरीन था. अगले ही दिन नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया.
वेबसाइट के अनुसार भविष्य में कुछ और खुलासे होने हैं. इस दस्तावेज का लक्ष्य अगले दिन हुई उस प्लेन क्रैश से पहले की पृष्ठभूमि को सामने रखने का था. माना जाता है कि इसी हादसे में नेताजी की मौत हो गई थी.
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