पश्चिम बंगाल में BJP अब तक की सबसे बड़ी तैयारी के साथ विधानसभा चुनाव में किसी युद्ध की तरह उतरी है. जहां जंग में सब जायज़ है. पश्चिम बंगाल से डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की BJP अब तक क्यों दूर रही? यह अजीब पहेली है. जबकि BJP की विचारधारा को देखें तो पश्चिम बंगाल से ज़्यादा मुफ़ीद ज़मीन BJP के लिए कोई और हो नहीं सकती है. सातवीं शताब्दी से लेकर 21वीं शताब्दी तक बंगाल में इतना ज़्यादा बदलाव आ गया कि BJP को अपनी उस विचारधारा को समझाने के लिए जी जान एक करनी पड़ रही है जो कभी बंगाल की धरती से हिंदुस्तान में गूंजी थी.
हिन्दू धर्म के इतिहास में प्रतापी और शूरवीर राजा तो बहुत सारे हुए हैं मगर मिलिटेंट हिंदू राजा तो बंगाल की धरती पर कर्नसुवर्णा का राजा महाराजाधिराज शशांक ही हुए हैं. सवाल उठता है कि हिंदुत्व का सबसे बड़ा झंडाबरदार राजा शशांक की विरासत कर्णसुवर्णा से बंगाल के पहले नवाब सूर्य नारायण मिश्रा उर्फ़ मुर्शीद कुली ख़ान का मुर्शिदाबाद आते आते इतना बदल गया कि BJP को अपनी आख़री कामयाबी के लिए सारे अस्त्र शस्त्र चलाने पड़ रहे हैं. सातवीं सदी के राजा शशांक के कट्टर हिंदुत्व राज की पहली और आख़िरी राजधानी कर्णसुवर्णा की धरा पर हीं सूर्य नारायण मिश्र से कुली खान बने बंगाल के पहले नवाब ने औरंगजेब से मुर्शिद की पदवी पाकर मुर्शिदाबाद बसाया था.
ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर ब्रितानी साम्राज्य तक का शासन भी यहीं से शुरू हुआ. इसलिए कहते हैं कि बंगाल की हवाओं में आज भी वारेन हेस्टिंग्स का भूत भटकता है. हिंदुस्तान की धरती पर मार्क्स का मिज़ाज भी बंगाल ने ही समझा. इसीलिए इस चुनाव को लेकर कहा जा रहा है कि इस बार के पश्चिम बंगाल चुनाव में यह तय होना है...
पश्चिम बंगाल में BJP अब तक की सबसे बड़ी तैयारी के साथ विधानसभा चुनाव में किसी युद्ध की तरह उतरी है. जहां जंग में सब जायज़ है. पश्चिम बंगाल से डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की BJP अब तक क्यों दूर रही? यह अजीब पहेली है. जबकि BJP की विचारधारा को देखें तो पश्चिम बंगाल से ज़्यादा मुफ़ीद ज़मीन BJP के लिए कोई और हो नहीं सकती है. सातवीं शताब्दी से लेकर 21वीं शताब्दी तक बंगाल में इतना ज़्यादा बदलाव आ गया कि BJP को अपनी उस विचारधारा को समझाने के लिए जी जान एक करनी पड़ रही है जो कभी बंगाल की धरती से हिंदुस्तान में गूंजी थी.
हिन्दू धर्म के इतिहास में प्रतापी और शूरवीर राजा तो बहुत सारे हुए हैं मगर मिलिटेंट हिंदू राजा तो बंगाल की धरती पर कर्नसुवर्णा का राजा महाराजाधिराज शशांक ही हुए हैं. सवाल उठता है कि हिंदुत्व का सबसे बड़ा झंडाबरदार राजा शशांक की विरासत कर्णसुवर्णा से बंगाल के पहले नवाब सूर्य नारायण मिश्रा उर्फ़ मुर्शीद कुली ख़ान का मुर्शिदाबाद आते आते इतना बदल गया कि BJP को अपनी आख़री कामयाबी के लिए सारे अस्त्र शस्त्र चलाने पड़ रहे हैं. सातवीं सदी के राजा शशांक के कट्टर हिंदुत्व राज की पहली और आख़िरी राजधानी कर्णसुवर्णा की धरा पर हीं सूर्य नारायण मिश्र से कुली खान बने बंगाल के पहले नवाब ने औरंगजेब से मुर्शिद की पदवी पाकर मुर्शिदाबाद बसाया था.
ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर ब्रितानी साम्राज्य तक का शासन भी यहीं से शुरू हुआ. इसलिए कहते हैं कि बंगाल की हवाओं में आज भी वारेन हेस्टिंग्स का भूत भटकता है. हिंदुस्तान की धरती पर मार्क्स का मिज़ाज भी बंगाल ने ही समझा. इसीलिए इस चुनाव को लेकर कहा जा रहा है कि इस बार के पश्चिम बंगाल चुनाव में यह तय होना है कि पश्चिम बंगाल अपने इतिहास के सबसे मशहूर राजा शशांक की विरासत BJP में देखती है या फिर टीएमसी को सत्ता देकर विरासत से आगे अपना भविष्य देखती है.
मगर ममता बनर्जी अगर मां काली और दुर्गा से लेकर हरे कृष्ण तक जप रही हैं. तो समझिए इस बदलते बंगाल के बयार को. सारे भगवानों की एंट्री हो गई है मगर हिंदुत्व के प्रखर और उग्र देवता शिव की एंट्री नहीं हुई है जिनकी उपासना के आधार पर शशांक ने बंगाल में हिंदुत्व की बुनियाद रखी थी. जब मैं यह कह रहा हूं कि भारत का सबसे कट्टर हिंदू राजा बंगाल की धरती पर शशांक हुए हैं तो मेरे कहने का मतलब है कि ऐसा राजा जिसकी ज़िंदगी हिंदुत्व के विस्तार के लिए युद्ध के मैदान में बीती और उस वक्त के हिंदुत्व का सबसे बड़ा दुश्मन बौद्ध धर्म से नफ़रत में बीता.
सातवीं सदी के पूर्वार्द्ध से लेकर उतरार्द्ध में बौद्ध धर्म एक बार फिर से अपने उठान पर था. कहते हैं 590 ईस्वी में शशांक ने गौड़ राज्य की बुनियाद ताकतवर हिंदू राष्ट्र के रूप में रखी. शशांक को कुछ लोग गुप्त वंश के महाशेनगु्प्त का वारिस बताते हैं तो कुछ गु्प्तों या मगध के मुखारियों का महासामंत बताते हैं. मगर 625 ईस्वी तक के अपने राज में उसने कर्णसुवर्णा को हिंदू राष्ट्र का मस्तक बनाकर रखा.
कुछ इतिहासकार कहते हैं कि उसका नाम नरेंद्र था मगर वहां इतना बड़ शिवभक्त था कि अपना नाम शिव के नाम पर शशांक रख लिया. शशांक ने जब राज संभाला तो उत्तर में वर्धन राजा राज्यवर्धन का राज था जिसने बौद्ध धर्म अपना लिया था. पूर्वी बंगाल का इलाक़ा बंग से लेकर आसाम काइलाक़ा कामरूप और उड़िसा का इलाक़ा भुवेश तक में हिंदुत्व ख़तरे में था. मगध के मुखारियों केशासन काल में भी बौद्ध हावी थे.
शशांक ने इसे हीं बहुमत की आबादी हिंदुओं के दिल में बसने का हथियार बनाया और कट्टर हिंदुत्व के नाम पर इसके पास बड़ी सेना हो गई. कहते हैं शशांक ने अपने पहला हमला कामरूप पर किया जो आसाम और भूटान को मिलाकर उससमय कामरूप था जो नरकासुर को अपना वंशज मानते थे. वहां के वर्मन राजा बौद्ध धर्म को बढ़ावादेने वाले थानेसर के राजा राज्यवर्धन के प्रभाव में थे और चीनी तांग साम्राज्य से संबंध स्थापित किए हुए थे.
शशांक ने दूसरे हमले के लिए मालवा के राजा देवगुप्त के साथ दोस्ती की और दूसरे हिंदू राजाओं के साथ सेना तैयार कर देवगुप्त से हीं कान्यकुब्ज (कन्नौज) के मुखारियों पर हमला करा कान्यकुब्ज के राजा को मार वहां की रानी उत्तर भारत के सबसे बड़े राजा राज्यवर्द्धन की बहन राज्यश्री को क़ैद कर लिया. नाराज़ राज्यवर्द्धन सबसे बड़ी सेना लेकर मालवा पर हमला कर देवगुप्त को मार डाला.
लौटते वक्त शशांक की सेना से मुठभेड़ हुई मगर चीनी यात्री हुएनसांग और बाणभट्ट के अनुसार मगध के राजा कीमदद से संधि करने के नाम पर शशांक ने धोखे से राज्यवर्द्धन को मार डाला. शशांक ने अपने बुद्धिकौशल के दम पर तमाम छोटे राज्यों और सामंतों को अपने यहां मिला लिया था. हालांकि वह राज्यवर्द्धन के छोटे भाई हर्षवर्धन से ज़्यादा नहीं उलझा क्योंकि हर्षवर्धन की मदद के लिए चीनी तांग सम्राज्य आ सकती थी.
शशांक के पास अब पूरा उत्तर पूर्व से लेकर भूटान समेत पूर्वोत्तर और उड़िसा था. शशांक ने अपने राज्य में मगध और कान्यकुब्ज से बुलाकर सकलदीपी ब्राह्मणों को ज़मीन देकर बसाना शुरू किया और राज-काज में उनकी दखल बढाई. आयुर्वेद से लेकर वास्तुशास्त्र तक शासन व्यवस्था के हिस्सा बनाया. सिक्कोंपर बैलों पर बैठे शिव और कमल पर बैठी लक्ष्मी का चित्र छपवाया गया.
कहा जाता है कि शशांक ने हीं हिंदू बंगाली कैलेंडर लागू किया जो आज भी बांग्लादेश में चलता है. हिंदुत्व को लेकर शशांक इतना कट्टर था कि उसने मगध पर क़ब्ज़ा करते हीं न केवल बोधगया के महाबोधि मंदिर को तोड़ा बल्कि महाबोधि वृक्ष को भी कटवा दिया था. पूरे राज्य में मंदिर बनाने को बड़ा अभियान चलया.कहते हैं कि भुवनेश में बनाए गए उसके शिव मंदिर थिरूभुवनेश्वर के नाम पर ही शहर का नाम भुवनेश्वर पड़ा था.
आज भी भुवनेश्वर 700 मंदिरों के साथ मंदिरों का शहर हीं कहा जाता है. हालांकि शशांक की पूरी ज़िंदगी युद्ध मैदान में बीता फिर भी उसने जनता के कल्याण के लिए बड़े -बड़ेकाम किए. नंदीग्राम में ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ शुभेन्दु हिंदुत्व की तलाश कर रहे हैं तो यह समझते हैं कि मिदनापुर में शशांक की आत्मा बसी हुई है. मिदनापुर में तो उसने पानी के लिए इतनी बड़ी झील बनायी जिसमें 180 फ़ुटबॉल के मैदान बन सकते हैं.
कहते हैं शशांक की मां धार्मिक यात्रा पर जा रही थीं. रास्ते में एक गांव में पड़ाव डाला. वहां जनता ने पानी की समस्या बतायी तो मां के आदेश पर शशांक ने इतना बड़ा तालाब बना दिया. कहा जाता है कि उस वक़्त हिंदुत्व की राजधानी कर्णसुवर्णा आज के मुर्शिदाबाद से लेकर मालदा तक फैली हुई थी. इस बीच यह 625 ईस्वी में शशांक की मृत्यु हो गई और उनका बेटा मानव कर्णसुवर्णा की गद्दी परबैठा पर तब तक ग़ौड़ साम्राज्य चारों तरफ़ से बौद्ध प्रभुत्व वाले राजाओं से घिर चुका था.
शशांक नेजो कट्टर हिंदुत्व की बुनियाद 35 सालों के अपने शासन में रखी थी वह महज आठ महीने में ख़त्म हो गया और मानव को मारकर मगध से लेकर हर्षवर्धन और कामरूप के राजाओं ने कर्णसुवर्णा को बांट लिया. और इस तरह से बंगाल में हिंदू राजा और हिंदुत्व का अंत हो गया. उसके बाद भारत वर्ष में कई सुल्तान आए और फिर लंबा समय मुग़ल वंश का भी रहा. मगर हिंदुत्व की धारा कर्णसुवर्णा का इतिहास एक हज़ार साल बाद फिर से लिखा गया.
इस बार भी लिखने वाला कोई और नहीं बल्कि हिंदू ही था. यह शख़्स हिंदू धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म अपनाने वाला सूर्यनारायण मिश्रा उर्फ़ मुर्शीद कुली ख़ान था. कहते हैं कि पर परसिया से आने वाला मुगलों के दरबार का धर्मगुरूओं हाजी साफ़ी ने 1670 में जन्में सूर्यनारायण मिश्रा नाम के 10 साल के लड़के को उसकी कुशाग्र बुद्धि-विवेक को देखकर ख़रीदा था जिसे उसने मोहम्मद हादी के रूप में धर्म परिवर्तन कर इस्लामिक रीति रिवाज़ से बड़ा करना शुरू किया.
उसका नाम कुली ख़ान इसलिए पड़ा क्योंकि वह हाजी साफ़ी का कुली का काम करता था. हाजी के साथ कुली खान पर्शिया चला गया था मगर हाजी साफ़ी की मौत के बाद कुली ख़ान विदर्भ के दीवान के यहां काम करने लगा. विदर्भ जैसे सूखे इलाक़े में उसने इतना ज़्यादा लगान वसूल कर औरंगज़ेब को दिया कि औरंगज़ेब उसे मुग़ल शासन का सबसे समृद्ध सूबा बंगाल का दीवाना बना दिया.
ख़ुद औरंगज़ेब के बेटे और पोते इस फ़ैसले को पचा नहीं पाए और कुली ख़ान केख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया मगर कुली ख़ान ने औरंगज़ेब के फतवा ए आलमगीरी और हिंदुओं परजजिया कर को इतनी कठोरता से वसूला कि उसने बंगाल में अब तक का सबसे ज़्यादा करवसूलकर औरंगज़ेब को दिया और फिर औरंगज़ेब ने उसे मुर्शीद की उपाधि दे दी.
ढाका में वह ख़ुद को अपने आपको असुरक्षित पा रहा था इसलिए बिहार और उड़ीसा और बंगाल के मध्य में हुगली के तट पर उसने मुकसुदाबाद को अपना दफ़्तर बनाया और फिर 1703 में अपने नाम के ऊपर इस शहर का नाम मुर्शिदाबाद रखा.1717 में मुर्शीद कुली ख़ान बंगाल का पहला नवाब बन गया. कुली ख़ान ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ साथ फ्रैंच ईस्ट इंडिया कम्पनी और यूरोप के एक दर्जन दूसरे देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए और मुर्शिदाबाद को एक महानगर बना दिया.
मगर वह इस्लामी कट्टरता से बंगाल पर राज करता था. कुली ख़ान के 27 साल का बंगाल पर शासन जिसमें पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, बिहार और ओडिशा शामिल था हिन्दुओं पर अत्याचार का शासन रहा. कुली खान ने पूरे बंगाल प्रांत में इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मोहम्मद साहब के जन्मदिन को सबसे बड़ा त्योहार घोषित किया था. मुहम्मद साहब का जन्मदिन बंगाल का सबसे बड़ा जश्न होता था जिसमें हिस्सा लेने के लिए दुनिया भर से इस्लामी शासक आते थे.
पहले पूर्वी पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश के रूप में भारत का विभाजन इसी की देन थी. मगर कर्णसुवर्णा की इसी धरा ने मुर्शिदाबाद की धरती पर भारत में मुस्लिम शासन का अंत भी लिखा. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और बंगाल के नवाब के बीच जिसके साथ फ़्रेंच ईस्ट इंडिया कम्पनी भी थी पलासी का युद्ध लड़ा गया. कहते हैं मुर्शिदाबाद के सबसे बड़े हिंदू नगर सेठ जगत सेठने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के सेना के प्रमुख लार्ड क्लाइव के साथ मिलकर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के सबसे बड़े सेनापति मीरजाफर को ख़रीद लिया था.
जगत सेठ की चतुराई से महज ग्यारह घंटे में पलाशी का युद्ध ख़त्म हो गया और 11 घंटे में ही मुग़ल सम्राज्य समेत देश के दूसरेहिस्सों में मुस्लिम शासन की अंत की कहानी लिखा गया. और फिर ब्रिटिश सेना ने यहां से मुड़कर पीछे नहीं देखा. पूरा हिन्दुस्तान उनके पास आ गया.कहते हैं उसके बाद लंबे समय तक बंगाल की राजनीति को जगत सेठ ने ही चलाया. इसके बाद पहले गवर्नर जनरल के रूप में वारेन हेस्टिंग्स ने ब्रिटिश सम्राज्य की बुनियाद बंगाल में रखी और फिर मुर्शिदाबाद से हेडक्वार्टर कोलकाता ले गया.
बाद में ब्रिटिश साम्राज्य का हेडक्वार्टरकोलकाता से दिल्ली आ गया और तब से बंगाल दिल्ली की राजनीति से दूर ही रहा. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हो या भारतीय जनता पार्टी, उनकी नीतियों और सपनों को देखें तो उसमें महराजाधिरीज शशांक की आकांक्षाएं झलकती है. शशांक इतिहासकारों के लिए वैसे ही अछूत रहे जैसे आज से 15 साल पहले भारतीय जनता पार्टी थी. मगर अपने दौर में जनता के लिए और ख़ासकर हिन्दुओं के लिए शशांक से प्रिय कोई शासक नहीं रहा.
जनता में बंगाल में उस वक़्त शशांक की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि बंगाली लंबे समय तक गौड़ शासक शशांक के वंशज के रूप में ग़ौड़ कहलाए और बांग्ला भाषा भी ग़ौड़ भाषा कहलाई. बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को उसका शशांक मिल भी जाता है तो बड़ी ज़िम्मेदारी किसी सशक्त मानव की खोज की होगी.
क्योंकि शशांक के मज़बूत साम्राज्य को मानव आठ महीने भी नहीं ढो पाया था. वजह थी कि शशांक के दुश्मन उससे बुरी तरह से नफ़रत करते थे. ठीक उसी तरह से जिस तरह से आज की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी से दूसरे दल कर रहे हैं. कुली ख़ान से लेकर वारेन हेस्टिंग्स और फिर मार्क्स के विचारों के तले बंगाल की कई पीढ़ी मर खप चुकी है, इसलिए भारतीयजनता पार्टी को वहां चिरस्थायी विजय के लिए शशांक से भी ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत है.
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