40 फीसदी से ज्यादा भद्रलोक, भद्रोमोहिला और मिश्रित वर्ग ने आखिरकार भारतीय जनता पार्टी के नारे 'चुपचाप कमल छाप' का साथ दिया. शायद कुछ पाठकों को पता हो कि ऐसा ही एक नारा तृणमूल कांग्रेस का भी था. 2011 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी ने मतदाताओं से कहा था 'चुपचाप फूल छाप' जो 34 साल के लाल आतंक के बाद 'पोरिबोर्तन' के रूप में आया था.
ममता बनर्जी और टीएमसी के लिए वक्त एक बार फिर से बदल गया है. अब समय आ गया है कि दीदी अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं और रणनीतियों पर पुनर्विचार करें. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी अब उत्तर भारत में बैठा खतरा नहीं रही. इसने अब बंगाल को तोड़ दिया है और धीरे-धीरे उसकी जमीन उससे छीन रही है.
उत्तर बंगाल में बीजेपी को भारी वोट मिले. ये झारखंड से लगा हुआ पश्चिमी भाग है जिसे जंगलमहल कहा जाता था जो कभी माओवादी गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था. कोलकाता की करीबी सीटें जैसे बैरकपुर, बोनगांव और हुगली भी भगवा रंग में रंग गए.
सेरामपुर में एक चुनावी रैली में नरेंद्र मोदी ये कहते हुए फूले नहीं समा रहे थे कि टीएमसी के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं. 2019 में शानदार नतीजे देखाते हुए मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने बड़ी संख्या में टीएमसी नेताओं का सफाया कर दिया.
बीजेपी ने बंगाल में कैसे सेंध लगाई गई
एंटी-इनकंबेंसी की भी एक भूमिका रही होगी. ये नहीं भूलना चाहिए कि ममता बनर्जी को सत्ता में रहते करीब 10 साल हो चुके हैं. मोदी की लहर भी है. बंगाल में व्हाट्सएप योद्धाओं की भी हिस्सेदारी है, जो हर तरह के मैसेज और वीडियो बिना सोचे समझे आगे फॉर्वर्ड करने के लिए तैयार बैठे रहते...
40 फीसदी से ज्यादा भद्रलोक, भद्रोमोहिला और मिश्रित वर्ग ने आखिरकार भारतीय जनता पार्टी के नारे 'चुपचाप कमल छाप' का साथ दिया. शायद कुछ पाठकों को पता हो कि ऐसा ही एक नारा तृणमूल कांग्रेस का भी था. 2011 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी ने मतदाताओं से कहा था 'चुपचाप फूल छाप' जो 34 साल के लाल आतंक के बाद 'पोरिबोर्तन' के रूप में आया था.
ममता बनर्जी और टीएमसी के लिए वक्त एक बार फिर से बदल गया है. अब समय आ गया है कि दीदी अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं और रणनीतियों पर पुनर्विचार करें. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी अब उत्तर भारत में बैठा खतरा नहीं रही. इसने अब बंगाल को तोड़ दिया है और धीरे-धीरे उसकी जमीन उससे छीन रही है.
उत्तर बंगाल में बीजेपी को भारी वोट मिले. ये झारखंड से लगा हुआ पश्चिमी भाग है जिसे जंगलमहल कहा जाता था जो कभी माओवादी गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था. कोलकाता की करीबी सीटें जैसे बैरकपुर, बोनगांव और हुगली भी भगवा रंग में रंग गए.
सेरामपुर में एक चुनावी रैली में नरेंद्र मोदी ये कहते हुए फूले नहीं समा रहे थे कि टीएमसी के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं. 2019 में शानदार नतीजे देखाते हुए मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने बड़ी संख्या में टीएमसी नेताओं का सफाया कर दिया.
बीजेपी ने बंगाल में कैसे सेंध लगाई गई
एंटी-इनकंबेंसी की भी एक भूमिका रही होगी. ये नहीं भूलना चाहिए कि ममता बनर्जी को सत्ता में रहते करीब 10 साल हो चुके हैं. मोदी की लहर भी है. बंगाल में व्हाट्सएप योद्धाओं की भी हिस्सेदारी है, जो हर तरह के मैसेज और वीडियो बिना सोचे समझे आगे फॉर्वर्ड करने के लिए तैयार बैठे रहते हैं.
Narendra Modi हमेशा जिन केंद्रीय योजनाओं के बारे में बात करते रहे, बंगाल में उनसे वंचित रह जाना भी एक कारण हो सकता है. एक वर्ग ऐसा भी होगा जो ये सोचता होगा कि ममता की नाक अड़ने की वजह से वो सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे थे.
लेकिन इन चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल में दो चीजें बहुत स्पष्ट हैं- भाजपा ने धर्म के नाम पर मतदाताओं का सफलतापूर्वक ध्रुवीकरण किया है और भगवाधारियों ने भाजपा का स्वागत किया है.
2014 में दिल्ली में सत्ता संभालने के तुरंत बाद पश्चिम बंगाल बीजेपी के लिए अगला मोर्चा बन गया है. यह उन कुछ राज्यों में से एक था जो मुख्य रूप से हिंदू थे, यहां हर तरह के दोष थे जैसे विभाजन के बाद के दर्द, दंगे, illegal immigration लेकिन तब भी हिंदुत्व नहीं था. बंगाल में प्रचलित हिंदुत्व उस हिंदुत्व से बिल्कुल अलग है जिसकी बात बीजेपी करती है. लेकिन विद्वानों ने इस पर विचार किया. इसे बहुत ही प्रभावशाली तरीके से समझाने की जरूरत थी, जिसे भाजपा ने बखूबी किया.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जब तक लोकसभा चुनाव पास आए तब तक भाजपा के पास 1,250 मंडल समितियां, 12,407 शक्ति केंद्र, 10,266 शक्ति केन्द्र प्रमुख और 58,084 समितियां हो गई थीं.
अल्पसंख्यकों की रिपोर्ट
ममता बनर्जी की मुस्लिम समर्थक वाली छवि का भी कोई फायदा नहीं हुआ. और न ही इमामों को मानदेय देने का फैसला ही काम आया (दीदी ने हाल ही में कब्रिस्तान में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए एक वजीफे की घोषणा की थी). ममता बनर्जी के शासन में बंगाल में रहने वाले हिंदुओं को दूसरे दर्जे के नागरिक होने की भावना आती थी और ये महसूस होता कि अल्पसंख्यकों को ज्यादा अहमियत दी जा रही थी.
भाजपा ने यहां अपनी शक्तिशाली धार्मनिष्ठता के साथ कदम रखा. शिव रत्रि, राम नवमी और हनुमान जयंती जैसे त्योहारों के लिए जुलूस निकाले गए. हिन्दू अभिमान को उद्वेलित किया गया.
1970 के दशक में "तोमर नाम, अमर नाम, वियतनाम, वियतनाम" काफी लोकप्रिय था. वो अब "तोमर नाम, अमर नाम, जय श्री राम" बन गया है. दूसरा नारा भी जोर पकड़ा रहा है "आगे राम, पोरे बाम" (पहले राम, फिर वाम). धर्म को लेकर किया गया ध्रुवीकरण आखिरकार खुलकर सामने आ रहा है.
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ने उत्तरी बंगाल (इनमें अलीपुरद्वार, कूच बिहार, जलपाईगुड़ी सीटें भी शामिल थीं.) के साथ-साथ बंगाल के पश्चिमी भाग (झारग्राम, मेदिनीपुर, बर्धमान दुर्गापुर) में बीजेपी को वोट दिया.
वाम दलों की भी भूमिका महत्वपूर्ण रही. उत्तर बंगाल कभी लेफ्ट फ्रंट के सहयोगी क्रांतिकारी सोशलिस्ट पार्टी और फॉरवर्ड ब्लॉक का गढ़ था. ये वाम मत भी भाजपा को मिले.
आंकड़े बताते हैं कि टीएमसी ने वोट नहीं खोए. लेफ्ट फ्रंट ने खोए. और बीजेपी को बढ़त मिली. टीएमसी के वोट शेयर को देखें तो पता चलता है कि- 2009 में 31 प्रतिशत रहा, 2014 में 39 प्रतिशत रहा और 2019 में 43 प्रतिशत. इसी अवधि में वाम मोर्चे के वोट शेयर पर नजर डालें तो- 2009 में 43 प्रतिशत, 2014 में 34 प्रतिशत और 2019 में 7 प्रतिशत. और भाजपा का- 6 प्रतिशत, 17 प्रतिशत और 40 प्रतिशत है.
चुनाव में नरेंद्र मोदी-अमित शाह से जीतना कोई बच्चों का खेल नहीं है. 2019 के नतीजे उनके चुनाव प्रबंधन की कुशलता का नमूना है. 2021 में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव देखने लायक होंगे.
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