5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) से धारा 370 (Article 370) और 35A खत्म होने के एक साल 10 महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने दिल्ली और दिल की दूरी कम करने की कोशिश की. जम्मू-कश्मीर की 8 पार्टियों के 14 नेताओं के साथ बैठक में पीएम मोदी ने राज्य में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने को केंद्र सरकार की प्राथमिकता बताया. हालांकि, बैठक के बाद पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने फिर से पाकिस्तान के साथ बातचीत का राग छेड़ दिया. वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि जम्मू कश्मीर में भरोसे में कमी बरकरार है और इसे केंद्र सरकार को ही खत्म करना है. जम्मू-कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन (Jammu and Kashmir Delimitation) को लेकर हुई इस बैठक के बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा चुनाव से पहले पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग कर दी.
पीएम नरेंद्र मोदी की सर्वदलीय बैठक के बाद गुपकार गठबंधन (Gupkar alliance) के दो प्रमुख दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के नेताओं के बयानों में साफ तौर पर विरोधाभास भी दिखा. माना जा रहा है कि पीएम मोदी के साथ हुई बैठक पर चर्चा करने के लिए गुपकार गठबंधन की प्रस्तावित मीटिंग इसी वजह के चलते टल गई. इन सबके बीच सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा ने भी जोर पकड़ा है कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र स्थापित करने के लिए विधानसभा चुनाव और लोगों में विश्वास की बहाली के लिए मोदी सरकार अनुच्छेद 371 का सहारा ले सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने पीएम मोदी के साथ हुई सर्वदलीय बैठक में सुझाव दिया था कि अनुच्छेद 371 में संशोधन करके जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को कुछ विशेष अधिकार दिए जा सकते हैं. मुजफ्फर हुसैन बेग का मानना है कि मोदी सरकार का ये कदम जम्मू-कश्मीर के लिए आधी दूरी तय करने के तौर पर देखा जा सकता है. हालांकि, उन्होंने ये साफ कर दिया कि मोदी सरकार से धारा 370 की बहाली की...
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) से धारा 370 (Article 370) और 35A खत्म होने के एक साल 10 महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने दिल्ली और दिल की दूरी कम करने की कोशिश की. जम्मू-कश्मीर की 8 पार्टियों के 14 नेताओं के साथ बैठक में पीएम मोदी ने राज्य में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने को केंद्र सरकार की प्राथमिकता बताया. हालांकि, बैठक के बाद पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने फिर से पाकिस्तान के साथ बातचीत का राग छेड़ दिया. वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि जम्मू कश्मीर में भरोसे में कमी बरकरार है और इसे केंद्र सरकार को ही खत्म करना है. जम्मू-कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन (Jammu and Kashmir Delimitation) को लेकर हुई इस बैठक के बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा चुनाव से पहले पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग कर दी.
पीएम नरेंद्र मोदी की सर्वदलीय बैठक के बाद गुपकार गठबंधन (Gupkar alliance) के दो प्रमुख दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के नेताओं के बयानों में साफ तौर पर विरोधाभास भी दिखा. माना जा रहा है कि पीएम मोदी के साथ हुई बैठक पर चर्चा करने के लिए गुपकार गठबंधन की प्रस्तावित मीटिंग इसी वजह के चलते टल गई. इन सबके बीच सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा ने भी जोर पकड़ा है कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र स्थापित करने के लिए विधानसभा चुनाव और लोगों में विश्वास की बहाली के लिए मोदी सरकार अनुच्छेद 371 का सहारा ले सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने पीएम मोदी के साथ हुई सर्वदलीय बैठक में सुझाव दिया था कि अनुच्छेद 371 में संशोधन करके जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को कुछ विशेष अधिकार दिए जा सकते हैं. मुजफ्फर हुसैन बेग का मानना है कि मोदी सरकार का ये कदम जम्मू-कश्मीर के लिए आधी दूरी तय करने के तौर पर देखा जा सकता है. हालांकि, उन्होंने ये साफ कर दिया कि मोदी सरकार से धारा 370 की बहाली की उम्मीद रखना मूर्खता होगी. कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी सरकार अनुच्छेद 371 में कुछ संशोधन कर राज्य के नागरिकों को डोमिसाइल अधिकार दे सकती है. कहा जा रहा है कि अनुच्छेद 371 की वजह से धारा 370 की मांग कमजोर पड़ जाएगी. आइए जानते हैं अनुच्छेद 370 से जुड़ी बातें.
क्या है अनुच्छेद 371
संविधान के मूर्तरूप में आने के समय भाग 21 में अनुच्छेद 371 शामिल किया गया था. वहीं, अनुच्छेद 371 ए से लेकर 371 जे समय-समय पर संविधान संशोधन कर जोड़े गए हैं. पूर्वोत्तर के कई राज्यों समेत गुजरात और महाराष्ट्र में भी अनुच्छेद 371 लागू है. अनुच्छेद 371 के तहत राज्यों को कुछ विशेष अधिकार दिये गए हैं. हालांकि, धारा 370 की तुलना में ये अधिकार कम प्रभावशाली हैं. जम्मू-कश्मीर में इस लागू करने की मांग मुख्य रूप से जमीन के अधिकार से जुड़े होने की वजह से हो रही है. हालांकि, अनुच्छेद 371 से धारा 370 और 35A के तहत मिले सभी अधिकार नहीं मिल सकेंगे.
धारा 370 में जम्मू-कश्मीर के पास थे क्या विशेष अधिकार
जम्मू-कश्मीर में धारा 370 और 35A के तहत संसद को केवल रक्षा, विदेश और संचार से जुड़े मामलों में कानून बनाने का अधिकार था. अन्य किसी भी कानून को बनाने के लिए विधानसभा की मंजूरी जरूरी थी. जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान होता था. भारत के संविधान के कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश राज्य में मान्य नहीं होते थे. राज्य के निवासियों को दोहरी नागरिकता प्राप्त थी. भारत के राष्ट्रध्वज और अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. भारत के किसी नागरिक को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने का अधिकार नहीं था. ऐसे ही कई अन्य अधिकार जम्मू-कश्मीर के निवासियों को मिले हुए थे.
अनुच्छेद 371 के भाग
अनुच्छेद 371: संविधान में शामिल अनुच्छेद 371 महाराष्ट्र, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में लागू है. इसके तहत इन राज्यों के राज्यपालों को महाराष्ट्र में विदर्भ, मराठवाडा और शेष महाराष्ट्र के लिए और गुजरात में सौराष्ट्र और कच्छ के इलाके के लिए अलग विकास बोर्ड बनाने की जिम्मेदारी दी गई है. साथ ही शिक्षा और सरकारी नौकरी में स्थानीय आरक्षण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी राज्यपालों पर होगी. वहीं, हिमाचल प्रदेश में राज्य से बाहर का कोई भी व्यक्ति एग्रीकल्चरल लैंड नहीं खरीद सकता है. इस विशेष प्रावधान के तहत हिमाचल प्रदेश का भी कोई व्यक्ति जो किसान नहीं है, राज्य में खेती के लिए जमीन नहीं खरीद सकता है.
अनुच्छेद 371 ए: संविधान में 13वें संशोधन के बाद 1962 में जोड़ा गया अनुच्छेद 371 ए नागालैंड में लागू है. इसके अंतर्गत नागालैंड की विधानसभा की मंजूरी के बगैर संसद नगा धर्म की सामाजिक, धार्मिक और पारंपरिक नियम-कानूनों के मामले में कानून नहीं बना सकती है. राज्य के नागरिकों को जमीन और संसाधन के मामलों में भी विशेषाधिकार मिला हुआ है.
अनुच्छेद 371 बी: अनुच्छेद 371 बी को 22वें संशोधन के बाद संविधान में जोड़ा गया था. असम के लिए बनाए गए इस अनुच्छेद के तहत, राष्ट्रपति राज्य के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए विधानसभा सदस्यों की समिति बना सकते हैं. जो राज्य के विकास कार्यों की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपती है. अनुच्छेद 371 बी के विशेष प्रावधान के तहत ही उप-राज्य मेघालय बनाया गया था.
अनुच्छेद 371 सी: अनुच्छेद 371 सी को 1971 में संविधान संशोधन कर मणिपुर के लिए जोड़ा गया था. असम की तरह ही इस अनुच्छेद में भी राष्ट्रपति राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से चुने गए विधानसभा सदस्यों की समिति का गठन कर सकते हैं. इस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी देकर इस समिति से जोड़ सकते हैं.
अनुच्छेद 371 डी: अनुच्छेद 371 डी को 32वें संशोधन के बाद आंध्र प्रदेश के लिए जोड़ा गया था. 2014 में आंध्र प्रदेश के दो राज्यों में विभाजित होने के बाद यह दोनों राज्यों (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) के लिए लागू हो गया. अनुच्छेद 371 डी के तहत राष्ट्रपति के पास राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों के लिए पढ़ाई और रोजगार के लिए समान अवसर प्रदान करने का अधिकार है. सिविल सेवाओं में किसी भी वर्ग के पद सृजित करने और नियुक्ति और पदोन्नति के लिए एक अलग ट्रिब्यूनल बना सकते हैं.
अनुच्छेद 371 ई: इस अनुच्छेद में आंध्र प्रदेश में केंद्र सरकार द्वारा एक केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की बात कही गई थी. यह अनुच्छेद अब अप्रभावी हो गया है.
अनुच्छेद 371 एफ: सिक्किम के लिए संविधान में संशोधन कर जोड़े गए अनुच्छेद 371 एफ में सिक्किम की विधानसभा के सदस्यों को लोकसभा में अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया गया है. सिक्किम के नागरिकों को जमीन से जुड़ा अधिकार भी प्राप्त है. संसद जमीन से जुड़े मामलों पर कोई कानून नहीं बना सकती है. यहां की विधानसभा का कार्यकाल चार साल का है. इसके अलावा भारत के सभी कानून सिक्किम में लागू होते हैं.
अनुच्छेद 371 जी: मिजोरम के लिए बनाए गए अनुच्छेद 371 जी के तहत राज्य की विधानसभा की मंजूरी के बिना मिजो समुदाय के धार्मिक, सामाजिक, पारंपरिक नियम-कानूनों को लेकर संसद कोई कानून नहीं बना सकती है. जमीन से जुड़े मामलों पर भी संसद की ओर से कानून नहीं बनाया जा सकता है.
अनुच्छेद 371 एच: अरुणाचल प्रदेश के लिए बने अनुच्छेद 371 एच के तहत राज्यपाल के पास कानून-व्यवस्था पर फैसला लेने के अधिकार के साथ राज्य सरकार के किसी भी फैसले को रद्द करने का अधिकार भी होता है.
अनुच्छेद 371 आई: गोवा की विधानसभा में सदस्यों की संख्या 30 से कम नहीं होनी चाहिए. गोवा में विधानसभा सीटों की संख्या 40 हो गई है और यह अनुच्छेद अप्रभावी हो गया है.
अनुच्छेद 371 जे: राज्यपाल को कर्नाटक व हैदराबाद के छह पिछड़े जिलों में अलग विकास बोर्ड बनाने का अधिकार है. इन क्षेत्रों में जन्म लेने वाले को शिक्षा और रोजगार में समान अवसर देने के लिए स्थानीय आरक्षण को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यपाल की है.
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