करीब करीब एक ही समय पर देश के अलग अलग छोर पर दो दावे किये गये. दोनों ही राजनीतिक दावे एक से बढ़ कर एक रहे - और दोनों ही दावों की असलियत की कौन कहे, सुनने में ही काफी अजीब लगते हैं.
एक दावा तो कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन अब डिप्टी सीएम बन चुके देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने मुंबई में किया. और दूसरा दावा लिट्टे के संस्थापक प्रमुख रहे वेल्लुपिल्लई प्रभाकरन के बारे में चेन्नई में प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर किया गया - 'अभी जिंदा है वो!'
LTTE के खिलाफ श्रीलंकाई सेना के सबसे बड़े ऑपरेशन में 2009 में मारे गये वी. प्रभाकरन को लेकर तमिल नेता पी. नेदुमारन का दावा है कि सिर्फ वही नहीं बल्कि प्रभाकरन के परिवार के कई सदस्य भी जिंदा हैं. पी. नेदुमारन का ये भी दावा है कि 'तमिल ईलम' को लेकर जल्द ही प्रभाकरन की तरफ से आगे के प्लान की घोषणा की जाएगी.
कभी कांग्रेसी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबी रहे 89 साल के पी. नेदुमारन के दावे को श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय ने जोक बताया है, और इसके लिए डीएनए प्रूफ का हवाला दिया है - जो सवाल नेदुमारन के दावे को लेकर उठता है, देवेंद्र फडणवीस का मामला भी बिलकुल वैसा ही है.
श्रीलंका और महाराष्ट्र दोनों जगह से एक जैसे दावे किये गये हैं - एक दावा प्रभाकरन को लेकर है और दूसरा शरद पवार को लेकर - दोनों ही दावे बड़े ही अजीब हैं. श्रीलंका सरकार की ही तरह बीजेपी नेता के दावे को लेकर शरद पवार कह रहे हैं - देवेंद्र फडणवीस झूठ बोल रहे हैं.
देवेंद्र फडणवीस का दावा है कि 2019 में कुछ देर के लिए जब वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे तो उसमें शरद पवार (Sharad Pawar) की भी सहमति थी. तब देवेंद्र फडणवीस ने शरद पवार के भतीजे और एनसीपी नेता अजित पवार के साथ मिल कर सरकार बनायी थी.
लेकिन तब की व्यवस्था मौजूदा माहौल से काफी अलग रही. तब देवेंद्र फडणवीस खुद मुख्यमंत्री बने थे, और अजित पवार को डिप्टी सीएम की कुर्सी दी थी. लेकिन मामला लंबा नहीं चला. देवेंद्र फडणवीस का वो...
करीब करीब एक ही समय पर देश के अलग अलग छोर पर दो दावे किये गये. दोनों ही राजनीतिक दावे एक से बढ़ कर एक रहे - और दोनों ही दावों की असलियत की कौन कहे, सुनने में ही काफी अजीब लगते हैं.
एक दावा तो कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन अब डिप्टी सीएम बन चुके देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने मुंबई में किया. और दूसरा दावा लिट्टे के संस्थापक प्रमुख रहे वेल्लुपिल्लई प्रभाकरन के बारे में चेन्नई में प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर किया गया - 'अभी जिंदा है वो!'
LTTE के खिलाफ श्रीलंकाई सेना के सबसे बड़े ऑपरेशन में 2009 में मारे गये वी. प्रभाकरन को लेकर तमिल नेता पी. नेदुमारन का दावा है कि सिर्फ वही नहीं बल्कि प्रभाकरन के परिवार के कई सदस्य भी जिंदा हैं. पी. नेदुमारन का ये भी दावा है कि 'तमिल ईलम' को लेकर जल्द ही प्रभाकरन की तरफ से आगे के प्लान की घोषणा की जाएगी.
कभी कांग्रेसी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबी रहे 89 साल के पी. नेदुमारन के दावे को श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय ने जोक बताया है, और इसके लिए डीएनए प्रूफ का हवाला दिया है - जो सवाल नेदुमारन के दावे को लेकर उठता है, देवेंद्र फडणवीस का मामला भी बिलकुल वैसा ही है.
श्रीलंका और महाराष्ट्र दोनों जगह से एक जैसे दावे किये गये हैं - एक दावा प्रभाकरन को लेकर है और दूसरा शरद पवार को लेकर - दोनों ही दावे बड़े ही अजीब हैं. श्रीलंका सरकार की ही तरह बीजेपी नेता के दावे को लेकर शरद पवार कह रहे हैं - देवेंद्र फडणवीस झूठ बोल रहे हैं.
देवेंद्र फडणवीस का दावा है कि 2019 में कुछ देर के लिए जब वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे तो उसमें शरद पवार (Sharad Pawar) की भी सहमति थी. तब देवेंद्र फडणवीस ने शरद पवार के भतीजे और एनसीपी नेता अजित पवार के साथ मिल कर सरकार बनायी थी.
लेकिन तब की व्यवस्था मौजूदा माहौल से काफी अलग रही. तब देवेंद्र फडणवीस खुद मुख्यमंत्री बने थे, और अजित पवार को डिप्टी सीएम की कुर्सी दी थी. लेकिन मामला लंबा नहीं चला. देवेंद्र फडणवीस का वो कार्यकाल तो 5 दिन का दर्ज हुआ, लेकिन करीब 72 घंटे में ही वो इस्तीफा देकर चलते बने थे - और सरकार के इतनी जल्दी गिर जाने की वजह भी यही रही कि अजित पवार अपने चाचा शरद पवार के पास लौट आये.
अजित पवार तो फिर से डिप्टी सीएम बन गये, लेकिन देवेंद्र फडणवीस दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाये. शिवसेना से बगावत करके एकनाथ शिंदे ने ऐसी दावेदारी पेश कर दी कि बीजेपी नेतृत्व ने देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बना दिया.
सवाल ये भी है कि देवेंद्र फडणवीस के ताजा दावे से बीजेपी को कोई फायदा होगा क्या - और बीजेपी की सबसे बड़ी दुश्मन उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) के नेतृत्व वाली शिवसेना पर भी कोई असर होगा क्या?
क्योंकि देवेंद्र फडणवीस ने नाम भले ही शरद पवार का लिया हो, लेकिन निशाने पर तो कोई और ही लगता है? क्योंकि जिस शरद पवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना गुरु बता चुके हों, देवेंद्र फडणवीस खुलेआम नाम लेकर ऐसा बड़ा दावा तो नहीं कर सकते!
एक बात तो साफ है. जिस तरह का दावा किया गया है, न दोनों की बातें सच मानी जा सकती हैं, न ही झूठ - और ऐसी परिस्थितियों में कम से कम एक व्यक्ति के सच होने की संभावना तो सौ फीसदी है.
ये जो देवेंद्र फडणवीस का दावा है!
देवेंद्र फडणवीस की बातों से ऐसा लगता है जैसे वो 23 नवंबर, 2019 की घटना को याद नहीं रखना चाहते. वैसे भी ऐसी बातें भला कोई क्यों याद रखना चाहेगा, जो काफी तकलीफदेह हो. देवेंद्र फडणवीस भी करीब करीब वैसी ही परिस्थितियों में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे, जैसे 2018 में कर्नाटक में बीजेपी के ही बीएस येदियुरप्पा ने जबरन मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी - और देवेंद्र फडणवीस भी उसी तरीके से इस्तीफा देकर निकल लिये. अपने सफल ऑपरेशन के बाद येदियुरप्पा तो फिर से मुख्यमंत्री बन गये थे, लेकिन देवेंद्र फडणवीस को बीजेपी नेतृत्व ने डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया है.
देवेंद्र फडणवीस कहते हैं, आप इसे सुबह की शपथविधि कहें या फिर आधी रात की... कोई फर्क नहीं पड़ता - क्योंकि अब ये गुजरे जमाने की बात हो चुकी है.
बीजेपी नेता की दलील है, जब राजनीति में कोई व्यक्ति आपको धोखा देता है तो आप एक-दूसरे का चेहरा देखते हुए नहीं बैठ सकते... हमने भी उनके ऑफर को स्वीकार किया और उनके साथ विचार विमर्श किया.
बड़ी ही मासूमियत भरे लहजे में देवेंद्र फडणवीस समझाते हैं, मैं बड़े ही साफ शब्दों में यह कह रहा हूं... ये सारी बातचीत एनसीपी प्रमुख शरद पवार से हुई थी... किसी निचले स्तर के नेता से ये बातचीत नहीं हुई थी... बातचीत के बाद ही सब कुछ तय हुआ था, लेकिन बाद में तमाम चीजें कैसे पलट गईं, ये सब कुछ आपने भी देखा है.
तब की परिस्थितियों का लाइव स्केच खींचते हुए से देवेंद्र फडणवीस अब ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जो भी फैसला हुआ वो महाराष्ट्र के हित में लिया गया था. देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि ठीक पहले महाराष्ट्र की राजनीति ऐसे मोड़ पर पहुंच चुकी थी कि सबको समझ में आ चुका था कि उद्धव ठाकरे एनसीपी और कांग्रेस के साथ मीटिंग और चर्चा कर रहे थे - और वो तमाम चीजों को छोड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे.
फडणवीस का दावा है कि जिस रास्ते पर वो कदम बढ़ाये थे, वो ऑफर भी एनसीपी नेतृत्व की तरफ से ही उनके पास आया था. कहते हैं, एनसीपी की तरफ से यह कहा गया कि हमें एक टिकाऊ सरकार की जरूरत है, इसलिए हम मिलकर सरकार बनाते हैं.'
सारी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि देवेंद्र फडणवीस अब तक चुप क्यों थे? और अभी ये बयान देने का मतलब क्या है?
ऐसे बयानों की कोई प्रासंगिकता या राजनीतिक अहमियत भी है क्या - देवेंद्र फडणवीस के ये सब कहने के पीछे, कोई खास टाइमिंग भी है क्या?
महाराष्ट्र में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तो अभी तो आने वाला बीएमसी का चुनाव ही है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे भी हो रहे हैं और संभावित वोटर से मुलाकातें भी. जैसे हाल के दौरे में वो दाऊदी बोहरा समुदाय के लोगों से मिले थे.
शरद पवार को कोई नुकसान होगा क्या?
23 नवंबर की उस घटना को याद करें तो अभी तक पूरे मामले में देवेंद्र फडणवीस ही विलेन नजर आये हैं. फडणवीस के ताजा दावे से ऐसा लग रहा है कि वो तो 'सेवा भाव' से तैयार हो गये, और सारी कवायद के 'मास्टरमाइंड' तो शरद पवार रहे - लेकिन सोशल मीडिया पर लोग शरद पवार को 'चाणक्य' और तब के वाकये को उनका 'मास्टरस्ट्रोक' बता रहे हैं.
एक ट्वीट में कहा गया है, 'देवेंद्र भाऊ, फिर चाणक्य कौन हुआ? आपको बेवकूफ बनाया और अजित पवार ने अपने केस खत्म करा लिये.'
बीजेपी नेता के दावे पर शरद पवार का भी रिएक्शन आ गया है, देवेंद्र फडणवीस सुसंस्कृत और सभ्य इंसान हैं... बावजूद इसके इतनी बड़ी बात वो किस आधार पर कहे, ये मुझे पता नहीं... वो ऐसा बयान देंगे मुझे कभी लगा नहीं था.
शरद पवार के बचाव में आये, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण कहते हैं, शरद पवार काफी सीनियर नेता हैं... वो कभी ऐसी बात नहीं कर सकते... आज तक हर काम खुलेआम किया है, छुपकर राजनीति करना उनका स्वभाव नहीं है.
अशोक चव्हाण ने कहा कि चुनाव के मौके पर देवेंद्र फडणवीस ने ये बयान दिया है. फडणवीस के बयान के बाद महाराष्ट्र बीजेपी और एनसीपी के बीच सोशल मीडिया के जरिये आमने सामने की लड़ाई शुरू हो गयी है.
देवेंद्र फडणवीस को समझदार नेता बताते हुए महाराष्ट्र बीजेपी का कहना है कि बीजेपी और एनसीपी की सरकार बन सकती है, ऐसा बताने वाले शरद पवार ही थे. महाराष्ट्र बीजेपी की तरफ से एक ट्वीट में लिखा गया है, 'आप कुछ और चाहते थे जो नहीं मिला - और उसके बाद आपने अपना निर्णय बदल दिया.'
बीजेपी के हमलों के काउंटर में एनसीपी की तरफ से शरद पवार की वरिष्ठता और मोदी की तरफ से उनको गुरु बताये जाने जैसी दुहाई दी जा रही है, लेकिन महाराष्ट्र बीजेपी की आक्रामकता में कोई कमी नहीं आ रही है.
बीजेपी की तरफ से भी दावा के साथ पूछा जा रहा है - शपथग्रहण समारोह से एक रात पहले अजित पवार के साथ आपकी कैसी बहस हुई थी? महाराष्ट्र बीजेपी का दावा है कि राजभवन जाने से पहले अजित पवार अपने चाचा शरद पवार से मिलने उनके सिल्वर ओक आवास पर भी गये थे - और और शपथग्रहण समारोह में आने का न्योता भी दिया था.
मोदी-पवार की मुलाकात में क्या हुआ था?
आपको याद होगा देवेंद्र फडणवीस के एक सुबह अचानक मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से ठीक तीन दिन पहले शरद पवार ने संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी - वो तारीख थी 20 नवंबर, 2019 और फिर 23 नवंबर को अजित पवार के साथ देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.
तब शरद पवार की तरफ से बताया गया था कि वो महाराष्ट्र के किसानों की कुछ समस्याओं को लेकर प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे. पवार की तरफ से प्रधानमंत्री को तीन पेज का एक ज्ञापन भी दिया गया था जिसमें बारिश की वजह से फसलों के नुकसान और पिछले 10 महीने में 44 किसानों के आत्महत्या कर लेने की बात भी कही गयी थी - और तब ये भी देखा गया था कि नेताओं की ज्यादातर मुलाकातें तब किसानों को लेकर ही हो रही थी. गवर्नर से लेकर प्रधानमंत्री तक से होने वाली मुलाकातों के बाद बताया तो ऐसा ही जाता रहा.
और उसके कुछ ही दिनों बाद की बात है, एक मराठी चैनल को दिये इंटरव्यू में खुद को राष्ट्रपति बनाये जाने की खबरों को खारिज करते हुए शरद पवार ने माना था कि मोदी सरकार की तरफ से उनको साथ में काम करने का ऑफर जरूर था, लेकिन वो ठुकरा दिये थे.
शरद पवार का कहना रहा, 'मोदी ने मुझसे कहा था कि मेरा राजनीतिक अनुभव उनके लिए सरकार चलाने में मददगार साबित होगा... हम दोनों कुछ राष्ट्रीय मसलों पर सहमत होते हैं, इसीलिए ये ऑफर किया था.'
साथ में, शरद पवार ने ये भी बताया कि सुप्रिया सुले के लिए मंत्री पद का ऑफर जरूर था. बाद में मोदी-पवार मुलाकात के सवाल पर सुप्रिया सुले का भी कहना रहा, 'मैं उस चर्चा में नहीं थी. मुझमें ये भरोसा और विश्वास जताने के लिए मैं प्रधानमंत्री शुक्रिया कहूंगी. जो कुछ कहा उससे अभिभूत हूं... लेकिन शरद पवार ने साफ तौर पर विनम्रता के साथ बोल दिया था कि ये संभव नहीं है.'
जो कुछ कहा जाना है, दोनों पक्षों की तरफ से कहा जा चुका है. लिहाजा और कुछ कहने की गुंजाइश भी कम है, लेकिन क्रोनोलॉजी पर गौर करते हुए आप चाहें तो अपने हिसाब से समझने की कोशिश कर सकते हैं. हां, बाद में एक खबर भी आयी थी जिस पर ध्यान दिया जा सकता है. खबर के मुताबिक, ये शरद पवार की दो शर्तें थीं जिनकी वजह से वो डील टूट गयी थी. बताते हैं कि शरद पवार चाहते थे कि सुप्रिया सुले को कृषि मंत्रालय ही मिले, और मोदी-शाह, देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और मुख्यमंत्री बनायें - और बातचीत उसी मोड़ पर खत्म हो गयी थी.
इन्हें भी पढ़ें :
आदित्य ठाकरे पटना पहुंच कर भी कोई राजनीतिक बातचीत नहीं करते तो क्या ही कहें?
फातिमा शेख-सावित्रीबाई फुले को जानेंगे तो महिला शिक्षा के आगे जाति-धर्म की बहस तुच्छ लगेगी!
आदित्य ठाकरे के खिलाफ जांच का संकेत सिर्फ चुनावी हथकंडा ही तो है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.