चुनावी बयार का असर तो होता है - और वो भी फाल्गुन में तो कुछ ज्यादा ही. कोविड 19 के साये और होली के त्योहार की आहट के बीच हवा का रुख असर दिखाने लगे तो संभावनाएं और आशंकाएं नये नये संकेत देने लगती हैं. पश्चिम बंगाल में भी लगता है फिलहाल कुछ कुछ ऐसा ही हो रहा है.
बीजेपी के बड़े नेता अमित शाह के 200 सीटों के दावे का काउंटर तृणमूल कांग्रेस लीडर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के साथ साथ उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी बार बार करते आ रहे हैं, मजेदार बात तो ये है कि दोनों के पास अपने अपने लॉजिक हैं और - दोनों ही दमदार भी हैं.
बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस - दोनों ही पक्ष एक दूसरे के खिलाफ सारे तिकड़म आजमा रहे हैं. बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व में डबल इंजन की सरकार लाकर 'सोनार बांग्ला' बनाने के दावे कर रही है तो तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि बंगाल के लोग किसी बाहरी को नहीं बल्कि अपनी बेटी को ही फिर से सत्ता सौंपेंगे. हालांकि, प्रशांत किशोर बंगाली ताजा चुनावी जंग में भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति की झलक भी महसूस करने लगे हैं - क्योंकि उनकी नजर में बीजेपी हार कर भी कुछ नहीं गंवाने वाली, जबकि ममता बनर्जी की हार विरोधी की आवाज की हार होगी और धीरे धीरे विपक्ष की राजनीति पूरी तरह खत्म हो जाएगी.
दरअसल, बंगाल की चुनावी बयार का असर कुछ सर्वे (Opinion Polls) के जरिये से देखने को मिला है - क्योंकि महीने भर के अंतर पर आये एक ही एजेंसी के सर्वे के नतीजे एक दूसरे के पूरी तरह उलट हैं. दोनों ही ओपिनियन पोल बीजेपी और ममता बनर्जी के लिए खुशी और गम का सबब बने हैं, लेकिन दोनों अलग अलग छोर पर नजर आ रहे मोर्चे की तरफ इशारा भी कर रहे हैं.
मूड ऑफ बंगाल बदल क्यों रहा है?
ओपिनियन पोल के नतीजों को समझने और समझाने के लिए सभी पार्टियां हमेशा ही सुविधानुसार दलीलें पेश करती हैं. कोई ओपिनियन पोल अगर फायदा बताये तो उसकी मिसाल दी जाने लगती है - और नुकसान दिखाये तो सिरे से खारिज कर दिया जाता है.
लेकिन...
चुनावी बयार का असर तो होता है - और वो भी फाल्गुन में तो कुछ ज्यादा ही. कोविड 19 के साये और होली के त्योहार की आहट के बीच हवा का रुख असर दिखाने लगे तो संभावनाएं और आशंकाएं नये नये संकेत देने लगती हैं. पश्चिम बंगाल में भी लगता है फिलहाल कुछ कुछ ऐसा ही हो रहा है.
बीजेपी के बड़े नेता अमित शाह के 200 सीटों के दावे का काउंटर तृणमूल कांग्रेस लीडर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के साथ साथ उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी बार बार करते आ रहे हैं, मजेदार बात तो ये है कि दोनों के पास अपने अपने लॉजिक हैं और - दोनों ही दमदार भी हैं.
बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस - दोनों ही पक्ष एक दूसरे के खिलाफ सारे तिकड़म आजमा रहे हैं. बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व में डबल इंजन की सरकार लाकर 'सोनार बांग्ला' बनाने के दावे कर रही है तो तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि बंगाल के लोग किसी बाहरी को नहीं बल्कि अपनी बेटी को ही फिर से सत्ता सौंपेंगे. हालांकि, प्रशांत किशोर बंगाली ताजा चुनावी जंग में भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति की झलक भी महसूस करने लगे हैं - क्योंकि उनकी नजर में बीजेपी हार कर भी कुछ नहीं गंवाने वाली, जबकि ममता बनर्जी की हार विरोधी की आवाज की हार होगी और धीरे धीरे विपक्ष की राजनीति पूरी तरह खत्म हो जाएगी.
दरअसल, बंगाल की चुनावी बयार का असर कुछ सर्वे (Opinion Polls) के जरिये से देखने को मिला है - क्योंकि महीने भर के अंतर पर आये एक ही एजेंसी के सर्वे के नतीजे एक दूसरे के पूरी तरह उलट हैं. दोनों ही ओपिनियन पोल बीजेपी और ममता बनर्जी के लिए खुशी और गम का सबब बने हैं, लेकिन दोनों अलग अलग छोर पर नजर आ रहे मोर्चे की तरफ इशारा भी कर रहे हैं.
मूड ऑफ बंगाल बदल क्यों रहा है?
ओपिनियन पोल के नतीजों को समझने और समझाने के लिए सभी पार्टियां हमेशा ही सुविधानुसार दलीलें पेश करती हैं. कोई ओपिनियन पोल अगर फायदा बताये तो उसकी मिसाल दी जाने लगती है - और नुकसान दिखाये तो सिरे से खारिज कर दिया जाता है.
लेकिन तब क्या हो जब एक ही तरीके से एक ही एजेंसी एक खास अंतराल पर दोबारा सर्वे कराये - और नतीजे बिलकुल अलग आते हों?
फिर तो यही समझा जाएगा कि दोनों में से कोई एक तो सही होना ही चाहिये - क्योंकि गलत तो दोनों में से कोई एक ही हो सकता है. हो सकता है दोनों ही गलत हों, लेकिन कम से कम एक सर्वे के इशारे पर तो गंभीरता से विचार किया ही जा सकता है.
पश्चिम बंगाल के लिए एबीपी-सीएनएक्स का ताजा ओपिनियन पोल सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और सत्ता पर काबिज होने के बेताब बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर के अनुमान से भरा है. फरवरी में हुए ओपिनियन पोल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने का साफ संकेत मिला था.
294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा 148 है. नये सर्वे से मालूम होता है कि पश्चिम बंगाल के लोग तृणमूल कांग्रेस की जगह बीजेपी को तरजीह देने का मूड बनाने लगे हैं.
एबीपी-सीएनएक्स के नये ओपिनियन पोल के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और चेहरे को आगे कर विधानसभा चुनाव लड़ रही बीजेपी को 130-140 सीटें मिल पाने की संभावना जतायी गयी है. इससे पहले, 15 फरवरी को कराये गये सर्वे में बीजेपी के हिस्से में 113-121 सीटें दर्ज होने की संभावना जतायी गयी थी.
फरवरी के ओपिनियन पोल में ममता बनर्जी की पार्टी को 146-156 सीटों के साथ एक बार फिर बहुमत हासिल करने का अंदाजा रहा, लेकिन नये सर्वे में तृणमूल कांग्रेस की सीटें घट कर 136-146 तक पहुंचने के कयास लगाये गये हैं.
नंदीग्राम से ममता बनर्जी के चुनाव लड़ने की घोषणा और उसके बाद चुनाव प्रचार के दौरान पैर में लगी चोट का असर महसूस किया गया, खास कर तब जब वो व्हीलचेयर पर ही रोड शो और रैलियां करने लगीं.
ये भी देखने को मिला है कि ममता बनर्जी बीजेपी के चुनावी कदमों का इंतजार किये बगैर ही अपनी चाल चलती जा रही हैं. ममता बनर्जी ने चुनाव घोषणा पत्र भी बीजेपी से पहले ही जारी कर दिया - और वो भी एक ही बार. बीजेपी की तरफ से तृणमूल कांग्रेस के काफी बाद प्रत्याशियों की सूची जारी की गयी, लेकिन बारी बारी. ममता बनर्जी की तरह एक बार में नहीं.
चुनाव मैनिफेस्टो जारी करने को लेकर भी ममता बनर्जी आगे ही निकलीं. बीजेपी नेता अमित शाह ने ममता बनर्जी के काफी बाद पार्टी का मैनिफेस्टो जारी किया - संकल्प पत्र. बीजेपी अपने चुनाव घोषणा पत्र को संकल्प पत्र ही कहती है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर ममता बनर्जी कहां चूक रही हैं? अव्वल तो ममता बनर्जी को सहानुभूति का फायदा मिलने चर्चा होने लगी थी, लेकिन सर्वे के आंकड़े तो नुकसान की तरफ ही इशारा कर रहे हैं.
ममता बनर्जी के पैर में नंदीग्राम में जो चोट लगी थी, उसे खुद तृणमूल कांग्रेस नेता और उनके साथियों ने साजिश के तहत हमला किये जाने का दावा किया था. शिकायत लेकर तृणमूल कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल चुनाव आयोग पहुंचा था और आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाये थे. चुनाव आयोग ने बड़े ही सख्त लहजे में तृणमूल कांग्रेस के दावों का प्रतिकार भी किया था.
अब तक जांच में जो भी बात सामने आयी है, उसमें साजिश या हमले का कोई सबूत नहीं मिला है - हां, हादसा तो हुआ ही है जिसमें चोट लगी है. ये भी देखने को मिला था कि तृणमूल कांग्रेस के सारे राजनीतिक विरोधी, सिर्फ बीजेपी ही नहीं, एक सुर में ममता के दावों को ड्रामा और नौटंकी बताते रहे.
क्या लोगों ने भी ममता बनर्जी के बयान की जगह उनके विरोधी नेताओं की बातों पर यकीन कर लिया है - और फिर उसी हिसाब से बीजेपी के 'आशोल पोरिबोर्तन' के नारे को आजमाने के बारे में सोचने लगे हैं?
बीजेपी के 200 पार जाने का अमित शाह को भरोसा क्यों?
सिर्फ कोलकाता ही नहीं, हुगली और हावड़ा सहित तमाम शहरों में दीवारें भी तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच गला काट प्रतियोगिता का प्रदर्शन कर रही हैं - तृणमूल कांग्रेस का कहना है, ‘बांग्ला निजेर मेय के चाय’, मतलब, बांग्ला मानुष अपनी बेटी को चाहता है, तो बीजेपी समझाने की कोशिश कर रही है कि बंगाल में 'आशोल पोरिबोर्तन’ के बाद ही 'सोनार बांग्ला' का सपना पूरा हो पाएगा.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के स्लोगन ‘बांग्ला निजेर मेये केई चाय’ के मुकाबले बीजेपी ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें अलग ही नारा लग रहा है - 'पीशी जाओ, जाओ, जाओ, पीशी जाओ.'
बांग्ला में पीशी आंटी को कहते हैं और बीजेपी का आशय भी बुआ से ही है. ममता बनर्जी को अब तक हर कोई दीदी ही संबोधित करता आया है, लेकिन चुनाव के लिए जहां ममता बनर्जी ने खुद को बंगाल की बेटी के तौर पर प्रोजेक्ट किया है, तो बीजेपी उनको एक महत्वाकांक्षी भतीजे की बुआ के तौर पर पेश कर रही है. बीजेपी के बड़े बड़े नेता बार बार लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ममता बनर्जी चाहती हैं कि उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी मुख्यमंत्री बनाये जायें. और इसके साथ ही बीजेपी नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी और शाह के साथ साथ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी अभिषेक बनर्जी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं.
‘पीशी जाओ, जाओ, जाओ... पीशी जाओ...’ वीडियो से कई दिलचस्प चीजें भी जुड़ी हैं. वीडियो में शब्द बांग्ला के हैं और धुन कम्युनिस्ट पार्टी से उधार ली गयी है. बीजेपी नेताओं की दलील है कि इटली की कम्युनिस्ट पार्टी की धुन का इस्तेमाल कर वो सरकार के अत्याचार और अन्याय से परेशान लोगों के मन की बात बताने की कोशिश की गयी है. बंगाल बीजेपी की तरफ से ऐसे कई वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किये जा रहे हैं - और ऐसा ही एक वीडियो है जिसमें नेटफ्लिक्स के हिट शो मनी हिस्ट के गीत 'बेला चाओ' की तर्ज पर पैरोडी बनायी गयी है.
बीजेपी के चुनाव प्रचार का तृणमूल कांग्रेस कदम कदम पर काउंटर करने की कोशिश करती नजर आ रही है. एक वीडियो में ममता बनर्जी को सुपर मारियो के रोल में दिखाने की कोशिश की गयी है - लगे हाथ ये भी याद दिलाने की कोशिश की जा रही है कि लोग बंगाल की बेटी को न भूलें.
तमाम सर्वे और ओपिनियन पोल अपनी जगह हैं और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दावा अपनी जगह. अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की 294 में से 200 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं.
दावे का आधार पूछे जाने पर अमित शाह एक इंटरव्यू में कहते हैं, 'राज्य की 85 फीसदी से ज्यादा सीटों पर बूथ कमेटी बनाई गयी है... लोकसभा में 18 सीटों पर पार्टी ने जीत दर्ज की और 3 सीटों पर पार्टी 5 हजार से भी कम वोटों से हारी... 21 सीट का मतलब 50 फीसदी वोट - मुझे पूरा विश्वास है कि 200 से अधिक सीटें जीतेंगे.'
ये मुश्किल लक्ष्य हासिल करने के पीछे अमित शाह 2019 के चुनाव वाली मोदी लहर की दुहाई दे रहे हैं. सबूत के तौर पर अमित शाह खुद अपनी और प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में जुटने वाली भीड़ का हवाला दे रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में उमड़ रही भीड़ को लेकर अमित शाह और नरेंद्र मोदी दोनों ही कह चुके हैं कि ऐसा सैलाब दोनों ने पहले कभी नहीं देखा - लेकिन भीड़ का क्या, भीड़ वोट में तब्दील हमेशा होती कहा हैं? क्या मायावती की किसी रैली में कभी किसी ने कम भीड़ देखी है, लेकिन चुनावी राजनीति में मायावती कहां से कहां पहुंच गयी हैं सब देख ही रहे हैं. अब ऐसा भी तो नहीं रहा कि अमेठी में राहुल गांधी की रैलियों में कभी सन्नाटा पसरा देखने को मिला है, लेकिन नतीजे तो अलग ही कहानी कहते हैं.
पश्चिम बंगाल को लेकर अमित शाह का सीधा और सपाट जवाब है, '2019 के लोकसभा चुनाव के हिसाब से आंकड़ा जोड़ने पर उत्तर मिल जाएगा.' साथ ही, अमित शाह ये भी याद दिलाना नहीं भूलले, 'आधे से अधिक टीएमसी के नेता पार्टी छोड़ चुके हैं.'
एक तरफ अमित शाह का दावा है और दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस की तरफ से प्रशांत किशोर का दावा है कि अगर बीजेपी 100 का आंकड़ा पार कर गयी तो वो चुनावी रणनीति का धंधा ही छोड़ देंगे. पहले तो प्रशांत किशोर ने दावा ये किया था कि बीजेपी की बंगाल में सीटें दहाई के आंकड़े को ही नहीं छू सकती हैं, लेकिन जल्दी ही भूल सुधार करते हुए वो दहाई से सैकड़े पर पहुंच गये.
अब तो प्रशांत किशोर आंकड़ों से भी आगे की बातें करने लगे हैं - देश में भविष्य की राजनीतिक में बैलेंसिंग फैक्टर की. अंग्रेजी अखबार टेलीग्राफ के साथ एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर समझाने की कोशिश करते हैं कि तृणमूल कांग्रेस के साथ मुकाबले में अगर बीजेपी हार जाती है तो बंगाल के बाहर उसका व्यापक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा.
प्रशांत किशोर 2017 के यूपी चुनाव का भी उदाहरण देते हैं, कहते हैं, यूपी में बीजेपी की भारी जीत की भी नीतीश कुमार के एनडीए ज्वाइन करने में खासी भूमिका रही.
प्रशांत किशोर की दलील है कि अगर पश्चिम बंगाल में बीजेपी हार भी जाती है तो भी वो ताकतवर बनी रहेगी, लेकिन टीएमसी की हार के बाद बाकी राजनीतिक दल भी दबाव में आ जाएंगे.
प्रशांत किशोर की बातों के समझें तो वो ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस के साथ वो राष्ट्रीय राजनीति में एक बैलेंसिंग फैक्टर कायम करने की लड़ाई लड़ रहे हैं - और बकौल प्रशांत किशोर, बंगाल का चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि इसी से तय होने वाला है कि भारत 'वन नेशन, वन पार्टी स्टेट' की तरफ कदम बढ़ा रहा है या नहीं.
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