आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में सजा चाहे तीन साल, पांच साल या सात साल की मिले, लेकिन इस बार बिहार की राजनीति और आरजेडी पर इसका प्रभाव जरूर पड़ने जा रहा है. क्योंकि इसके बाद भी रांची की विशेष अदालत में चल रहे चारा घोटाले के तीन और मामलों में से दो मामले में जल्दी ही फैसला आना है. एक केस पटना में चल रहा है जिसमें 75 गवाहियां हो चुकी हैं. इसके अलावा हाल के दिनों में लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के खिलाफ आईटी, ईडी और सीबीआई द्वारा तमाम मामले दर्ज किए गए हैं.
रांची की विशेष अदालत ने न्यायपालिका पर सवाल उठाने पर लालू प्रसाद यादव के बेटे और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को नोटिस कर दिया है. इस तरह लालू प्रसाद यादव और उनका परिवार उलझ के रह गया है, जिससे निकलना आसान तो नहीं होगा. इन मुकद्दमों को लेकर लालू परिवार के चेहरों पर चिन्ताएं भी दिखतीं है. सबसे बड़ा सवाल है कि लालू प्रसाद यादव के बाद आरजेडी को कौन संभालेगा? अगर लालू प्रसाद यादव लम्बे समय तक जेल में रह गए तब पार्टी का क्या होगा?
जरुरी नहीं कि उन्हें पांच या सात साल की ही सजा हो. उन्हें तीन साल की सजा भी हो सकती है, जिसमें उन्हें सीबीआई की अदालत से ही जमानत मिल जायेगी. लेकिन अभी और जो मामले उन पर चल रहे हैं या फिर रेलवे टेंडर घोटाले में सीबीआई की जांच बेनामी सम्पति का मामला ये तमाम ऐसी कानूनी जाल है जिससे हाल फिलहाल में निकल पाना असंभव दिखता है.
बीते नौ महीने लालू और उनके परिवार पर बुहत भारी रहे हैं
लेकिन लालू प्रसाद यादव पर इन तमाम परेशानियों का कोई असर नहीं दिखता. वो जेल में रह कर भी जनता के बीच जाने और आंदोलन करने की बात करते हैं. ऐसा आत्मविश्वास विरले ही किसी राजनेता में हो सकता है. तमाम आरोप भ्रष्टाचार के हैं. भ्रष्ट तरीके से पैसे कमाने का आरोप, चारा घोटाले से लेकर रेलवे टेंडर घोटाले तक लगे. लेकिन इसके बावजूद एक खास वर्ग की जनता का विश्वास अभी भी उन पर मौजूद है, तो यह कम बड़ी बात नहीं है. शायद इसलिए इतने भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद भी लालू, गरीब जनता की बात करते हैं. उनकी परेशानियां सुनते हैं. उनकी सिफारिश करते हैं.
लालू प्रसाद के इसी व्यवहार की वजह से शायद उनके पास इतना बडा वोट बैंक है. इसलिए वो जनता को सबसे बड़ी अदालत मानते हैं. लालू यादव जानते हैं कि न्यायपालिका सबूतों के आधार पर भले ही सजा दे दे, लेकिन जिस जनता की जमात को वो लेकर चलते हैं, वो उनसे कभी जुदा नहीं हो सकती. हालांकि इस जमात को जमा करने के लिए लालू पर जातिवाद का आरोप भी लगता रहा है. लेकिन लोकतंत्र में जनता ही ताकत है. लगभग सभी राजनैतिक दलों ने इसका इस्तेमाल किया है. लेकिन लालू यादव ने एग्रेसिव तरीके से इसको हथियार बनाया.
इस तरह देखा जाए तो अदालत के फैसले भले ही लालू प्रसाद यादव के खिलाफ जाते होंगे. लेकिन इन फैसलों के बाद जनता का फैसला हमेशा उनके पक्ष में रहा है. चाहे 1997 में चारा घोटाले में आरोपी होने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा हो. या फिर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा हो. चारा घोटाले के उस दौर में जब भ्रष्टाचार का आरोप लगा, तब लालू प्रसाद यादव ने अपनी पत्नी के नेतृत्व में 2000 का विधानसभा चुनाव लड़ा और सरकार बनाने में भी सफल रहे. उस दौरान चारा घोटाले मामले में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा था. झारखंड बंटने के बाद जब पहली बार चारा घोटाले के एक मामले में पेशी के लिए वो आये तो हजारों गाड़ियों के काफिले के साथ कोर्ट पहुंचना उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है.
2004 लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी बिहार में ऐसी सफल हुई कि यूपीए सरकार में वो रेलमंत्री बन गए. 2013 के अक्टूबर में चारा घोटाले के एक मामले में उन्हें पांच साल की सजा हुई. वो चुनाव लड़ने से वंचित हो गए. लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि 2015 में नीतीश कुमार के साथ मिलकर उनकी सरकार बिहार में फिर बन गई. अब फिर वो जेल में हैं. लेकिन अब परिस्थितियां कुछ भिन्न हैं.
अब राजद का भविष्य क्या होगा?
पिछले 9 महीने लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के लिए काफी मुश्किलों भरा रहा है. सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने रांची हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए फैसला दिया कि चारा घोटाले के सभी मामलों में उन पर अलग अलग केस चलेंगे. और ये भी आदेश दिया कि ट्रायल 9 महीने में पूरा करना है. उसके बाद उनके पटना, दिल्ली समेत कई ठिकानों पर सीबीआई के छापे पड़े. बेनामी सम्पति के मामले में लालू, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, तेजप्रताप और बेटी-दमाद सब पर केस भी दर्ज हुए. इस बीच बिहार में नीतीश कुमार के साथ चल रही महागठबंधन सरकार भी चली गई. ये तमाम घटनाएं पिछले कुछ महीनों की हैं. इसलिए परिस्थितियां उनके लिए अनूकूल नहीं दिख रही है.
जहां तक नेतृत्व का सवाल है तो लालू प्रसाद यादव ने पिछले कुछ महीनों से अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को नेतृत्व सौंपने के संकेत जरूर दिए हैं. तेजस्वी यादव एक प्रखर युवा नेता के रूप में उभर रहे हैं. उनमें संभावनाएं भी दिख रही हैं. वो आरजेडी के 80 विधायकों के नेता हैं. प्रतिपक्ष के नेता हैं. कई सीनियर आरजेडी के विधायकों से उनका कद उंचा है. जाहिर है कि नेतृत्व को लेकर आरजेडी में शायद आवाज न उठे. क्योंकि आरजेडी में किसी बाहरी को नेतृत्व देने की परम्परा ही नहीं है. हालांकि पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह, तेजस्वी के नेतृत्व को लेकर कभी हामी भरते नहीं दिखाई देते हैं. लेकिन पार्टी के अधिकतर नेताओं को इसमें कोई आपत्ति नहीं दिखती है.
लेकिन केवल नेतृत्व सौंपने से ही पार्टी नहीं चलती है. लालू प्रसाद यादव का जनता से संवाद करने का जो तरीका है वो तरीका अपनाना होगा. जनता का काम करना होगा. जनता से मिलना होगा. उनसे कनेक्ट होना होगा. तेजस्वी को लालू के ये तमाम गुण अपनाने होंगे, तभी वो पार्टी को एकजुट रख सकेंगे. राबड़ी देवी को उनके मुख्यमंत्री के काल में लालू यादव के जेल में रहने के बावजूद उनता भरपूर बैकअप मिला था. लेकिन अब परिस्थियां वैसी नहीं हैं. पहले जहां लालू यादव के जेल में दरबार के किस्से मशहूर थे, अब रांची के होटवार जेल में सप्ताह में केवल तीन व्यक्ति ही उनसे मिल सकते हैं. उनकी सरकार न बिहार में है, न झारखंड में है और न केन्द्र में है. ऐसे में वो जेल में रहकर उस तरीके की मदद नही कर पायेंगे.
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