भाजपा, सपा, कांग्रेस समेत हर राजनीतिक दल यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर पूरे सूबे को मथने में लगा हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियां भाजपा के कमजोर पड़ रहे समीकरणों को मजबूत कर रही हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव छोटे सियासी दलों के साथ गठबंधन कर नया समीकरण बनाने की ओर बढ़ गए हैं. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी सूबे की आधी आबादी यानी महिलाओं को अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश में हैं. लेकिन, यूपी चुनाव 2022 सिर पर आने के बावजूद बसपा सुप्रीमो मायावती इस पूरी सियासी फिल्म से बाहर ही नजर आ रही हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो बसपा सुप्रीमो मायावती अभी तक चुनावी मोड में आ ही नहीं पाई हैं. जहां तमाम राजनीतिक दलों सियासी गुणा-गणित करने के बाद धरातल पर चुनावी रण लड़ने के लिए उतर चुके हैं. वहीं, मायावती की मौजूदगी केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित नजर आती है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि यूपी चुनाव 2022 में 'सब' दिख रहे हैं, लेकिन मायावती कहां हैं?
क्या बसपा यूपी चुनाव की रेस में है?
आखिरी बार लखनऊ में बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन में नजर आईं बसपा सुप्रीमो मायावती भले ही एक्टिव मोड में नजर न आ रही हों. लेकिन, मायावती को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. बीते दो दशकों की बात की जाए, तो विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव मायावती का वोट शेयर करीब 20 फीसदी के कम नहीं हुआ है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो बसपा के लिए जितना भी बुरा दौर आया हो, मायावती ने अपने चेहरे के दम पर पार्टी के कोर वोटर्स के जरिये वोट शेयर को बनाए रखा है. इसी साल हुए पंचायत चुनावों में भी...
भाजपा, सपा, कांग्रेस समेत हर राजनीतिक दल यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर पूरे सूबे को मथने में लगा हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियां भाजपा के कमजोर पड़ रहे समीकरणों को मजबूत कर रही हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव छोटे सियासी दलों के साथ गठबंधन कर नया समीकरण बनाने की ओर बढ़ गए हैं. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी सूबे की आधी आबादी यानी महिलाओं को अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश में हैं. लेकिन, यूपी चुनाव 2022 सिर पर आने के बावजूद बसपा सुप्रीमो मायावती इस पूरी सियासी फिल्म से बाहर ही नजर आ रही हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो बसपा सुप्रीमो मायावती अभी तक चुनावी मोड में आ ही नहीं पाई हैं. जहां तमाम राजनीतिक दलों सियासी गुणा-गणित करने के बाद धरातल पर चुनावी रण लड़ने के लिए उतर चुके हैं. वहीं, मायावती की मौजूदगी केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित नजर आती है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि यूपी चुनाव 2022 में 'सब' दिख रहे हैं, लेकिन मायावती कहां हैं?
क्या बसपा यूपी चुनाव की रेस में है?
आखिरी बार लखनऊ में बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन में नजर आईं बसपा सुप्रीमो मायावती भले ही एक्टिव मोड में नजर न आ रही हों. लेकिन, मायावती को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. बीते दो दशकों की बात की जाए, तो विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव मायावती का वोट शेयर करीब 20 फीसदी के कम नहीं हुआ है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो बसपा के लिए जितना भी बुरा दौर आया हो, मायावती ने अपने चेहरे के दम पर पार्टी के कोर वोटर्स के जरिये वोट शेयर को बनाए रखा है. इसी साल हुए पंचायत चुनावों में भी बसपा का प्रदर्शन कमजोर रहा था, लेकिन इसके बाद भी बसपा समर्थित 300 से ज्यादा प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. इस आंकड़े के आधार पर कहा जा सकता है कि बसपा यूपी चुनाव की रेस में अपनी मौजूदगी दर्ज कराएगी. ये अलग बात है कि सीटों की संख्या को लेकर अभी कुछ भी कयास लगाया जाना असंभव है. क्योंकि, ब्राह्मण-दलित गठजोड़ के सहारे आगे बढ़ रही बसपा 2007 के अपने हिट सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को ही दोहराने की कोशिश में है.
लोगों के गुस्से के भरोसे बैठी हैं मायावती?
बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से पहले ही घोषणा की जा चुकी है कि उनकी पार्टी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में 'एकला चलो' की नीति पर ही आगे बढ़ेगी. मायावती अच्छी तरह से जानती है कि यह विधानसभा चुनाव उनके लिए आखिरी मौका है. अगर इस चुनाव में बसपा कोई कमाल नहीं दिखा सकी, तो पार्टी के सियासी भविष्य के साथ ही मायावती की साख पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाएगा. बावजूद इसके मायावती किसी भी तरह की हड़बड़ी में नजर नही आ रही हैं. सूबे के 18 मंडल के मुख्य इंचार्जों और 75 जिलाध्यक्षों के साथ की गई बैठक के बाद मायावती अभी भी चुनाव के लिए रणनीति पर ही चर्चा कर रही हैं. ऐसा लग रहा है कि मायावती मानकर चल रही हैं कि भाजपा, सपा के शासन से गुस्साए मतदाता बसपा की ओर ही आएंगे. बसपा की ओर से जारी प्रेस रिलीज में मायावती के हवाले से यही कहा जा रहा है कि यूपी की जनता ने सभी पार्टियों का शासनकाल देखा है. लेकिन, सबका यही कहना है कि बसपा का शासनकाल बेहतरीन था.
क्या बसपा का ग्राफ गिरने वाला है?
उत्तर प्रदेश में बीते कुछ समय से आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद बसपा वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के साथ चंद्रशेखर की बात नही बनने के बाद माना जा सकता है कि आजाद समाज पार्टी अभी भी दलित समाज के मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ बनाने में कामयाब नहीं हो पाई है. चंद्रशेखर का युवा वर्ग में काफी बोलबाला है, लेकिन उनके पास खुद को मायावती से बड़ा दलित चेहरा साबित करने के लिए मंच नहीं है. इस स्थिति में मायावती के कोर वोटबैंक में सेंध लगना मुश्किल है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो बसपा का वोटबैंक मायावती के नाम पर ही वोट करेगा. युवाओं का जो वोट चंद्रशेखर आजाद की वजह से छिटकने की संभावना थी. वो अखिलेश यादव की वजह से मायावती के साथ ही बना रहेगा.
वहीं, बीते कुछ समय से बसपा से प्रभावशाली चेहरों का जाना लगातार जारी है. बसपा के विधायक हों या बड़े पदाधिकारी बसपा सुप्रीमो मायावती ने कई नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. हालांकि, मायावती हर चुनाव से पहले ऐसा करती रही हैं. लेकिन, इस बार बसपा से निकलने वाले चेहरे पार्टी के लिए ओबीसी और मुस्लिम मतदाताओं के बीच बड़े नेताओं के तौर पर धमक रखते थे. इनमें से ज्यादातर समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो चुके हैं. मायावती इन तमाम बागी नेताओं को 'बरसाती मेंढक' बताकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन, अहम बात ये है कि मायावती ने अपने चेहरे के बलबूते ही हर चुनाव में अपने वोटबैंक को साधे रखा है. हो सकता है कि इस बार भी मायावती अपने वोट शेयर को बरकरार रखने में कामयाब हो जाएं. लेकिन, धरातल पर उनकी गैर-मौजूदगी बसपा के लिए भविष्य में मुश्किलें खड़ी करती दिखाई दे रही है.
आसान शब्दों में कहा जाए, तो मायावती के लिए यूपी चुनाव 2022 की राह बहुत कठिन है. बसपा सुप्रीमो पर पार्टी टिकट बेचने के आरोपों के साथ ही उनके परिवार पर वित्तीय अनियमितता के ढेरों आरोप हैं. बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव में वोटकटवा पार्टी बनने की ओर बढ़ रही हैं. अब इसका नफा-नुकसान किसे होगा, ये चुनाव नतीजे ही तय करेंगे.
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