प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) हों, या राहुल गांधी, या फिर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) या अरविंद केजरीवाल - सभी के सामने सबसे बड़ा चैलेंज देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं.
चुनाव नतीजे आने के साथ ही सभी की राजनीतिक प्राथमिकताएं पुराने ढर्रे पर लौट जाएंगी. ये जरूर होगा कि चुनाव नतीजे सभी की चुनौतियां बदल देंगे - और ये निर्भर इस बात पर करता है कि चुनावों के नतीजे किसके हिस्से में क्या परोसते हैं.
अभी तो नजारा बदला बदला है, लेकिन चुनावों से पहले देश की राजनीति स्वाभाविक तौर पर दो हिस्सों में बंटी हुई थी - विपक्षी खेमे के नेता अलग अलग तरीकों से प्रधानमंत्री मोदी को अगले आम चुनाव में चैलेंज करने के लिए रणनीति बना रहे थे. जाहिर है सत्ताधारी बीजेपी अपने नेता मोदी के रास्ते की अड़चने खत्म करने में दिमाग लगा रही होगी.
चुनावों के बीच इंडिया टुडे और सी वोटर का मूड ऑफ द नेशन सर्वे (Mood Of The Nation survey) आया है. सर्वे से विधानसभा चुनावों में से जुड़ी चीजों के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनको चैलेंज करने वाले नेताओं की हैसियत का भी पता चला है.
सर्वे से मालूम होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद करने वालों की तादाद तो पहले की ही तरह है, लेकिन उनको लगातार चैलेंज करने वाले राहुल गांधी के सामने नयी चुनौतियां नजर आने लगी हैं - क्योंकि ममता बनर्जी के साथ साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए नयी चुनौती बन कर उभरे हैं.
पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद जब विपक्ष को एकजुट करने ममता बनर्जी निकलीं तो सबसे ज्यादा राहुल गांधी की आंखों में ही खटकने लगी थीं - ये भी राहुल गांधी की सक्रियता से ही पता चला था. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) हों, या राहुल गांधी, या फिर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) या अरविंद केजरीवाल - सभी के सामने सबसे बड़ा चैलेंज देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं.
चुनाव नतीजे आने के साथ ही सभी की राजनीतिक प्राथमिकताएं पुराने ढर्रे पर लौट जाएंगी. ये जरूर होगा कि चुनाव नतीजे सभी की चुनौतियां बदल देंगे - और ये निर्भर इस बात पर करता है कि चुनावों के नतीजे किसके हिस्से में क्या परोसते हैं.
अभी तो नजारा बदला बदला है, लेकिन चुनावों से पहले देश की राजनीति स्वाभाविक तौर पर दो हिस्सों में बंटी हुई थी - विपक्षी खेमे के नेता अलग अलग तरीकों से प्रधानमंत्री मोदी को अगले आम चुनाव में चैलेंज करने के लिए रणनीति बना रहे थे. जाहिर है सत्ताधारी बीजेपी अपने नेता मोदी के रास्ते की अड़चने खत्म करने में दिमाग लगा रही होगी.
चुनावों के बीच इंडिया टुडे और सी वोटर का मूड ऑफ द नेशन सर्वे (Mood Of The Nation survey) आया है. सर्वे से विधानसभा चुनावों में से जुड़ी चीजों के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनको चैलेंज करने वाले नेताओं की हैसियत का भी पता चला है.
सर्वे से मालूम होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद करने वालों की तादाद तो पहले की ही तरह है, लेकिन उनको लगातार चैलेंज करने वाले राहुल गांधी के सामने नयी चुनौतियां नजर आने लगी हैं - क्योंकि ममता बनर्जी के साथ साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए नयी चुनौती बन कर उभरे हैं.
पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद जब विपक्ष को एकजुट करने ममता बनर्जी निकलीं तो सबसे ज्यादा राहुल गांधी की आंखों में ही खटकने लगी थीं - ये भी राहुल गांधी की सक्रियता से ही पता चला था. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हस्तक्षेप से विपक्षी खेमे के नेताओं को ममता बनर्जी की तरफ से खींच कर राहुल गांधी के पक्ष में करने की कोशिशें भी चल रही थीं.
सर्वे के मुताबिक मोदी को सीधे टक्कर देने वालों में अभी तो सबसे आगे ममता बनर्जी ही नजर आ रही हैं, लेकिन मान कर चलना होगा चुनाव नतीजे आने के बाद सबकी पोजीशन बदलेगी ही - फिर देखना होगा राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल कहां खड़े होते हैं?
चुनावों में सबकी साख दांव पर लगी है
देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, चार में बीजेपी की सरकारें हैं जबकि एक जगह पंजाब में फिलहाल कांग्रेस सत्ता में है. इस हिसाब से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा के साथ साथ पंजाब के चुनावी नतीजे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख के लिए बेहद अहम होंगे.
पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों से जहां ब्रांड मोदी को गहरा झटका लगा है, वहीं ममता बनर्जी विपक्ष की मजबूत आवाज के तौर पर उभर कर सामने आयी हैं. ये बात अलग है कि 2021 की शुरुआत में हुए सभी पांच राज्यों में चुनावी हार के बावजूद देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का नेता होने के नाते राहुल गांधी मैदान में यूं ही डटे हुए हैं.
गोवा विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ ममता बनर्जी का स्टेक तो लगा ही है, अरविंद केजरीवाल भी दूसरी बार काफी सक्रिय हैं और कांग्रेस के लिए तो ये सब रूटीन की रस्मों का हिस्सा ही है.
गोवा के अलावा ममता बनर्जी की दिलचस्पी यूपी चुनाव में भी थोड़ी थोड़ी है, लेकिन वो समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव के सपोर्ट तक ही सीमित है. हो सकता है कांग्रेस टूट कर टीएमसी ज्वाइन करने वाले ललितेश पति त्रिपाठी के लिए भी अखिलेश यादव टिकट का इंतजाम करने की सोच रहे हों.
अरविंद केजरीवाल वैसे तो यूपी और उत्तराखंड में भी फ्री बिजली-पानी वाले मैनिफेस्टो के साथ अपने लोगों को लगा रखे हैं - और अयोध्या पहुंच कर जोर जोर से जय श्रीराम के नारे भी लगा आये हैं, लेकिन उनकी प्राथमिकताओं में पंजाब और गोवा ही ऊपर होंगे. पांच साल पहले 2017 में तो वो सरकार बनाने का ही दावा कर रहे थे, लेकिन चूक जाने के बाद इस बार धैर्यपूर्वक उचित हिस्सेदारी की कोशिश में हैं.
पांचों में मणिपुर ही ऐसा राज्य है जहां बीजेपी के लिए चुनौती स्थानीय स्तर पर या सत्ता विरोधी लहर के चलते या फिर कांग्रेस की तरफ से होगी, वरना ममता या केजरीवाल ने मणिपुर में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखायी है. मणिपुर में तो ममता का एकमात्र विधायक भी बीजेपी में चला गया है.
राहुल गांधी की कांग्रेस सक्रिय तो बीजेपी की तरह सभी पांचों राज्यों में है, लेकिन यूपी में सत्ता हासिल करने की कौन कहे, प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा तो अभी से मौका मिलने पर समाजवादी पार्टी गठबंधन को सपोर्ट करने का प्रस्ताव देने लगी हैं. पंजाब में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने जो प्रयोग किये हैं उसके रुझान भी काफी हद तक आ चुके हैं और बचे खुचे आसानी से समझ में भी आ जाते हैं.
मान कर चलना होगा चुनाव नतीजे आने के बाद बदले हालात में एक बार फिर से विपक्ष एकजुट होने की कोशिश करेगा - और देखना होगा प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज करने के मामले में लीड कौन लेता है?
मोदी को चुनौती विपक्ष के लिए दूर की कौड़ी जैसी क्यों
चुनावी राज्यों में ब्रांड मोदी का जैसा भी असर होने जा रहा हो, लेकिन मूड ऑफ द नेशन सर्वे के मुताबिक तो प्रधानमंत्री मोदी बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के मुकाबले उनके राज्यों में बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं - और करीब करीब यही हाल उन राज्यों में भी है जहां एनडीए गठबंधन की सरकारें हैं.
चुनाव बाद विपक्ष का नेता नंबर 1 कौन होगा: देश की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों से बातचीत होने पर कहते हैं कि विपक्ष की तरफ देखने पर एक ही चेहरा नजर आता है - और वो चेहरा है राहुल गांधी.
बेशक राहुल गांधी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के नेता हैं जो हालत बेहद पतली होने के बावजूद देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी हुई है. अब भी कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसके देश के ज्यादातर हिस्से में नेटवर्क है और संगठन भी है - हालांकि, गुजरते वक्त के साथ संगठन में कार्यकर्ता नहीं बचें हैं.
यूपी चुनाव का ही उदाहरण लें तो मालूम होता है कि सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारना भी कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है - और हालत ये है कि कांग्रेस का टिकट मिलने के बाद भी उम्मीदवार दूसरे दलों का रुख कर ले रहे हैं.
ऐसी सूरत में तो प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज करने वालों की सूची में राहुल गांधी को नंबर 1 पर होना चाहिये था - लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है और ये बात मूड ऑफ द नेशन सर्वे से ही पता चली है. सर्वे के नतीजे इस रेस ममता बनर्जी को पहले नंबर पर बता रहे हैं.
1. प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज करने वाले नेताओं में 17 फीसदी के साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोगों की पहली पसंद बन रही हैं.
2. प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज करने के मामले में लोगों की पसंद के आधार पर दूसरे नंबर पर 16 फीसदी के साथ अरविंद केजरीवाल आते हैं.
2. मोदी को टक्कर देने के मामले में सब कम लोग यानी महज 11 फीसदी ही राहुल गांधी को ठीक ठाक नेता मानते हैं - और सवाल यही है कि ऐसा क्यों है?
विपक्ष की नाकामी या सरकार की: आलम ये है कि देश के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर भी सर्वे में शामिल आधे से ज्यादा लोग नरेंद्र मोदी को ही कुर्सी पर बैठते देखना चाहते हैं - और ऐसे 52.5 फीसदी लोगों ने अपनी राय जतायी है.
और उनको चैलेंज करने की मंशा रखने वाले राहुल गांधी को अब भी महज 6.8 फीसदी लोग ही अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने की ख्वाहिश रखते हैं - वो भी तब जबकि महंगाई, बेरोजगारी और किसान आंदोलन को लोग मोदी सरकार की सबसे बड़ी नाकामी मानते हैं.
ये तीनों ही मुद्दे ऐसे हैं जिन्हें लेकर राहुल गांधी लगातार प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये रहते हैं. सर्वे में शामिल 25 फीसदी लोग महंगाई, 14 फीसदी लोग बेरोजगारी और 10 फीसदी लोग किसानों के मुद्दे को मोदी सरकार की नाकामियों की सूची में रखे हुए हैं - ऐसे क्या समझा जाये, राहुल गांधी ये मुद्दे उठाने में कहां चूक जाते हैं?
अगर लोग मानते हैं कि महंगाई और बेरोजगारी के मामले में मोदी सरकार फेल रही है, तो स्वाभाविक तौर पर विपक्ष को ऐसे मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा किये रहना चाहिये - और दबाव बनाना चाहिये कि आम लोगों के हित में सरकार कारगर कदम उठाये. लेकिन ऐसे बुनियादी मुद्दों को लेकर सरकार की नाकामी कहीं चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रही है तो इसे किसकी असफलता मानी जाएगी - जाहिर है विपक्ष की ही जिम्मेदारी बनती है.
अगर ये हाल रहा तो विपक्ष बीजेपी और मोदी को रोकने की कौन कहे, 2019 से भी मजबूत स्थिति में पहुंचा सकता है - और जब अभी ये हाल है कि केंद्रीय जांच एजेंसियां विपक्षी खेमे के नेताओं की नाक में दम किये रहती हैं तो सोचिये आगे क्या होगा?
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