उनका नाम भगवान हनुमान के नाम पर है, इसलिए उसने मौत पर भी विजय पा ली. ये शब्द उस बहादुर भारतीय सैनिक हनुमंथप्पा के पिता के हैं जो कि सियाचिन में छह दिन तक 35 फीट मोटी बर्फ की चादर के नीचे दबे होने और माइनस 45 डिग्री तापमान में भी जीवित बचे रहे.
सियाचिन में हुई इस हिमस्खलन की घटना में हनुमंथप्पाह को छोड़कर बाकी के अन्य नौ भारतीय सैनिक शहीद हो गए. लेकिन सेना की राहत और बचाव कार्य में जुटी टीम ने जब हनुमंथप्पा को जीवित देखा तो उनकी हैरानी की सीमा नहीं रही. सेना के डॉक्टरों और जानकारों का कहना है कि सिर्फ चमत्कार ने ही हनुमंथप्पा को बचाया. आइए जानें क्या सच में सिर्फ चमत्कार ने ही हनुमंत को बचाया या इसके पीछे कोई और वजह भी हो सकती है.
हनुमान जी ने ही हनुमंथप्पा को बचाया?
हनुमंत के पिता का यह विश्वास कि उनके बेटे का नाम हनुमान जी के नाम पर होने के कारण ही वह बच गया, को आप सिरे से खारिज भी नहीं कर पाएंगे. वजह, हनुमंथप्पा जिन परिस्थितियों में बचे वैसी परिस्थितियों में तो विज्ञान भी हाथ खड़े कर देता है. लोगों का यह तर्क कि हनुमंथप्पा सियाचिन की कड़ाके की ठंड के मुताबिक खुद को ढाल चुके थे और इसलिए उन्हें कड़ी ठंड में भी खुद को बचाए रखने की शक्ति मिल पाई भी सटीक नहीं लगता है. हनुमंथप्पा के साथ इस हिमस्खलन में दबे 9 अन्य सैनिक भी इस ठंड के आदी हो चुके थे तो फिर हनुमंत ही क्यों बच पाए?
विशेषज्ञों का मानना है कि हिमस्खलन में पूरी तरह दब गए करीब 92 फीसदी पीड़ितों को तभी बचाया जा सकता है, जब उन्हें 15 मिनट के अंदर बाहर निकाल लिया जाए. 35 मिनट बीतने के बाद सिर्फ 27 फीसदी पीड़ित ही बच पाते हैं. इतना ही नहीं 10 मिनट के अंदर ही ज्यादातर पीड़ितों का ब्रेन डैमेज होना शुरू हो जाता है. अब आप सोचिए, हिमस्खलन के कारण बर्फ की मोटी पर्त में दबे लोगों में से ज्यादातर की महज आधे घंटे में मौत हो जाती है, ऐसे में हनुमंथप्पा का छह दिन तक जीवित रहना हनुमान जी का यानि ईश्वर का चमत्कार नहीं तो और क्या...
उनका नाम भगवान हनुमान के नाम पर है, इसलिए उसने मौत पर भी विजय पा ली. ये शब्द उस बहादुर भारतीय सैनिक हनुमंथप्पा के पिता के हैं जो कि सियाचिन में छह दिन तक 35 फीट मोटी बर्फ की चादर के नीचे दबे होने और माइनस 45 डिग्री तापमान में भी जीवित बचे रहे.
सियाचिन में हुई इस हिमस्खलन की घटना में हनुमंथप्पाह को छोड़कर बाकी के अन्य नौ भारतीय सैनिक शहीद हो गए. लेकिन सेना की राहत और बचाव कार्य में जुटी टीम ने जब हनुमंथप्पा को जीवित देखा तो उनकी हैरानी की सीमा नहीं रही. सेना के डॉक्टरों और जानकारों का कहना है कि सिर्फ चमत्कार ने ही हनुमंथप्पा को बचाया. आइए जानें क्या सच में सिर्फ चमत्कार ने ही हनुमंत को बचाया या इसके पीछे कोई और वजह भी हो सकती है.
हनुमान जी ने ही हनुमंथप्पा को बचाया?
हनुमंत के पिता का यह विश्वास कि उनके बेटे का नाम हनुमान जी के नाम पर होने के कारण ही वह बच गया, को आप सिरे से खारिज भी नहीं कर पाएंगे. वजह, हनुमंथप्पा जिन परिस्थितियों में बचे वैसी परिस्थितियों में तो विज्ञान भी हाथ खड़े कर देता है. लोगों का यह तर्क कि हनुमंथप्पा सियाचिन की कड़ाके की ठंड के मुताबिक खुद को ढाल चुके थे और इसलिए उन्हें कड़ी ठंड में भी खुद को बचाए रखने की शक्ति मिल पाई भी सटीक नहीं लगता है. हनुमंथप्पा के साथ इस हिमस्खलन में दबे 9 अन्य सैनिक भी इस ठंड के आदी हो चुके थे तो फिर हनुमंत ही क्यों बच पाए?
विशेषज्ञों का मानना है कि हिमस्खलन में पूरी तरह दब गए करीब 92 फीसदी पीड़ितों को तभी बचाया जा सकता है, जब उन्हें 15 मिनट के अंदर बाहर निकाल लिया जाए. 35 मिनट बीतने के बाद सिर्फ 27 फीसदी पीड़ित ही बच पाते हैं. इतना ही नहीं 10 मिनट के अंदर ही ज्यादातर पीड़ितों का ब्रेन डैमेज होना शुरू हो जाता है. अब आप सोचिए, हिमस्खलन के कारण बर्फ की मोटी पर्त में दबे लोगों में से ज्यादातर की महज आधे घंटे में मौत हो जाती है, ऐसे में हनुमंथप्पा का छह दिन तक जीवित रहना हनुमान जी का यानि ईश्वर का चमत्कार नहीं तो और क्या है?
योग, हाइबरनेशन ने बचाई हनुमंथप्पा की जान?
हनुमंथप्पा के जीवित बचने की हैरान करने वाली कहानी के करीब ही जापान के मित्सुताका उचिकोशी की दास्तापन, जो 10 वर्ष पहले 2006 में पहाड़ी पर 24 दिन तक बर्फ में दबे रहने के बाद भी जिंदा बच गए थे. इसे बर्फ में दबे किसी शख्स के जीवित बचने की सबसे आसाधरण घटनाओं में गिना जाता है. इतनी मुश्किल परिस्थितियों के बावजूद मित्सुताका के जीवित बचने की वजह का सटीक जवाब डॉक्टर भी नहीं दे पाए लेकिन डॉक्टरों ने इसके लिए जिस क्रिया की बात की उसे आमतौर पर मुश्किल परिस्थियों में जीवित रहने के लिए जानवर अपनाते हैं. इस क्रिया का नाम है हाइबरनेशन या शीतनीद्रा.
हाइबेरनेशन जीवों में शिथिलता और मेटाबोलिज्म (उपापचय) के बिल्कुल ही कम हो जाने की प्रक्रिया होती है. इसका मतलब होता है ठंडे तापमान में खाने और जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों के अभाव में जानवरों द्वारा अपने शरीर के मेटोबोलिज्म (उपापचय) की क्रिया को बेहद कम करके कोशिकाओं को एकदम स्थिर अवस्था में ले आना. इससे सांस लेने और दिल के धड़कने की दर घटने के साथ ही बाकी शरीर भी एकदम शिथिल पड़ जाता है और शरीर को ऑक्सीजन और एनर्जी की जरूरत काफी कम रह जाती है.
इससे मुश्किल परिस्थितियों के दौरान अपनी एनर्जी को बचाकर जानवर खुद को बचाए रख पाते हैं. ठंड के मौसम में भालू हाइबेरनेशन द्वारा ही महीनों बिना कुछ खाए-पिए जी सकता है. कुछ ऐसा है मित्सुत्का के मामले में भी हुआ होगा. डॉक्टरों का अनुमान है कि 24 दिन तक बिना कुछ खाए-पाए इतनी ठंड में जीवित रहने में हाइबेरनश की क्रिया ही मित्सुताका के काम आई होगी.
हालांकि मनुष्य में हाइबरनेशन की प्रक्रिया के पाए जाने के कोई प्रमाण नहीं हैं लेकिन विज्ञान इसे असंभव भी नहीं मानता है. शायद ऐसा ही कुछ अब हनुमंथप्पा के जीवित बचने के मामले में भी हुआ. शायद हाइबेरनशन ने ही हनुमंथप्पा की जान बचा ली. इतना ही नहीं कहा जा रहा है कि हनुमंथप्पा योग किया करते थे और बर्फ के नीचे दबे होने पर हो सकता है कि शरीर का तापमान तेजी से घटने से रोकने और ब्रेन हैमरेज रोकने में योग उनके काम आया हो.
इस बात का सटीक जवाब बाद में ढूंढा जाएगा, फिलहाल हनुमंथप्पा के दीर्घायु होने की कामना की जा रही है. वे स्वस्थ हो जाएंगे तो निश्चित ही एक रिसर्च का हिस्सा तो होंगे ही. कि- हनुमान या हाइबरनेशन?
खैर, मौत को मात देकर जीवन की जीत की सत्ता स्थापित करने के लिए हनुमंथप्पा का जय-जय करना तो बनता ही है!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.