सोनिया गांधी के बनारस में बीमार होने की तोहमत शहर की आबो-हवा पर मढ़ी जा चुकी है - और अब एक ऐसे शख्स की तलाश है जिसके सिर जिम्मेदारी डाल बाकी लोग मुक्त हो सकें.
मामला गंभीर इसलिए भी है कि सोनिया से पहले रोड शो के लिए निकलीं शीला दीक्षित की तबीयत बिगड़ गई थी - और बीच सफर में ही उन्हें इलाज के लिए बस से उतारना पड़ा था.
मामला गंभीर तो है
सोनिया का रोड रास्ते का बड़ा हिस्सा तय कर लहुराबीर पहुंच चुका था. वहां से इंग्लिशिया लाइन बहुत दूर भी नहीं है, जहां कांग्रेस के नेता रहे कमलापति त्रिपाठी की मूर्ति पर माल्यार्पण के साथ रोड शो पूरा होना था. वहीं पर सोनिया लोगों को संबोधित भी करने वाली थीं.
तबीयत बिगड़ने पर लहुराबीर के जिस होटल में सोनिया को ले जाया गया उसका रोज का किराया हजार रुपये से भी कम है, इसलिए सुविधाएं भी उसी हिसाब से होंगी. आस पास दूसरे होटल थोड़े बेहतर भी हैं लेकिन नजदीक होने के कारण उसे चुना गया होगा. अगर तबीयत नहीं खराब होती तो सोनिया शायद ही कभी देख पातीं कि वैसे भी होटल के कमरे होते हैं. उस एसी वाले रूम के लिए मास्टर की का इस्तेमाल करना पड़ा.
सबसे बड़ा और बेहद गंभीर सवाल है कि ये नौबत आई ही क्यों?
उस दिन एयरपोर्ट पर प्रियंका गांधी ने बताया, "दो-तीन दिन से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी. लेकिन वहां का कार्यक्रम तय था इसलिए वो जाना चाहती थीं. लगता है थोड़ा ज्यादा थकान हो गयी."
तबीयत पहले से खराब थी, तो क्या उसके हिसाब से जरूरी इंतजाम किये गये थे?
कांग्रेस विधायक अजय राय का इल्जाम है - 'लहुराबीर पर जब सोनिया गांधी की तबीयत खराब हुई तो एंबुलेंस में ब्लड प्रेशर नापने की मशीन नहीं थी.'
अजय राय के अनुसार, एक निजी अस्पताल से बीपी नापने की मशीन मंगवाई गयी.
"उस दौरान एम्बुलेंस में एक भी महिला डॉक्टर नहीं थी," एक और गंभीर आरोप.
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किसी भी उम्रदराज और बीमार नेता के लिए ये इंतजाम, न सिर्फ नाकाफी हैं बल्कि ये तो घोर लापरवाही की ओर इशारा करते हैं. वैसे अजय राय इसके लिए स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार बताते हैं. जिम्मेदार जो भी हो, जहां बदइंतजामी का ये आलम हो वहां जो भी मेडिकल सुविधा मिल पाई कम न थी.
लापरवाही किसकी...
ऐसे कई सवाल हैं जो एक साथ कई लोगों को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं. जितना जिम्मेदार रैली के आयोजन की जिम्मेदारी संभालने वाले कांग्रेस के नेता हैं उतने ही वहां के अफसरान भी.
लेकिन क्या एसपीजी की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?
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आराम के इंतजाम क्यों नहीं हुए थे? |
सोनिया की सुरक्षा की जिम्मेदारी एसपीजी की है. लेकिन क्या ये सुरक्षा महज आतंकवादियों और आपराधिक नीयत वालों से ही है? क्या ऐसे सुरक्षा इंतजामों में सेहत कोई फैक्टर नहीं होता? जिन रास्तों से सोनिया को गुजरना होता है - उनके पहुंचने के पहले ही सुरक्षा का जिम्मा एसपीजी के हवाले हो जाता है.
खुफिया सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों में एसपीजी अफसरों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.
क्या एसपीजी के अधिकारियों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि बीमारी की हालत में सोनिया के उन रास्तों से गुजरने पर क्या हाल होगा? और ऐसी कोई आशंका रही तो जरूरत के हिसाब से इंतजाम किये जाने चाहिये थे.
ये कौन सी सुरक्षा व्यवस्था है कि 69 साल की बीमार नेता को इतनी चोट लग जाती है कि कंधे की सर्जरी करानी पड़ती है?
ये कैसा इंतजाम था कि एंबुलेंस तो थी, लेकिन बीपी चेक करने की मशीन ही नदारद रही? ये कैसी मेडिकल टीम रही जिसमें महिला वीआईपी के लिए कोई महिला डॉक्टर शामिल नहीं थी.
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ये कैसा इंतजाम रहा कि सोनिया डिहाइड्रेशन के इस स्तर तक पहुंच गईं कि इलेक्ट्रोलाइट का लेवल बेहद कम हो गया. ये तो वाकई बहुत खतरनाक था. अगर कुछ नेता ऐसी आशंका जता रहे हैं कि कुछ भी हो सकता था, तो वे कहीं से भी गलत नहीं कहे जाएंगे.
क्या ये सब रोका जा सकता था
ऐसा तो हो नहीं सकता कि सोनिया के करीबी लोगों को ये सब मालूम न हो - और मान लेते हैं पहले से पता न भी हो तो भी सोनिया डिहाइड्रेशन के जिस स्तर तक पहुंच गयी थीं - उसमें तो वक्त भी काफी लगा होगा.
लेकिन क्या ऐसी स्थिति से बचा नहीं जा सकता था?
2 अगस्त को धूप भी थी और काफी उमस भी. सोनिया की हालत के हिसाब से रोड शो और मोटरसाइकिल रैली के कार्यक्रम में तब्दीली तो की ही जा सकती थी.
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आखिर इतनी लापरवाही कैसे हुई? |
कहने को रोड शो 6-7 किलोमीटर का था. उससे पहले 20 किलोमीटर से लंबा रास्ता मोटरसाइकिल रैली के लिए तय किया गया. बाबतपुर एयरपोर्ट से सर्किट हाउस पहुंचने के कुछ ही देर बाद रोश शो शुरू हो गया. इस दौरान थोड़ा गैप देकर सोनिया को आराम का मौदा दिया जा सकता था. रोड शो के रास्ते में भी पहले से निश्चित पड़ावों में इजाफा किया जा सकता था.
सोनिया कहें तो जांच...
यूपी की अखिलेश सरकार पूरे मामले की जांच के लिए तैयार है, बशर्ते खुद सोनिया गांधी की ओर से इसकी औपचारिक शिकायत दर्ज कराई जाये. बनारस पहुंचे यूपी सरकार के मंत्री रविदास मेहरोत्रा ने कहा कि अगर सोनिया गांधी की ओर से कोई शिकायत मिली तो जांच जरूर कराई जाएगी - जो अब तक नहीं मिली है.
मंत्री के मुताबिक बनारस को लाइफ सेविंग सपोर्ट सिस्टमवाली अत्याधुनिक एंबुलेंस दी जाएगी. साथ ही जनसुविधा के लिए कॉल सेंटर खोलने की भी तैयारी है जिसके बाद टोल फ्री नंबर 104 डायल कर शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी.
पता चला है कि बदइंतजामी सहित पूरे मामले की जांच में एजेंसियां काफी एक्टिव हैं. जांच में जुटे लोग पल पल की रिपोर्ट भेज रहे हैं - जांच के दायरे में इलाके की सड़कें भी हैं जहां से रोड शो गुजरा.
बात इतनी ही नहीं है, मौके की तलाश में इंतजार कर रहे कांग्रेस के कई नेता भी सक्रिय हो गये हैं. ले देकर कइयों की कोशिश जिम्मेदारी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पर थोप देने की है. ऐसे नेताओं का सवाल भी वाजिब है पहले से ही बीमार सोनिया के लिए इतने बड़े रोड शो प्लान करने का क्या मतलब रहा. सोनिया से पहले कांग्रेस की सीएम कैंडिडेट शीला दीक्षित के भी सफर के दरम्यान बीमार पड़ जाने से पीके के खिलाफ इन नेताओं का पलड़ा भारी पड़ रहा है.
आखिर किसके मत्थे सोनिया के बीमार पड़ने की जिम्मेदारी थोपी जाएगी? क्या वैसे ही जैसे चुनावों में हार के बाद कांग्रेस की कमेटियां हार की चीर-फाड़ करके खामोश हो जाती हैं, या फिर जिस तरह बिहार में हार की सामूहिक जिम्मेदारी बीजेपी के उन नेताओं पर लादने की कोशिश की गयी जिनकी भूमिका बहुत मामूली थी.
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