जयललिता का राजनीतिक उत्तराधिकारी तय करने के लिए AIADMK विधायकों को अपोला अस्पताल बुलाया गया है. कहा जा रहा है वहां ओ. पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री मनोनीत कराने के लिए सभी विधायकों से शपथपत्र भरवाए जाएंगे. लेकिन AIADMK से आगे बड़ा सवाल यह है कि जयललिता का उत्तराधिकारी कौन होगा?
दक्षिण के राज्यों में नेताओं, खासतौर से फिल्म स्टार से नेता बनने वालों एमजीआर, करुणानिधि, एनटीआर जयललिता, के प्रति ऐसी दीवानगी समाजशास्त्रियों के लिए शोध का विषय है. दक्षिण में फिल्मी सितारों से नेता बनने वालों की लोकप्रियता तो एक बार समझ में आती है, लेकिन दीवानगी की यह हद कि उसे चोरी की सजा मिले तो भी लोग उसके लिए जान देने को तैयार हों, वो बीमार हो तब भी लोग अपनी जान दे दें समझ के परे है. जयललिता की सेहत की घटना ने तमिलनाडु की राजनीति को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया है जहां से आगे का रास्ता किसी को पता नहीं है. तमिलनाडु की सीएम जे जयललिता को हार्ट अटैक आया है. वे इन दिनों चैन्नई के अपोलो अस्पताल में दाखिल हैं, जहां पिछले दो महीनों से उनका इलाज चल रहा है.
ये भी पढ़ें- '70 साल की लूट' गिनाने में मोदी से हुई भारी भूल
तमिलनाडु की राजनीति की दिशा जयललिता की दशा से तय होगी और जयललिता की दशा इलाज से. व्यक्ति आधारित पार्टियों की तरह अन्नाद्रमुक में भी दूसरी कतार का नेतृत्व नहीं है. अपने नेता से बात करते समय जिनकी नजर उसके पैरों से ऊपर उठे ही नहीं, वे और कुछ भी हो सकते हैं, नेता नहीं.
जयललिता का राजनीतिक उत्तराधिकारी तय करने के लिए AIADMK विधायकों को अपोला अस्पताल बुलाया गया है. कहा जा रहा है वहां ओ. पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री मनोनीत कराने के लिए सभी विधायकों से शपथपत्र भरवाए जाएंगे. लेकिन AIADMK से आगे बड़ा सवाल यह है कि जयललिता का उत्तराधिकारी कौन होगा? दक्षिण के राज्यों में नेताओं, खासतौर से फिल्म स्टार से नेता बनने वालों एमजीआर, करुणानिधि, एनटीआर जयललिता, के प्रति ऐसी दीवानगी समाजशास्त्रियों के लिए शोध का विषय है. दक्षिण में फिल्मी सितारों से नेता बनने वालों की लोकप्रियता तो एक बार समझ में आती है, लेकिन दीवानगी की यह हद कि उसे चोरी की सजा मिले तो भी लोग उसके लिए जान देने को तैयार हों, वो बीमार हो तब भी लोग अपनी जान दे दें समझ के परे है. जयललिता की सेहत की घटना ने तमिलनाडु की राजनीति को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया है जहां से आगे का रास्ता किसी को पता नहीं है. तमिलनाडु की सीएम जे जयललिता को हार्ट अटैक आया है. वे इन दिनों चैन्नई के अपोलो अस्पताल में दाखिल हैं, जहां पिछले दो महीनों से उनका इलाज चल रहा है. ये भी पढ़ें- '70 साल की लूट' गिनाने में मोदी से हुई भारी भूल तमिलनाडु की राजनीति की दिशा जयललिता की दशा से तय होगी और जयललिता की दशा इलाज से. व्यक्ति आधारित पार्टियों की तरह अन्नाद्रमुक में भी दूसरी कतार का नेतृत्व नहीं है. अपने नेता से बात करते समय जिनकी नजर उसके पैरों से ऊपर उठे ही नहीं, वे और कुछ भी हो सकते हैं, नेता नहीं.
तमिलनाडु के मौजूदा राजनीतिक हालात भाजपा के लिए बिन मांगी मुराद की तरह उपस्थित हुए हैं. राज्य में पार्टी अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है. छोटे दलों से उसका गठबंधन इस खबर से उत्साहित होंगे, पिछले कुछ समय से भाजपा तमिल फिल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत को पार्टी में लाने का प्रयास कर रही है. रजनीकांत ने अब तक हामी नहीं भरी है लेकिन उन्होंने इनकार भी नहीं किया है. फिल्म अभिनेता विजयकांत की पार्टी डीएमडीके इस समय विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल है. लोकसभा चुनाव में उसका भाजपा से गठबंधन था. बदली परिस्थितियों में विजयकांत, रामदास की पीएमके और वाइको की एमडीएमके को भी नई संभावनाएं नजर आ रही हैं. विजयकांत विपक्षी एकता की बात भी कर रहे थे. करुणानिधि पहले से ही कमजोर हैं और डीएमके कभी अपने गिरते सवास्थ्य और पार्टी की अंदरूनी कलह से काफी परेशान है. लेकिन इस समय राज्य में ऐसी कोई राजनीतिक शक्ति नहीं जो इन दोनों द्रविड़ पार्टियों की कमजोरी का फौरन फायदा उठाने की हालत में हो. राज्य में राजनीतिक शक्तियों का नए सिरे से ध्रुवीकरण होना तय सा लगता है. अब जयललिता के ख़राब स्वथ्य के कारन, तमिलनाडु में नए नेतृत्व को लेकर अटकले लगनी शुरू हो गयी हैं, चेन्नई से लेकर नई दिल्ली तक तमिलनाडु सरकार के भविष्य को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है. बड़ा सवाल है कि जयललिता के बाद उनका या पार्टी सियासी वारिस कौन होगा? अजित कुमार- एआईएडीएमके से जुड़े कुछ लोगों का दावा है कि जयललिता ने अपने उत्तराधिकारी और तमिलनाडु के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर दक्षिण भारतीय अभिनेता अजित कुमार को चुन लिया था. कहा जा रहा है कि उत्तराधिकारी को लेकर यह फैसला जयललिता की वसीयत में लिखा हुआ है और इस वसीयत से जयललिता के बेहद भरोसमंद सहयोगी अच्छी तरह अवगत भी हैं. लेकिन, अजित को लेकर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उन्हें सियासत का कोई अनुभव नहीं है. ऐसे में यकायक उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपना बेहद कठिन होगा. इस तरह एक विकल्प यह भी है कि अजित कुमार के सीएम पद का चार्ज लेने तक पनीरसेल्वम ही मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभाएं.
एक्टर अजित जयललिता के करीबी हैं. पार्टी के कार्यकर्ता भी अजित को काफी पसंद करते हैं. अजित की फैन फॉलोविंग भी दक्षिण भारत में काफी बड़ी है और खास कर तमिलनाडु में वो तमिल सिनेमा के सुपरस्टर की भी हैसियत रखते है. शशिकला- शशिकला ने जयललिता तक पहुंचने के लिए कई तरीके अपनाए. यहां तक कि जयललिता को कब क्या चाहिए, क्या पहनेंगी, सबका ध्यान सिर्फ शशिकला ही रखती थीं. इसी के चलते जयललिता की भरोसेमंद बनी. तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से ऐशो-आराम की जिंदगी जीने का सपना लेकर चेन्नई पहुंची शशिकला को राजनीतिक गलियारों में माफिया भी बुलाया जाता था. 2011 में दोनों की दोस्ती में दरार पड़ने की शुरुआत हो चुकी थी. तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयललिता को चेताया था कि शशिकला की पैसे की बढ़ती भूख की वजह से निवेशक तमिलनाडु छोड़कर जाना चाहते हैं. इसके बाद जयललिता, शशिकला के प्रति ज्यादा सावधान हो गई थीं.
तमिलनाडु में तंजौर जिले के मन्नारगुडी गांव में पैदा हुई शशिकला को बचपन में स्कूल जाने के बजाए फिल्में देखना ज्यादा पसंद था. इसलिए पढ़ाई तो शुरुआत में ही छूट गई और फिल्मों से नाता गहरा होता चला गया. फिल्मों का ही असर था कि शशिकला सुपर स्टार सी ऐशो आराम वाली जिंदगी जीने का सपना देखने लगीं. माता-पिता ने तमिलनाडु सरकार में जनसंपर्क अधिकारी की मामूली नौकरी करने वाले एम नटराजन के साथ उसकी शादी कर दी. राजनीति के गलियारे में शशिकला को मन्नारगुडी का माफिया कहकर बुलाने लगे. 1995 में वीएन सुधाकरन की शादी पूरी दुनिया में चर्चित हुई. इस पर 100 करोड़ रुपए जो खर्च हुए थे. 1996 के आम चुनाव में इसी वजह से जयललिता की पार्टी राज्य की सभी 39 सीटें हार गई. इससे घबराई जयललिता ने शशिकला और उसके परिवार से दूरी बना ली. सुधाकरन को दत्तक पुत्र मानने से भी इनकार कर दिया. ये भी पढ़ें- आखिर क्यों मरने-मारने को तैयार हैं तमिलनाडु के AIADMK कार्यकर्ता 80 के दशक की शुरुआत हो चुकी थी. पैसे की लालसा पूरी करने के लिए शशिकला ने वीडियो पार्लर खोल लिया. थोड़े बहुत पैसे आए तो कैमरा खरीदकर शादी में वीडियो रिकॉर्डिंग भी करने लगीं. इसी दौरान एमजीआर अपनी करीबी जयलिलता को अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार कर रहे थे. जयललिता की बढ़ती लोकप्रियता ने शशिकला को बेचैन कर दिया. वह उनकी वीडियो फिल्म बनाकर उनके करीब आना चाहती थी. इसके लिए उसने अपने पति की बॉस चंद्रलेखा का इस्तेमाल किया, जिसने दोनों की मुलाकात करवा दी. जयललिता ने भी फिल्म बनाने की अनुमति दे दी. एक वक्त ऐसा भी था, जब शशिकला की अनुमति के बिना कोई भी जयललिता से मिल ही नहीं सकता था. उसका रसूख इतना बढ़ गया था मंत्री नीतिगत मसलों पर उससे ही चर्चा करने लगे थे. उसके शब्दों को जयललिता का निर्देश समझा जाने लगा था. सरकार के अलावा पार्टी में भी उसकी पकड़ मजबूत हो गई थी. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना था कि शशिकला के प्रभाव के चलते ही जयललिता ने वीएन सुधाकरन को अपना दत्तक पुत्र बनाया. मुख्यमंत्री के तौर पर 1991 से 1996 तक के जयललिता के पहले कार्यकाल में शशिकला संविधान से परे एक शक्ति के तौर पर काम करने लगी. उसने और उसके रिश्तेदारों ने तमिलनाडु में गलत तरीके से बेहिसाब संपत्ति खरीदी. शशिकला का जयललिता के उत्तराधिकारी बनाना लगभग असंभव है. ओ. पनीरसेलवम- पनीरसेल्वम की पहचान जयललिता के ‘भक्त’ के रूप में है. जयललिता की गैरमौजूदगी में पनीरसेल्वम ही कैबिनेट मीटिंग की अध्यक्षता कर रहे हैं. 65 साल के पनीरसेल्वम पहले भी दो बार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. उनके जेल जाने पर सार्वजनिक मंच पर आंसू नहीं रोक पाए थे. पर जयललिता के भक्त पनीरसेलवम का जयललिता के उत्तराधिकारी बनाना काफी संदेहास्पद है.
जयललिता की ताक़त है कि वो बहुत मज़बूत नेता रही, उनका पार्टी पर इतना मज़बूत नियंत्रण है कि लोग उनके सामने काँपा करते हैं. वो अपने मंत्रियों से मिलना भी पसंद नहीं करती हैं. लोगों में मुफ़्त चीज़े बांटने की नीति ने भी उन्हें बहुत लोकप्रिय बनाया. मुफ़्त ग्राइंडर, मुफ़्त मिक्सी, बीस किलो चावल देने पर अर्थशास्त्रियों ने बहुत नाक भौं सिकोड़ी, लेकिन इसने महिलाओं के जीवनस्तर को उठा दिया और लोगों के बीच उनकी जगह बनती चली गई. जिनको लोगों ने असीम प्यार दिया है और जयललिता तमिलनाडु की अम्मा बन गयी. अपनी तमाम सफल नीतियों और असफल फैसलों के कारण वो चर्चित रहीं, पर तमिलनाडु की जनता ने उन्हें हमेशा पाने सर आँखों पर बैठाया, धुर राजनितिक विरोधी भी हमेशा अम्मा, जयललिता का सम्मान करते हैं. अब तमिलनाडु के भविष्य जयललिता के स्वस्थ्य बिगड़ने से अंधकारमय हो गया है, क्योंकि राज्य के तमाम नीतिगत फैसले और विकास कार्य ठप्प पड़ गए हैं. सवाल तमिलनाडु के अगले मुख्यमंत्री से ज्यादा बड़ा, राज्य के भविष्य का है. इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |