करीब तीन साल पहले का वाकया है. साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सुर्खियों में थीं. भोपाल जेल में रहते हुए प्रज्ञा ने उज्जैन के सिंहस्थ महाकुंभ में डुबकी लगाने की इच्छा जताई थी और इसके लिए उन्होंने अनशन शुरू कर दिया था. तब कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस उन्हें कड़ी सुरक्षा में भोपाल से उज्जैन ले गई थी. 18 मई 2016 की सुबह आठ बजे मैं भोपाल के उस अस्पताल पहुंच गया जहां से उन्हें उज्जैन ले जाना था. उज्जैन में उन्होंने पहले मीडिया से बात की और शाम को क्षिप्रा नदी के घाट पर उन्हें व्हील चेयर से ले जाया गया. मीडिया ने उन्हें पल भर के लिए भी नहीं छोड़ा और साध्वी करीब आधे घंटे तक क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाती रहीं. साध्वी प्रज्ञा ने अपनी कानूनी लड़ाई के दौरान मौका मिलते ही सुर्खी बटोरने का कोई अवसर जाने नहीं दिया.
अब एक बार फिर साध्वी प्रज्ञा चर्चा में हैं. बीजेपी का गढ़ कही जाने वाली भोपाल सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उमा भारती के मुकाबले पार्टी ने प्रज्ञा को बेहतर केंडीडेट माना और यहां से प्रत्याशी बनाया. दरअसल कांग्रेस ने 23 मार्च को जैसे ही भोपाल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उतारा था वैसे ही बीजेपी ने दिग्विजय सिंह को घेरने के लिए हिंदुत्व कार्ड खेला. हमेशा विवादित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले दिग्विजय सिंह ने मालेगांव ब्लास्ट पर हिंदू संगठनों को पहली बार कठघरे में खड़ा किया था.
दिग्विजय सिंह के भोपाल से लड़ने के पीछे का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है. उन्होंने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री कमलनाथ से उस सीट से लड़ने की इच्छा जताई थी जो पार्टी की निगाह में मुश्किल थी. कमलनाथ ने भी...
करीब तीन साल पहले का वाकया है. साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सुर्खियों में थीं. भोपाल जेल में रहते हुए प्रज्ञा ने उज्जैन के सिंहस्थ महाकुंभ में डुबकी लगाने की इच्छा जताई थी और इसके लिए उन्होंने अनशन शुरू कर दिया था. तब कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस उन्हें कड़ी सुरक्षा में भोपाल से उज्जैन ले गई थी. 18 मई 2016 की सुबह आठ बजे मैं भोपाल के उस अस्पताल पहुंच गया जहां से उन्हें उज्जैन ले जाना था. उज्जैन में उन्होंने पहले मीडिया से बात की और शाम को क्षिप्रा नदी के घाट पर उन्हें व्हील चेयर से ले जाया गया. मीडिया ने उन्हें पल भर के लिए भी नहीं छोड़ा और साध्वी करीब आधे घंटे तक क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाती रहीं. साध्वी प्रज्ञा ने अपनी कानूनी लड़ाई के दौरान मौका मिलते ही सुर्खी बटोरने का कोई अवसर जाने नहीं दिया.
अब एक बार फिर साध्वी प्रज्ञा चर्चा में हैं. बीजेपी का गढ़ कही जाने वाली भोपाल सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उमा भारती के मुकाबले पार्टी ने प्रज्ञा को बेहतर केंडीडेट माना और यहां से प्रत्याशी बनाया. दरअसल कांग्रेस ने 23 मार्च को जैसे ही भोपाल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उतारा था वैसे ही बीजेपी ने दिग्विजय सिंह को घेरने के लिए हिंदुत्व कार्ड खेला. हमेशा विवादित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले दिग्विजय सिंह ने मालेगांव ब्लास्ट पर हिंदू संगठनों को पहली बार कठघरे में खड़ा किया था.
दिग्विजय सिंह के भोपाल से लड़ने के पीछे का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है. उन्होंने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री कमलनाथ से उस सीट से लड़ने की इच्छा जताई थी जो पार्टी की निगाह में मुश्किल थी. कमलनाथ ने भी बिना देर किए दिग्विजय सिंह का नाम भोपाल से तय कर दिया. हालांकि दिग्विजय सिंह को चुनावी प्रचार शुरू किए महीने भर हो गए हैं और उनके चुनाव प्रचार की कमान संभालने वालों में उनकी पत्नी अमृता भी हैं. दिग्विजय सिंह हर छोटे-बड़े मंदिर जा रहे हैं और कुछ दिनों पहले ही दिग्विजय सिंह ने भोपाल में शंकराचार्य स्वरूपानंद से भी आशीर्वाद लिया.
दिग्विजय सिंह के रणनीतिकारों के मुताबिक साध्वी प्रज्ञा के आने के बाद करीब 3 लाख मुस्लिम वोट, सिंधी वोट और कांग्रेस के परंपरागत के वोट के दम पर जीत पक्की है. प्रचार के लिए उनके गृह क्षेत्र राघोगढ़ से बड़ी संख्या में समर्थक डेरा जमाए हुए हैं. हाल के विधान सभा चुनाव में भोपाल की सात में से तीन सीटें कांग्रेस को मिली थीं और उन इलाकों से भी दिग्विजय सिंह के पक्ष में वोटों की उम्मीद लगाई जा रही है.
हालांकि दिग्विजय सिंह भोपाल की जनता को विकास का भरोसा दिलवा रहे हैं क्योंकि बीजेपी दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाधार कहती आई है. दो दिन पहले ही दिग्विजय सिंह ने जनता के सामने अपना अलग घोषणापत्र 'विजन भोपाल' जारी किया और भोपाल के विकास को लेकर अपना नजरिया सार्वजनिक किया, जिससे शायद जनता के बीच उनकी कुछ इमेज बदल सके.
अब साध्वी प्रज्ञा की बात करें तो जैसे ही पार्टी ने उनके नाम की घोषणा की तब से ही साध्वी मीडिया की सुर्खियों में हैं, कैमरों से घिरी हैं. प्रज्ञा ने पहली ही प्रेस कांफ्रेंस में अपने ऊपर जेल में हुए अत्याचार की कहानी सुनाई और तत्कालीन कांग्रेस सरकार के साथ सीधे-सीधे दिग्विजय सिंह को भी कठघरे में खड़ा कर दिया. प्रज्ञा ने मुंबई हमले के शहीद हेमंत करकरे पर विवादित टिप्पणी और बाबरी मस्जिद ढहाने पर अफसोस नहीं गर्व वाला बयान दिया, जिसके बाद चुनाव आयोग प्रज्ञा को नोटिस भी जारी किया. बीजेपी आलाकमान अमित शाह ने यह कहकर बयानबाजी को नया मोड़ दे दिया कि प्रज्ञा पर हिन्दू टेरर के नाम पर फर्जी केस बनाए गए. भोपाल के सभी बीजेपी विधायक, सांसद आलोक संजर, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह समेत तमाम स्थानीय नेता साध्वी प्रज्ञा के प्रचार में लगे हैं. शिवराज ने भी साध्वी को रिकार्ड मतों से जिताने का दावा किया है.
दरअसल 1989 के बाद से भोपाल सीट पर लगातार बीजेपी का कब्जा रहा है. साध्वी उमा भारती भी भोपाल से जीत दर्ज कर चुकी हैं. साध्वी प्रज्ञा के पास चुनाव प्रचार का समय कम है लेकिन वे हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर जनता से वोट अपील कर रही हैं. यदि बीजेपी की रणनीति कामयाब होती है तो भोपाल बीजेपी-संघ-हिंदुत्व का संयुक्त गढ़ होगा. भोपाल में मतदान 12 मई को है और अभी राहुल गांधी और मोदी-शाह की रैली होना बाकी है.
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