मणिपुर की इरोम शर्मिला पिछले 15 साल से भूख हड़ताल पर हैं. 1 नवंबर 2000 को ही उन्होंने मणिपुर से AFSPA (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट) हटाने की मांग को लेकर अपना संघर्ष शुरू किया था. उस समय पूर्वोत्तर के सातों राज्यों में यह एक्ट लागू था. आतंकवाद जारी रहा. AFSPA भी लगा रहा. अब तक जारी है.
इरोम ने अपना आंदोलन एक घटना के विरोध से शुरू किया था. असम राइफल्स के जवानों ने कथित तौर पर मणिपुर के दस लोगों को गोलियों से भून दिया था. सेना के इस अमानवीय एक्शन का विरोध शुरू हुआ और इरोम इसकी अगुवा थीं. लेकिन 15 वर्षों बाद भी वे सिर्फ उसी घटना के विरोध का प्रतीक नजर आती हैं. आखिर क्यों शर्मिला का संघर्ष मणिपुर तक ही सीमित रह गया और पूरे पूर्वोत्तर तक यह आंदोलन नहीं पहुंच पाया? और क्यों उनके विरोध के बावजूद भी AFSPA जरूरी है.
AFSPA का विरोध लेकिन सैनिकों की हत्याओं का क्यों नहीं:
इसी साल जून में मणिपुर में आतंकी संगठनों ने देश के 18 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. लेकिन मणिपुर की राजधानी इम्फाल में AFSPA के विरोध में अनशन कर रही शर्मिला ने महज 125 किलोमीटर दूर आतंकियों द्वारा सैनिकों की हत्याओं का विरोध नहीं किया. AFSPA और सैनिक देश की अंखडता को बरकरार रखने के लिए ही वहां तैनात हैं, इसलिए उनकी मौजूदगी का विरोध करके आतंक के सफाए के लिए उनका समर्थन करने की जरूरत है. शायद यही वजह है कि इरोम को पूर्वोत्तर के ही सभी राज्यों का समर्थन नहीं मिल पाया. अगर उनका विरोध इतना वाजिब होता तो निश्चित तौर पर उन्हें मणिपुर के बाहर भी वैसी ही लोकप्रियता मिल जाती जैसी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कभी अन्ना हजारे को मिली थी.
उद्देश्य पूरा होने के बाद हट सकता है AFSPA:
ऐसा नहीं है कि AFSPA के लागू होने के बाद उसे हटाया नहीं जा सकता है. त्रिपुरा में आंतक की घटनाओं पर नियंत्रण के बाद इसे इसी साल हटाया जा चुका है. नगालैंड की विधानसभा में इसे हटाए जाने के लिए प्रस्ताव पारित...
मणिपुर की इरोम शर्मिला पिछले 15 साल से भूख हड़ताल पर हैं. 1 नवंबर 2000 को ही उन्होंने मणिपुर से AFSPA (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट) हटाने की मांग को लेकर अपना संघर्ष शुरू किया था. उस समय पूर्वोत्तर के सातों राज्यों में यह एक्ट लागू था. आतंकवाद जारी रहा. AFSPA भी लगा रहा. अब तक जारी है.
इरोम ने अपना आंदोलन एक घटना के विरोध से शुरू किया था. असम राइफल्स के जवानों ने कथित तौर पर मणिपुर के दस लोगों को गोलियों से भून दिया था. सेना के इस अमानवीय एक्शन का विरोध शुरू हुआ और इरोम इसकी अगुवा थीं. लेकिन 15 वर्षों बाद भी वे सिर्फ उसी घटना के विरोध का प्रतीक नजर आती हैं. आखिर क्यों शर्मिला का संघर्ष मणिपुर तक ही सीमित रह गया और पूरे पूर्वोत्तर तक यह आंदोलन नहीं पहुंच पाया? और क्यों उनके विरोध के बावजूद भी AFSPA जरूरी है.
AFSPA का विरोध लेकिन सैनिकों की हत्याओं का क्यों नहीं:
इसी साल जून में मणिपुर में आतंकी संगठनों ने देश के 18 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. लेकिन मणिपुर की राजधानी इम्फाल में AFSPA के विरोध में अनशन कर रही शर्मिला ने महज 125 किलोमीटर दूर आतंकियों द्वारा सैनिकों की हत्याओं का विरोध नहीं किया. AFSPA और सैनिक देश की अंखडता को बरकरार रखने के लिए ही वहां तैनात हैं, इसलिए उनकी मौजूदगी का विरोध करके आतंक के सफाए के लिए उनका समर्थन करने की जरूरत है. शायद यही वजह है कि इरोम को पूर्वोत्तर के ही सभी राज्यों का समर्थन नहीं मिल पाया. अगर उनका विरोध इतना वाजिब होता तो निश्चित तौर पर उन्हें मणिपुर के बाहर भी वैसी ही लोकप्रियता मिल जाती जैसी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कभी अन्ना हजारे को मिली थी.
उद्देश्य पूरा होने के बाद हट सकता है AFSPA:
ऐसा नहीं है कि AFSPA के लागू होने के बाद उसे हटाया नहीं जा सकता है. त्रिपुरा में आंतक की घटनाओं पर नियंत्रण के बाद इसे इसी साल हटाया जा चुका है. नगालैंड की विधानसभा में इसे हटाए जाने के लिए प्रस्ताव पारित हो चुका है. जिससे पता चलता है कि जिस दिन मणिपुर में भी AFSPA लागू करने के उद्देश्य की पूर्ति हो गई उसी दिन इसे वहां से भी हटा दिया जाएगा. इसलिए इसका विरोध करने वाले शर्मिला समेत सभी लोगों को यह समझना चाहिए कि AFSPA का मणिपुर में बने रहना क्यों जरूरी है और ऐसा भी नहीं है कि यह वहां हमेशा ही रहेगा.
क्यों AFSPA का रहना जरूरी हैः
मणिपुर समेत जिन राज्यों में यह अधिनियम लागू हैं वहां के आतंकी संगठन लगातार इन क्षेत्रों को एक अलग देश बनाने के लिए भारत के खिलाफ साजिशें रचते रहे हैं. मणिपुर की सीमा में 6 प्रतिबंधित आंतकी समूह काम कर रहे हैं. इसके अलावा यहां के छह उग्रवादी समूह, 24 निष्क्रिय आंतकी समूह और छह अन्य भारत सरकार के साथ शांति के लिए विभिन्न स्तरों पर बातचीत में लगे हुए हैं. जिस राज्य में कुल 42 आतंकी संगठन हों क्या वहां से AFSPA हटाया जा सकता है?
यही वजह है कि तमाम विरोधों के बावजूद न तो केंद्र सरकारें और न ही राज्य सरकारें इस कानून को हटाने की दिशा में कभी आगे बढ़ पाईं. हालांकि मणिपुर के पड़ोसी राज्य नगालैंड की विधानसभा ने इस कानून को हटाने के लिए विधेयक पारित किया है लेकिन मणिपुर में कभी किसी सरकार ने ऐसी कोई कोशिश भी नहीं की. लेकिन इस कानून के तमाम विरोधों के बावजूद इतने आंतकी संगठनों की मौजूदगी यह दिखाती है कि मणिपुर में AFSPA का बरकरार रहना जरूरी है.
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