24 फरवरी 2022 को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो पूरे विश्व में रूस के इस कदम का विरोध होने लगा. यूएन समेत दुनिया भर के नेताओं ने रूस की कड़ी आलोचना की और रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ आ गयी. आर्थिक, राजनैतिक, खेल, मनोरंजन हर क्षेत्र में रूस पर कड़े प्रतिबंध लाद दिए गए. देर सवेर ज्यादातर देशों ने अपने आपको रूस के खिलाफ साबित कर दिया. पर दुनिया से अलग जिस तरह भारत रूस के खिलाफ मौन है या यूं कहें कि रूस के साथ है, उसने दुनिया भर के दिग्गज देशों के माथे पर चिंता की लकीरें खीच दीं हैं. भारत जैसे देश का दुनिया की इतने बड़ी घटना पर शांत रहना अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों को रास नहीं आ रहा है यही कारण है कि ये देश शुरू से ही भारत पर रूस के खिलाफ दबाव डाल रहे हैं.
इस क्रम में कभी हिलेरी क्लिंटन कहती हैं कि, 'अगर चीन अपनी विशाल सेना को भारत भेजता है तो भारत भी चाहेगा कि दुनिया इसी तरह नाराज हो और साथ दे', तो कभी बाइडन के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह कहतें हैं कि, 'यदि चीन एलएसी का उल्लंघन करता है तो भारत यह उम्मीद न रखे कि रूस उसके बचाव में उतरेगा'. यहां तक की जो बाइडन के आर्थिक सलाहकार ब्रायन डीज ने भारत को रूस से गठबंधन की भारी कीमत चुकाने की धमकी भी दे डाली.
हालांकि, भारत पर इन धमकियों और दबाव का असर न होते देख अमेरिका के सुर नरम हो गए, अब न तो उसे भारत के रुख से समस्या है और न ही भारत के रूस से तेल लेने से. ऐसे में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर क्यों अमेरिका भारत को अपने खेमे में लेने के लिए बेचैन है.
मजबूत रणनीतिक साझेदार
दरअसल, हालिया वर्षों में इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन की तरफ से बढ़ती चिंताओं ने भारत और अमेरिका को...
24 फरवरी 2022 को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो पूरे विश्व में रूस के इस कदम का विरोध होने लगा. यूएन समेत दुनिया भर के नेताओं ने रूस की कड़ी आलोचना की और रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ आ गयी. आर्थिक, राजनैतिक, खेल, मनोरंजन हर क्षेत्र में रूस पर कड़े प्रतिबंध लाद दिए गए. देर सवेर ज्यादातर देशों ने अपने आपको रूस के खिलाफ साबित कर दिया. पर दुनिया से अलग जिस तरह भारत रूस के खिलाफ मौन है या यूं कहें कि रूस के साथ है, उसने दुनिया भर के दिग्गज देशों के माथे पर चिंता की लकीरें खीच दीं हैं. भारत जैसे देश का दुनिया की इतने बड़ी घटना पर शांत रहना अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों को रास नहीं आ रहा है यही कारण है कि ये देश शुरू से ही भारत पर रूस के खिलाफ दबाव डाल रहे हैं.
इस क्रम में कभी हिलेरी क्लिंटन कहती हैं कि, 'अगर चीन अपनी विशाल सेना को भारत भेजता है तो भारत भी चाहेगा कि दुनिया इसी तरह नाराज हो और साथ दे', तो कभी बाइडन के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह कहतें हैं कि, 'यदि चीन एलएसी का उल्लंघन करता है तो भारत यह उम्मीद न रखे कि रूस उसके बचाव में उतरेगा'. यहां तक की जो बाइडन के आर्थिक सलाहकार ब्रायन डीज ने भारत को रूस से गठबंधन की भारी कीमत चुकाने की धमकी भी दे डाली.
हालांकि, भारत पर इन धमकियों और दबाव का असर न होते देख अमेरिका के सुर नरम हो गए, अब न तो उसे भारत के रुख से समस्या है और न ही भारत के रूस से तेल लेने से. ऐसे में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर क्यों अमेरिका भारत को अपने खेमे में लेने के लिए बेचैन है.
मजबूत रणनीतिक साझेदार
दरअसल, हालिया वर्षों में इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन की तरफ से बढ़ती चिंताओं ने भारत और अमेरिका को एक-दूसरे के बेहद क़रीब ला दिया है. भारत और अमेरिका ने न सिर्फ़ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाया बल्कि, 'क्वाड' जैसे मंचों के माध्यम से बहुपक्षीय जुड़ाव को भी मज़बूत किया है. चीन के खतरों को देखते हुए भारत और अमेरिका के बीच कई तरह के समझौते हुए हैं, जिसमें इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में लॉजिस्टिक एक्सचेंज समझौता प्रमुख है (Logistics Exchange Memorandum of Agreement (LEMOA), Communications, Compatibility and Security Agreement (COMCASA), the Industrial Security Agreement (ISA)).
इन समझौतों के माध्यम से भारत ने चीन के खिलाफ अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश की है, ऐसे में अमेरिका का भारत से रूस के खिलाफ उसका साथ देने की उम्मीद करना भी स्वाभाविक ही है.
हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर जोर के बावजूद भारत दुनिया में सबसे बड़ा हथियार और मिलिट्री साजो सामान आयात करने वाला देश है. हाल में ही जारी हुए स्वीडन स्थित थिंक टैंक संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानी सिपरी के आंकड़े के अनुसार, भारत हथियारों और सैन्य उपकरणों के खरीददारों में दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश है. दुनिया में कुल हथियारों के आयात का भारत 11 प्रतिशत आयात करता है.
इसके बाद सऊदी अरब, मिस्र, ऑस्ट्रेलिया और चीन अगले चार सबसे बड़े आयातक देश हैं. यही कारण है कि अमेरिका की नज़र हमेशा से भारत के रक्षा बाजार पर रही है. हालांकि हाल के सालों में भारत ने अमेरिका से चिनूक, अपाचे, MK 54 Torpedo, Anti-ship Harpoon missiles जैसे कई रक्षा सौदे किये हैं लेकिन इन सब के बावजूद रूस आज भी भारत का सबसे बड़ा रक्षा पार्टनर है, रूस के कुल हथियार निर्यात का 23% से अधिक अकेला भारत ही आयात करता है.
यही कारण है कि अमेरिका ने हमेशा भारत के रूस से हथियार खरीदने का विरोध किया है. हाल में भी अमेरिका ने भारत का सबसे बड़ा रक्षा पार्टनर बनने की मंशा जाहिर की है और इसके लिए ये ज़रूरी है कि भारत को रूस से दूर किया जाए.
उभरता हुआ विश्व नेता
हाल के दिनों में दुनिया की धुरी में तेजी से परिवर्तन आया है, दुनिया में अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और चीन जैसे महाशक्तियों के खिलाफ अविश्वास बढ़ा है. मिडिल ईस्ट, अफगानिस्तान और इराक जैसे मुद्दों पर जहां विश्व में अमेरिका की किरकिरी हुई है तो वही चीन की विस्तारवादी नीतियों ने उसे पूरे विश्व का खलनायक बना दिया है.
जबकि दूसरी ओर दुनिया का भारत पर विश्वास बढ़ा है, कोरोना काल के दौरान भारत ने जिस तरह पूरी दुनिया की मदद की और 150 से अधिक देशों को दवाएं, वैक्सीन और दूसरी मानवीय सहायता पहुंचाई, उसने भारत को दुनिया का उभरता हुआ नेता साबित किया है. इसके अलावा यमन और दक्षिणी सूडान से लेकर यूक्रेन में भारत ने जिस तरह अपने और दुनियाभर के छात्रों को निकला, उसकी दुनिया के हर देश ने प्रसंशा की.
हाल में कई देश भारत को दुनिया का नेता कह चुकें हैं. इसकी बानगी उस समय देखने को मिली थी जब भारत को सुरक्षा परिषद की अस्थाई सदस्यता के लिए 192 देशों में से 184 देशों ने समर्थन दिया था. ऐसे में जब सैकड़ों देश भारत के पीछे खड़े हो, तो भारत का किसी खेमे में जाना उस खेमे की शक्ति को कई गुना बढ़ा सकता है. जाहिर है कि इसे समझते हुए ही अमेरिका हर तरह से भारत पर डोरे डालकर उसे अपने खेमे में करने का प्रयास कर रहा है.
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