7 मार्च को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के दीक्षांत समारोह में शामिल होंगे. 32 साल बाद भारत के राष्ट्रपति एएमयू के दीक्षांत समारोह में भाग ले रहे हैं. इससे पहले 1986 में राष्ट्रपति रहते हुए ज्ञानी ज़ैल सिंह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे. इस कार्यक्रम के साथ एक अनावश्यक विवाद शुरू हो गया है. विश्वविद्यालय के छात्र संघ का कहना है कि वह राष्ट्रपति का तो स्वागत करते हैं परंतु वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा को मानने वाले किसी व्यक्ति को इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होने देंगे.
रंगनाथ मिसरा आयोग ने सुझाव दिया था कि हिंदू धर्म छोड़ मुस्लिम या ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को भी अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किया जाए. 2010 में रामनाथ कोविंद ने भाजपा नेता के तौर पर इस विचार पर विरोध करते हुए रंगनाथ मिसरा आयोग को रद्द करने की मांग की थी.
कोविंद से पूछा गया था कि दलित सिख किस प्रकार से अनुसूचित जाति की श्रेणी का लाभ ले रहे है, जबकि दलित मुस्लिम और दलित ईसाई इससे वंचित हैं. कोविंद ने उस समय तर्क दिया था की इस्लाम और ईसाई धर्म भारत के लिए विदेशी हैं. 2010 की इसी बात को मूल बना कर विश्वविद्यालय का छात्र संघ कोविंद की सोच का विरोध कर रहा है.
आदर्श रूप में यदि कोई हिंदू धर्म छोड़ किसी भी अन्य धर्म को...
7 मार्च को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के दीक्षांत समारोह में शामिल होंगे. 32 साल बाद भारत के राष्ट्रपति एएमयू के दीक्षांत समारोह में भाग ले रहे हैं. इससे पहले 1986 में राष्ट्रपति रहते हुए ज्ञानी ज़ैल सिंह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे. इस कार्यक्रम के साथ एक अनावश्यक विवाद शुरू हो गया है. विश्वविद्यालय के छात्र संघ का कहना है कि वह राष्ट्रपति का तो स्वागत करते हैं परंतु वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा को मानने वाले किसी व्यक्ति को इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होने देंगे.
रंगनाथ मिसरा आयोग ने सुझाव दिया था कि हिंदू धर्म छोड़ मुस्लिम या ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को भी अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किया जाए. 2010 में रामनाथ कोविंद ने भाजपा नेता के तौर पर इस विचार पर विरोध करते हुए रंगनाथ मिसरा आयोग को रद्द करने की मांग की थी.
कोविंद से पूछा गया था कि दलित सिख किस प्रकार से अनुसूचित जाति की श्रेणी का लाभ ले रहे है, जबकि दलित मुस्लिम और दलित ईसाई इससे वंचित हैं. कोविंद ने उस समय तर्क दिया था की इस्लाम और ईसाई धर्म भारत के लिए विदेशी हैं. 2010 की इसी बात को मूल बना कर विश्वविद्यालय का छात्र संघ कोविंद की सोच का विरोध कर रहा है.
आदर्श रूप में यदि कोई हिंदू धर्म छोड़ किसी भी अन्य धर्म को अपनाता है तो उसे अनुसूचित जाति का आरक्षण नहीं मिलना चाहिए. अनुसूचित जाति की श्रेणी का आरक्षण दलित समाज के लिए आवंटित है, यदि कोई व्यक्ति हिंदू ही नहीं रहा तो फिर वह स्वयं को दलित कैसे कह सकता है? हालांकि इस विषय पर अलग-अलग विश्लेषकों के भिन्न-भिन्न विचार हैं.
विश्वविद्यालय के छात्र संघ को इस बात को समझना चाहिए कि राष्ट्रपति का पद राजनीतिक दल और विचार धारा से उपर होता है. रामनाथ कोविंद के 2010 के विचारों को 2018 में इस प्रकार पुनः उछालकर, वह राष्ट्रपति पद की गरिमा को कम कर रहे हैं. आप, रामनाथ कोविंद के भाजपा में रहे, विचारों से असहमत हो सकते हो परंतु इस प्रकार राष्ट्रपति के कार्यक्रम में विवाद पैदा करना अनावश्यक है.
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