दिल्ली के जहांगीरपुरी में अतिक्रमण को हटाने के लिए चलाए गए बुलडोजर अभियान पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ही रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. हालांकि, इसके बावजूद कुछ घंटे अवैध कब्जों को बुलडोजर से ढहाने का काम एमसीडी के अधिकारियों ने जारी रखा. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा इस मामले में दखल देते हुए कार्रवाई को तत्काल रोकने के लिए एमसीडी के अधिकारियों तक आदेश पहुंचाने की बात कही. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि एमसीडी का बुलडोजर अतिक्रमण गिराने के लिए जैसे ही जहांगीरपुरी स्थित एक मंदिर के पास पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट का आदेश एमसीडी के अधिकारियों को मिल गया. वैसे, उसी दौरान कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात भी अवैध कब्जे की कार्रवाई रोकने के लिए वहां पहुंच गई थीं. जबकि, इससे पहले मस्जिद समेत अन्य मकानों के बाहर किए गए अतिक्रमण ढहा दिए गए थे. लेकिन, जहांगीरपुरी में अतिक्रमण पर हुई कार्रवाई पर कई सवाल उठा रहे हैं. आइए जानते हैं कि क्या हैं वो सवाल और पक्ष-विपक्ष पर उनके तर्क भी...
सवाल- बुलडोजर चलाने से पहले नहीं दिया कोई नोटिस?
दावा- जहांगीरपुरी में अवैध कब्जे करने वालों का कहना है कि एमसीडी की ओर से उन्हें किसी तरह का कोई नोटिस नहीं भेजा गया था. एमसीडी ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण को ध्वस्त करने की कार्रवाई की है. अतिक्रमण के दायरे में आने वाले लोगों का कहना है कि एमसीडी की ओर से की गई कार्रवाई को नियमों के खिलाफ है.
तथ्य- इस मामले पर एमसीडी की ओर से कहा गया है कि अतिक्रमण को हटाने के लिए एमसीडी अधिनियम 1957 की धारा 321,322,323 और 325 के तहत कार्रवाई की गई है. जिसमें...
दिल्ली के जहांगीरपुरी में अतिक्रमण को हटाने के लिए चलाए गए बुलडोजर अभियान पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ही रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. हालांकि, इसके बावजूद कुछ घंटे अवैध कब्जों को बुलडोजर से ढहाने का काम एमसीडी के अधिकारियों ने जारी रखा. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा इस मामले में दखल देते हुए कार्रवाई को तत्काल रोकने के लिए एमसीडी के अधिकारियों तक आदेश पहुंचाने की बात कही. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि एमसीडी का बुलडोजर अतिक्रमण गिराने के लिए जैसे ही जहांगीरपुरी स्थित एक मंदिर के पास पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट का आदेश एमसीडी के अधिकारियों को मिल गया. वैसे, उसी दौरान कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात भी अवैध कब्जे की कार्रवाई रोकने के लिए वहां पहुंच गई थीं. जबकि, इससे पहले मस्जिद समेत अन्य मकानों के बाहर किए गए अतिक्रमण ढहा दिए गए थे. लेकिन, जहांगीरपुरी में अतिक्रमण पर हुई कार्रवाई पर कई सवाल उठा रहे हैं. आइए जानते हैं कि क्या हैं वो सवाल और पक्ष-विपक्ष पर उनके तर्क भी...
सवाल- बुलडोजर चलाने से पहले नहीं दिया कोई नोटिस?
दावा- जहांगीरपुरी में अवैध कब्जे करने वालों का कहना है कि एमसीडी की ओर से उन्हें किसी तरह का कोई नोटिस नहीं भेजा गया था. एमसीडी ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण को ध्वस्त करने की कार्रवाई की है. अतिक्रमण के दायरे में आने वाले लोगों का कहना है कि एमसीडी की ओर से की गई कार्रवाई को नियमों के खिलाफ है.
तथ्य- इस मामले पर एमसीडी की ओर से कहा गया है कि अतिक्रमण को हटाने के लिए एमसीडी अधिनियम 1957 की धारा 321,322,323 और 325 के तहत कार्रवाई की गई है. जिसमें पहले से नोटिस देने की जरूरत नहीं है. अवैध निर्माण को हटाने के लिए नोटिस दिया जाता है. लेकिन, अतिक्रमण हटाने के लिए पहले से नोटिस जारी करने की जरूरत नहीं होती है.
सवाल- क्या मस्जिद के परिसर और मकानों का अवैध निर्माण तोड़ा गया?
दावा- सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक पर कई लोगों की ओर से दावा किया जा रहा है कि एमसीडी की कार्रवाई में मस्जिद परिसर के साथ ही मकानों के अवैध निर्माणों को तोड़ दिया गया. जहांगीपुरी में एमसीडी ने बुलडोजर का इस्तेमाल करते हुए मकानों के निर्माण को भी तोड़ दिया, जिससे लोग अपने ही घरों में कैद हो गए हैं.
तथ्य- मीडिया चैनलों और सोशल मीडिया पर जहांगीरपुरी में अतिक्रमण पर हुई कार्रवाई से जुड़े वीडियो में साफ है कि किसी के भी मकान को नहीं तोड़ा गया है. एमसीडी ने केवल सड़क और नाली पर अतिक्रमण कर बनाए गए अस्थायी ढांचों और दुकानों के हिस्सों को ही हटाया है. मस्जिद के जिस गेट को तोड़ने की बात की जा रही है. वह गेट सड़क तक अतिक्रमण कर बनाया गया था. मकानों की निर्धारित सीमा के बाहर दुकानों द्वारा किए गए अतिक्रमण पर ही कार्रवाई की गई है.
सवाल- मस्जिद पर कार्रवाई हुई, तो मंदिर को क्यों छोड़ दिया?
दावा- सोशल मीडिया पर जहांगीरपुरी में अतिक्रमण पर हुई कार्रवाई पर सवाल खड़े करते हुए कहा जा रहा है कि मस्जिद के बाहर किए गए अतिक्रमण को एकतरफा कार्रवाई करते हुए ढहा दिया गया. लेकिन, जब अतिक्रमण ढहाने के लिए बुलडोजर मंदिर के पास पहुंचा, तो वहां पहुंचते ही अभियान को रोक दिया गया.
तथ्य- जहांगीरपुरी में मस्जिद के अतिक्रमण पर कार्रवाई के बाद बुलडोजर सड़क तक किए गए मंदिर के अवैध कब्जे को ढहाने के लिए आगे बढ़ा था. लेकिन, इसी बीच वहां समुदाय विशेष के लोग भारी संख्या में इकट्ठा होने लगे. जिन्हें रोकने के लिए पुलिस आगे आई. हालांकि, इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट का यथास्थिति बनाए रखने का आदेश भी एमसीडी के अधिकारियों तक भी पहुंच गया था. जिसके चलते मंदिर पर की जाने वाली कार्रवाई को रोक दिया गया. वैसे, जहांगीरपुरी में मंदिर के अतिक्रमण मामले में यह एक संयोग ही रहा कि वहां पर सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर दिखाने की बात करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात थीं. हालांकि, फिलहाल की स्थिति ये है कि मंदिर के संचालकों ने खुद से ही अतिक्रमण कर लगाई गई ग्रिल वगैरह को काटकर हटा दिया है. और, गुप्ता जूस कॉर्नर जैसी हिंदुओं की दुकानों को भी अतिक्रमण के लिए बख्शा नहीं गया.
सवाल- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद क्यों चलता रहा बुलडोजर?
दावा- जहांगीरपुरी में एमसीडी की अतिक्रमण ढहाने की कार्रवाई सुबह 10 बजे से की जा रही थी. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुबह 10:45 बजे रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया था. लेकिन, अतिक्रमण के खिलाफ चल रही कार्रवाई को रोका नहीं गया. और, जबरदस्ती बुलडोजर के जरिये गरीबों और मुसलमानों की संपत्तियों पर एकतरफा कार्रवाई जारी रही. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दोबारा दखल देने की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने एमसीडी अधिकारियों के पास आदेश पहुंचाने की बात कही. दोपहर 12:45 बजे एमसीडी के अधिकारियों के पास सुप्रीम कोर्ट का आदेश पहुंचाया गया.
तथ्य- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फास्ट एंड सिक्योर ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स (FASTER) नाम की योजना के जरिये अंतरिम आदेश, स्टे ऑर्डर्स, बेल ऑर्डर्स और अदालत की कार्यवाही के रिकॉर्डस की ई-ऑथेंटिकेटेड कॉपी को संबंधित अधिकारियों और पक्षों तक पहुंचाने की व्यवस्था की थी. लेकिन, एमसीडी ने ऑर्डर की सर्टिफाइड कॉपी मिलने तक एक्शन जारी रखा था. ये ठीक उसी तरह था, जैसा महाराष्ट्र में अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ की गई अतिक्रमण की कार्रवाई में बीएमसी का व्यवहार रहा था. कंगना रनौत के मामले में भी मुंबई हाईकोर्ट की ओर से आदेश दे दिया गया था. लेकिन, आदेश के बावजूद बीएमसी के अधिकारियों ने कार्रवाई जारी रखी थी. वैसे, इस पूरी योजना में सबसे बड़ी खामी यही है कि सुप्रीम कोर्ट की ये योजना किसी भी अधिकारी या पक्ष को बाध्य नहीं करती है कि वह इस पोर्टल को चेक करता रहे. क्योंकि, ऑर्डर की कॉपी हाथ में आने तक कहीं न कहीं अधिकारी और पक्ष से जुड़े लोग अदालतों के फैसले पर अपने हिसाब से पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं.
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