बात उस वक़्त की है जब पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में चुनाव चल रहे थे. खबर आई थी कि पाकिस्तान में एक दो नहीं बल्कि चार चार पार्टियां ऐसी हैं जिनके नाम में आम आदमी का जिक्र है. आम आदमी तहरीक पाकिस्तान, आम आवाम पार्टी, आम लोग इत्तेहाद और आम लोग पार्टी पाकिस्तान. ये चारों पाकिस्तान के वो दल हैं जो अपने देश में आम आदमी के मुद्दों को लेकर राजनीति करते हैं. आम आदमी के हितों से जुड़ी बातें करने वाले इन चारों दलों में से अगर बात सबसे पुराने दल की हो तो 1960 में स्थापित आम आदमी तहरीक पाकिस्तान को सबसे पुराना दल माना जाता है. वर्तमान में फरहान उल्ला मालिक इसके अध्यक्ष हैं. साथ ही पहले पाकिस्तान आवाम इस दल को मोजाहिर लीग के नाम से जानती थी.
सवाल उठ सकता है कि पाकिस्तान की सियासत और उस सियासत में आम आदमी की भूमिका पर आज हम बातें क्यों कर रहे हैं ? वजह हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल. अरविंद केजरीवाल कोर्ट जाने वाले हैं. केजरीवाल कोर्ट इसलिए जा रहे हैं क्योंकि एक दूसरी 'आप' ने उनकी रातों की नींद और दिन का चैन हराम कर दिया है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सामने एक अजीब सी मुसीबत है. लोकसभा चुनावों के मद्देनजर आप का मुकाबला हाल ही में बनी एक दूसरी पार्टी 'आपकी अपनी पार्टी' (Peoples)से है. बताया जा रहा है कि अभी हाल फ़िलहाल में बनी आप (Peoples) पार्टी दिल्ली में इस बार सभी सात लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. वहीं आम आदमी पार्टी को इस बात का भी डर सता रहा है कि इस नई पार्टी के कारण दिल्ली की जनता विचलित हो सकती है.
पूर्व में बसपा में रह चुके और वर्तमान में इस नई पार्टी के फाउंडर रामबीर चौहान के अनुसार, उनकी पार्टी, सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को अपना...
बात उस वक़्त की है जब पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में चुनाव चल रहे थे. खबर आई थी कि पाकिस्तान में एक दो नहीं बल्कि चार चार पार्टियां ऐसी हैं जिनके नाम में आम आदमी का जिक्र है. आम आदमी तहरीक पाकिस्तान, आम आवाम पार्टी, आम लोग इत्तेहाद और आम लोग पार्टी पाकिस्तान. ये चारों पाकिस्तान के वो दल हैं जो अपने देश में आम आदमी के मुद्दों को लेकर राजनीति करते हैं. आम आदमी के हितों से जुड़ी बातें करने वाले इन चारों दलों में से अगर बात सबसे पुराने दल की हो तो 1960 में स्थापित आम आदमी तहरीक पाकिस्तान को सबसे पुराना दल माना जाता है. वर्तमान में फरहान उल्ला मालिक इसके अध्यक्ष हैं. साथ ही पहले पाकिस्तान आवाम इस दल को मोजाहिर लीग के नाम से जानती थी.
सवाल उठ सकता है कि पाकिस्तान की सियासत और उस सियासत में आम आदमी की भूमिका पर आज हम बातें क्यों कर रहे हैं ? वजह हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल. अरविंद केजरीवाल कोर्ट जाने वाले हैं. केजरीवाल कोर्ट इसलिए जा रहे हैं क्योंकि एक दूसरी 'आप' ने उनकी रातों की नींद और दिन का चैन हराम कर दिया है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सामने एक अजीब सी मुसीबत है. लोकसभा चुनावों के मद्देनजर आप का मुकाबला हाल ही में बनी एक दूसरी पार्टी 'आपकी अपनी पार्टी' (Peoples)से है. बताया जा रहा है कि अभी हाल फ़िलहाल में बनी आप (Peoples) पार्टी दिल्ली में इस बार सभी सात लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. वहीं आम आदमी पार्टी को इस बात का भी डर सता रहा है कि इस नई पार्टी के कारण दिल्ली की जनता विचलित हो सकती है.
पूर्व में बसपा में रह चुके और वर्तमान में इस नई पार्टी के फाउंडर रामबीर चौहान के अनुसार, उनकी पार्टी, सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती हैं. बात जब लक्ष्य की हुई तो चौहान ने कहा कि उनका इरादा 2020 के विधानसभा चुनावों में आप सरकार को दिल्ली की गद्दी से हटा देना है.
अपनी पार्टी के विषय में बताते हुए चौहान का तर्क है कि, पूरी दिल्ली में उनकी पार्टी के समर्थक हैं. जो इस देश को जाति की राजनीति से छुटकारा दिलाने के अलावा गरीबों की मदद करना चाहते हैं. केजरीवाल को गरीबों का दुश्मन बताने वाले चौहान के अनुसार, गरीबों के लिए केजरीवाल के वादे खोखले हैं और केजरीवाल सरकार ने गरीबों के लिए अब तक कुछ विशेष नहीं किया है. जब चौहान से पूछा गया कि क्या उन्होंने केजरीवाल सरकार की लोकप्रियता का फायदा उठाने के लिए इस पार्टी को गठन किया है? इसपर उनका तर्क था कि, 'आप' की अब कोई लोकप्रियता नहीं बची है.
गौरतलब है कि आप (peoples) पार्टी पिछले साल 11 जुलाई को रजिस्टर हुई थी. तब दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की पार्टी आप ने इस नई पार्टी के नाम को लेकर आपत्ति जताई थी. इसके साथ ही पार्टी के चिन्ह से भी आम आदमी पार्टी को दिक्कत थी. केजरीवाल का कहना था कि नई पार्टी का सिम्बल टॉर्च 'आप' के चिन्ह झाड़ू की तरह दिखता है. और उन्हें डर था कि इससे लोग दोनों पार्टियों के बीच कन्फ्यूज हो सकते हैं.
बात आगे बढ़ाने से पहले उत्तर प्रदेश का भी जिक्र करना जरूरी हो जाता है. जहां चाचा शिवपाल, भतीजे अखिलेश की मुसीबत में इजाफा करते नजर आ रहे हैं. ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में अभी हाल ही में शिवपाल यादव की पार्टी (प्रसपा) लांच हुई है और माना जा रहा है कि इनकी चाभी से सबसे ज्यादा दिक्कत अखिलेश की साइकिल को होगी. उत्तर प्रदेश में भाजपा के सहयोग से आए शिवपाल अखिलेश के लिए एक बड़े वोटकटवा का रोल निभाने वाले हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वहां भी जनता सपा और प्रसपा में कंफ्यूज होने वाली है.
हमने इस लेख की शुरुआत पाकिस्तान से की थी और बताया था कि कैसे वहां एक ही नाम की तमाम पार्टियां हैं. तो आइये जानें कि इस मामले में भारत की क्या स्थिति है? ऐसी कौन कौन सी पार्टियां हैं जिनके नाम एक दूसरे से मिलते जुलते हैं. अपना जवाब जानने के लिए हमने भारतीय इलेक्शन कमीशन की वेबसाइट की मदद ली. सबसे पहले देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को सर्च किया तो जवाब चौकाने वाले थे इस देश में 7 पार्टियां ऐसी हैं जिनके नाम में प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस है.
ये हैं देश की कांग्रेस पार्टियां
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस- 1885 में बनी, जिसके मुखिया राहुल गांधी हैं.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी- 1999 में बनी, जिसका नेतृत्व शरद पवार करते हैं.
अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस- 1998 में स्थापित हुई, जिसकी मुखिया ममता बनर्जी हैं.
ऑल इंडिया एन.आर. कांग्रेस (AINRC)- 2011 में पुडुचेरी में बनी.
हरियाणा जनहित कांग्रेस- 2007 में हरियाणा में स्थापित हुई.
केरल कांग्रेस (M)- 1979 में केरल में बनी.
मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी (MSCP)- 1997 में मणिपुर में बनी.
YSR कांग्रेस पार्टी- 2011 में तेलंगाना में बनी.
इसके बाद हमने भारतीय जनता पार्टी को सर्च किया तो बस एक परिणाम आया. इलेक्शन कमीशन के अनुसार 1980 में स्थापित भारतीय जनता पार्टी की कमान अमित शाह के हाथ में है.
जब हमने समाजवादी सर्च किया तो दो दल ऐसे थे जिनके नाम में समाजवादी है पहला 1984 में स्थापित बहुजन समाजवादी पार्टी जिसकी कमान मायावती के हाथ में है. दूसरा 1992 में स्थापित समाजवादी पार्टी. इसी तरह जब हमने राष्ट्रीय शब्द को सर्च किया तो 4 दल ऐसे थे जिनके नाम में राष्ट्रीय है.1997 में झारखंड में स्थापित हुई राष्ट्रीय जनता दल. 1996 में उत्तर प्रदेश में बनी राष्ट्रीय लोक दल. 2013 में बिहार में बनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और 1990 में उत्तर प्रदेश में स्थापित समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय).
इन सबके बाद जब हमने चलते चलते कम्युनिस्ट शब्द को सर्च किया तो दो दल ऐसे हमारे सामने आए जिनके नाम में कम्युनिस्ट था. पहला 1925 में स्थापित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया जिसकी कमान वर्तमान में सुरावरम सुधाकर रेड्डी के हाथ में और दूसरा 1964 में स्थापित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी ) जिसका नेतृत्व सीताराम येचुरी करते हैं.
बहरहाल, हम बात केजरीवाल के डर की कर रहे थे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को याद रखना होगा कि ये कोई पहली बार नहीं है जब दलों के नाम एक दूसरे से मिलते जुलते हैं. उन्होंने कई मौकों पर दावा किया है कि उनकी पार्टी की तरफ से दिल्ली की जनता के लिए खूब काम किया गया है. अब जबकि केजरीवाल ये दावे कर चुके हैं तो उन्हें डरना नहीं चाहिए. ऐसा इसलिए भी क्योंकि चुनावों में खुद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा और मिलने वाले वोट बता देंगे कि दिल्ली की जनता को उनका शासन करने का तरीका पसंद आया या नहीं.
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