बागपत के मुस्लिम परिवार के धर्म परिवर्तन को लेकर शुरू हुआ विवाद कुछ ज्यादा ही गहराता जा रहा है. जिस इंसाफ की आस में अख्तर अली ने धर्म सिंह बनना मंजूर किया, वो तो अभी दूर दूर तक दिखायी नहीं दे रहा. ऊपर से अख्तर अली उर्फ धर्म सिंह के बेटे गुलशन की हत्या के आरोपी परिवार को लगातार धमका रहे हैं.
विवाद का एक छोर युवा वाहिनी की ओर भी पहुंच रहा है जिसके बारे में दावा है कि उसके मुखिया योगी आदित्यनाथ नहीं, बल्कि अमर सिंह हैं. संगठन का जो नाम बताया जा रहा है उसमें भी सिर्फ कर्म का ही फर्क है, बाकी तीनों शब्द 'हिंदू', 'युवा', और 'वाहिनी' कॉमन हैं.
तमाम विवादों के बीच एक बड़ा सवाल ये है कि जब ये लोग मुस्लिम परिवार को हिंदू बनाये तो उन्हें ठाकुर टाइटल 'सिंह' ही क्यों दिये - कुछ और क्यों नहीं?
मुस्लिम से हिंदू तो बनाया पर ठाकुर ही क्यों?
सवाल तो ये भी है कि बागपत के जिस मुस्लिम परिवार को हिंदू बनाया गया - वे कितना बदले? मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि परिवार के ज्यादातर लोग हिंदू बनने की रस्म में शामिल होने के बावजूद इस्लाम छोड़ने को तैयार नहीं है. परिवार की महिलाएं न तो खुद हिंदू बनने को राजी हैं, न ही बच्चों को होने देने के लिए.
खुद अख्तर अली से धर्म सिंह बना शख्स भी अपनी पहचान को लेकर आश्वस्त नहीं है. धर्म परिवर्तन की घटना के अगले ही दिन पहुंचे बीबीसी संवाददाता ने अख्तर अली उर्फ धर्म सिंह से पूछा था - 'आपका नाम क्या है?'
जवाब मिला - 'मेरा नाम अख़्तर अली है जी.'
ज्यादा देर नहीं लगती और भूल सुधार के साथ नया जवाब मिलता है - 'नहीं जी अब तो मेरा नाम धरम सिंह है.' सवाल जवाब के बीच ही अजान शुरू हो जाती है - और खत्म होने तक अख्तर अली उर्फ धर्म...
बागपत के मुस्लिम परिवार के धर्म परिवर्तन को लेकर शुरू हुआ विवाद कुछ ज्यादा ही गहराता जा रहा है. जिस इंसाफ की आस में अख्तर अली ने धर्म सिंह बनना मंजूर किया, वो तो अभी दूर दूर तक दिखायी नहीं दे रहा. ऊपर से अख्तर अली उर्फ धर्म सिंह के बेटे गुलशन की हत्या के आरोपी परिवार को लगातार धमका रहे हैं.
विवाद का एक छोर युवा वाहिनी की ओर भी पहुंच रहा है जिसके बारे में दावा है कि उसके मुखिया योगी आदित्यनाथ नहीं, बल्कि अमर सिंह हैं. संगठन का जो नाम बताया जा रहा है उसमें भी सिर्फ कर्म का ही फर्क है, बाकी तीनों शब्द 'हिंदू', 'युवा', और 'वाहिनी' कॉमन हैं.
तमाम विवादों के बीच एक बड़ा सवाल ये है कि जब ये लोग मुस्लिम परिवार को हिंदू बनाये तो उन्हें ठाकुर टाइटल 'सिंह' ही क्यों दिये - कुछ और क्यों नहीं?
मुस्लिम से हिंदू तो बनाया पर ठाकुर ही क्यों?
सवाल तो ये भी है कि बागपत के जिस मुस्लिम परिवार को हिंदू बनाया गया - वे कितना बदले? मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि परिवार के ज्यादातर लोग हिंदू बनने की रस्म में शामिल होने के बावजूद इस्लाम छोड़ने को तैयार नहीं है. परिवार की महिलाएं न तो खुद हिंदू बनने को राजी हैं, न ही बच्चों को होने देने के लिए.
खुद अख्तर अली से धर्म सिंह बना शख्स भी अपनी पहचान को लेकर आश्वस्त नहीं है. धर्म परिवर्तन की घटना के अगले ही दिन पहुंचे बीबीसी संवाददाता ने अख्तर अली उर्फ धर्म सिंह से पूछा था - 'आपका नाम क्या है?'
जवाब मिला - 'मेरा नाम अख़्तर अली है जी.'
ज्यादा देर नहीं लगती और भूल सुधार के साथ नया जवाब मिलता है - 'नहीं जी अब तो मेरा नाम धरम सिंह है.' सवाल जवाब के बीच ही अजान शुरू हो जाती है - और खत्म होने तक अख्तर अली उर्फ धर्म सिंह खामोश रहते हैं.
किसी मजबूरी में ही सही 64 साल की उम्र में किसी के लिए पहचान बदलना कितना मुश्किल हो सकता है, सिर्फ वही शख्स महसूस करता है. बेशक, धर्म सिंह या अख्तर अली के मन में तमाम जद्दोजहद चल रही होगी, लेकिन बड़ा सवाल युवा वाहिनी ने खड़ा कर दिया है. सवाल ये है कि अख्तर अली को हिंदू बनने के बाद 'सिंह' टाइटल ही क्यों मिला?
हिंदू धर्म में तो लोग सैकड़ों टाइटल इस्तेमाल करते हैं. ये टाइटल ज्यादातर जातीय आधार पर होते या फिर कुछ लोग अपने गोत्र को ही टाइटल बना लेते हैं.
अब तो फैशन ये भी है कि लोग जातिसूचक शब्द ही नाम से हटा देते हैं, भले ही पिता के नाम के टाइटल से जाति का पता चल जाये. ऐसे लोगों की भी तादाद खासी है जो 'कुमार' से ही काम चलाते हैं. ऐसे भी लोग मिलते हैं जो नाम से पहले ही कुमार लगा लेते हैं.
ऐसे दौर में जब नाम से जातीय पहचान हटाने की कवायद जारी हो - अगर कोई स्वेच्छा से हिंदू धर्म अपनाता है तो उसे एक खास टाइटल देने का आधार क्या हो सकता है? धर्म परिवर्तन के आवेदन में भी 'स्वेच्छा से' का खास उल्लेख है.
जिस तरह राजनीतिक दल के रजिस्ट्रेशन के लिए जाने पर चुनाव आयोग निशानों की सूची देता है, क्या अख्तर अली के सामने भी ऐसी कोई पेशकश हुई थी?
क्या अख्तर अली के सामने ज्यादा नहीं तो 'सिंह' के अलावा भी कोई और टाइटल चुनने का विकल्प दिया गया था?
अगर ऐसा नहीं हुआ तो धर्म परिवर्तन के बाद नाम देने का ठेका किसके पास है? क्या इन्हें किसी ने ये कॉन्ट्रैक्ट दिया है या ये भी बाबाओं की तरह स्वयंभू ठेकेदार हैं?
अगला सवाल ये है कि युवा वाहिनी का संरक्षक आज कल कौन है? क्या युवा वाहिनी के नाम नयी दुकानें भी चलने लगी हैं?
ये 'युवा वाहिनी' कौन है?
यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले तक योगी आदित्यनाथ और हिंदू युवा वाहिनी चर्चाओं में एक दूसरे के पूरक की तरह हुआ करते थे. हिंदी विकिपीडिया का एक पेज बताता है, "हिंदू युवा वाहिनी एक हिंदूवादी संगठन हैं, जिसके संस्थापक गोरक्षपीठाधीश्वर गोरक्षपीठ गोरखपुर मा. मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ जी हैं. वर्ष 2002 के अप्रैल माह में श्री राम नवमी के पर्व पर योगी आदित्यनाथ ने महानगर से कुछ राष्ट्रवादी नवयुवकों को संगठित कर हिंदू युवा वाहिनी की आधारशिला रखी. 9 वर्षों में इसका विस्तार उत्तर प्रदेश के सभी 72 जनपदों के 86 इकाइयों में हुआ है."
16 साल पहले योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी को बतौर सांस्कृतिक संगठन पेश किया था, लेकिन इसके पीछे निश्चित तौर पर उनकी दूरगामी राजनीतिक सोच रही होगी. जब योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बन गये उसके बाद तो संगठन की अहमियत भी ज्यादा हो गयी. संगठन ज्वाइन करने के लिए लोग टूट पड़े तो बाकायदा सर्कुलर जारी कर आवेदकों के वोटर आईडी कार्ड और उनकी पृष्ठभूमि की भी जांच पड़ताल की जाने लगी.
बागपत के हिंदू से मुस्लिम बने परिवार के लोग फिलहाल बदरखा गांव में रह रहे हैं. धर्म परिवर्तन की इस घटना में इसी गांव के सोकेंद्र खोखर का नाम बढ़ चढ़ कर लिया जा रहा है.
सोकेंद्र खोखर ही 'युवा हिंदू वाहिनी भारत' के प्रदेश अध्यक्ष बताये जा रहे हैं. सवाल है कि क्या 'युवा हिंदू वाहिनी भारत' और हिंदू युवा वाहिनी दोनों अलग अलग संगठन हैं?
बीबीसी को सोकेंद्र खोखर बताते हैं, ''हिन्दू युवा वाहिनी को योगी जी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बंद कर दिया था. ये तो अलग है जी. हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान हैं और संरक्षक अमर सिंह." साथ में डिस्क्लेमर भी है कि ये संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान सिर्फ हमनाम हैं, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं - लेकिन अमर सिंह वही हैं जो पहले समाजवादी पार्टी के नेता के तौर पर जाने जाते थे.
तो क्या अमर सिंह ने भी योगी आदित्यनाथ जैसा संगठन खड़ा कर लिया है? और क्या वास्तव में योगी आदित्यनाथ का हिंदू युवा वाहिनी निष्क्रिय हो चुका है?
अब तो ऐसा लगता है मुस्लिम परिवारों को इंसाफ दिलाने के नाम पर धर्म परिवर्तन कराने वाली बहुत सी दुकानें खुलने वाली हैं - और वो भी जातीय आधार पर. बाकियों का तो नहीं पता, लेकिन जिन चुनौतियों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहले से ही जूझ रहा है - ये दुकानें तो उसमें इजाफा ही कर रही हैं. ये न तो एक कुआं रहने देंगे, न एक मंदिर और न ही एक श्मशान!
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