गुजरात के नतीजे एक तरह से जनता, कांग्रेस और मजबूत विपक्ष के अभाव में खतरे के संकेत की तरह है. कांग्रेस यहां हारी नहीं है बल्कि नेस्तानाबूत हुई है. मोदी की हिंदुत्वादी राजनीति और उसपर गुजरात मॉडल को गुजरातियों के अस्मिता से जोड़ देना कारगर रहा. गोधरा के बाद से बीजेपी वहां एक अपराजेय योद्धा की तरह लग रही है. ऐसा लगने लगा है कांग्रेस और जनता भी ये मानने लगी है की बीजेपी यहां अपराजेय है. ये ऐसा है जैसे एक दौर में आस्ट्रेलियाई क्रिकेट हुआ करता था, कितने भी खराब हालात हों वे मैच निकाल ही ले जाते थे.
बिल्किस बानों केस के आरोपियों की रिहाई पर मचा हो हल्ला, सत्ता विरोधी रुझान, और मोरबी हादसा भी बीजेपी को नुकसान न पहुंचा सका. एक तरह से बिल्किस बानों मामले ने बीजेपी को लाभ ही पहुंचाया. इसने गुजरात मे 2002 से मोदी की बनी हिंदुत्वादी छवि को और ही मजबूत किया और हिंदू वोटों को अपने पक्ष में मोड़ दिया.
ठीक इसी तरह सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने के लिए बीजेपी ने अपनी अलग ही रणनीति विकसित की है. अगर आप बारीकी से देखेंगे तो पाएंगे कई चुनावो से ठीक पहले बीजेपी मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों के चेहरे बदल देती है साथ ही चुनावों के समय भी अपने प्रत्याशी बदल कर चुनाव लड़ती है नतीजा यह वह होता है की सत्ता विरोधी लहर काफी हद तक खत्म हो जाती है.
गुजरात चुनाव में भी उसने यही किया और नतीजा सबके सामने है. कांग्रेस का 77 सीटों से 17 सीटों पर आ जाना साफ दिखाता है की वह कहीं भी चुनाव में नहीं थी. कांग्रेस का वोट शेयर 1995 से लगातार 40 प्रतिशत के आसपास था लेकिन इस बार यह 27 प्रतिशत के आसपास ही है और आश्चर्यजनक रूप से आप पार्टी का वोट प्रतिशत 13 है जो साफ दर्शाता है की उसने...
गुजरात के नतीजे एक तरह से जनता, कांग्रेस और मजबूत विपक्ष के अभाव में खतरे के संकेत की तरह है. कांग्रेस यहां हारी नहीं है बल्कि नेस्तानाबूत हुई है. मोदी की हिंदुत्वादी राजनीति और उसपर गुजरात मॉडल को गुजरातियों के अस्मिता से जोड़ देना कारगर रहा. गोधरा के बाद से बीजेपी वहां एक अपराजेय योद्धा की तरह लग रही है. ऐसा लगने लगा है कांग्रेस और जनता भी ये मानने लगी है की बीजेपी यहां अपराजेय है. ये ऐसा है जैसे एक दौर में आस्ट्रेलियाई क्रिकेट हुआ करता था, कितने भी खराब हालात हों वे मैच निकाल ही ले जाते थे.
बिल्किस बानों केस के आरोपियों की रिहाई पर मचा हो हल्ला, सत्ता विरोधी रुझान, और मोरबी हादसा भी बीजेपी को नुकसान न पहुंचा सका. एक तरह से बिल्किस बानों मामले ने बीजेपी को लाभ ही पहुंचाया. इसने गुजरात मे 2002 से मोदी की बनी हिंदुत्वादी छवि को और ही मजबूत किया और हिंदू वोटों को अपने पक्ष में मोड़ दिया.
ठीक इसी तरह सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने के लिए बीजेपी ने अपनी अलग ही रणनीति विकसित की है. अगर आप बारीकी से देखेंगे तो पाएंगे कई चुनावो से ठीक पहले बीजेपी मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों के चेहरे बदल देती है साथ ही चुनावों के समय भी अपने प्रत्याशी बदल कर चुनाव लड़ती है नतीजा यह वह होता है की सत्ता विरोधी लहर काफी हद तक खत्म हो जाती है.
गुजरात चुनाव में भी उसने यही किया और नतीजा सबके सामने है. कांग्रेस का 77 सीटों से 17 सीटों पर आ जाना साफ दिखाता है की वह कहीं भी चुनाव में नहीं थी. कांग्रेस का वोट शेयर 1995 से लगातार 40 प्रतिशत के आसपास था लेकिन इस बार यह 27 प्रतिशत के आसपास ही है और आश्चर्यजनक रूप से आप पार्टी का वोट प्रतिशत 13 है जो साफ दर्शाता है की उसने कांग्रेस के वोटों में ही सेंधमारी की है.
हालांकि आप न होती तब भी 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के कारण भाजपा ही सत्ता में आती हां इतना जरूर होता की सीटें कुछ कम हो जाती. कितना भी कोई हो हल्ला कर ले लेकिन यह साफ है की कांग्रेस बिना गांधी परिवार के कुछ नहीं है. आज भी कांग्रेस के वोट का बड़ा हिस्सा राहुल, सोनिया, प्रियंका और पूर्ववर्ती गांधी नेताओं के नाम और काम पर ही पड़ता है.
गुजरात चुनाव में कांग्रेस नें राहुल गांधी को सक्रिय ही नहीं किया. उसने अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग अध्यक्षों को गुजरात मे लगाया लेकिन यह रणनीति फेल रही है. कांग्रेस को यह बात समझनी होगी की उसकी ताकत गांधी परिवार है. उन्हें अपनी ताकत का इस्तेमाल अपने अनुसार करना होगा न की अन्य पार्टियों की आलोचनाओं को ध्यान में रखते हुए जो अक्सर परिवारवाद का आरोप लगाती हैं.
राहुल गांधी इस समय भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त हैं. वे अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह के लोगों से सीधे कनेक्ट हो रहे हैं. वहां से अच्छी और प्यारी का टैग लिए हुए कई तस्वीरें वायरल होती हैं. लेकिन सिर्फ इतने से काम चलने वाला नहीं है. कांग्रेस को इस कनेक्ट को वोट में बदलने के लिए और काम करने की जरूरत होगी.
भाजपा जो केंद्र की सत्ता में है और जिसका इतना मजबूत संघटन उससे पार पाने के लिए उसे और मेहनत की दरकार है. कांग्रेस को सिर्फ हिन्दू वोटों की ध्रुवीकरण की बात से अपना बचाव नहीं करना चाहिए. उसे अपनी कमियों को पहचानना होगा. उसे यह भी देखना होगा की क्यों निम्न-मध्यम वर्ग लगातार उससे छिटककर भाजपा से जुड़ता जा रहा है.
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