ये देश और लोकतंत्र के हित मे भी है कि कि चुनावी नतीजे हार और जीत का ऐलान करें. खंडित जनादेश हर किसी के लिए हानिकारक है. बहुमत की सरकार जनता और जनप्रतिनिधि दोनों के लिए लाभदायक होती है. राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के लिए भी पूरी तरह से हार या पूरी तरह से जीत ठीक रहेगी. भाजपा और कांग्रेस या यूपीए और एनडीए के लिए भी यही मुनासिब होगा कि वो हारें या जीते. यदि एनडीए बहुमत नहीं ला सका और उसने जोड़तोड़ की सरकार बना ली तो समझ लीजिएगा कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को खतरे में डालने का रिस्क लिया गया है.
ऐसे ही यदि यूपीए का बहुमत नहीं आया और उसने तीसरी ताकतों के साथ मिलकर सरकार बना ली तो समझिये कि नेहरु परिवार के अखिरी चिराग राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य और भी लड़खड़ा जायेगा. राहुल गांधी ने सपा-बसपा गठबंधन से लेकर तृणमूल जैसे तमाम दलों की मनमानी के सामने समझौता करके जोड़तोड़ की सरकार बना ली तो अंदाजा लगाइए कि ये लोग कितने दिन तक आपसी सामंजस्य बनाये रखेंगे?
ऐसी कमजोर सरकार में कोई कभी भी अपनी मनमानी करने के लिए अपने सहयोगी को ब्लेकमेल कर सकता है. ऐसे में अल्पमत में आकर कभी भी सरकार गिरने का खतरा बना रहेगा. ऐसी गैरभाजपा कमजोर सरकार के सामने भाजपा मजबूत विपक्ष के तौर पर उभर सकती है. और फिर जनता के बीच मजबूत जनाधार बनाकर आगे भाजपा बहुमत की सरकार बना सकती है. इसी तरह यदि भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए इस लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं ला सका और उसने जोड़तोड़ करके सरकार बना ली तो समझ लीजिएगा कि भाजपा के जनाधार और लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी.
राम मंदिर की बात हो या ज्यादा से ज्यादा रोजगार देने का वादा हो, भाजपा...
ये देश और लोकतंत्र के हित मे भी है कि कि चुनावी नतीजे हार और जीत का ऐलान करें. खंडित जनादेश हर किसी के लिए हानिकारक है. बहुमत की सरकार जनता और जनप्रतिनिधि दोनों के लिए लाभदायक होती है. राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के लिए भी पूरी तरह से हार या पूरी तरह से जीत ठीक रहेगी. भाजपा और कांग्रेस या यूपीए और एनडीए के लिए भी यही मुनासिब होगा कि वो हारें या जीते. यदि एनडीए बहुमत नहीं ला सका और उसने जोड़तोड़ की सरकार बना ली तो समझ लीजिएगा कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को खतरे में डालने का रिस्क लिया गया है.
ऐसे ही यदि यूपीए का बहुमत नहीं आया और उसने तीसरी ताकतों के साथ मिलकर सरकार बना ली तो समझिये कि नेहरु परिवार के अखिरी चिराग राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य और भी लड़खड़ा जायेगा. राहुल गांधी ने सपा-बसपा गठबंधन से लेकर तृणमूल जैसे तमाम दलों की मनमानी के सामने समझौता करके जोड़तोड़ की सरकार बना ली तो अंदाजा लगाइए कि ये लोग कितने दिन तक आपसी सामंजस्य बनाये रखेंगे?
ऐसी कमजोर सरकार में कोई कभी भी अपनी मनमानी करने के लिए अपने सहयोगी को ब्लेकमेल कर सकता है. ऐसे में अल्पमत में आकर कभी भी सरकार गिरने का खतरा बना रहेगा. ऐसी गैरभाजपा कमजोर सरकार के सामने भाजपा मजबूत विपक्ष के तौर पर उभर सकती है. और फिर जनता के बीच मजबूत जनाधार बनाकर आगे भाजपा बहुमत की सरकार बना सकती है. इसी तरह यदि भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए इस लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं ला सका और उसने जोड़तोड़ करके सरकार बना ली तो समझ लीजिएगा कि भाजपा के जनाधार और लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी.
राम मंदिर की बात हो या ज्यादा से ज्यादा रोजगार देने का वादा हो, भाजपा जब अपनी बहुमत की ताकतवर सरकार में कुछ वादे निभाने में असफल रही तो जोड़तोड़ और बैसाखी की सरकार में जनता की अति अपेक्षाओं को कैसे पूरा किया जायेगा. एनडीए अपने नये सहयोगियों की ब्लेमेलिंग का शिकार हो सकता है. आपसी दबाव और समझौतों को सहती सरकार जनहित में कैसे काम करेगी? ऐसे स्थितियों और परिस्थितियों में एनडीए सरकार के सामने कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष के तौर पर अपना जनाधार बढ़ा सकता है.
लोकतांत्रिक भारत के इतिहास के पन्ने कई सबक सिखाते हैं. जोड़तोड़ और कथित खरीद-फरोख्त की जब भी सरकार बनी इसका नतीजा ठीक नहीं हुआ. केंद्र से लेकर तमाम राज्यों में जब भी खंडित जनादेश आया तब तब देश की प्रगति और उन्नति की रफ्तार धीमी हो गई. जोड़-तोड़ की सरकार खुद अपनी सरकार को बचाने के चक्कर में जनहित में कम ही काम कर सके.
तमाम बार ऐसी सरकारें गिरीं और समय से पहले चुनाव होने से देश की आर्थिक हानि हुई और मंहगाई बढ़ी. इसलिए दुआएं कीजिए, प्रार्थना कीजिए कि कोई भी गठबंधन बहुमत से जीते. ताकि बहुमत की मजबूत सरकार देश की प्रगति और उन्नति में भागीदारी बने.
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