कांग्रेस इस समय बहुत ही खराब स्थिति में है. ये अपने उस नेता को सामने लीडरशिप के लिए सामने लेकर आया है, जो लगभग रिटायर हो चुका था. उन्हें पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया. इसे लेकर पार्टी में ही बुदबुदाहट शुरू हो गई है. लोग लीडरलेस लीडरशिप को लेकर काफी गुस्से में हैं. कुछ तो विरोध के स्वर बुलंद कर चुके हैं तो कुछ दबे स्वर में विरोध कर रहे हैं. लेकिन कांग्रेस अभी भी उन पार्टियों और नेताओं के लिए एक जरिया सा बनी हुई है, जो नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा का विरोध कर रहे हैं. मोदी विरोधी राजनीतिक पार्टियों के लिए इस समय कांग्रेस ही अकेली उम्मीद की किरण है. दोबारा उदय होने के लिए कांग्रेस को खुद में कुछ बदलाव करने होंगे. अब गांधी परिवार को पार्टी चलाने का अपना तरीका बदलना होगा. दशकों से जैसे पार्टी चल रही है, वो अब नहीं चलेगा.
कांग्रेस में ये परंपरा रही है कि वह किसी स्थानीय नेता को उस हद तक सेटल नहीं होने देते हैं कि वह जरूरत से अधिक ताकतवर हो जाए और नेतृत्व को उसे कंट्रोल करने में दिक्कत हो. कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए ये स्ट्रेटेजी तब तक काम करती रही, जब तक कोई दूसरी राजनीतिक पार्टी का विकल्प नहीं था. अब भाजपा है, जिसने ना सिर्फ लोगों को एक विकल्प दे दिया है, बल्कि कांग्रेस को लगभग किनारे तक पहुंचा दिया है.
जहां एक ओर कांग्रेस अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों को मुश्किल से ही पूरे टाइम बने रहने देती है, वहीं दूसरी ओर भाजपा राज्यों के नेताओं को पूरा कंट्रोल देती है, ताकि वह अच्छे से काम कर सकें. भाजपा में गुजरात में नरेंद्र मोदी, यूपी में कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह, राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ में रमन...
कांग्रेस इस समय बहुत ही खराब स्थिति में है. ये अपने उस नेता को सामने लीडरशिप के लिए सामने लेकर आया है, जो लगभग रिटायर हो चुका था. उन्हें पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया. इसे लेकर पार्टी में ही बुदबुदाहट शुरू हो गई है. लोग लीडरलेस लीडरशिप को लेकर काफी गुस्से में हैं. कुछ तो विरोध के स्वर बुलंद कर चुके हैं तो कुछ दबे स्वर में विरोध कर रहे हैं. लेकिन कांग्रेस अभी भी उन पार्टियों और नेताओं के लिए एक जरिया सा बनी हुई है, जो नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा का विरोध कर रहे हैं. मोदी विरोधी राजनीतिक पार्टियों के लिए इस समय कांग्रेस ही अकेली उम्मीद की किरण है. दोबारा उदय होने के लिए कांग्रेस को खुद में कुछ बदलाव करने होंगे. अब गांधी परिवार को पार्टी चलाने का अपना तरीका बदलना होगा. दशकों से जैसे पार्टी चल रही है, वो अब नहीं चलेगा.
कांग्रेस में ये परंपरा रही है कि वह किसी स्थानीय नेता को उस हद तक सेटल नहीं होने देते हैं कि वह जरूरत से अधिक ताकतवर हो जाए और नेतृत्व को उसे कंट्रोल करने में दिक्कत हो. कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए ये स्ट्रेटेजी तब तक काम करती रही, जब तक कोई दूसरी राजनीतिक पार्टी का विकल्प नहीं था. अब भाजपा है, जिसने ना सिर्फ लोगों को एक विकल्प दे दिया है, बल्कि कांग्रेस को लगभग किनारे तक पहुंचा दिया है.
जहां एक ओर कांग्रेस अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों को मुश्किल से ही पूरे टाइम बने रहने देती है, वहीं दूसरी ओर भाजपा राज्यों के नेताओं को पूरा कंट्रोल देती है, ताकि वह अच्छे से काम कर सकें. भाजपा में गुजरात में नरेंद्र मोदी, यूपी में कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह, राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह, हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल और गोवा में मनोहर पर्रिकर रहे. अब भाजपा यूपी में योगी आदित्यनाथ, महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस, असम में सर्बानंद सोनोवाल और हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर को काम करने की खुली छूट दे रही है.
वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस की ओर से यूपी में कई सारे नेता एक दूसरे के ही खिलाफ खड़े हैं, जहां अब तक खुद गांधी परिवार का भी काफी हद तक दबदबा रहा है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस में शुक्ला और सिंधिया, नाथ और सिंह की लड़ाई चल रही है. बिहार में ब्राह्मण, मुस्लिम और सोशलिस्ट एक दूसरे से भिड़ रहे हैं. महाराष्ट्र में शरद पवार को काम करने की खुली छूट नहीं मिल रही है. इसी वजह से कांग्रेस पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसी जगहों पर नहीं है.
दिक्कत क्या है?
जहां-जहां कांग्रेस ने राज्यों के नेताओं को खुली छूट दी है, वहां अच्छा काम हो रहा है. जैसे असम में तरुण गोगोई और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह. अब गांधी परिवार का पार्टी पर कंट्रोल ढीला पड़ता जा रहा है, जिसकी वजह से उसे विरोध का सामना करना पड़ रहा है. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुडा ने कांग्रेस को अल्टिमेटम दे दिया है कि या तो उन्हें हरियाणा से कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाए या फिर वह अपने तरीके से चुनाव लड़ेंगे.
गांधी परिवार ये बात अच्छे से समझ रहा है कि हुडा कांग्रेस को ब्लैकमेल कर रहे हैं. लेकिन हुडा के मुकाबले उन्होंने रणदीप सिंह सुरजेवाला को सामने खड़ा किया है, जो अपने निर्वाचन क्षेत्र से कहीं अधिक टीवी चैनलों पर लोकप्रिय हैं. वहीं लोकसभा चुनाव में हारने के बावजूद मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की अच्छी पकड़ है. वह मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए भी एक चुनौती जैसे हैं. आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच पहले से ही काफी दुश्मनी है.
राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को बुरा लग रहा है कि कांग्रेस ने अशोक गहलोत को उनके ऊपर बॉस बनाकर बैठा दिया है. महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा, उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह और हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुडा के बेटे दीपेंदर सिंह हुडा राज्य में बड़ी जिम्मेदारी लेने की ताक में हैं.
इनके अलावा शशि थरूर (केरल), जयराम रमेश (कर्नाटक) और अभिषेक मनु सिंघवी (राजस्थान) मानते हैं कि पार्टी जनता की नब्ज पकड़ने में असफल रही है. यहां तक कि उन्होंने अपने नेतृत्व से फ्रस्ट्रेट होकर कई बार मोदी सरकार की तारीफ तक कर दी है.
मुद्दे की बात ये है कि कांग्रेस को एक नए आइडिया के साथ खुद को रिवाइव करना होगा. और ये आइडिया भारतीय संविधान से आ सकता है. अभी तक कांग्रेस ने पार्टी को डंडे को जोर पर चलाया है. अब जरूरत है कि गांधी परिवार अपने उन नेताओं को काम करने की खुली छूट दे, जो राज्यों में नेतृत्व कर रहे हैं. उन्हें राजनीतिक लेवल पर फैसले लेने की छूट देने की जरूरत है. इस तरह कांग्रेस सभी पार्टियों के लिए एक छत का काम करेगी और सारी राज्य यूनिट्स चुनावों में पार्टी का पॉलिसी बनाने में मदद करेंगी. भाजपा ने इसी फॉर्मूले का इस्तेमाल किया और फिलहाल वह सबसे अधिक सफल चुनाव जीतने वाली मशीन बन चुकी है.
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