विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तीन साल पहले इराक में गायब हुए 39 भारतीयों के बारे में संसद में ऐसा खुलासा किया, जिसने देखते ही देखते तूल पकड़ लिया. उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि उन सभी 39 लोगों की मौत हो चुकी है, जो करीब 3 साल पहले गायब हुए थे. उन्होंने बताया कि पिछले तीन साल से इन लोगों की मौत के सबूत नहीं मिल पा रहे थे, लेकिन अब उनकी मौत की पुष्टि हो चुकी है. आईएसआईएस के हाथों 39 लोगों के मारे जाने की खबर तो 3 साल पहले ही चर्चा में आ गई थी, लेकिन सरकार के पास पुख्ता सबूत न होने के चलते उनकी मौत की पुष्टि नहीं हो पा रही थी. अब विपक्षी दलों ने सुषमा स्वराज और मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है कि 3 साल पहले मारे गए लोगों के बारे में बताने में उन्हें 3 साल क्यों लग गए? यहां पर सभी को ये समझना जरूरी है कि सरकार की कुछ बाध्यताएं होती हैं, जिसके चलते सिर्फ किसी व्यक्ति के गायब हो जाने पर उसे मरा हुआ नहीं समझा जा सकता है. आइए जानते हैं क्या है किसी को मृत घोषित करने का कानूनी नियम, लेकिन पहले जान लीजिए 3 साल पहले हुआ क्या था.
गोलियों से भून दिया था आईएसआईएस ने
तीन साल पहले जून 2014 में भारत सरकार का इराक में काम कर रहे 40 भारतीय मजदूरों से संपर्क टूट गया था. इनमें अधिकतर पंजाब के रहने वाले थे, जिन्हें आईएसआईएस ने अगवा कर लिया था. इनमें से एक शख्स किसी तरह बचकर भाग निकला था और उसने सुषमा स्वराज से संपर्क करके उन्हें यह जानकारी दी थी कि आईएसआईएस ने सभी 39 लोगों को गोलियों से भून दिया है. इस शख्स का नाम हरजीत मजीह है, जिसने मरने का नाटक करते हुए अपनी जान बचाने का दावा किया था. सरकार को भनक तो लग चुकी थी, लेकिन उन 39 लोगों की मौत के कोई पुख्ता सबूत नहीं थे, जिसके चलते पूर्व आर्मी चीफ और विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह को के नेतृत्व में इराक में एक खोजी...
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तीन साल पहले इराक में गायब हुए 39 भारतीयों के बारे में संसद में ऐसा खुलासा किया, जिसने देखते ही देखते तूल पकड़ लिया. उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि उन सभी 39 लोगों की मौत हो चुकी है, जो करीब 3 साल पहले गायब हुए थे. उन्होंने बताया कि पिछले तीन साल से इन लोगों की मौत के सबूत नहीं मिल पा रहे थे, लेकिन अब उनकी मौत की पुष्टि हो चुकी है. आईएसआईएस के हाथों 39 लोगों के मारे जाने की खबर तो 3 साल पहले ही चर्चा में आ गई थी, लेकिन सरकार के पास पुख्ता सबूत न होने के चलते उनकी मौत की पुष्टि नहीं हो पा रही थी. अब विपक्षी दलों ने सुषमा स्वराज और मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है कि 3 साल पहले मारे गए लोगों के बारे में बताने में उन्हें 3 साल क्यों लग गए? यहां पर सभी को ये समझना जरूरी है कि सरकार की कुछ बाध्यताएं होती हैं, जिसके चलते सिर्फ किसी व्यक्ति के गायब हो जाने पर उसे मरा हुआ नहीं समझा जा सकता है. आइए जानते हैं क्या है किसी को मृत घोषित करने का कानूनी नियम, लेकिन पहले जान लीजिए 3 साल पहले हुआ क्या था.
गोलियों से भून दिया था आईएसआईएस ने
तीन साल पहले जून 2014 में भारत सरकार का इराक में काम कर रहे 40 भारतीय मजदूरों से संपर्क टूट गया था. इनमें अधिकतर पंजाब के रहने वाले थे, जिन्हें आईएसआईएस ने अगवा कर लिया था. इनमें से एक शख्स किसी तरह बचकर भाग निकला था और उसने सुषमा स्वराज से संपर्क करके उन्हें यह जानकारी दी थी कि आईएसआईएस ने सभी 39 लोगों को गोलियों से भून दिया है. इस शख्स का नाम हरजीत मजीह है, जिसने मरने का नाटक करते हुए अपनी जान बचाने का दावा किया था. सरकार को भनक तो लग चुकी थी, लेकिन उन 39 लोगों की मौत के कोई पुख्ता सबूत नहीं थे, जिसके चलते पूर्व आर्मी चीफ और विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह को के नेतृत्व में इराक में एक खोजी अभियान चलाया गया. इस अभियान में इराक में बदूश के टीले के नीचे मिले अवशेषों का डीएनए टेस्ट कराया गया और अब इस बात की पुष्टि कर दी गई है कि 2014 में 39 भारतीयों की इराक में मौत हो चुकी है.
अब समझिए सरकार की मजबूरी
भले ही आपका कितना ही भरोसेमंद शख्स आपसे कहे कि जो व्यक्ति गायब हुआ है, उसकी मौत हो चुकी है, लेकिन कानून इसे नहीं मानेगा. Indian Evidence Act, 1872 की धारा 108 के तहत किसी गायब हुए शख्स को तब मरा हुआ समझा जाएगा, जब वह सात सालों तक गायब रहे. अगर उससे पहले उसकी मौत होने की पुष्टि हो जाती है तो ठीक है, वरना गायब हुए शख्स को मृत घोषित करने के लिए 7 साल तक का इंतजार करना ही होगा. अब सरकार की भी यही मजबूरी थी. अगर सरकार 2014 में ही गायब व्यक्तियों को मृत घोषित कर देती तो सवाल ये उठता कि क्या उनके पास कोई सबूत है? जबकि सरकार खाली हाथ थी. ऐसे में सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा सूचना देने को किसी की मौत का आधार नहीं माना जा सकता. अब डीएनए सैंपल की जांच के बाद पुष्ता सबूत सरकार के हाथ लगे हैं तो सरकार ने उन्हें मृत घोषित किया है. अगर 7 सालों तक गायब लोगों का कोई पता नहीं चलता तो सरकार बिना किसी सबूत के भी उन्हें कानून मृत घोषित कर सकती थी.
कानून का यही एक्ट है विपक्ष के सवालों का जवाब
कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया है कि सरकार को इराक में मारे गए 39 भारतीयों का पता लगाने में 4 साल क्यों लग गए?
कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है- मोदी सरकार ने असंवेदनशीलता, निर्ममता और निर्दयता की सारी हदें पार कर दी हैं. 39 भारतियों की हत्या की जा चुकी थी, परंतु भारत सरकार ने 7 बार देश और उनके परिवार जनों को ये कहा कि वो सब जिंदा हैं.
मोदी सरकार ने असंवेदनशीलता, निर्ममता और निर्दयता की सारी हदें पार कर दी हैं.39 भारतियों की हत्या की जा चुकी थी, परंतु भारत सरकार ने 7 बार देश और ऊनके परिवारजनों को ये कहा कि वो सब जिंदा हैं.विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज देश को गुमराह क्यों कर रही थी? मेरा वक्तव्य-: pic.twitter.com/Btg7j98QVG
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) March 20, 2018
वहीं शशि थरूर ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि आखिर इस सूचना को देने में इतनी देरी क्यों की गई? सरकार को बताना चाहिए कि ये कैसे हुआ, उनकी मौत कब हुई? जिस तरह से सरकार ने मृतकों के परिजनों को उम्मीदें बंधाई थीं, वह भी सही नहीं है.
असम महिला कांग्रेस की प्रवक्ता सुष्मिता देव ने कहा है कि सुषमा स्वराज जी इस बात का जवाब नहीं दे पाई हैं कि सरकार 39 भारतीयों को बचाने में असफल कैसे रही है?
हरजीत मजीह ने भी साधा सुषमा पर निशाना
इराक से अकेले बचकर भागने में सफल रहे शख्स हरजीत मजीह ने सुषमा स्वराज पर निशाना साधा है. उन्होंने आरोप लगाया है कि सुषमा स्वराज को पहले से ही पता था कि 39 भारतीयों की मौत हो चुकी है, क्योंकि यह बात उन्होंने खुद ही सुषमा स्वराज को बताई थी. बावजूद इसके सुषमा स्वराज ने मौत की खबर को छुपा कर 39 भारतीयों के परिजनों को बरगलाया है. आपको बता दें कि संसद में सुषमा स्वराज ने हरजीत मजीह की बातों को झूठ करार दिया था. उन्होंने दावा किया है कि हरजीत मजीह खुद को मुस्लिम बताकर बच निकला था.
सुषमा ने कांग्रेस पर लगाया ओछी राजनीति का आरोप
जब सुषमा स्वराज मोसुल में मारे गए 39 भारतीय की सूचना देने के लिए खड़ी हुईं तो कांग्रेस और सीपीएम ने हंगामा शुरू कर दिया. यहां तक कि स्पीकर सुमित्रा महाजन के बार-बार आग्रह किए जाने के बावजूद वह हंगामा करते रहे. इसके चलते सुषमा स्वराज बयान नहीं दे सकीं. सुषमा स्वराज यह कहकर बैठ गईं कि इतना शोर-शराबा रहा तो वह नहीं बोल पाएंगी. वह बोलीं कि राज्यसभा में तो सभी ने उनकी बात सुनी, लेकिन लोकसभा में कोई सुनने को तैयार नहीं हुआ. उन्होंने कांग्रेस पर ओछी राजनीति करने का आरोप भी लगाया.
Shameful how opposition members did not let EAM Smt. @SushmaSwaraj make a statement in Lok Sabha on the horrific killing of 39 Indians by ISIS in Mosul, Iraq despite repeated appeals by the Speaker! They heartlessly continued to create ruckus for their partisan agenda. pic.twitter.com/39PlFCwp3B
— BJP (@BJP4India) March 20, 2018
कौन था सुषमा का वो सूत्र, जिसने 39 लोगों के जिंदा होने का दावा किया था?
सरकार ने इराक में मारे गए लोगों की मौत की पुष्टि तो कर दी है, लेकिन कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब अभी भी नहीं मिल पाए हैं. इनमें एक बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर सुषमा स्वराज का वह कौन सा सूत्र था, जिसने 2015 में इन सभी 39 लोगों के जिंदा होने की खबर दी थी. सुषमा स्वराज ने तो उस सूत्र को इतना भरोसेमंद बताया था कि उसकी बात पर किसी तरह का कोई शक होने की गुंजाइश नहीं दिखती थी. कितना भरोसा था सुषमा स्वराज को अपने उस सूत्र पर, ये देखिए इस वीडियो में.
Ok lady for your info sushma ji had some reliable sources please have a look ???????????????????????? pic.twitter.com/EV3BQg1jvn
— Bhaskar (@inclusivemind) March 20, 2018
अंत में हरजीत मजीह खुद भी एक सवाल बनकर रह गया है. हरजीत ने कहा था कि आईएसआईएस ने सभी को गोली मार दी थी, लेकिन उसके पैर में गोली लगी थी और वह मरने का नाटक करके बचने में नाकाम रहा था. हरजीत का ये बयान संदेह पैदा करता है. वहीं सुषमा स्वराज ने कहा कि वह खुद को मुस्लिम बताकर भागने में कामयाब रहा, इस पर भी संदेह होता है कि ऐसा कैसे हो पाया. ये ऐसा सवाल है, जिसका अभी तक कोई सटीक जवाब नहीं मिल सका है.
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