कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर कलह का हल निकाल लिया. ऐसा लगता है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को अपना ये फॉर्मूला काफी पसंद आया है. शायद यही कारण रहा होगा, जो कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड में पंजाब जैसी स्थिति बनने से पहले ही हरीश रावत को चुनाव प्रचार की कमान सौंप दी. साथ ही हरीश रावत के करीबी गणेश गोदयाल को प्रदेश अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिया. लेकिन, पंजाब की तरह यहां भी चार कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं. जिसमें प्रीतम सिंह की अगुवाई वाले रावत विरोधी गुट के रणजीत रावत और भुवन कापड़ी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस आलाकमान ने दोनों धड़ों को साधने की कोशिश की है.
वैसे, कांग्रेस आलाकमान ने जो फैसला लिया है, उस पर काफी हद तक हरीश रावत का प्रभाव देखने को मिला. चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बनाए गए हरीश रावत ने उत्तराखंड कांग्रेस में हुए सांगठनिक बदलाव को लेकर ये राय पहले ही जाहिर कर दी थी. दरअसल, हरीश रावत पंजाब प्रभारी के तौर नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच चल रही सियासी जंग को भले हैंडल कर रहे हों. लेकिन, उनकी नजर उत्तराखंड में भी पंजाब के साथ होने वाले विधानसभा चुनाव पर बराबर रही है. लंबे समय से हरीश रावत कभी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग के सहारे, तो कभी राजनीति से संन्यास लेने की बात कहकर कांग्रेस आलाकमान के सामने अपना दावा पेश करते रहे हैं.
कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने भी हरीश रावत की मांग पर तकरीबन मुहर लगाते हुए उन्हें कहीं न कहीं मजबूती देकर उत्तराखंड में चल रही ओहदों की जंग को खत्म कर दिया है. उत्तराखंड के फॉर्मूले में पहाड़-मैदान, कुमाऊं-गढ़वाल के क्षेत्रीय समीकरण से लेकर जातिगत समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया है. लेकिन, सीएम कैंडिडेट कौन होगा, इसका फैसला अभी तक नहीं हुआ है. हालांकि, चुनाव अभियान की बागडोर थामने वाले हरीश रावत गुट के नेता उन्हें अभी से ही सीएम कैंडिडेट घोषित कर चुके हैं. उत्तराखंड कांग्रेस...
कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर कलह का हल निकाल लिया. ऐसा लगता है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को अपना ये फॉर्मूला काफी पसंद आया है. शायद यही कारण रहा होगा, जो कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड में पंजाब जैसी स्थिति बनने से पहले ही हरीश रावत को चुनाव प्रचार की कमान सौंप दी. साथ ही हरीश रावत के करीबी गणेश गोदयाल को प्रदेश अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिया. लेकिन, पंजाब की तरह यहां भी चार कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं. जिसमें प्रीतम सिंह की अगुवाई वाले रावत विरोधी गुट के रणजीत रावत और भुवन कापड़ी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस आलाकमान ने दोनों धड़ों को साधने की कोशिश की है.
वैसे, कांग्रेस आलाकमान ने जो फैसला लिया है, उस पर काफी हद तक हरीश रावत का प्रभाव देखने को मिला. चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बनाए गए हरीश रावत ने उत्तराखंड कांग्रेस में हुए सांगठनिक बदलाव को लेकर ये राय पहले ही जाहिर कर दी थी. दरअसल, हरीश रावत पंजाब प्रभारी के तौर नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच चल रही सियासी जंग को भले हैंडल कर रहे हों. लेकिन, उनकी नजर उत्तराखंड में भी पंजाब के साथ होने वाले विधानसभा चुनाव पर बराबर रही है. लंबे समय से हरीश रावत कभी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग के सहारे, तो कभी राजनीति से संन्यास लेने की बात कहकर कांग्रेस आलाकमान के सामने अपना दावा पेश करते रहे हैं.
कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने भी हरीश रावत की मांग पर तकरीबन मुहर लगाते हुए उन्हें कहीं न कहीं मजबूती देकर उत्तराखंड में चल रही ओहदों की जंग को खत्म कर दिया है. उत्तराखंड के फॉर्मूले में पहाड़-मैदान, कुमाऊं-गढ़वाल के क्षेत्रीय समीकरण से लेकर जातिगत समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया है. लेकिन, सीएम कैंडिडेट कौन होगा, इसका फैसला अभी तक नहीं हुआ है. हालांकि, चुनाव अभियान की बागडोर थामने वाले हरीश रावत गुट के नेता उन्हें अभी से ही सीएम कैंडिडेट घोषित कर चुके हैं. उत्तराखंड कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव भी समय आने पर सीएम का चेहरा तय करने की बात करते रहे हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर पंजाब में बदलाव की लहर दिखाने वाली कांग्रेस को उत्तराखंड में रावत ही एकमात्र विकल्प क्यों नजर आए?
गांधी परिवार से नजदीकी का फल
उत्तराखंड के कांग्रेस संगठन में हुए बदलाव में हरीश रावत की राय को तवज्जो मिलना तय माना जा रहा था. इसके पीछे का कारण साफ है कि गांधी परिवार से उनकी करीबी किसी से छिपी नहीं है. हरीश रावत हमेशा से ही कांग्रेस आलाकमान के 'यस मैन' रहे हैं. हरीश रावत ने इसी महीने कहा था कि मैं केवल सोते समय ही कांग्रेस के लिए काम नहीं करता हूं. कांग्रेस के साथ चुनावों में क्या गलत हुआ, इसे जानने के लिए मैंने कई राज्यों का दौरा किया है. रावत के ये बयान बताने के लिए काफी है कि वो कांग्रेस आलाकमान के किसी आदेश की अवहेलना नहीं करते हैं. इस स्थिति में माना जा सकता है कि उत्तराखंड में एक और पारी खेलने की तैयारी कर रहे रावत को पंजाब मामले में अमरिंदर सिंह को सुलह के लिए तैयार करने का फल मिला है. वैसे, 'हरदा' को लेकर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि अभी भी उत्तराखंड में कांग्रेस का सबसे चर्चित चेहरा वो ही हैं. हालांकि, रावत पिछले विधानसभा चुनाव में दो सीटों से चुनाव लड़े और दोनों से हारे इसलिए उन्हें कद्दावर नेता कहना जायज नहीं होगा.
सीएम कैंडिडेट पर खिंचने लगी तलवारें
कांग्रेस भी अब भाजपा की राह पर चलते हुए हर राज्य में नए नेताओं की पौध तैयार करने के काम में लगी हुई है. रेवंत रेड्डी और नाना पटोले जैसे अपवादों को छोड़ दिया जाए, तो इस नई लिस्ट में ज्यादातर कांग्रेस के ही नेता हैं. उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां कांग्रेस पूरी तरह से हरीश रावत पर ही आश्रित नजर आती है, वहां कांग्रेस ने ये कदम उठाने में इतनी देर क्यों कर दी? रावत के करीबी गणेश गोदियाल परोक्ष रूप से हरदा की वकालत करते हुए कह रहे है कि चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष उसे बनाया जाता है, जिसकी सर्वस्वीकार्यता होती है. वहीं, कांग्रेस आलाकमान के फैसले को ढाल बनाकर प्रीतम सिंह केवल कमेटी घोषित होने की बात कहकर सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे हैं. नए कार्यकारी अध्यक्ष रंजीत रावत गुटबाजी को आंतरिक लोकतंत्र का हिस्सा बता रहे हैं.
आखिर कांग्रेस का प्लान क्या है?
संगठन में फेरबदल के जरिये कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड में हरीश रावत और प्रीतम सिंह दोनों गुटों के नेताओं को बराबर की तवज्जो दी है. हालांकि, प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद प्रीतम सिंह को विधायक दल का नेता बनाना एक तरह से डिमोशन ही है. लेकिन, सीएम के चेहरे की घोषणा ना करते हुए कांग्रेस ने रावत हलके को पशोपेश में डाल ही दिया है. माना जा रहा है कि उत्तराखंड में हरीश रावत के नाम की घोषणा से पहले कांग्रेस सभी नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश करेगी. इस चुनाव को रावत का आखिरी चुनाव मानकर कांग्रेस आलाकमान उन्हें एक और मौका देने के मूड में नजर आ रही है. इस स्थिति में कहना गलत नहीं होगा कि आज नहीं तो कल हरीश रावत के नाम पर मुहर लग ही जाएगी.
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