भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने संक्रमण के पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं. कोविड-19 संक्रमण से हो रही मौतों के आंकड़ों में भी अप्रैल महीने में तेजी आई है. इसी के साथ केंद्र की मोदी सरकार पर बड़ा फैसला (लॉकडाउन) लेने का दबाव बढ़ा है, लेकिन उसने अपनी ये जिम्मेदारी राज्य सरकारों के कंधों पर डाल दी है. इसे साफ और सीधे शब्दों में कहें, तो कोरोना महामारी से निपटने की सारी जिम्मेदारियां नरेंद्र मोदी ने राज्यों पर डाल दी हैं. मोदी सरकार इस बार देशव्यापी लॉकडाउन को लेकर बचाव की मुद्रा में नजर आ रही है. बीते साल देशव्यापी लॉकडाउन लगाने का फैसला करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के तौर पर अपनाने की बात कहते नजर आ रहे हैं. बीते साल मोदी सरकार के अचानक देशव्यापी लॉकडाउन लगाने का फैसला करने के बाद वह चारों ओर से घिर गई थी. नरेंद्र मोदी के इस फैसले की पुरजोर आलोचना हुई थी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि कोरोना संक्रमण के अप्रत्याशित रूप से बढ़ रहे मामलों के बीच कोरोना से निपटने की सारी जिम्मेदारियां नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों पर क्यों डाल दी हैं?
विपक्ष के आरोपों से बच जाएगी मोदी सरकार
बीते साल 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करने के साथ ही नरेंद्र मोदी विपक्ष के निशाने पर आ गए थे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार मोदी सरकार पर हमलावर रहे और उसकी एकतरफा फैसला लेने की नीतियों पर सवाल उठाते रहे. राहुल गांधी ने सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी पर आक्षेप लगाया था कि उन्होंने लॉकडाउन की घोषणा से पहले राज्यों के साथ सलाह-मशविरा नहीं किया था. दरअसल, नरेंद्र मोदी के संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा करने से पहले ही कई राज्यों ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए प्रदेश में लॉकडाउन लगा दिया था. इस बार नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन लगाने का सारा दारोमदार राज्य सरकारों पर ही डाल दिया है. इसकी वजह से इस बार मोदी ने विपक्ष के लिए कुछ भी कहने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है.
प्रवासी मजदूरों के बुरे हाल का दोष...
भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने संक्रमण के पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं. कोविड-19 संक्रमण से हो रही मौतों के आंकड़ों में भी अप्रैल महीने में तेजी आई है. इसी के साथ केंद्र की मोदी सरकार पर बड़ा फैसला (लॉकडाउन) लेने का दबाव बढ़ा है, लेकिन उसने अपनी ये जिम्मेदारी राज्य सरकारों के कंधों पर डाल दी है. इसे साफ और सीधे शब्दों में कहें, तो कोरोना महामारी से निपटने की सारी जिम्मेदारियां नरेंद्र मोदी ने राज्यों पर डाल दी हैं. मोदी सरकार इस बार देशव्यापी लॉकडाउन को लेकर बचाव की मुद्रा में नजर आ रही है. बीते साल देशव्यापी लॉकडाउन लगाने का फैसला करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के तौर पर अपनाने की बात कहते नजर आ रहे हैं. बीते साल मोदी सरकार के अचानक देशव्यापी लॉकडाउन लगाने का फैसला करने के बाद वह चारों ओर से घिर गई थी. नरेंद्र मोदी के इस फैसले की पुरजोर आलोचना हुई थी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि कोरोना संक्रमण के अप्रत्याशित रूप से बढ़ रहे मामलों के बीच कोरोना से निपटने की सारी जिम्मेदारियां नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों पर क्यों डाल दी हैं?
विपक्ष के आरोपों से बच जाएगी मोदी सरकार
बीते साल 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करने के साथ ही नरेंद्र मोदी विपक्ष के निशाने पर आ गए थे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार मोदी सरकार पर हमलावर रहे और उसकी एकतरफा फैसला लेने की नीतियों पर सवाल उठाते रहे. राहुल गांधी ने सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी पर आक्षेप लगाया था कि उन्होंने लॉकडाउन की घोषणा से पहले राज्यों के साथ सलाह-मशविरा नहीं किया था. दरअसल, नरेंद्र मोदी के संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा करने से पहले ही कई राज्यों ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए प्रदेश में लॉकडाउन लगा दिया था. इस बार नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन लगाने का सारा दारोमदार राज्य सरकारों पर ही डाल दिया है. इसकी वजह से इस बार मोदी ने विपक्ष के लिए कुछ भी कहने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है.
प्रवासी मजदूरों के बुरे हाल का दोष राज्य सरकारों पर आएगा
पिछली बार अचानक लॉकडाउन की घोषणा की वजह से हजारों-लाखों मजदूरों को पैदल घर लौटना पड़ा था. हालांकि, इस बार भी लॉकडाउन लगने की आहट से ही प्रवासी मजदूरों ने बड़ी संख्या में महानगरों से पलायन शुरू कर दिया, जो अभी भी जारी है. नरेंद्र मोदी राष्ट्र के नाम संबोधन में राज्य सरकारों से प्रवासी मजदूरों में भरोसा पैदा करने की बात करते दिखे. लेकिन, जो भरोसा बीते साल बुरी तरह से चकनाचूर हुआ था, कोरोना महामारी के इस दौर में उसे फिर से कायम शायद ही किसी सरकार के बस की बात हो. कोरोनाकाल की सबसे बड़ी और भयावह मानवीय त्रासदी का बोझ इस बार मोदी अपने सिर नहीं लेना चाहते हैं. अगर राज्य सरकारें लॉकडाउन लगाती हैं, तो प्रवासी मजदूरों की समस्या का ठीकरा भी उनके सिर ही आएगा.
आर्थिक पैकेज की घोषणा नही करनी पड़ेगी
बीते साल लॉकडाउन के कारण पूरा देश मंदी की चपेट में आ गया था. अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई थी. उद्योग-कारखाने, व्यापार-धंधे आदि पूरी तरह से बंद रहे और मंझले और छोटे व्यापारियों के पास अपने उद्योगों और व्यापार को फिर से शुरू करने के लिए पैसा खत्म हो गया था. इसी दौरान टैक्स वसूली न होने की वजह से राज्य सरकारों का कोष भी लगातार घटा था. जिसकी वजह से राज्यों ने केंद्र सरकार से आर्थिक पैकेज के साथ ही जीएसटी का बकाया भुगतान करने की मांग की थी. इसी वजह से मोदी सरकार को 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी पड़ी थी. इस बार नरेंद्र मोदी अपनी सरकार को राहत के नाम पर ऐसे किसी भी पचड़े में नहीं डालना चाहते हैं. वे उम्मीद कर रहे हैं कि राज्य खुद स्थिति पर काबू करें और ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो उसके जिम्मेदार खुद बनें. वैसे, मोदी सरकार ने लॉकडाउन के कुछ दिनों बाद ही गरीबों और मजदूरों के लिए 1.75 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी. जिसमें किसान निधि और उज्जवला योजना जैसी योजनाओं को शामिल किया गया था, जो पहले से ही चल रही थीं.
कोरोना संक्रमण बढ़ने पर राज्यों के सिर फूटेगा ठीकरा
अगर स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें, तो इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकारों के पास होती है. कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर ने सबसे पहले गैर भाजपा शासित राज्यों जैसे महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब आदि को अपनी चपेट में लिया था. इस स्थिति में में जब केंद्र सरकार सारी जिम्मेदारी पहले ही राज्यों पर डाल चुकी है, तो वह सभी तरह के आरोपों से बच निकलते हुए महामारी से निपटने में अक्षमता का सारा ठीकरा राज्य सरकारों के माथे ही आएगा. मोदी सरकार के पास ये कहने के लिए जमीन तैयार हो जाएगी कि राज्य कोविड-19 संक्रमण से निपटने की जितनी भी कोशिशें कर रहे हैं, वो नाकाफी हैं.
वैक्सीन पर भी गजब खेल गई मोदी सरकार
वैक्सीन के मामले पर भी केंद्र और राज्य के बीच टकराव की मुद्रा ही देखने को मिली है. गैर भाजपा शासित राज्यों ने वैक्सीन की उपलब्धता में कमी का मामला उठाया. साथ ही 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों का टीकाकरण कराने की बात भी कही. मोदी सरकार ने टीकों की कमी का मामला जैसे-तैसे संभाल लिया और 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को टीका देने की घोषणा भी कर दी. लेकिन, यहां भी मोदी सरकार ने 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के टीकाकरण का सारा भार राज्य सरकारों पर डाल दिया है. मोदी सरकार अभी केवल 45 साल से ऊपर के लोगों औऱ फ्रंटलाइन वर्कर्स का ही टीकाकरण करेगी. विपक्ष ने वैक्सीन को लेकर लगातार मोदी पर श्रेय लेने का आरोप लगाया. इतना ही नहीं, विपक्ष ने वैक्सीन के असरकारक होने को भी कटघरे में खड़ा कर दिया था. अब जबकि कोरोना संक्रमण इतना फैल गया है, तो भाजपा के पास राज्यों के इस नकारात्मक रवैये पर सवाल उठाने की गुंजाइश है.
एकरूपता और समन्वय की जरूरत के वक्त हाथ पीछे खींचे
बीते साल नरेंद्र मोदी के लॉकडाउन का फैसला लेते ही वह सवालों से घिर गए थे. मोदी ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा ऐसे समय में की थी, जब कई राज्यों ने पहले से ही लॉकडाउन लगाया हुआ था. देशव्यापी लॉकडाउन लगाने को सही ठहराने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने संक्रमण को रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों में एकरूपता और समन्वय बनाने की दलील दी थी. उसके बाद कैसी परिस्थितियां बन गई थीं, यह बताने की जरूरत नही पड़ेगी. लॉकडाउन के दौरान विपक्ष ने नरेंद्र मोदी पर ताली-थाली बजवाकर अपनी मार्केटिंग करने का आरोप लगाया. वहीं, इस बार मोदी ने सीधे तौर पर कह दिया कि लॉकडाउन कोई इलाज नहीं है. राज्य भी ऐसा कहते दिख रहे हैं, लेकिन आंशिक तौर पर लगाए गए लॉकडाउन से अब संपूर्ण लॉकडाउन की ओर बढ़ गए हैं.
इस तमाम उठापटक में नुकसान जनता का
पिछले साल सितंबर में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने लोकसभा मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि देश में 564 कोरोना केस थे, तो लॉकडाउन लगा दिया गया और अब 54 लाख से ऊपर मामले होने के बाद लॉकडाउन खोला जा रहा है. खैर, केंद्र और राज्यों की इस तनातनी से इतर महत्वपूर्ण बात ये है कि इन सब में पिस आम आदमी रहा है. राजनीतिक अंक जुटाने के खेल में लोगों की सांसें उखड़ रही हैं. ऐसे समय में जब केंद्र औेर राज्य सरकारों के बीच का समन्वय लोगों को साफ साफ दिखाई देना चाहिए, उनके बीच का टकराव खीझ बढ़ा रहा है. लॉकडाउन पर ढुलमुल फैसले के बीच एक ओर संक्रमण बढ़ रहा है, तो दूसरी तरफ अस्पतालों में बेड, इलाज के लिए जरूरी दवाओं और ऑक्सीजन की कमी ने एक ऐसा माहौल तैयार कर दिया है, जिसमें जनता का अनाथ जैसी फीलिंग आ रही है.
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