पाकिस्तान ने इस साल फिर से संयुक्त राष्ट्र संघ की सालाना बैठक में भारत के प्रति अपने नफरत फैलाने वाले प्रोपगैंडा को बढ़ाया है. एक तरफ जहां चीन से पाकिस्तान की दोस्ती सदाबहार है तो वहीं भारत से उसकी दुश्मनी भी कभी न खत्म होने वाली है. पिछले सत्तर सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई चीजें बदलीं हैं. कई देशों के संबंध बने-बिगड़े हैं लेकिन भारत के प्रति पाकिस्तान की कड़वाहट में कोई बदलाव नहीं आया है.
कलह
भारत के साथ संबंध बेहतर करने के बजाए पाकिस्तान ने हमेशा ही दोनों देशों के बीच के खाई को बढ़ाने का तरीका अपनाया. इसने धार्मिक विरोध से लेकर, परमाणु हथियार क्षमता और आतंकवाद तक का सहारा लिया है. यहां तक की कश्मीर को तहस-नहस करने और भारत को नुकसान पहुंचाने के अपने मकसद में फेल हो जाने के बाद भी पाकिस्तान ने भारत को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फिर चाहे इसके लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.
अमेरिका ने हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी और हिजबुल मुजाहिदीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन घोषित किया था. ऐसा करके अमेरिका ने पाकिस्तान को साफ संदेश दिया था कि कश्मीर में उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद सही नहीं है. इसके साथ ही ब्रिक्स देशों ने लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा जैसे पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठनों को भी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन के रूप में घोषणा करने से पाकिस्तान को झटका लगा था.
इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने भाषण में पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में कहा था कि पाकिस्तान आतंकवाद के लिए स्वर्ग बनना बंद करे. साथ ही ये भी कहा था कि अमेरिका द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता...
पाकिस्तान ने इस साल फिर से संयुक्त राष्ट्र संघ की सालाना बैठक में भारत के प्रति अपने नफरत फैलाने वाले प्रोपगैंडा को बढ़ाया है. एक तरफ जहां चीन से पाकिस्तान की दोस्ती सदाबहार है तो वहीं भारत से उसकी दुश्मनी भी कभी न खत्म होने वाली है. पिछले सत्तर सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई चीजें बदलीं हैं. कई देशों के संबंध बने-बिगड़े हैं लेकिन भारत के प्रति पाकिस्तान की कड़वाहट में कोई बदलाव नहीं आया है.
कलह
भारत के साथ संबंध बेहतर करने के बजाए पाकिस्तान ने हमेशा ही दोनों देशों के बीच के खाई को बढ़ाने का तरीका अपनाया. इसने धार्मिक विरोध से लेकर, परमाणु हथियार क्षमता और आतंकवाद तक का सहारा लिया है. यहां तक की कश्मीर को तहस-नहस करने और भारत को नुकसान पहुंचाने के अपने मकसद में फेल हो जाने के बाद भी पाकिस्तान ने भारत को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फिर चाहे इसके लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.
अमेरिका ने हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी और हिजबुल मुजाहिदीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन घोषित किया था. ऐसा करके अमेरिका ने पाकिस्तान को साफ संदेश दिया था कि कश्मीर में उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद सही नहीं है. इसके साथ ही ब्रिक्स देशों ने लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा जैसे पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठनों को भी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन के रूप में घोषणा करने से पाकिस्तान को झटका लगा था.
इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने भाषण में पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में कहा था कि पाकिस्तान आतंकवाद के लिए स्वर्ग बनना बंद करे. साथ ही ये भी कहा था कि अमेरिका द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता को भी बंद या कम किया जा सकता है. लेकिन अमेरिका के इस लताड़ से कुछ सीखने के बजाए पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर मुद्दे को जोर-शोर से उठाया.
ये न सिर्फ अमेरिका बल्कि भारत का भी विरोध है. साथ ही ये पाकिस्तान की उस पुरानी रणनीति का हिस्सा भी है जिसमें वो विश्व के सामने भारत के साथ अपने संबंधों को इस कदर तनावपूर्ण दिखाता है मानो दोनों ही देशों के बीच अब परमाणु युद्ध की सी स्थिति बन आई है. और दोनों ही देशों के बीच कभी भी ये युद्ध हो सकता है.
अनुमान के मुताबिक ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकन अब्बासी ने पाकिस्तान के शॉर्ट-रेंज परमाणु हथियारों की बात करके अमेरिका के सामने परमाणु हमलों का माहौल बना दिया है. हालांकि यूएन के मंच से इस खतरे की बात करने से उन्होंने परहेज किया. क्योंकि उत्तर कोरिया के मौजूदा संकट को देखते हुए ये अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के प्रतिकूल होता.
अपनी शेखी बघारते हुए अब्बासी ने कश्मीर में 7 लाख भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को "युद्ध अपराध" के रूप में पेश किया. इसके साथ ही उन्होंने मांग की कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव और मानवाधिकारों के उच्चायुक्त कश्मीर में भारत द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के लिए एक जांच आयोग भेजें. यही नहीं उन्होंने भारत पर "रेप का प्रयोग राज्य नीति के रूप में" करने का आरोप लगाया.
आतंकवाद
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासचिव से कश्मीर पर एक विशेष दूत नियुक्त करने की भी मांग की. ताकि जम्मू एवं कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को लागू कराया जा सके. साथ ही उसने भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया. पाकिस्तान के इन आरोपों का भारत के अधिकारियों द्वारा कड़ा जवाब दिया गया. सुषमा स्वराज ने भी यूएन में अपने भाषण में पाकिस्तान की कलई खोल दी.
संयुक्त राष्ट्र में भारत पर अब्बासी के इस राजनयिक हमले ने पाकिस्तानी मानदंडों को भी धत्ता बता दिया है. पाकिस्तान अब खुद को नियंत्रित करने की क्षमता, अपनी कमजोरियों को पहचानने की शक्ति खो चुका है. वो अब ये भी तय कर पाने की स्थिति में नहीं है कि जो कदम वो उठा रहा है क्या वो दूसरों के सामने उसकी विश्वसनीयता को स्थापित कर रहे हैं या फिर खत्म कर रहे हैं. चीन का ये बयान कि कश्मीर का मुद्दा इतिहास से विवादित ही रहा है और इसे दोनों देशों को मिलकर सुलझाना चाहिए इस बात की तस्दीक करता है.
दुष्ट
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र में बोलते हुए पाकिस्तान की दूत मलीहा लोधी को 2014 में एक इजरायली बम से छर्रों से घायल हुई फिलीस्तीनी लड़की की तस्वीर को भारतीय सुरक्षाबलों के पैलेट गन से घायल हुई कश्मीरी लड़की के तौर पर दिखाने से बचना चाहिए था. जाहिर है मलिहा के साथ-साथ उनके सहकर्मी भी भारत के प्रति उतनी ही घृणा और कटुता का भाव रखते हैं. इसलिए वो दुनिया के सामने भारत का विभत्स चेहरा पेश करने के लिए कोई नाटकीय तस्वीर पेश करना चाहते थे. जिसमें ये बुरी तरीके से असफल रहे.
जैसे उत्तर कोरिया ने परमाणु और मिसाइल क्षमता हासिल करके अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को धत्ता बताने और किसी भी तरह की सजा से बचने की सोच बना ली है. ठीक वही भाव अब पाकिस्तान के मन में भी आ गया है. पाकिस्तान ने परमाणु मिसाइलों के जरिए अपना काला चेहरा दिखाना शुरु कर दिया है.
अब्बासी की अधपकी कूटनीति का दूसरा पहलू उनका उल्लेखनीय बयान था. जिसमें उन्होंने दावा किया था कि अफगानिस्तान में भारत की कोई भी राजनीतिक और सैन्य भूमिका नहीं है. अफगानिस्तान के विदेशी संबंधों को नियंत्रित करने के पाकिस्तान के दावे ने साबित कर दिया है कि उसकी सोच किस कदर बचकाना हो गई है.
अब्बासी सिर्फ एक मोहरा हैं. जिसे नवाज शरीफ ने अपना वफादार होने के नाते 2018 के चुनावों तक पाकिस्तान की गद्दी इनाम में पकड़ा दी है. शरीफ पर प्रतिबंध लगने की वजह से भारत पर पाकिस्तान की नीतियों के लिए वो सैन्य शासन के प्रभाव में है. यही कारण है कि अब्बासी ने वही बात दोहराई जिसकी स्क्रिप्ट उन्हें सैन्य प्रशासन द्वारा थमाई गई थी. इस सब से निष्कर्ष ये निकलता है कि भारत-पाकिस्तान के रिश्ते निकट भविष्य में भी ठंडे ही रहेंगे और उनमें कोई सुधार होने की उम्मीद भी नहीं है.
(MailToday से साभार)
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