चाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, वित्त मंत्री अरुण जेटली या भाजपा के अध्यक्ष अमित साह सब के सब 500 और 1000 रुपए के नोटों पर पाबंदी के फैसले बहुत सही दिशा में लिया गया कदम बता रहे हैं. इनके मुताबिक जो ईमानदार हैं, वो इस फैसले से खुश हैं, जबकि जिनके पास काला धन है वो दुखी हैं. बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि हम समझ सकते हैं कि इस कदम से कालाधन, फर्जी नोट, हवाला और ड्रग्स से जुड़े डीलरों को परेशानी हुई है लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा है कि मुलायम सिंह, मायावती, अरविंद केजरीवाल जैसे नेता ऐसे लोगों के सुर में सुर क्यों शामिल रहे हैं. इन चार दलों को क्या समस्या है? उन्होंने अपना फर्दाफाश कर लिया है और अपना असली चेहरा दिखाया है.’ मतलब ये कि ब्लैकमनी के सर्जिकल आपरेशन से केवल और केवल वही दुखी हैं जिनके पास काला धन है. यानि इन दलों के पास काला धन था जो की इस आपरेशन से बर्बाद हो गया इसलिए ये व्यथित हैं. लेकिन क्या केवल वही दुखी हैं जिनके पास काला धन है?
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भाजपा एवं शिवसेना आमने सामने-
भाजपा की सबसे पुरानी मित्र, शिवसेना न केवल इसका जमकर विरोध कर रही है बल्कि इस मुद्दे पर घोर विरोधियों के साथ शामिल हो गई है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है कि मुट्ठीभर उद्योगपतियों से काला धन निकालने के लिए मोदी सरकार ने 125 करोड़ जनता को सड़क पर खड़ा कर दिया है. ये आगे कहती है कि 'एक झटके में सरकार ने 125 करोड़ जनता को काला धन की बलिवेदी पर कुर्बान कर दिया. क्या सभी भ्रष्ट और काला धन रखने वाले हैं? कितने ऐसे हैं, जो कतारों में अवैध 500 और 1000 रुपए के बंडल लेकर खड़े हैं?' और कुछ तो इस प्रक्रिया में मर भी गए. शिवसेना न...
चाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, वित्त मंत्री अरुण जेटली या भाजपा के अध्यक्ष अमित साह सब के सब 500 और 1000 रुपए के नोटों पर पाबंदी के फैसले बहुत सही दिशा में लिया गया कदम बता रहे हैं. इनके मुताबिक जो ईमानदार हैं, वो इस फैसले से खुश हैं, जबकि जिनके पास काला धन है वो दुखी हैं. बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि हम समझ सकते हैं कि इस कदम से कालाधन, फर्जी नोट, हवाला और ड्रग्स से जुड़े डीलरों को परेशानी हुई है लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा है कि मुलायम सिंह, मायावती, अरविंद केजरीवाल जैसे नेता ऐसे लोगों के सुर में सुर क्यों शामिल रहे हैं. इन चार दलों को क्या समस्या है? उन्होंने अपना फर्दाफाश कर लिया है और अपना असली चेहरा दिखाया है.’ मतलब ये कि ब्लैकमनी के सर्जिकल आपरेशन से केवल और केवल वही दुखी हैं जिनके पास काला धन है. यानि इन दलों के पास काला धन था जो की इस आपरेशन से बर्बाद हो गया इसलिए ये व्यथित हैं. लेकिन क्या केवल वही दुखी हैं जिनके पास काला धन है?
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भाजपा एवं शिवसेना आमने सामने-
भाजपा की सबसे पुरानी मित्र, शिवसेना न केवल इसका जमकर विरोध कर रही है बल्कि इस मुद्दे पर घोर विरोधियों के साथ शामिल हो गई है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है कि मुट्ठीभर उद्योगपतियों से काला धन निकालने के लिए मोदी सरकार ने 125 करोड़ जनता को सड़क पर खड़ा कर दिया है. ये आगे कहती है कि 'एक झटके में सरकार ने 125 करोड़ जनता को काला धन की बलिवेदी पर कुर्बान कर दिया. क्या सभी भ्रष्ट और काला धन रखने वाले हैं? कितने ऐसे हैं, जो कतारों में अवैध 500 और 1000 रुपए के बंडल लेकर खड़े हैं?' और कुछ तो इस प्रक्रिया में मर भी गए. शिवसेना न केवल केंद्र में भाजपा की सहयोगी है बल्कि महाराष्ट्र में भी दोनों दल मिल के सरकार चला रहे हैं.
राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी और अमित शाह- फाइल फोटो |
अकाली दल भी खुल कर सामने आया-
शिरोमणि अकाली दल भी शिवसेना की ही तरह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक है. अकाली दल के अध्यक्ष एवं पंजाब के उप मुख्य मंत्री सुखवीर सिंह बादल ने भी कहा है कि काले धन पर किया गया यह सर्जिकल स्ट्राइक कारगर नहीं होगा, उन्होंने ये भी कहा की शादी के दिनों में नकदी के अभाव में लोग परेशान हैं. हालाँकि, उन्होंने प्रधान मंत्री के निर्णय का समर्थन किया पर ये भी कहा कि इससे महिलाओं को काफी परेशानी हो रही है और ये 50 दिनों में कार्यान्वित नहीं किया जा सकता है.
भाजपा के तीन सांसद भी इसके खिलाफ बोले-
भाजपा के राज्यसभा सदस्य और मोदी के करीबी सुब्रमणियन स्वामी ने देश में व्याप्त करंसी संकट के लिए नोटबंदी को जिस तरह से लागू किया गया है उसकी आलोचना की है. परोक्ष रूप से अरुण जेटली पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि "ये कहना आसान है कि मंत्रालय को इसकी जानकारी नहीं थी लेकिन आकस्मिक योजना नहीं बनाने के लिए ये कोई तर्क नही है".
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राजकोट से भाजपा के सांसद विट्ठल रादड़िया कह रहे हैं कि इस फैसले से गांव के किसान बेहाल हो गए हैं. ग्रामीण इलाकों में बदहाली हो गई है, रिज़र्व बैंक का ये तुगलकी फैसला है और इसकी भर्त्सना जरूरी है.
शत्रुघ्न सिन्हा- फाइल फोटो |
शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा की तीसरे सांसद हैं जो इसके खिलाफ बोल रहे हैं. उन्होंने नोटबंदी के बाद की स्थिति को अफरातफरी वाला बताया है. उन्होंने इसके लिए जवाबदेही तय किए जाने की मांग की क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनकी टीम के सदस्यों ने निराश किया है. उन्होंने तय सीमा से अधिक रुपए निकालने पर लगे प्रतिबंधों पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि लोगों को अपना ही पैसा निकालने से रोका जा रहा है. उन्होंने हैरान होकर पूछा, ‘‘यह किस तरह का नाटक है? ’’
संघ से जुड़े संगठनो में असंतोष-
आरएसएस से सम्बंधित संगंठन जैसे की भारतीय मजदूर संघ एवं भारतीय किसान संघ ने नोट बंदी से हुई नाराजगी से केंद्र सरकार को अवगत करा दिया है. इन संगठनों के पदाधिकारियों ने इस कदम की सफलता पर संदेह व्यक्त किया है क्योंकि, मजदूर अपना काम छोड़ कर पैसे लेने के लिए लाइन में लगे हुए हैं और किसान वह भी नहीं कर सकता है क्यों की अभी बुआई का समय है. भारतीय मज़दूर संघ के अध्य्क्ष बैज नाथ राय का मानना है की फैसला भले ही अच्छा हो पर इसके कार्यान्वयन में गड़बड़ हो रही है. इस कारण इसकी सफलता में संदेह लग रहा है. भारतीय किसान संघ के मोहिनी मोहन मिश्र ने भी नोटबंदी का स्वागत किया पर बोला की इसका क्रियान्यन बेहतर हो सकता था.
नरेंद्र मोदी, अरुण जेटली और अमित साह का पैमाना है कि केवल वही इस फैसले का विरोध कर रहे हैं जिनके पास काला धन है. तो क्या ये सब काला धन रखे हुए हैं? क्या ये काले धन रखने वालों का समर्थन कर रहे हैं? दोनों ही गैरकानूनी है. अगर भाजपा की सबसे ताकतवर त्रिमूर्ति ऐसा मानती है तो क्या ये इन व्यक्तियों या संगठनों कार्रवाई करेगी?
अरुण जेटली- फाइल फोटो |
हकीकत यह है कि भाजपा अपने फैसले से विपक्ष को तो सन्तुष्ट नहीं ही कर पाई है पर अपने सबसे पुराने मित्रों को भी विश्वास में नहीं ले पाई है और तो और असन्तोष के स्वर पार्टी के भीतर से भी आने लगे हैं. तो क्या भाजपा के जो सांसद इस कदम के खिलाफ बोल रहे हैं वो सभी काला धन रखे हुए हैं? हालाँकि, जनता ने प्रारम्भ में नोट बंदी का स्वागत किया, पर इसके कार्यान्वयन में हो रही अव्यवस्था से लोगों में रोष बढ़ने लगा है. अगर कुछ समय तक सब कुछ ऐसे ही रहा तो जनता भी इन विरोधियों के स्वर में स्वर मिलाने लगेगी.
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