केंद्रीय मंत्री नारायण राणे (Narayan Rane) 'थप्पड़' वाले बयान पर गिरफ्तार जरूर हुए. लेकिन, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राणे की जबान पर ताला लगाने के जिस मकसद से उन्हें मुश्किल में डाला था, वो हल होता नहीं दिख रहा है. नारायण राणे ने भाजपा की जिस जन आशीर्वाद यात्रा में उद्धव ठाकरे को थप्पड़ लगाने की बात कही थी, उसे फिर से शुरू कर दिया है. और, अब पहले से ज्यादा हमलावर नजर आ रहे हैं. पुराने 'शिवसैनिक' रहे राणे ने शिवसेना प्रमुख को चेतावनी दे दी है कि 39 साल साथ में रहने से उन्हें सारे राज पता हैं. किसने अपनी भाई की पत्नी पर एसिड अटैक करने को कहा था? एक-एक कर सारे राज खोलूंगा. शिवसेना में लंबे समय तक रहे नारायण राणे ने पार्टी से लेकर उद्धव ठाकरे तक की पोल-पट्टी खोलने की जो बात कही है, उससे शिवसेना का नुकसान हो या नहीं, लेकिन भाजपा का फायदा जरूर होता दिख रहा है.
इन सबसे इतर नारायण राणे की गिरफ्तारी के बाद महाराष्ट्र सरकार बॉम्बे हाईकोर्ट में बैकफुट पर भी आ ही चुकी है. उद्धव ठाकरे सरकार ने हाईकोर्ट में राणे के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेने की बात कही है. वहीं, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को नाराज करने के बाद शिवसेना अब डैमेज कंट्रोल में जुट गई है. शिवसेना नेता संजय राउत के हालिया बयान से तो यही लग रहा है. संजय राउत कहते दिख रहे हैं कि भाजपा और शिवसेना के बीच कुछ मुद्दों पर मतभेद जरूर थे, लेकिन रिश्ते कभी कड़वा नही हुआ. उन्होंने शायद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के गुस्से को कम करने की नीयत से ही ये कहा है. इसी कवायद में राउत ने दिवंगत बालासाहेब ठाकरे के अटल और आडवाणी से रिश्तों की दुहाई भी दे डाली. हालांकि, नारायण राणे को लेकर शिवसेना की अदावत अभी भी बरकरार है. संजय राउत ने भाजपा के साथ संबंध खराब होने की वजह राणे को बताते हुए उन्हें बांग्लादेशी घुसपैठिया कह दिया. सवाल उठना लाजिमी है कि राणे की गिरफ्तारी के बाद शिवसेना डैमेज कंट्रोल में क्यों जुटी है?
उद्धव ठाकरे सरकार एक ओर नारायण राणे पर आगे कोई एक्शन नही लेने की बात कर रही है.
क्या उद्धव ठाकरे की निकल आई 'अकल दाढ़'
उद्धव ठाकरे सरकार एक ओर नारायण राणे पर आगे कोई एक्शन नही लेने की बात कर रही है. वहीं, दूसरी ओर संजय राउत भाजपा के साथ पुराने संबंधों को गिनाने में जुटे हैं. ये सब करने के पीछे की वजह कहीं एनसीपी चीफ शरद पवार का बयान तो नही है. दरअसल, राणे की गिरफ्तारी के बाद शरद पवार ने बहुत नपी-तुली प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने कहा था कि 'मी महत्व देत नाही' यानी मैं महत्व नहीं देता. लेकिन, इसके साथ उन्होंने ये भी कहा कि नारायण राणे अपने संस्कारों के मुताबिक आचरण कर रहे हैं. अब यहां सवाल ये उठ जाता है कि शरद पवार ने राणे के कौन से संस्कारों की बात की है? शिवसेना कार्यकर्ता से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद तक का सफर तय करने वाले नारायण राणे की राजनीतिक शिक्षा-दीक्षा तो बालसाहेब ठाकरे की छत्रछाया में हुई है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो शिवसेना का हर शिवसैनिक उग्रता में पीएचडी धारक है. तो, नारायण राणे के बहाने शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को एक बड़ा संकेत तो दे ही दिया है. खुद को महाविकास आघाड़ी सरकार का सुप्रीम लीडर समझते हुए शिवसेना प्रमुख ने राणे पर जो कार्रवाई की थी, उसे शरद पवार ने 'चेक एंड बैलेंस' के सिद्धांत से बराबरी पर ला दिया है.
वहीं, महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने नारायण राणे के बयान पर केवल कहने के लिए ही अपना विरोध जताया. नाना पटोले के बयान से ऐसा लग रहा था कि उन्होंने महाविकास आघाड़ी सरकार में हिस्सेदार होने के चलते बहुत मजबूरी में ये बयान दिया है. पटोले ने अपनी प्रतिक्रिया में मात्र यही कहा कि हमें लगता था केंद्रीय मंत्रिमंडल में महाराष्ट्र से अधिक मंत्री होने से राज्य को फायदा होगा, लेकिन नारायण राणे की टिप्पणी राज्य का माहौल खराब कर रही है. हम उनके बयान का विरोध करते हैं. नाना पटोले का बयान पूरी तरह से रस्मअदायगी की तरह लगा. जबकि, मिशन 2024 की तैयारियों में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष की हालिया मीटिंग में शिवसेना भी शामिल हुई थी. कहा जा सकता है कि शिवसेना के साथ गठबंधन सरकार चला रहे एनसीपी और कांग्रेस उसे कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे हैं. वैसे भी महाराष्ट्र में अगले विधानसभा चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद ही होने हैं, तो एनसीपी और कांग्रेस- शिवसेना को लेकर ज्यादा फिक्रमंद नजर नहीं आते हैं.
भाजपा ने एकला चलो नीति अपनाई
महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद शिवसेना की जिद के चलते सत्ता से दूर हुई भाजपा ने अभी तक एकला चलो की रणनीति अपनाई हुई है. कुछ महीनों बाद होने वाले बीएमसी के चुनावों में शिवसेना के गढ़ को ढहाने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. नारायण राणे को केंद्रीय मंत्री बनाने और जन आशीर्वाद यात्रा का अगुआ बनाकर भाजपा मराठा राजनीति को और धार देने में जुटी है. दरअसल, भाजपा नारायण राणे के जरिये शिवसेना के प्रभाव वाले कोंकण इलाके में अपना जनाधार बनाने की कोशिश में जुटी है. फिलहाल जिस तरह भाजपा की तैयारियां चल रही हैं, उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा शायद ही शिवसेना के साथ गठबंधन की उम्मीद रख रही है. क्योंकि, शिवसेना महाराष्ट्र में अपना मुख्यमंत्री बनाने की मांग से पीछे हटने वाली नही है और भाजपा इसके लिए तैयार नहीं होगी.
शिवसेना की मराठा राजनीति हुई कमजोर
शिवसेना के सामने एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में मुश्किल ये है कि उसकी मराठा राजनीति भी कमजोर होती जा रही है. शिवसेना की औरंगाबाद का नाम बदलने की कोशिशों को एनसीपी और कांग्रेस की ओर से लगातार झटका ही दिया जा रहा है. दरअसल, मराठा अस्मिता के मामले में सबसे बड़ी बात ये है कि ये हिंदुत्व का पर्यायवाची है. कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन में शिवसेना खुलकर हिंदुत्व की बात नहीं कर पाती है. जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिल रहा है. बीते कुछ सालों में महाराष्ट्र में भाजपा का प्रभाव बढ़ने की वजह भी यही है. नारायण राणे महाराष्ट्र में जन आशीर्वाद यात्रा के सहारे उद्धव ठाकरे को 'मातोश्री' से बाहर न निकलने वाला नेता साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं. जिस कोंकण इलाके में राणे मेहनत कर रहे हैं, अगर वहां उनकी कोशिश कामयाब हो जाती है, तो शायद अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को शिवसेना के समर्थन की जरूरत भी नहीं पड़ेगी.
शिवसेना की ओर से की जा रही डैमेज कंट्रोल की राजनीति का सीधा मतलब ये है कि वो भाजपा से दूर नहीं होना चाहती है. हिंदुत्व की सबसे बड़ी पार्टी का टैग भाजपा पर लग चुका है. अगर शिवसेना की भाजपा से दूरी नजर आती है, तो नुकसान शिवसेना का ही होगा. वहीं, अगले विधानसभा चुनाव में शिवसेना अगर कोई कमाल करने में कामयाब हो जाती है, तो बार्गेन पोजीशन में वो एनसीपी और कांग्रेस से ऊपर भाजपा को ही वरीयता देगी. कुल मिलाकर शिवसेना सारे विकल्प खुले रखना चाहती है. हालांकि, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व शिवसेना को दूसरा मौका देने के मूड में नजर नहीं आ रहा है.
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