चीन के शिंजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों के मानवाधिकारों पर बहस के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में एक प्रस्ताव रखा गया था. जिसे माकूल वोट न मिलने की वजह से रद्द कर दिया गया. उइगर मुस्लिमों खिलाफ चीनी ड्रैगन की क्रूरता को बेनकाब करने का ये प्रस्ताव अमेरिका ने रखा था. इस प्रस्ताव के लिए हुई वोटिंग में भारत समेत 11 देशों ने हिस्सा नहीं लिया. जिसके बाद भारत में बुद्धिजीवियों का एक हिस्सा केंद्र सरकार की लानत-मलानत में जुट गया है. दावा किया जा रहा है कि भारत ने जान-बूझकर इस प्रस्ताव से दूरी बनाई. और, मोदी सरकार मुस्लिमों के खिलाफ क्रूरता को परोक्ष रूप से सहमति दे रही है. हालांकि, इस्लामिक एजेंडा चलाने वाले बहुत से बुद्धिजीवियों की इस पर जबान नहीं खुल रही है. क्योंकि, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में इस प्रस्ताव पर हुई वोटिंग पर नजर डालें, तो साफ हो जाता है कि ये उनके लिए 'सांप-छछूंदर' वाली स्थिति हो चुकी है.
दरअसल, शिंजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों के मानवाधिकारों पर बहस के लिए अमेरिका ने प्रस्ताव रखा था. और, इस प्रस्ताव के समर्थन में 17 देश और विरोध में 19 देशों ने वोटिंग की. वहीं, भारत समेत 11 देशों ने चीन के खिलाफ इस वोटिंग से दूरी बनाई. यहां बताना जरूरी है कि इस अमेरिकी प्रस्ताव के खिलाफ वोट देने वालों में दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया, भारत को कश्मीरी मुस्लिमों के हालात पर ज्ञान देने वाला पाकिस्तान और भारतीय मुस्लिमों में अपने बयानों के जरिये जहर भरने वाले कतर, संयुक्त अरब अमीरात, कजाखस्तान जैसे मुस्लिम देश शामिल थे. आसान शब्दों में कहें, तो मुस्लिम देशों को ही चीन के शिंजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों के खिलाफ हो रहे अत्याचार नजर नहीं आ रहे हैं.
उइगर मुस्लिमों पर हो रहे चीनी अत्याचारों पर सभी इस्लामिक देश मुंह दूसरी ओर कर खड़े हो जाते हैं.
क्यों नहीं फूट रहे बोल?
भाजपा की पूर्व नेता नूपुर शर्मा के खिलाफ पैगंबर पर कथित विवादित टिप्पणी मामले पर तमाम मुस्लिम देशों ने खूब हो-हल्ला मचाया था. इनमें से कतर, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने तो भारतीय कामगारों को वापस भेजने तक की धमकियां दे डाली थीं. वहीं, पाकिस्तान सरीखा इस्लामिक आतंकवाद को पालने वाला देश भी भारत को घुड़की दे रहा था. लेकिन, चीन की उइगर मुस्लिमों के खिलाफ क्रूरता पर बहस करने से इन तमाम देशों ने किनारा करना ही उचित समझा. क्योंकि, चीन के साथ इन तमाम देशों के व्यापारिक रिश्ते काफी गहरे हैं. वहीं, पाकिस्तान सरीखा कंगाल देश तो हमेशा ही चीन के सामने 'कटोरा' लिए खड़ा रहता है.
वैसे, चीन के शिंजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों पर अत्याचारों के खिलाफ इस्लामिक देशों की संस्था इस्लामिक सहयोग संगठन यानी ओआईसी भी चुप्पी साधे रहती है. भले ही इस संगठन पर कितना दबाव बनाया जाए. लेकिन, उइगर मुस्लिमों का 'दर्द' इन्हें महसूस नहीं होता है. इसी ओआईसी संगठन ने भारत को पैगंबर टिप्पणी विवाद में चेतावनी देते हुए नूपुर शर्मा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा था. ये तो भला हो कि भारत में लोकतंत्र है. वरना हमारे ही देश के कट्टरपंथी मुस्लिमों ने जघन्य हत्याएं, सांप्रदायिक हिंसा और पत्थरबाजी जैसी चीजों के जरिये नूपुर शर्मा को शरिया कानून के हिसाब से 'सिर तन से जुदा' की सजा दिलवाने का माहौल बना दिया था.
ये खबर वास्तव में इन इस्लामिक देशों का वो छिपा चेहरा उजागर करती है. जो इस्लाम के नाम पर एक होने का पाखंड करते हैं. लेकिन, अंदर ही अंदर कई खेमों में बंटे हुए हैं. ऐसा लगता है कि जिस तरह से इन इस्लामिक देशों के लिए 'अहमदिया' मुस्लिम समुदाय का हिस्सा नहीं हैं. ठीक उसी तरह उइगर मुस्लिमों को भी इन इस्लामिक देशों ने नकार दिया है. दरअसल, चीन ने इन देशों में इस कदर अपने व्यापार और विदेशी निवेश को बढ़ाया है कि चाहते हुए भी इनका मुंह नहीं खुलता है.
ओआईसी के सम्मेलन में चीन को बनाया था 'विशेष अतिथि'
इसी साल मार्च में पाकिस्तान में इस्लामिक सहयोग संगठन का एक सम्मेलन था. इस सम्मेलन में चीन के विदेश मंत्री वांग यी को 'विशेष अतिथि' बनाया गया था. जबकि, चीन पर कई सालों से शिंजियांग में उइगर मुसलमानों के 'नरसंहार' और 'सांस्कृतिक ज़ुल्म' के आरोप लगते रहे हैं. बता दें कि कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये खुलासा किया जा चुका है कि चीन ने उइगर मुस्लिमों के लिए एक 'नई' कुरान लिखी है. बता दें कि इस्लामिक सहयोग संगठन से जुड़े तमाम मुस्लिम देश संयुक्त राष्ट्र में हमेशा ही चीन के पक्ष में खड़े रहते हैं. क्योंकि, चीन भी 'इस्लामोफोबिया' जैसे काल्पनिक मुद्दों पर इन मुस्लिम देशों का समर्थन करता है.
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