लोकसभा चुनाव 2019 की बात करते ही सबसे पहले कई लोगों को सिर्फ यूपी का नाम याद आता है. हो भी क्यों न, देश का सबसे बड़ा संसद क्षेत्र जो है यूपी. पर जहां प्रधानमंत्री चुनने में देश के सबसे बड़े क्षेत्र का योगदान रहता है वहीं हम ये भूल जाते हैं देश में एक ऐसा संसद क्षेत्र भी है जो बेहद छोटा है और लोकसभा में सिर्फ 1 सीट की दावेदारी रखता है. ये वो क्षेत्र है जिसे कई लोग नजरअंदाज कर जाते हैं, लेकिन यहां चुनाव उन असल मुद्दों पर लड़ा जाता है जो वहां के स्थानीय नागरिकों की जरूरत है और सिर्फ कोरे वादे नहीं बल्कि काम की गारंटी भी दी जाती है. यहां बात हो रही है लक्षद्वीप की. केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप से इस बार 6 उम्मीदवार लोकसभा की रेस में शामिल हैं.
इस केंद्र शासित राज्य में सिर्फ 54,266 रजिस्टर्ड वोटर हैं और इसका ध्यान ज्यादातर सिर्फ चुनावी आंकड़ों में ही रखा जाता है. यहां से कभी EVM गड़बड़ी, चुनावी घमासान, महिलाओं के खिलाफ विवादित बयान, देशद्रोही नेता, वगैराह-वगैराह जैसी खबरें कभी सुनाई नहीं देतीं. यहां जीतने का एक ही तरीका है. लोगों की जरूरतों को पूरा किया जाए. इस लोकसभा क्षेत्र के 96.58 फीसदी रहवासी मुस्लिम हैं. सिर्फ 2.77 फीसदी हिंदू और बाकी कुछ परिवार ईसाई और अन्य धर्मों को मानते हैं.
शायद इसीलिए लक्षद्वीप को सबसे सुलझा हुआ संसद क्षेत्र कहा जा सकता है. यहां से कभी कोई महिला सांसद नहीं चुनी गई. बल्कि यहां पिछले कई सालों से सिर्फ एक ही सांसद थे. P. M. Sayeed. अगर ये नाम जाना पहचाना लग रहा है तो मैं आपको बता दूं कि ये कांग्रेस सरकारों में यूनियन मिनिस्टर भी रह चुके हैं.
10 बार एक ही प्रत्याशी ने जीता चुनाव-
लक्षद्वीप के पहले सांसद के.नल्ला कोया थंगल थे...
लोकसभा चुनाव 2019 की बात करते ही सबसे पहले कई लोगों को सिर्फ यूपी का नाम याद आता है. हो भी क्यों न, देश का सबसे बड़ा संसद क्षेत्र जो है यूपी. पर जहां प्रधानमंत्री चुनने में देश के सबसे बड़े क्षेत्र का योगदान रहता है वहीं हम ये भूल जाते हैं देश में एक ऐसा संसद क्षेत्र भी है जो बेहद छोटा है और लोकसभा में सिर्फ 1 सीट की दावेदारी रखता है. ये वो क्षेत्र है जिसे कई लोग नजरअंदाज कर जाते हैं, लेकिन यहां चुनाव उन असल मुद्दों पर लड़ा जाता है जो वहां के स्थानीय नागरिकों की जरूरत है और सिर्फ कोरे वादे नहीं बल्कि काम की गारंटी भी दी जाती है. यहां बात हो रही है लक्षद्वीप की. केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप से इस बार 6 उम्मीदवार लोकसभा की रेस में शामिल हैं.
इस केंद्र शासित राज्य में सिर्फ 54,266 रजिस्टर्ड वोटर हैं और इसका ध्यान ज्यादातर सिर्फ चुनावी आंकड़ों में ही रखा जाता है. यहां से कभी EVM गड़बड़ी, चुनावी घमासान, महिलाओं के खिलाफ विवादित बयान, देशद्रोही नेता, वगैराह-वगैराह जैसी खबरें कभी सुनाई नहीं देतीं. यहां जीतने का एक ही तरीका है. लोगों की जरूरतों को पूरा किया जाए. इस लोकसभा क्षेत्र के 96.58 फीसदी रहवासी मुस्लिम हैं. सिर्फ 2.77 फीसदी हिंदू और बाकी कुछ परिवार ईसाई और अन्य धर्मों को मानते हैं.
शायद इसीलिए लक्षद्वीप को सबसे सुलझा हुआ संसद क्षेत्र कहा जा सकता है. यहां से कभी कोई महिला सांसद नहीं चुनी गई. बल्कि यहां पिछले कई सालों से सिर्फ एक ही सांसद थे. P. M. Sayeed. अगर ये नाम जाना पहचाना लग रहा है तो मैं आपको बता दूं कि ये कांग्रेस सरकारों में यूनियन मिनिस्टर भी रह चुके हैं.
10 बार एक ही प्रत्याशी ने जीता चुनाव-
लक्षद्वीप के पहले सांसद के.नल्ला कोया थंगल थे जो 1957-67 के बीच सांसद रहे, लेकिन उनके बाद जो सांसद बने उन्होंने भारतीय राजनीति में एक अलग रिकॉर्ड कायम किया है. ब्रिटिश इंडिया के दौर में जनमें पी.एम.सईद. वो 1967 में निर्दलीय जीते, फिर 1971 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर जीते और उसके बाद अगले 8 इलेक्शन कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर जीतते रहे. 2004 में वो हारे थे जनता दल (यूनाइटेड) पार्टी के कैंडिडेट से. और हार भी सिर्फ 71 वोटों से तय हुई थी. 2005 में सईद की मृत्यु हो गई थी, लेकिन भारतीय राजनीति के इतिहास में वो बेहद दिलचस्प रिकॉर्ड हासिल कर पाए. वो यूनियन मिनिस्टर भी रहे हैं और लोकसभा के डेप्युटी स्पीकर भी.
2019 चुनावों के मुद्दे जो स्थानीय लोगों को रिझाते हैं-
लक्षद्वीप में मुद्दे ऐसे नहीं होते जो धर्म, जाती, देशप्रेम, राम मंदिर से यहां के लोगों को रिझा सकें. यहां मुद्दे रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े होते हैं और यही कारण है कि यहां के लोग स्थानीय नेताओं पर भरोसा करते हैं.
इस साल के सबसे बड़े मुद्दों में से एक मछुआरों का था, जो टूना मछली (स्थानीय भाषा में मास मीन) से जुड़ा था. जी हां, एक मछली जो लक्षद्वीप में मुद्दा बन गई. ये मछली मछुआरों से कोऑपरेटिव मार्किंग फेडरेशन द्वारा खरीदी गई थी जिसके एवज में मछुआरों को 500-600 रुपए प्रति किलो के हिसाब से रकम मिलनी थी. मछुआरों को बताया गया था कि ये मछली श्रीलंका भेजी जाएगी, लेकिन फिर इसका कोई काम नहीं हुआ न ही मछुआरों को पेमेंट मिली और न ही ये मछली श्रीलंका गई.
दूसरा अहम मुद्दा जो इस संसद क्षेत्र के वोटरों को लुभा रहा है वो है लक्षद्वीप की मुख्य भूमि से कनेक्टिविटी. क्योंकि लक्षद्वीप भारतीय समुद्रसीम में तो है, लेकिन मुख्य भूमि से काफी दूर है तो इसलिए इस आइलैंड को हर छोटी-बड़ी जरूरत के लिए अन्य मुख्य शहरों पर निर्भर रहना पड़ता है जैसे केरल आदि पर. ऐसे में लंबे समय से चल रही समस्या को दूर करना इस बार के चुनावी प्रचार का मुद्दा बना.
वहां के सांसद कोया ने हाल ही में ये खुलासा किया था कि लक्षद्वीप में 5 नए जहाजों का आवंटन होना है.
जहां तक युवाओं की बात है तो यहां के युवा इसलिए परेशान हैं क्योंकि मुख्य भूमि की सरकार ने 13 सीटों के मेडिकल कोटा को कम कर सिर्फ 1 सीट का कर दिया है और ऐसे में लक्षद्वीप के युवा काफी परेशान हैं.
कांग्रेस के गढ़ लक्षद्वीप में कभी नहीं खिला 'कमल'-
लक्षद्वीप सीट पिछड़ी जनजाति के लोगों के लिए रिजर्व है. इस बार के इलेक्शन में इस संसद क्षेत्र से 6 कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस, भाजपा, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) (इसका ही सांसद अभी लक्षद्वीप लोकसभा सीट पर विराजमान है.), जनता दल (यूनाइटेड), सीपीआई (एम), सीपीआई के प्रत्याशी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. इस बार भी यहां भाजपा के जीतने की गुंजाइश काफी कम है. फिर भी अमित शाह ने लक्षद्वीप में प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी.
NCP ने मौजूदा सांसद मोहम्मद फैजल को सीट दी है और कांग्रेस ने मोहम्मद हमदुल्ला सईद (पी.एम.सईद के बेटे) को मैदान में उतारा है. और लक्षद्वीप में अभी भी चुनावी टक्कर एनसीपी और कांग्रेस के बीच ही है. अगर वहां कोई और पार्टी जीत जाती है तो ये अपवाद होगा.
लक्षद्वीप के 36 द्वीपों में से सिर्फ 10 रिहायशी हैं और इन 10 द्वीपों में 51 पोलिंग बूथ हैं. लक्षद्वीप की समस्याएं भी असली हैं और यहां के रहने वाले लोगों का चुनाव के प्रति संजीदगी दिखाना भी. 2014 के इलेक्शन में यहां का वोटिंग प्रतिशत 86.6 रहा था. ये वही लक्षद्वीप है जहां भारत की आज़ादी की खबर भी तीन महीने बाद पहुंची थी और उस समय लोग इस खबर पर यकीन करने को तैयार ही नहीं थे. मुस्लिम बहुल इलाके में हर सांसद मुसलमान है और इस इलाके में न सिर्फ खूबसूरती है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की भी कमी नहीं है, फिर भी इस द्वीप समूह को नजरअंदाज किया जाता है.
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