2019 के लोकसभा चुनावों से पहले देश में 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं. इन चुनावों को 2019 के फाइनल से पहले का सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है. मिजोरम, तेलंगाना छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में होने वाले ये चुनाव कई मायनों में बड़े महत्वपूर्ण हैं. लेकिन इन सबमें मध्यप्रदेश के चुनाव सबसे महत्वपूर्ण हैं और जब 11 दिसंबर को चुनाव के नतीजे आयेगें तो सबकी नजरें मध्य प्रदेश के नतीजों पर होंगी.
आखिर मध्य प्रदेश ही इन चुनावों का epicenter क्यो हैं और क्यों मध्य प्रदेश के नतीजों से बहुत कुछ तय होगा.
मिजोरम नार्थ-ईस्ट में एक बहुत छोटा राज्य है जिसके नतीजे का राष्ट्रीय राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. तेलेंगाना भी एक छोटा राज्य है जिसके नतीजे राष्ट्रीय राजनीति पर कोई खास असर नहीं डालते और दूसरे यहां पर मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधे नहीं है.
अब बात करते है छत्तीसगढ़ की, जहां सिर्फ 90 विधानसभा सीटें हैं और 11 लोकसभा सीटें. छत्तीसगढ़ के नतीजे भी न तो राष्ट्रीय राजनीति को ज्यादा प्रभावित करते हैं ना ही इनके नतीजों के चश्मे से आने वाले लोकसभा चुनाव का आकलन किया जा सकता है.
राजस्थान के चुनाव जरूर महत्वपूर्ण हैं लेकिन यहां के नतीजे एक सेट पैटर्न पर ही आने की उम्मीद है. पिछले 25 सालों में कोई भी पार्टी लगातार 2 चुनाव नहीं जीत सकी है. कांग्रेस इस चुनाव में अशोक गहलोत को राजस्थान में सबसे कुशल प्रशासक लोकप्रिय नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है लेकिन खुद अशोक गहलोत 2003 और 2013 में मुख्यमंत्री रहते हुए दोबारा चुनाव नहीं जीत सके. इसलिये राजस्थान के नतीजे अगर कांग्रेस के पक्ष में भी जाते हैं तो यह भाजपा के लिए बहुत चिंता का विषय नहीं...
2019 के लोकसभा चुनावों से पहले देश में 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं. इन चुनावों को 2019 के फाइनल से पहले का सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है. मिजोरम, तेलंगाना छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में होने वाले ये चुनाव कई मायनों में बड़े महत्वपूर्ण हैं. लेकिन इन सबमें मध्यप्रदेश के चुनाव सबसे महत्वपूर्ण हैं और जब 11 दिसंबर को चुनाव के नतीजे आयेगें तो सबकी नजरें मध्य प्रदेश के नतीजों पर होंगी.
आखिर मध्य प्रदेश ही इन चुनावों का epicenter क्यो हैं और क्यों मध्य प्रदेश के नतीजों से बहुत कुछ तय होगा.
मिजोरम नार्थ-ईस्ट में एक बहुत छोटा राज्य है जिसके नतीजे का राष्ट्रीय राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. तेलेंगाना भी एक छोटा राज्य है जिसके नतीजे राष्ट्रीय राजनीति पर कोई खास असर नहीं डालते और दूसरे यहां पर मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधे नहीं है.
अब बात करते है छत्तीसगढ़ की, जहां सिर्फ 90 विधानसभा सीटें हैं और 11 लोकसभा सीटें. छत्तीसगढ़ के नतीजे भी न तो राष्ट्रीय राजनीति को ज्यादा प्रभावित करते हैं ना ही इनके नतीजों के चश्मे से आने वाले लोकसभा चुनाव का आकलन किया जा सकता है.
राजस्थान के चुनाव जरूर महत्वपूर्ण हैं लेकिन यहां के नतीजे एक सेट पैटर्न पर ही आने की उम्मीद है. पिछले 25 सालों में कोई भी पार्टी लगातार 2 चुनाव नहीं जीत सकी है. कांग्रेस इस चुनाव में अशोक गहलोत को राजस्थान में सबसे कुशल प्रशासक लोकप्रिय नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है लेकिन खुद अशोक गहलोत 2003 और 2013 में मुख्यमंत्री रहते हुए दोबारा चुनाव नहीं जीत सके. इसलिये राजस्थान के नतीजे अगर कांग्रेस के पक्ष में भी जाते हैं तो यह भाजपा के लिए बहुत चिंता का विषय नहीं होगा.
मध्य प्रदेश के चुनाव कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण हैं. आज देश में शिवराज सिंह सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं. पिछले 13 सालों में मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने जो काम किये हैं और जिस तरह से जनता से संपर्क और संवाद स्थापित किया है उससे प्रदेश के हर वर्ग में शिवराज काफी लोकप्रिय हैं. 13 साल पहले जब शिवराज मुख्यमंत्री बने तो मध्य प्रदेश बीमारू राज्य के तौर पर देखा जाता था लेकिन इन बीते 13 सालों में प्रदेश में काफी काम हुआ है. यही नहीं मध्य प्रदेश RSS के गढ़ के तौर पर भी देखा जाता है. जहां संघ तमाम सामाजिक, सांस्कृतिक और जनकल्याण के कार्यो में सक्रिय रहता है.
प्रधानमंत्री मोदी अभी भी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और चुनाव के 10 दिन पहले उनकी कई रैलियों से भी भाजपा की स्थिति काफी मजबूत होगी. मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और पार्टी, संघ का मजबूत संगठन और प्रदेश की सरकार का काम जहां भाजपा की ताकत हैं वही एंटी-इनकंबेंसी सबसे बड़ी कमजोरी. अगर कांग्रेस की बात करें तो तो कांग्रेस की अपनी कोई ताकत नहीं है बल्कि भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी (एंटी-इंकंबेंसी) ही कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत है. पार्टी का संगठन प्रदेश में कमजोर है और पार्टी कई गुटों में बंटी है जो कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
अब अगर पिछले 5 चुनावों पर नजर डालें तो 1993, 1998 में जब कांग्रेस जीती तो भी कांग्रेस और भाजपा के वोट शेयर का अंतर 2% से भी कम था, वहीं जब 2003 में भाजपा जीती तो वोट शेयर का अंतर लगभग 11% था. 10 सालों के शासन के बाद भी 2013 के चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से 8% ज्यादा वोट मिले. दिलचस्प है कि 2008 की तुलना में 2013 में कांग्रेस को 4% ज्यादा वोट मिले फिर भी उसकी सीटें 71 से 13 कम होकर 58 हो गयीं. और ये कांग्रेस के लिये एक चिंता का विषय होगा कि वोट प्रतिशत बढ़ने के बावजूद उसकी सीटें कम हो गईं. यही नहीं भाजपा जिन 165 सीटों पर जीती उनमें से 92 सीटें ऐसी थीं जहां भाजपा के जीत का अंतर 10% वोट से ज्यादा. था, जबकि कांग्रेस जिन 58 सीटों पर चुनाव जीती थी उनमें से सिर्फ 17 सीटों पर जीत का अंतर 10% से ज्यादा था.
इन सारे तथ्यों से तय है कि 15 साल तक शासन करने के बाद भी मध्य प्रदेश में भाजपा मजबूत स्थिति में है. लेकिन पिछले एक साल में राहुल गांधी जिस सक्रियता के साथ कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं उससे जब 11 दिसंबर को नतीजे आयेंगे तो सभी की नजरें मध्य प्रदेश के चुनाव पर होंगी. और उन नतीजों की बुनियाद पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अगले लोकसभा चुनाव के नैरेटिव को सेट करने की कोशिश करेंगे.
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