जेवर कांड के साथ साथ रेप की एक और घटना पर गौर कीजिए. ये मामला कनॉट प्लेस के एक होटल का है. रेप की शिकार 22 साल की एक युवती शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंचती है. भारतीय मूल की पीड़ित अमेरिका में रहती है और स्टडी टूर पर भारत आई हुई थी.
संभव है ड्यूटी पर महिला पुलिस अफसर को देख उसे थोड़ी राहत महसूस हुई होगी. लगा होगा वो अपनी बात ठीक से कह पाएगी और महिला पुलिस अफसर भी उसे ठीक से समझ लेगी - और आखिरकार उसे इंसाफ जरूर मिलेगा.
सोचिये उस पर क्या बीता होगा जब महिला पुलिस अफसर ने उससे अपनी शिकायत हिंदी में लिख कर देने को कहा. पीड़ित ने समझाने की कोशिश की कि घटना के बारे में जो डिटेल वो अंग्रेजी दे सकती है, हिंदी में उसके लिए संभव नहीं होगा. वो महिला अफसर अंग्रेजी में शिकायत रिसीव करने को बिलकुल तैयार नहीं थी.
ये रिपोर्ट अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में छपी है. कहानी इसके आगे भी है. सवाल ये है कि अगर मीडिया इसे रिपोर्ट नहीं करता तो क्या ये सारी बातें सामने आ पातीं?
केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी मीडिया की ऐसी हरकतों से बेहद खफा हैं. मंत्री की शिकायत है कि 2012 के बाद से मीडिया ने रेप के मामलों में 'जीरो-टॉलरेंस' की नीति अपना ली है, जबकि दूसरे में मुल्कों में ऐसा नहीं होता.
रेप केस में आगे...
पीड़ित युवती के वकील के हवाले से छपी रिपोर्ट से पूरी घटना का पता चलता है. वकील के मुताबिक जब महिला अफसर को बताया गया कि अगर वो अपनी जिद पर अड़ी रही तो मामला ऊपर के अधिकारियों तक ले जाया जाएगा, फिर उसने अपने एसएचओ से बात की और हिदायत मिलने पर शिकायत दर्ज करने को तैयार हुई.
पीड़ित की मुश्किल ये थी कि उसे बलात्कारी का चेहरा तक ठीक से नहीं याद था, लेकिन जिन लोगों के चक्कर में वो शिकार हुई उनसे उसे नाम पता चल गया था. फिर उसने फेसबुक पर सर्च कर रेपिस्ट को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा. फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार होते ही उसने उसका फोटो सेव किया और उसी आधार पर पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर पायी.
रेप की रिपोर्ट पर सवाल क्यों?
फर्ज कीजिए सोशल मीडिया नहीं होता और मीडिया इसे रिपोर्ट नहीं करता तो क्या होता? जो पुलिस अंग्रेजी में शिकायत दर्ज करने को तैयार नहीं, क्या वो रेप के ऐसे आरोपी को जिसका चेहरा पीड़ित को याद नहीं - कभी ढूंढ पाती?
कभी विरोधी, कभी मीडिया
मेनका गांधी को ऐतराज इस बात से है कि देश में मीडिया हर रेप केस को रिपोर्ट करता है, जबकि दूसरे देशों में ऐसा नहीं होता. मेनका गांधी का कहना है, ''दूसरे देशों की मीडिया छेड़छाड़ और रेप जैसे मामलों को नहीं दिखाता. हमारे मीडिया की वजह से ही ये सारी बातें लोगों के दिमाग पर हावी हो गई हैं.''
मेनका गांधी ने ये नहीं साफ किया है कि वो रेप की कौन सी घटना की रिपोर्ट से इस नतीजे पर पहुंची हैं. मेनका गांधी के बयान से ये भी नहीं साफ है कि उन्हें हर घटना की रिपोर्ट नागवार गुजर रही है, या फिर कुछ खास घटनाओं की? उनके बयान से ये भी साफ नहीं है कि क्या मीडिया को रेप की किसी भी घटना को रिपोर्ट नहीं करना चाहिये या फिर कुछ खास घटनाओं को नजरअंदाज कर देना चाहिये?
थोड़ा पीछे लौटते हैं - जब यूपी में चुनावी सरगर्मी तेज होने लगी थी. हालांकि, तब काम बोलता है या कारनामे बोलते हैं जैसी बहस भी शुरू नहीं हुई थी. पिछले साल जुलाई में बुलंदशहर गैंगरेप की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. जांच-पड़ताल में अभी नयी नयी बातें सामने आ ही रहीं थीं कि तब सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता मोहम्मद आजम खां ने रेप की उस घटना पर विवादास्पद बयान दिया.
आजम खां बोले, 'हमें इस तरह से भी देखना चाहिए कि कहीं कोई विपक्षी विचारधारा जो सत्ता में आना चाहती है, सरकार को बदनाम करने के लिए कोई कुकर्म तो नहीं कर रही? कुछ भी हो सकता है.'
जब आजम खां के बयान पर बवाल मचा तो उन्होंने अपनी सफाई में कहा, 'मैंने विरोधियों की साजिश नहीं कहा था... मैंने कहा था, यूपी में चुनाव नजदीक हैं और इस तरह की बहुत सी घटनाएं हो रही हैं. इसलिए इनकी जांच की जरूरत है. मैं निजी रूप से पीड़ित परिवार के साथ हूं.' बाद में ये मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो आजम खां को बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी.
तब यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और बीजेपी उसे कानून व्यवस्था के मुद्दे पर घेर रही थी. आजम खां को सरकार का बचाव और विपक्ष को काउंटर करना था. फिर आजम खां ने मामले को न्यूट्रलाइज करने के मकसद से विरोधियों को लपेटने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे.
यूपी में अब भारी बहुमत के साथ जीत कर आयी बीजेपी की सरकार है. वाराणसी और मथुरा की घटनाओं से परेशान सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती सहारनपुर हिंसा खड़ी हो गयी है - और इसी में जेवर हाइवे गैंग रेप की घटना हो गयी. यूपी की योगी सरकार कानून व्यवस्था को लेकर सवालों के घेरे में है.
जेवर की घटना में कई डेवलमेंट देखने को मिले हैं. पहले एक व्यक्ति की हत्या और चार महिलाओं से गैंग रेप की खबर आई. फिर पुलिस के हवाले से खबर आई कि पीड़ितों के बयानों में एकरूपता नहीं है. पुलिस ने राय बनायी कि उसे नहीं लगता कि रेप के आरोप सही हैं. फिर पीड़ित महिलाओं ने बताया कि घटना के बाद उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी जिससे उन्होंने कुछ पड़ोसियों के नाम ले लिये. बाद में महिलाओं बयान वापस लेने की भी बात कही. मेडिकल रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नहीं हुई. ये तमाम बातें जैसे जैसे मालूम हुईं मीडिया ने रिपोर्ट की.
जेवर रेप केस को लेकर सवाल...
ये सही है कि इन दिनों पेड न्यूज से लेकर फेक न्यूज तक पर बहस चल रही है. लेकिन इस घटना में ऐसी कौन सी बात रही जिसे रिपोर्ट करना सवाल खड़े करता है.
ऐसा क्यों लगता है कि मेनका गांधी के बयान के इर्द गिर्द भी वही मसले हैं जो आजम खां के बयान में रहे. कहीं ऐसा तो नहीं कि आजम खां की तरह ही मेनका गांधी भी जेवर गैंगरेप की घटना में कोई साजिश देख रही हैं? हो सकता है जहां तक वो सोच रही हों मीडिया वहां तक नहीं पहुंच पा रहा हो. अच्छा तो ये होता कि मेनका गांधी मीडिया के जरिये वो पक्ष भी सामने लातीं जिनसे लोग अब तक बेखबर हैं. हकीकत जो भी हो, ऊपर से देखने पर तो दोनों बयानों में फर्क सिर्फ इतना है कि विरोधियों की जगह मीडिया को दे दी गयी है.
मेनका गांधी का कहना है, ''2012 की घटना के बाद प्रेस ने जीरो टॉलरेंस की नीति अपना ली है."
जब अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात हो रही हो, आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात हो रही हो तो भला रेप के मामलों में ऐसा होना किस तरीके से गलत समझा जाये?
अभी पिछले महीने ही गोवा फिल्मफेस्ट 2017 में मेनका गांधी ने कहा था, 'फिल्मों में रोमांस की शुरुआत ही छेड़छाड़ के साथ शुरू होती है. लड़का और उसके दोस्त लड़की के इर्द-गिर्द घूमते हैं. उसके साथ आते-जाते हैं, उन्हें गाली देते हैं, वह उसे छूता है और आखिरकार लड़की उसके प्यार में पड़ जाती है.' मेनका के इस बयान पर सोशल मीडिया खास कर ट्विटर पर खूब रिएक्शन देखने को मिले थे.
फेहरिस्त बड़ी लंबी है
वैसे रेप को लेकर नेताओं के इतने बयान आ चुके हैं कि शायद ही कोई एंगल छूटा हो. कोई नूडल्स को रेप की वजह बताता है तो कोई जींस पहनने को. कोई ऐडवेंचरस न होने की सलाह देता है तो कोई मोबाइल फोन पर ही बैन की बात करता है. एक नेता की राय में रेप कभी कभी गलत और कभी कभी सही भी होता है - तो दूसरे का सवाल होता है, फांसी पर चढ़ा दोगे... लड़के हैं लड़कों से गलतियां हो जाती हैं!
बुलंदशहर और जेवर गैंगरेप की घटनाएं तो सुर्खियों में हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट में बिलकुल वैसी घटनाओं के बारे में बताया गया है. एक घटना इसी साल 4 अप्रैल की है और दूसरी 5 मई की. ये दोनों घटनाएं भी बुलंदशहर हाइवे की हैं.
पीड़ित परिवार के मुखिया ने अखबार से कहा, 'हमारे साथ भी बिल्कुल वही हुआ था जिसके बारे में आप इन दिनों खबरों में सुन रहे हैं. हम चुप रहे क्योंकि समाज में हमारी एक प्रतिष्ठा है.'
अखबार से बातचीत में एक परिवार ने बताया, 'हमें कुछ अपराधियों की पहचान करने के लिए बुलंदशहर बुलाया गया था जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया था. हमने उनमें से तीन को पहचान लिया.' रिपोर्ट के मुताबिक, 6 मई को जेवर पुलिस के पास लूटपाट की एफआईआर तो हुई, लेकिन रेप की शिकायत दर्ज नहीं कराई गई.
और अब आप एक बार इस वीडियो को देख लीजिए. मेनका गांधी को ऐतराज इस बात पर है कि मीडिया रेप और छेड़छाड़ की हर घटना को रिपोर्ट कर देता है. मालूम नहीं मेनका गांधी इसे रिपोर्ट करने वाली कैटेगरी में रखना चाहेंगी कि नहीं?
इन्हें भी पढ़ें :
जेवर जैसे खूंखार हाइवे पर सकुशल चलने के नुस्खे
रेप को खत्म करना है तो ये है रामबाण उपाय !
मेनका गांधी को मैं नोबेल दिलाना चाहती थी, लेकिन अब...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.