राजनीति में छोड़ पकड़ कोई नई बात नहीं है. तमाम नेता हैं जो दलों को पकड़ते हैं फिर जब मन भर जाता है तो किसी दूसरे दल का रुख कर लेते हैं. इन दो के अलावा नेताओं की एक प्रजाति और है. ऐसे लोग किसी दल में जाते हैं कुछ दिन रहते हैं फिर संन्यास की बात कहकर राजनीति से तौबा कर लेती है. मेट्रो मैन ई श्रीधरन का भी हाल कुछ कुछ ऐसा ही है. केरल के पलक्कड़ से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके और हार का मुंह देख चुके ई श्रीधरन ने राजनीति को अलविदा कह दिया है. ई श्रीधरन ने कहा है कि मैंने चुनाव में अपनी हार से सबक लिया है. मैं कभी भी नेता नहीं था. भले ही सक्रिय राजनीति को गुड बाय कहने से पहले ई श्रीधरन ने अपनी सुचिता और सुविधा के लिहाज से तर्क दिए हों. लेकिन मेन स्ट्रीम पॉलिटिकल में आने के बाद जिस तरह श्रीधरन एक्टिव थे, कभी लगा ही नहीं कि वो मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा हैं.
भले ही श्रीधरन भाजपा से जुड़े थे लेकिन जिस तरह पलक्कड़ में उन्होंने हार का मुंह देखा लोगों ने भी शायद ये माना ही नहीं कि वो राजनेता हैं. उनको न के बराबर मिला सपोर्ट स्पष्ट रूप से इस बात की गवाही देता है.
ध्यान रहे एक ऐसी उम्र में जब लोग रिटायर हो जाते हैं भजपा ने श्रीधरन को बस इसलिए मौका दिया क्योंकि पार्टी को लगा कि अपनी 'पब्लिक' लाइफ जैसा जलवा श्रीधरन राजनीति में भी बिखेरेंगे लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा और पलक्कड़ सीट से उनकी हार ने तमाम तरह की बहस सारे विमर्श पर विराम लगा दिये.
अब जबकि श्रीधरन ने संन्यास ले ही लिया है तो खबर ये भी है कि श्रीधरन के इस फैसले से केरल भाजपा के लोग नाखुश हैं. मलप्पुरम जिले के पोन्नानी में पत्रकारों को संबोधित करते हुएश्रीधरन ने कहा कि, 'विधानसभा चुनाव में...
राजनीति में छोड़ पकड़ कोई नई बात नहीं है. तमाम नेता हैं जो दलों को पकड़ते हैं फिर जब मन भर जाता है तो किसी दूसरे दल का रुख कर लेते हैं. इन दो के अलावा नेताओं की एक प्रजाति और है. ऐसे लोग किसी दल में जाते हैं कुछ दिन रहते हैं फिर संन्यास की बात कहकर राजनीति से तौबा कर लेती है. मेट्रो मैन ई श्रीधरन का भी हाल कुछ कुछ ऐसा ही है. केरल के पलक्कड़ से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके और हार का मुंह देख चुके ई श्रीधरन ने राजनीति को अलविदा कह दिया है. ई श्रीधरन ने कहा है कि मैंने चुनाव में अपनी हार से सबक लिया है. मैं कभी भी नेता नहीं था. भले ही सक्रिय राजनीति को गुड बाय कहने से पहले ई श्रीधरन ने अपनी सुचिता और सुविधा के लिहाज से तर्क दिए हों. लेकिन मेन स्ट्रीम पॉलिटिकल में आने के बाद जिस तरह श्रीधरन एक्टिव थे, कभी लगा ही नहीं कि वो मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा हैं.
भले ही श्रीधरन भाजपा से जुड़े थे लेकिन जिस तरह पलक्कड़ में उन्होंने हार का मुंह देखा लोगों ने भी शायद ये माना ही नहीं कि वो राजनेता हैं. उनको न के बराबर मिला सपोर्ट स्पष्ट रूप से इस बात की गवाही देता है.
ध्यान रहे एक ऐसी उम्र में जब लोग रिटायर हो जाते हैं भजपा ने श्रीधरन को बस इसलिए मौका दिया क्योंकि पार्टी को लगा कि अपनी 'पब्लिक' लाइफ जैसा जलवा श्रीधरन राजनीति में भी बिखेरेंगे लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा और पलक्कड़ सीट से उनकी हार ने तमाम तरह की बहस सारे विमर्श पर विराम लगा दिये.
अब जबकि श्रीधरन ने संन्यास ले ही लिया है तो खबर ये भी है कि श्रीधरन के इस फैसले से केरल भाजपा के लोग नाखुश हैं. मलप्पुरम जिले के पोन्नानी में पत्रकारों को संबोधित करते हुएश्रीधरन ने कहा कि, 'विधानसभा चुनाव में हार ने मुझे समझदार बना दिया. जब मैं हार गया तो इसने मुझे दुखी किया, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं जीत भी जाता तो कुछ नहीं किया जा सकता था.
वहीं उन्होंने ये भी कहा कि मैं कभी राजनेता नहीं था, मैं कुछ समय के लिए नौकरशाही राजनेता बना रहा. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि राजनीति में उनका प्रवेश देर से हुआ और इससे बाहर निकलने में भी इतनी देर नहीं हुई.
पत्रकारों से अपनी आपबीती साझा करते हुए श्रीधरन ने ये भी कहा कि, 'मैं अब 90 वर्ष का हूं और एक नौजवान की तरह इधर-उधर नहीं भाग सकता. मैं तीन अलग-अलग ट्रस्टों से जुड़ा हूं और अब मैं अपना बाकी समय उनके साथ बिताऊंगा.
पत्रकारों से हुई बातचीत में श्रीधरन से पलक्कड़ में मिली हार के मद्देनजर कई तीखे सवाल भी हुए जिनका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि जब वह मार्च 2021 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए तो पार्टी के लिए पर्याप्त संभावनाएं थीं लेकिन अब स्थिति अलग है.
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, 'पार्टी को राज्य में पैर जमाने के लिए काफी कुछ करना होगा. चुनावी हार के बाद मैंने पार्टी अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया था.मैं अभी उन चीजों पर चर्चा नहीं करना चाहता.
अब जबकि संन्यास की घोषणा से ई श्रीधरन ने केरल में भाजपा की एंट्री के पूरे प्लान पर पानी फेर दिया है कहा यही जा सकता है कि केरल चुनाव के मद्देनजर जितनी उनकी भूमिका थी, उतनी उन्होंने निभा दी है. क्योंकि श्रीधरन पीएम मोदी समेत भाजपा के शीर्ष नेताओं के फेवरेट हैं इसलिए अब यदि कहीं गवर्नर बना दिए जाएं तो हमें हैरत नहीं होनी चाहिए.
कोई सवाल उठाए और ये कहे कि जब श्रीधरन पलक्कड़ से चुनाव हार चुके हैं तो वो कैसे गवर्नर बन सकते हैं? सवाल भले ही दुरुस्त हो लेकिन ऐसे लोगों को किरण बेदी और मनोज सिन्हा जैसे नेताओं का रुख करना चाहिए. ध्यान रहे भले ही दिल्ली चुनाव हारने के बाद किरण बेदी उदास रही हों लेकिन उनके दरवाजे पर खुशियों ने दस्तक तब दी जब उन्हें पुडुचेरी का राज्यपाल बनाए जाने की घोषणा हुई. ऐसा ही कुछ मिलता जुलता हाल मनोज सिन्हा का था.
बात क्योंकि ई श्रीधरन की हुई है तो इस अनूठे फैसले के बाद लोग कुछ भी कहें, मेट्रोमैन तो वो हमेशा रहेंगे ही.
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