पद्म पुरस्कारों का ऐलान हो गया है. हर साल इन पुरस्कारों की घोषणा के साथ कोई न कोई विवाद होता आया है. क्या पता, इस साल भी हो! लेकिन एक नाम पर जाकर नजर जरूर रूक जा रही है. रॉबर्ट ब्लैकविल. ये अमेरिका के हैं और इन्हें देश का तीसरा सबसे बड़ा सिविल पुरस्कार पद्म भूषण देने की घोषणा हुई है.
रॉबर्ट ब्लैकविल पर हैरानी क्यों..
ब्लैकविल रिटायर्ट अमेरिकी डिप्लोमैट हैं. वे 2001 से लेकर 2003 के बीच भारत में अमेरिकी राजदूत थे. गौर कीजिए तब केंद्र में बीजेपी की ही सरकार थी. बहरहाल, ब्लैकविल का परिचय इससे भी आगे है. उन्होंने कई किताबों का संपादन किया और दुनिया के बड़े-बड़े अखबारों में उनके लेख भी छपते रहे हैं. लेकिन इसका पद्म भूषण से कोई ताल्लुक नहीं है.
ब्लैकविल के करियर की दूसरे हिस्से की कहानी 2004 से शुरू होती है, जब वो लॉबिंग की फिल्ड में उतरे. माना जाता है कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में अमेरिका के साथ परमाणु संधि में उन्होंने भारत के लिए लॉबिंग की. अमेरिका में लॉबिंग को कानूनी मान्यता प्राप्त है और जाहिर है वहां कांग्रेस (अमेरिकी संसद) के ज्यादातर सदस्यों को परमाणु संधि के पक्ष में करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही.
काम कांग्रेस के शासन में, फिर पुरस्कार अभी क्यों..
इसकी कहानी भी दिलचस्प है. ब्लैकविल ने भले ही मनमोगन सिंह सरकार के कार्यकाल में भारत के लिए लॉबिंग की. लेकिन एक सच यह भी है कि बीजेपी के साथ उनकी घनिष्ठता पुरानी है. संभवत: तभी से जब वे 2001 में भारत में बतौर अमेरिकी राजदूत आए. उसी दौर में गुजरात दंगे हुए और बाद में अमेरिका ने नरेंद्र मोदी को वीजा देने से मना कर दिया. लेकिन पिछले लोक सभा चुनाव से पहले 2013 में भी ब्लैकविल भारत आए और मोदी से मिले थे. मोदी को अमेरिकी वीजा देने की वकालत भी की. जाहिर है बीजेपी से पुराना संबंध उन्हें आज पद्म भूषण की उपाधि दिला गया.
हर सरकार अपने करीब के लोगों को पुरस्कारों से नवाजती है. मौजूदा सरकार भी यही करेगी. सवाल इस...
पद्म पुरस्कारों का ऐलान हो गया है. हर साल इन पुरस्कारों की घोषणा के साथ कोई न कोई विवाद होता आया है. क्या पता, इस साल भी हो! लेकिन एक नाम पर जाकर नजर जरूर रूक जा रही है. रॉबर्ट ब्लैकविल. ये अमेरिका के हैं और इन्हें देश का तीसरा सबसे बड़ा सिविल पुरस्कार पद्म भूषण देने की घोषणा हुई है.
रॉबर्ट ब्लैकविल पर हैरानी क्यों..
ब्लैकविल रिटायर्ट अमेरिकी डिप्लोमैट हैं. वे 2001 से लेकर 2003 के बीच भारत में अमेरिकी राजदूत थे. गौर कीजिए तब केंद्र में बीजेपी की ही सरकार थी. बहरहाल, ब्लैकविल का परिचय इससे भी आगे है. उन्होंने कई किताबों का संपादन किया और दुनिया के बड़े-बड़े अखबारों में उनके लेख भी छपते रहे हैं. लेकिन इसका पद्म भूषण से कोई ताल्लुक नहीं है.
ब्लैकविल के करियर की दूसरे हिस्से की कहानी 2004 से शुरू होती है, जब वो लॉबिंग की फिल्ड में उतरे. माना जाता है कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में अमेरिका के साथ परमाणु संधि में उन्होंने भारत के लिए लॉबिंग की. अमेरिका में लॉबिंग को कानूनी मान्यता प्राप्त है और जाहिर है वहां कांग्रेस (अमेरिकी संसद) के ज्यादातर सदस्यों को परमाणु संधि के पक्ष में करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही.
काम कांग्रेस के शासन में, फिर पुरस्कार अभी क्यों..
इसकी कहानी भी दिलचस्प है. ब्लैकविल ने भले ही मनमोगन सिंह सरकार के कार्यकाल में भारत के लिए लॉबिंग की. लेकिन एक सच यह भी है कि बीजेपी के साथ उनकी घनिष्ठता पुरानी है. संभवत: तभी से जब वे 2001 में भारत में बतौर अमेरिकी राजदूत आए. उसी दौर में गुजरात दंगे हुए और बाद में अमेरिका ने नरेंद्र मोदी को वीजा देने से मना कर दिया. लेकिन पिछले लोक सभा चुनाव से पहले 2013 में भी ब्लैकविल भारत आए और मोदी से मिले थे. मोदी को अमेरिकी वीजा देने की वकालत भी की. जाहिर है बीजेपी से पुराना संबंध उन्हें आज पद्म भूषण की उपाधि दिला गया.
हर सरकार अपने करीब के लोगों को पुरस्कारों से नवाजती है. मौजूदा सरकार भी यही करेगी. सवाल इस पर नहीं है. लेकिन क्या लॉबिंग या दूसरे ऐसे क्षेत्र जो विवादित हैं, वहां से जुड़े लोगों को ऐसे सम्मानित पुरस्कार मिलने चाहिए? इससे क्या पुरस्कार की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचती. ब्लैकविल अपना काम कर रहे हैं. वो अपनी जगह ठीक हो सकते हैं. लेकिन हो सकता है कि वह कल किसी ऐसी बात के लिए लॉबिंग करें जो भारत विरोधी हो. फिर क्या? 2010 का ही उदाहरण लीजिए. तब मनमोहन सरकार ने अमेरिका में रहने वाले एनआरआई होटल कारोबारी संत सिंह चटवाल को पद्म भूषण देने की घोषणा की थी. चर्चा थी कि उन्हें भी भारत-अमेरिकी परमाणु करार में उल्लेखनीय भूमिका निभाने के लिए यह सम्मान दिया जाना था. लेकिन उन पर पहले से ही दुर्व्यवहार का एक आरोप था. पुरस्कार पर विवाद पैदा होने के बाद सरकार ने इसे रोकने का फैसला किया.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.