कहा जाता है कि 35 साल तक वाम दलों का अजेय किला रहे पश्चिम बंगाल को ममता बनर्जी ने नंदीग्राम के सहारे ही ढहाया था. पश्चिम बंगाल के उस चुनावी संग्राम में ममता के 'सारथी' शुभेंदु अधिकारी थे. महाभारत के 'कृष्ण' की तरह शुभेंदु अधिकारी ने वाम दलों के खिलाफ 'अर्जुन' बनी ममता की राह में आने वाले हर रोड़े को हटाया. साथ ही उन्हें पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज भी कराया. अब पश्चिम बंगाल के सियासी रण में योद्धाओं के नाम सामने आने लगे हैं. तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने एक साथ 291 उम्मीदवारों की सूची जारी करते हुए साफ कर दिया है कि वह केवल नंदीग्राम विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ेंगी. भाजपा ने भी पहले और दूसरे चरण के लिए 57 प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करते हुए नंदीग्राम विधानसभा सीट से शुभेंदु अधिकारी के नाम पर मुहर लगाई है. इस स्थिति में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि नंदीग्राम की सीट पश्चिम बंगाल के सियासी रण का 'कुरुक्षेत्र' बन गई है.
ममता और शुभेंदु दोनों के लिए 'नाक का सवाल' है नंदीग्राम
नंदीग्राम ने ही ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचाया था. इस वजह से यह उनके लिए काफी भाग्यशाली रहा है. लेकिन, नंदीग्राम के जरिये ममता को सत्ता दिलाने में शुभेंदु अधिकारी की अहम भूमिका थी. 2007 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में अधिकारी परिवार ने बड़ी भूमिका निभाई थी. इस अधिग्रहण के खिलाफ बनी भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी में शुभेंदु अधिकारी की किरदार अहम था. उस दौरान 14 लोग पुलिस फायरिंग में मारे गए थे. विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के खिलाफ मुख्य रूप से शुभेंदु अधिकारी ही रैलियों और कार्यक्रमों का आयोजन करते थे. कहा जा सकता है कि शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम आंदोलन का बड़ा चेहरा रहे थे और उन्होंने ने ही यहां से ममता बनर्जी के लिए सियासी जमीन तैयार की थी. इसी वजह से शुभेंदु को ममता के करीबियों में गिना जाता था और वह तृणमूल कांग्रेस में नंबर दो के नेता भी बने थे. अधिकारी परिवार का पूर्वी और पश्चिमी मेदिनीपुर में खास प्रभाव माना जाता है.
कहा जाता है कि 35 साल तक वाम दलों का अजेय किला रहे पश्चिम बंगाल को ममता बनर्जी ने नंदीग्राम के सहारे ही ढहाया था. पश्चिम बंगाल के उस चुनावी संग्राम में ममता के 'सारथी' शुभेंदु अधिकारी थे. महाभारत के 'कृष्ण' की तरह शुभेंदु अधिकारी ने वाम दलों के खिलाफ 'अर्जुन' बनी ममता की राह में आने वाले हर रोड़े को हटाया. साथ ही उन्हें पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज भी कराया. अब पश्चिम बंगाल के सियासी रण में योद्धाओं के नाम सामने आने लगे हैं. तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने एक साथ 291 उम्मीदवारों की सूची जारी करते हुए साफ कर दिया है कि वह केवल नंदीग्राम विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ेंगी. भाजपा ने भी पहले और दूसरे चरण के लिए 57 प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करते हुए नंदीग्राम विधानसभा सीट से शुभेंदु अधिकारी के नाम पर मुहर लगाई है. इस स्थिति में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि नंदीग्राम की सीट पश्चिम बंगाल के सियासी रण का 'कुरुक्षेत्र' बन गई है.
ममता और शुभेंदु दोनों के लिए 'नाक का सवाल' है नंदीग्राम
नंदीग्राम ने ही ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचाया था. इस वजह से यह उनके लिए काफी भाग्यशाली रहा है. लेकिन, नंदीग्राम के जरिये ममता को सत्ता दिलाने में शुभेंदु अधिकारी की अहम भूमिका थी. 2007 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में अधिकारी परिवार ने बड़ी भूमिका निभाई थी. इस अधिग्रहण के खिलाफ बनी भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी में शुभेंदु अधिकारी की किरदार अहम था. उस दौरान 14 लोग पुलिस फायरिंग में मारे गए थे. विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के खिलाफ मुख्य रूप से शुभेंदु अधिकारी ही रैलियों और कार्यक्रमों का आयोजन करते थे. कहा जा सकता है कि शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम आंदोलन का बड़ा चेहरा रहे थे और उन्होंने ने ही यहां से ममता बनर्जी के लिए सियासी जमीन तैयार की थी. इसी वजह से शुभेंदु को ममता के करीबियों में गिना जाता था और वह तृणमूल कांग्रेस में नंबर दो के नेता भी बने थे. अधिकारी परिवार का पूर्वी और पश्चिमी मेदिनीपुर में खास प्रभाव माना जाता है.
ममता बनाम शुभेंदु
नंदीग्राम विधानसभा सीट पर वोटों के समीकरण की बात करें, तो यहां मुसलमानों की आबादी करीब 34 फीसदी है. शेष आबादी में हिन्दू मतदाताओं की है. तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने एक रैली के दौरान कहा था कि वह अपना नाम भूल सकती हैं, लेकिन नंदीग्राम को नहीं. इसी रैली में उन्होंने यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी. भाजपा की ओर से शुभेंदु अधिकारी का नाम घोषित होने से पहले यह एकतरफा मुकाबला माना जा रहा था. लेकिन, शुभेंदु के नाम की घोषणा के साथ अब नंदीग्राम की सीट पर स्थिति रोचक हो गई है. जनवरी महीने में की गई अपनी रैली में ममता बनर्जी ने पुलिस फायरिंग में मारे गए लोगों के परिवार को पेंशन देने की बात कहकर माहौल को अपने पक्ष में बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी.
बदल गए हैं नंदीग्राम सीट के समीकरण
शुभेंदु अधिकारी को इस क्षेत्र में जमीन से जुड़ा नेता माना जाता है. शुभेंदु की नंदीग्राम में अपनी फेसवैल्यू भी है और वह हर वर्ग के लोगों के सुख-दुख में शामिल होने वाले नेता के तौर पर देखे जाते हैं. कहा जा सकता है कि दोनों के बीच कांटे की टक्कर होगी. इन दोनों ही नेताओं के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने पर अब वोटों का बंटना तय माना जा रहा है. दोनों में से एक को चुनने की दुविधा में फंसे मतदाताओं की वजह से सारे राजनीतिक समीकरण फेल होने की संभावना है. इस बार के चुनाव में अब्बास सिद्दीकी की पार्टी आईएसएफ का कांग्रेस-वाम दलों से गठबंधन है. यह भी इस सीट पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. मुस्लिम वोटों में थोड़ी सी भी सेंध लगती है, तो ममता बनर्जी के लिए नंदीग्राम सीट पर जीत एक मुश्किल लक्ष्य बन सकता है.
भवानीपुर सीट छोड़ने की वजह ये तो नहीं
भाजपा पहले इस बात ममता बनर्जी पर हमलावर रही कि वह दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ने की बात कह रही हैं. अब ममता ने अपनी पारंपरिक सीट भवानीपुर को छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की घोषणा की है. इस पर भी भाजपा बयानबाजी करने से नहीं चूक रही है. दरअसल, 2016 में ममता बनर्जी को इस सीट पर 65,520 वोट मिले थे, जो 2011 में मिले 73,635 के हिसाब से करीब 29 फीसदी कम थे. भवानीपुर सीट पर ममता और कांग्रेस की प्रत्याशी दीपा दासमुंशी के बीच करीब 25,000 वोटों का फासला था. लेकिन, इस सीट पर भाजपा को भी 26,299 वोट मिले थे. ऐसे में ममता के लिए इस बार यह सीट मुश्किलों भरी हो सकती थी. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में कोलकाता दक्षिण सीट के अंतर्गत आने वाली इस सीट से टीएमसी को केवल 3168 वोटों की लीड ही मिली थी. ऐसे में ममता बनर्जी के भवानीपुर सीट छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की एक वजह ये भी मानी जा सकती है.
रोचक होगी ये सियासी जंग
ममता बनर्जी का नंदीग्राम से विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान एक बड़ा राजनीतिक कदम माना जा रहा है. उन्होंने अपने इस फैसले से भाजपा और अपने पूर्व सिपेहसालार शुभेंदु को उनके ही गढ़ में सीधे तौर पर चुनौती दी है. साथ ही टीएमसी के कार्यकर्ताओं में जोश भरने में भी कामयाब रही हैं. भाजपा ने भी शुभेंदु अधिकारी को ममता के सामने प्रत्याशी बनाकर एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. अधिकारी पहले ही कह चुके हैं कि वो 50,000 वोटों से ममता को हराएंगे, वरना राजनीति छोड़ देंगे. इस स्थिति में ये देखना दिलचस्प होगा कि नंदीग्राम में कभी एकसाथ मिलकर सियासी जंग लड़ने वाले एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी संग्राम में कैसा प्रदर्शन करते हैं. 'कुरुक्षेत्र' का यह रण क्या गुल खिलाएगा, ये नतीजे बता ही देंगे.
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