उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control Law) पर चर्चाओं का दौर जारी है. इस कानून को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अपना अलग सुर साधा है. नीतीश कुमार ने जनसंख्या नियंत्रण कानून पर तंज कसते हुए कहा कि कुछ लोग सोचते हैं, कानून बनाने से सब कुछ हो जाएगा. महिलाओं को शिक्षित किए बिना केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा. खैर, बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चला रहे जेडीयू (JD) नेता नीतीश कुमार का ये विरोध ट्रिपल तलाक, धारा 370, सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर पहले भी सामने आ चुका है. देश में बढ़ती आबादी की वजह से कम हो रहे संसाधनों की कमी को देखते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून पर चर्चा जरूरी नजर आती है. लेकिन, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून पर नीतीश कुमार भाजपा से सहमत क्यों नही हैं?
जेडीयू की समावेशी राजनीति को झटका
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में जेडीयू (JD) तीसरे नंबर का राजनीतिक दल बन गया था. भाजपा के साथ लंबे समय तक गठबंधन सरकार चलाने वाली जेडीयू को उसकी समावेशी राजनीति के लिए जाना जाता है. इस बार के विधानसभा चुनाव में जेडीयू की ओर से चुनावी मैदान में उतारे गए 11 मुस्लिम प्रत्याशियों में से एक को भी जीत नसीब नहीं हुई. अपनी समावेशी राजनीति के बल पर एक अरसे तक मुस्लिम समुदाय का भरोसा पाने वाली जेडीयू के लिए ये काफी निराशाजनक स्थिति कही जा सकती है. जेडीयू ने राम मंदिर, धारा 370, ट्रिपल तलाक, सीएए, एनआरसी जैसे मुद्दों का विरोध किया. लेकिन, इस बार अपने साथ मुस्लिम समुदाय को लाने में सफल नहीं हो सकी. 2015 के बाद से जेडीयू की 'सेकुलर' छवि को भारी नुकसान हआ है.
उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control Law) पर चर्चाओं का दौर जारी है. इस कानून को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अपना अलग सुर साधा है. नीतीश कुमार ने जनसंख्या नियंत्रण कानून पर तंज कसते हुए कहा कि कुछ लोग सोचते हैं, कानून बनाने से सब कुछ हो जाएगा. महिलाओं को शिक्षित किए बिना केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा. खैर, बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चला रहे जेडीयू (JD) नेता नीतीश कुमार का ये विरोध ट्रिपल तलाक, धारा 370, सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर पहले भी सामने आ चुका है. देश में बढ़ती आबादी की वजह से कम हो रहे संसाधनों की कमी को देखते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून पर चर्चा जरूरी नजर आती है. लेकिन, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून पर नीतीश कुमार भाजपा से सहमत क्यों नही हैं?
जेडीयू की समावेशी राजनीति को झटका
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में जेडीयू (JD) तीसरे नंबर का राजनीतिक दल बन गया था. भाजपा के साथ लंबे समय तक गठबंधन सरकार चलाने वाली जेडीयू को उसकी समावेशी राजनीति के लिए जाना जाता है. इस बार के विधानसभा चुनाव में जेडीयू की ओर से चुनावी मैदान में उतारे गए 11 मुस्लिम प्रत्याशियों में से एक को भी जीत नसीब नहीं हुई. अपनी समावेशी राजनीति के बल पर एक अरसे तक मुस्लिम समुदाय का भरोसा पाने वाली जेडीयू के लिए ये काफी निराशाजनक स्थिति कही जा सकती है. जेडीयू ने राम मंदिर, धारा 370, ट्रिपल तलाक, सीएए, एनआरसी जैसे मुद्दों का विरोध किया. लेकिन, इस बार अपने साथ मुस्लिम समुदाय को लाने में सफल नहीं हो सकी. 2015 के बाद से जेडीयू की 'सेकुलर' छवि को भारी नुकसान हआ है.
दरअसल, इन सभी मुद्दों पर जेडीयू ने सदन से वॉक आउट कर बैक डोर से ही सही, लेकिन भाजपा को समर्थन किया था. जेडीयू की ये रणनीति उसके खिलाफ जाती दिखी. भाजपा के साथ गठबंधन के चलते पिछड़े समुदायों की राजनीति करने वाली जेडीयू का साथ देने वाला मुस्लिम वोटबैंक उससे छिटकता जा रहा है. हालांकि, नीतीश कुमार भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चलाने के साथ ही अपने सियासी समीकरणों को मजबूत करने में जुटे हुए हैं. जेडीयू ने नीतीश सरकार में मुस्लिम चेहरे की कमी को पूरा करने के लिए बसपा से तोड़कर लाए गए विधायक जमा खान को अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बनाया है. लेकिन, सवाल जस का तस है कि अल्पसंख्यक मंत्री के सहारे क्या अगली बार नीतीश कुमार को मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिलेगा?
पार्टी में बढ़ रहा अंर्तविरोध
जनसंख्या नियंत्रण कानून पर नीतीश कुमार की राय से अलग रुख अपनाते हुए जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने इसका समर्थन किया है. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की इस पहल को स्वागत योग्य बताते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि आबादी बढ़ने से देश में संसाधनों की कमी हो रही है. बिहार में ये कानून बनेगा या नहीं, इस पर मिल बैठकर तय किया जाएगा. धारा 370, राम मंदिर और ट्रिपल तलाक के मुद्दों पर भी जेडीयू में विरोधाभासी स्वर सामने आए थे. एनडीए में शामिल जेडीयू को इन सभी मुद्दों पर सदन से वॉक आउट करना पड़ा था. वहीं, संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा भारत के सभी लोगों का एक डीएनए वाले बयान के कुछ दिनों बाद ही नीतीश सरकार के मंत्री जमा खान अपने पूर्वजों को हिंदू बता चुके हैं. जो पार्टी में व्याप्त विरोधाभास को दिखाने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है.
भाजपा के साथ गठबंधन नीतीश कुमार के लिए सिरदर्द
एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने बीते विधानसभा चुनाव में एनडीए से बाहर रहने का फैसला किया था. चिराग पासवान की इस रणनीति के कारण सबसे बड़ा नुकसान जेडीयू को झेलना पड़ा. हालांकि, एलजेपी में हुई राजनीतिक टूट से नीतीश कुमार ने इसका बदला ले लिया है. लेकिन, बिहार में नीतीश के सामने भाजपा ने शाहनवाज हुसैन नाम की समस्या भी खड़ी कर दी है. शाहनवाज हुसैन के सहारे भाजपा मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर रही है. खैर, भाजपा को मुसलमानों का साथ मिलेगा या नहीं, ये अगले विधानसभा चुनाव में ही तय होगा. लेकिन, संसद के मानसून सत्र में जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए भाजपा इस मुद्दे को हवा देने की तैयारी कर रही है. भाजपा सांसद राकेश सिन्हा की ओर से जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए प्राइवेट मेंबर बिल पहले ही पेश किया जा चुका है. माना जा रहा है कि मानसून सत्र में इस पर चर्चा संभव है. इस स्थिति में देखना दिलचस्प होगा कि जनसंख्या नियंत्रण कानून पर होने वाली चर्चा में जेडीयू का रुख कैसा रहता है?
बिहार में जब तक जेडीयू एनडीए गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका निभा रही थी, उसकी समावेशी राजनीति का फॉर्मूला हिट रहा था. लेकिन, बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टीएआईएमआईएम की एंट्री ने जेडीयू समेत मुख्य विपक्षी दल आरजेडी के समीकरण भी बिगाड़ दिए हैं. खैर, इन समीकरणों को पांच सालों में नीतीश कुमार कैसे दुरुस्त करेंगे, ये देखने वाली बात होगी. लेकिन, जनसंख्या नियंत्रण कानून पर नीतीश कुमार का विरोध सीधे तौर पर अपने बिगड़ चुके समीकरण को साधने की कवायद भर है.
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