Electronic voting Machine यानी EVM 2014 से ही चर्चा का विषय बनी हुई है. खास तौर पर विपक्ष के लिए, Congress, RJD, BSP, SP, TMC, AAP जैसी कई विपक्षी पार्टियों ने Election Commission के सामने ईवीएम की जगह बैलट पेपर का इस्तेमाल करने की अर्जी दी है. यहां तक कि EVM और VVPAT से संबंधित कई शिकायतें सुप्रीम कोर्ट के सामने भी गई हैं. Loksabha Election 2019 में भी EVM को लेकर इसी तरह की बातें शुरू हो गई हैं.
Exit Poll 2019 Results आने के बाद जैसे ही सभी विपक्षी पार्टियों ने देखा कि BJP की जीत का अनुमान है और पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की वापसी की तैयारी हो रही है. इसके बाद से ही सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर विपक्ष द्वारा EVM हैकिंग का आरोप लगाया जा रहा है. ट्विटर पर तो EVM Hacking और EVM Scandal हैशटैग ट्रेंड भी करने लगा था. आज ही चुनाव आयोग ने 21 विपक्षी पार्टियों द्वारा EVM के खिलाफ की गई सभी मांगों को ठुकरा दिया है. विपक्षी पार्टियां अब चुनाव आयोग पर भी दोषारोपण करने लगी हैं. कांग्रेस MP उदित राज ने तो सुप्रीम कोर्ट को भी इन आरोपों में शामिल कर दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी EVM की धांधली में शामिल है.
इन सभी के बीच एक सबसे बड़ा सवाल ये सामने आता है कि आखिर इतने सारे आरोप लगाने के बाद भी कानूनी शिकायत आखिर इसे लेकर क्यों नहीं की जाती है? सबसे पहले EVM को केरल में 1982 में इस्तेमाल किया था, लेकिन तब से लेकर अब तक में इसको लेकर सबसे ज्यादा विवाद 2014-2019 के चुनावों में ही दिखा है. इतने आरोप लगे हैं कि खुद चुनाव आयोग को EVM और VVPAT को लेकर सफाई देनी पड़ी है, लेकिन फिर भी EVM को लेकर अरविंद केजरीवाल, मायावति, अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी से लेकर उनकी पार्टियों के कई कार्यकर्ताओं और आम लोगों ने भी FIR या कोई लिखित शिकायत नहीं की. जब्कि सिर्फ 2 रुपए देकर पोलिंग बूथ पर ही शिकायत की जा सकती है.
क्यों नहीं होती EVM को लेकर लिखित शिकायत?
इसे समझने के लिए लोकसभा चुनाव 2019 से जुड़े ताज़ा मामले को...
Electronic voting Machine यानी EVM 2014 से ही चर्चा का विषय बनी हुई है. खास तौर पर विपक्ष के लिए, Congress, RJD, BSP, SP, TMC, AAP जैसी कई विपक्षी पार्टियों ने Election Commission के सामने ईवीएम की जगह बैलट पेपर का इस्तेमाल करने की अर्जी दी है. यहां तक कि EVM और VVPAT से संबंधित कई शिकायतें सुप्रीम कोर्ट के सामने भी गई हैं. Loksabha Election 2019 में भी EVM को लेकर इसी तरह की बातें शुरू हो गई हैं.
Exit Poll 2019 Results आने के बाद जैसे ही सभी विपक्षी पार्टियों ने देखा कि BJP की जीत का अनुमान है और पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की वापसी की तैयारी हो रही है. इसके बाद से ही सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर विपक्ष द्वारा EVM हैकिंग का आरोप लगाया जा रहा है. ट्विटर पर तो EVM Hacking और EVM Scandal हैशटैग ट्रेंड भी करने लगा था. आज ही चुनाव आयोग ने 21 विपक्षी पार्टियों द्वारा EVM के खिलाफ की गई सभी मांगों को ठुकरा दिया है. विपक्षी पार्टियां अब चुनाव आयोग पर भी दोषारोपण करने लगी हैं. कांग्रेस MP उदित राज ने तो सुप्रीम कोर्ट को भी इन आरोपों में शामिल कर दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी EVM की धांधली में शामिल है.
इन सभी के बीच एक सबसे बड़ा सवाल ये सामने आता है कि आखिर इतने सारे आरोप लगाने के बाद भी कानूनी शिकायत आखिर इसे लेकर क्यों नहीं की जाती है? सबसे पहले EVM को केरल में 1982 में इस्तेमाल किया था, लेकिन तब से लेकर अब तक में इसको लेकर सबसे ज्यादा विवाद 2014-2019 के चुनावों में ही दिखा है. इतने आरोप लगे हैं कि खुद चुनाव आयोग को EVM और VVPAT को लेकर सफाई देनी पड़ी है, लेकिन फिर भी EVM को लेकर अरविंद केजरीवाल, मायावति, अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी से लेकर उनकी पार्टियों के कई कार्यकर्ताओं और आम लोगों ने भी FIR या कोई लिखित शिकायत नहीं की. जब्कि सिर्फ 2 रुपए देकर पोलिंग बूथ पर ही शिकायत की जा सकती है.
क्यों नहीं होती EVM को लेकर लिखित शिकायत?
इसे समझने के लिए लोकसभा चुनाव 2019 से जुड़े ताज़ा मामले को जानना होगा. 23 अप्रैल को गुवाहाटी के पोलिंग बूथ के सामने खड़े होकर पूर्व DGP और जाने-माने लेखक हरेकृष्ण डेका ने स्थानीय मीडिया से शिकायत की कि उन्होंने किसी अन्य पार्टी को वोट दिया, लेकिन वोट दूरसे प्रत्याशी को गया और VVPAT की पर्ची में भी दूसरा नाम ही सामने आया.
डेका के अनुसार जब उन्होंने इस बात की शिकायत पोलिंग अफसर से की और पूछा कि ऐसा क्यों हुआ तो उस अफसर ने कहा कि इस मामले की शिकायत 2 रुपए देकर की जा सकती है, लेकिन अगर शिकायत गलत साबित हुई तो 6 महीने की जेल या फिर फाइन या दोनों हो सकते हैं. डेका इस तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते थे. उनके पास कोई तरीका नहीं था कि वो अपने आरोप को साबित कर सकें.
State chief electoral officer (CEO) मुकेश साहू का इस मामले में कहना था कि ऐसी शिकायत एक घोषणापत्र के जरिए presiding officer के पास की जा सकती है. ऐसा करने के बाद संबंधित इंसान को अपना कथन साबित करने के लिए एक टेस्ट वोट देना होता है. अगर टेस्ट वोट में संबंधित इंसान की बात साबित हो जाती है तो EVM की गड़बड़ी मान ली जाती है, लेकिन अगर नहीं होती तो संबंधित इंसान पर कार्यवाही होती है.
दरअसल, चुनाव आयोग द्वारा EVM की सत्यता पर सवाल उठाने वाले लोगों को लेकर कड़े नियम बनाए गए हैं. EVM को लेकर झूठी शिकायत करने वाले लोगों पर कार्यवाई की जाती है और यही कारण है कि EVM पर आरोप तो लगते हैं, लेकिन लिखित शिकायत की चर्चा नहीं होती. यही नियम EVM की FIR पर भी लागू होता है. अगर ये झूठ साबित हुआ तो शिकायतकर्ता को दंड भुगतना पड़ सकता है.
क्या कहता है कानून?
Conduct of Elections Rules 1961 के नियम 49MA के मुताबिक अगर EVM और VVPAT पर सवाल उठाने वालों को लेकर नियम बनाए गए हैं. अगर शिकायत सही साबित होती है तो उस मशीन का इस्तेमाल तत्काल तौर पर बंद कर दिया जाएगा. पर अगर शिकायत गलत साबित हुई तो वोटर को गलत शिकायत करने के आधार पर IPC के सेक्शन 177 के तहत 6 महीने की जेल या 1000 रुपए का जुर्माना या फिर दोनों ही हो सकते हैं.
इस नियम के तहत अलग-अलग जिलों को लेकर एक्शन अलग हो सकता है. उदाहरण के तौर पर चेन्नई के एक मामले में EVM के खिलाफ वॉट्सएप पर अफवाह फैलाने वाले को भी इसी नियम के तहत सजा देने का प्रावधान बना दिया गया था.
EVM से जुड़े इस नियम के खिलाफ भी हो चुकी है शिकायत-
इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी PIL दाखिल हो चुकी है. डेका का मामला लोकसभा चुनाव 2019 में नया नहीं है. 11 अप्रैल से शुरू हुए इन चुनावों में पहले दो चरण में भी यही संबंधित शिकायत आ चुकी है. यहां तक कि 11 अप्रैल को मेरठ के एक वोटर ने अपने फोन से वीडियो रिकॉर्ड कर उसे सबूत के तौर पर भी दिखाने की कोशिश की थी. Times of India की रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव अधिकारियों ने उस समय ही मशीन को बदल दिया था और कहा था कि ये मशीन की गलती है. उस समय वोटर बसपा को वोट देना चाहता था जो भाजपा को गया था. विपक्ष ने इसे लेकर भी हंगामा किया था.
इसी को लेकर अप्रैल में ही केरल के एक व्यक्ति ने PIL डाली थी जिसमें बताया गया था कि पार्दर्शी चुनाव प्रक्रिया के तहत EVM की शिकायत को गैरअपराधिक बना दिया जाए क्योंकि कई वोटर तो शिकायत इसी डर से नहीं करते हैं कि उन्हें किसी कानूनी मामले में नहीं फंसना.
इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस भी जारी किया था. इसी मामले में चुनाव आयोग ने जवाब दिया था कि अगर ऐसा होता है तो EVM को लेकर कई फर्जी शिकायतें भी हो जाएंगी. अभी ही आधे से ज्यादा मामलों में सिर्फ कोरे आरोप ही सामने आते हैं.
EVM हैकिंग और VVPAT मशीनों की गड़बड़ी को लेकर बहुत से सवाल उठाए गए हैं, लेकिन कोई ठोस शिकायत सामने नहीं आई है. कई नेताओं ने बड़े गंभीर आरोप लगाए हैं, लेकिन इतने के बाद भी किसी ने कानूनी तौर पर शिकायत नहीं की क्योंकि अगर ऐसा होता तो उन्हें भी पूरा मामला साबित करना होता और अगर वो गलत साबित होते तो नियम के अनुसार उनपर भी कानूनी कार्यवाई हो सकती थी. ईवीएम दोषी है या नहीं ये तो आरोप लगाने वालों को शायद पता हो, लेकिन कोई इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहता. ऐसे में चुनाव आयोग की दलील सही लगती है कि EVM को लेकर फर्जी शिकायतों का सिलसिला जारी रहेगा अगर इस तरह का कानून नहीं बनाया गया.
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