कुछ टीवी चैनल सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो चला रहे हैं. सोशल मीडिया पर एक भयंकर लड़ाई दिख रही है.
अब जो कुछ भी हो रहा है खुलेआम हो रहा है. इस घमासान में लोग किसी भी हद तक जा रहे हैं. हर किसी के बीच लड़ाई सिर्फ यही साबित करने की है कि कौन अधिक देशभक्त है. वीडियो में जो लोग दुश्मनों से लोहा ले रहे हैं. उनके छक्के छुड़ा रहे हैं उन्हें इस चीख चिल्लाहट से कोई फर्क नहीं पड़ता. वो इस सबसे दूर हैं. जैसा कि वो हमेशा करते हैं इस बार भी उन्होंने शांति से, चुपचाप, पेशेवर, घातक और तेजी से अपना काम किया.
इस स्ट्राइक के समर्थकों के पांव जमीन पर नहीं टिक रहे. जिन लोगों ने इन हमलों पर शक किया था. संदेह व्यक्त किया था वे इस समय न तो टवीट कर रहे हैं और न ही मीम शेयर कर रहे हैं. लेकिन वो इस पर बोलेंगे जरुर.
आजकल की राजनीति में खुद को सबसे ऊपर दिखाने की होड़ लगी है. और दोनों ही पक्ष अपने को ऊपर साबित करने में लगे हैं. ऐसे में जब हर बदलते वक्त के साथ लोगों के मत बदलते हों आप किसी से भी माफी की उम्मीद नहीं कर सकते.
सर्जिकल स्ट्राइक पर उंगली उठाने वाले खामोश क्यों हैं?
सरल प्रकृति के और जमीन से जुड़े राजनेताओं के दिन अब नहीं रहे. हालांकि, सोशल मीडिया पर इस क्रॉसफायर में अरुण शौरी भी घिर गए जिन्होंने सरकार द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक का क्रेडिट लेने को फर्जिकल कहा था.
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने कहा- मुझे इस बात पर कभी कोई संदेह नहीं था कि सर्जिकल सट्राइक हुई थी. लेकिन अपने प्रचार के लिए इसका इस्तेमाल करना और ये दावा करने के लिए इस्तेमाल करना कि 'मेरी छाती 56 इंच है और मैंने पाकिस्तान को उचित जवाब दिया है', गलत है.
लोगों ने दावा करना शुरू कर दिया कि शौरी ने स्ट्राइक पर शक किया था. हालांकि ये सच्चाई से कोसों से दूर है. उनके विरोधी ये बात समझने के लिए तैयार ही नहीं है कि आखिर वो कहना क्या चाह रहे हैं. वो सिर्फ इतना कहना चाह रहे थे कि सरकार को भारतीय सेना द्वारा किए गए स्ट्राइक का क्रेडिट नहीं लेना चाहिए. जबकि शौरी ने इसकी आलोचना की, तो दूसरी तरफ इस स्ट्राइक पर सवाल खड़े करने वाले कई अन्य राजनेता और बुद्धिजीवियों ने बगैर माफी मांगे ही कन्नी काट ली.
एक आतंकवादी शिविर या नेता को टारगेट करना आतंकवाद को खत्म नहीं करेगा. लेकिन यह आतंकवाद और आतंकी संगठनों का समर्थन करने वाले उन देशों को एक कड़ा संदेश जरुर देता है कि "यदि आप हमें नुकसान पहुंचाने आएंगे, तो फिर आप परिणाम भी झेलेंगे."
अगर भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की घोषणा नहीं की होती तो बेहतर होता क्योंकि तब पाकिस्तान अंदाजा ही लगाता रहता. पड़ोसी देश इस बात को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है कि इसकी मिट्टी पर आतंकवादी संगठन पनप रहे हैं.
ये खबर आज की राजनीति में खुद को सर्वोच्च दिखाने के होड़ की वजह से सुर्खियों में उछली और मीडिया संस्थानों ने भी इसे हाथों हाथ लिया.
लेकिन यह राजनीति किसी भी नियम का पालन नहीं करती है, क्योंकि मत बदलते रहते हैं तो किसी भी तरह की माफी की अपेक्षा न ही रखें तो बेहतर.
(DailyO से साभार)
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