सियासत में अटकलों के सिर पैर नहीं होते. फिर भी कई बार ये भी वैसे ही लग रहे होते हैं जैसे बगैर आग के धुआं नहीं निकलता. कई बार तो ये सब राजनीतिक दलों के एजेंडा और प्रोपैगैंडा का हिस्सा भी होता है, जिसके तहत खबरें लीक कर मीडिया के जरिये फीडबैक लिये जाते हैं.
आम आदमी पार्टी के कोटे से राज्य सभा पहुंचने वाले संभावितों की सूची भी फिलहाल ऐसी ही लगती है, लेकिन इस सूची में कभी अन्ना हजारे का नाम जुड़े होने की चर्चा नहीं हो रही.
अब चर्चा में कौन कौन?
अभी तक तो यही चर्चा रही कि आम आदमी पार्टी अपने किसी नेता को दिल्ली से राज्य सभा के लिए उम्मीदवार नहीं बनाएगी, लेकिन अब ऐसा नहीं लगता. दिल्ली में स्मॉग की मुसीबत के बीच ही सियासी हवाओं में कई चौंकाने वाले नाम भी चर्चा में हैं.
अगले साल दिल्ली से राज्य सभा की तीन सीटें खाली होने जा रही हैं - और इसके लिए आप की ओर से तीन कैटेगरी भी बता दी गयी है. आप के ही अंदरखाने से ही खबर आयी थी कि पार्टी किसी नेता को राज्य सभा भेजने की जगह किसी कानूनविद, अर्थशास्त्री या समाजसेवी को तवज्जो देगी. इसी रणनीति के तहत आप की ओर से आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से संपर्क किया गया था, लेकिन उन्होंने तो ऑफर रिजेक्ट ही कर दिया. अब पार्टी चाहे तो अर्थ जगत के किसी और नाम पर विचार कर सकती है. वैसे अब जो चर्चा है उसमें जरूरी नहीं कि पार्टी अपने किसी नेता को भेजने के बारे में न सोचे. वैसे सोचना तो पड़ेगा ही जब नेता खास हो.
चौंकाने वाले नामों में एक नाम खुद आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल का है. हो सकता है 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मैदान में चैलेंज करने की तैयारी के इरादे से खुद केजरीवाल राज्य सभा जाने की सोच रहे हों. अभी तक केजरीवाल...
सियासत में अटकलों के सिर पैर नहीं होते. फिर भी कई बार ये भी वैसे ही लग रहे होते हैं जैसे बगैर आग के धुआं नहीं निकलता. कई बार तो ये सब राजनीतिक दलों के एजेंडा और प्रोपैगैंडा का हिस्सा भी होता है, जिसके तहत खबरें लीक कर मीडिया के जरिये फीडबैक लिये जाते हैं.
आम आदमी पार्टी के कोटे से राज्य सभा पहुंचने वाले संभावितों की सूची भी फिलहाल ऐसी ही लगती है, लेकिन इस सूची में कभी अन्ना हजारे का नाम जुड़े होने की चर्चा नहीं हो रही.
अब चर्चा में कौन कौन?
अभी तक तो यही चर्चा रही कि आम आदमी पार्टी अपने किसी नेता को दिल्ली से राज्य सभा के लिए उम्मीदवार नहीं बनाएगी, लेकिन अब ऐसा नहीं लगता. दिल्ली में स्मॉग की मुसीबत के बीच ही सियासी हवाओं में कई चौंकाने वाले नाम भी चर्चा में हैं.
अगले साल दिल्ली से राज्य सभा की तीन सीटें खाली होने जा रही हैं - और इसके लिए आप की ओर से तीन कैटेगरी भी बता दी गयी है. आप के ही अंदरखाने से ही खबर आयी थी कि पार्टी किसी नेता को राज्य सभा भेजने की जगह किसी कानूनविद, अर्थशास्त्री या समाजसेवी को तवज्जो देगी. इसी रणनीति के तहत आप की ओर से आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से संपर्क किया गया था, लेकिन उन्होंने तो ऑफर रिजेक्ट ही कर दिया. अब पार्टी चाहे तो अर्थ जगत के किसी और नाम पर विचार कर सकती है. वैसे अब जो चर्चा है उसमें जरूरी नहीं कि पार्टी अपने किसी नेता को भेजने के बारे में न सोचे. वैसे सोचना तो पड़ेगा ही जब नेता खास हो.
चौंकाने वाले नामों में एक नाम खुद आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल का है. हो सकता है 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मैदान में चैलेंज करने की तैयारी के इरादे से खुद केजरीवाल राज्य सभा जाने की सोच रहे हों. अभी तक केजरीवाल बाहर से या सिर्फ ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी को घेरते आये हैं. अगर एक बार सदन में पहुंच गये तो विपक्ष की मजबूत आवाज बन सकते हैं. नीतीश कुमार के एनडीए में चले जाने के बाद वैसे भी वो आवाज कमजोर पड़ गयी है.
एक बात और भी है. अभी तक कांग्रेस केजरीवाल को घास नहीं डाल रही है. राज्य सभा पहुंचने के बाद किसी मुद्दे पर अगर केजरीवाल कोई स्टैंड लेते हैं तो कांग्रेस के सामने धर्म संकट खड़ा हो सकता है. केजरीवाल के साथ अच्छी बात ये है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनकी सबसे बड़ी हिमायती हैं.
केजरीवाल के अलावा मीडिया में जो चौंकाने वाला नाम चर्चा में है वो है दक्षिण के सुपर स्टार कमल हासन का नाम. चर्चाओं को बल इसलिए भी मिलता है कि केजरीवाल चेन्नई जाकर कमल हासन से मुलाकात कर चुके हैं. कमल हासन से हाथ मिलाकर केजरीवाल दक्षिण भारत में पांव जमाना चाहेंगे. वैसे भी केजरीवाल को वो जगहें ज्यादा सूट करती हैं जहां बीजेपी कमजोर है.
आखिर अन्ना क्यों नहीं
जिन तीन कैटेगरी की बात है उनमें से एक समाजसेवी भी है. आप के हिसाब से देखें तो पार्टी के लिए अन्ना हजारे से बड़ा समाजसेवी कौन होगा भला. ये अन्ना हजारे ही तो थे जिन्होंने रामलीला आंदोलन खड़ा किया और उसी नाते आम आदमी पार्टी न सिर्फ अस्तित्व में आयी बल्कि दिल्ली में सरकार बनाने में भी कामयाब रही. पंजाब में वो विपक्षी पार्टी है और गुजरात के अलावा यूपी निकाय चुनाव पर भी उसकी विशेष नजर है.
हो सकता है कि अन्ना हजारे को आम आदमी पार्टी का प्रस्ताव नामंजूर हो, लेकिन इस दिशा में किसी प्रयास की खबर भी सामने अब तक नहीं आई है. जिन सूत्रों से रघुराम राजन के ऑफर की खबर आई वो तो अन्ना की भी बात बताये ही होते, अगर कहीं कोई चर्चा हुई होती. ये बात तो सही है कि राजनीति को लेकर ही अन्ना ने केजरीवाल से किनारा कर लिया था. मगर, बाद में खुद अन्ना ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ फिर से आंदोलन करने की बात कही और शायद परिस्थितियां अनुकूल नहीं हो पायीं इसलिए उस पर अमल नहीं हो पाया.
अन्ना हजारे के साथ अरविंद केजरीवाल का नाम वैसे ही जुड़ जाता है जैसे लालकृष्ण आडवाणी का जिक्र आने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का. आडवाणी तो राष्ट्रपति नहीं बन सके, लेकिन अन्ना हजारे को राज्य सभा भेजने का मौका अभी अरविंद केजरीवाल के पास है और ये पूरी तरह उनके हाथ में है. अगर केजरीवाल एक बार अन्ना को राज्य सभा के लिए मनाने की कोशिश करे तो भी वो अपने ऊपर लगने वाले उन आरोपों से मुक्त हो सकते हैं कि वो मंजिल के रास्ते में साथियों और मददगारों की आगे बढ़ जाने पर परवाह नहीं करते.
वैसे अन्ना हजारे को राज्य सभा भेजने को लेकर और कोई तो सोचने से भी रहा. अगर अन्ना हजारे जैसे शख्स अगर संसद पहुंच कर कोई सदन में कोई बात कहें तो वो काम की ही बात होगी, भले ही मन की ही बात क्यों न हो.
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